कैपिटल हिल हंगामे को ‘गैरकानूनी प्रदर्शन’ बताने पर टेलीग्राफ़-वे आपके मित्र के उकसाये गुंडे थे मोदी जी!

प्रधानमंत्री को बताया गया है कि अमेरिका में उत्पात मचाने वाले प्रदर्शनकारी नहीं आपके मित्र द्वारा उकसाए गए अंग्रेजी वाले ठग यानी गुण्डे थे। दूसरा शीर्षक किसानों के लिए है,  प्रधानमंत्री जी, वे गैर कानूनी प्रदर्शनकारी नहीं बल्कि गौरवशाली किसान हैं जिन्हें आपने निराश किया है। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री की तथाकथित प्रतिक्रिया कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना वाली थी और द टेलीग्राफ ने उन्हें और उनके जरिए अपने पाठकों को बता है कि मामला वैसा है नहीं जैसा वे बनाना चाहते हैं।  

अंग्रेजी के जो पांच अखबार मैं देखता हूं उनमें आज अमेरिका की खबर छाई हुई है। इसके साथ प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया भी है। सभी अखबारों में यह पहले पन्ने पर है। इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर अमेरिका की खबरों को सबसे ज्यादा जगह दी है (विज्ञापन नहीं है) और प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया भी दो कॉलम में है, भले फोल्ड के नीचे। इसका शीर्षक है, गैरकानूनी प्रदर्शन से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नहीं रोका जा सकता है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह भारतीय संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है। आइए, देखें प्रधानमंत्री के इस महत्वपूर्ण बयान को अंग्रेजी के मेरे पसंदीदा पांच अखबारों ने कैसे छापा है। 

इंडियन एक्सप्रेस ने अमेरिका के राजदूत का इंटरव्यू और इस तरह उनकी प्रतिक्रिया भी पहले पन्ने पर छापी है। भारत में जब लोकतंत्र का बाजा बजा हुआ है और बहुत ज्यादा होने का प्रचार किया जा रहा है तो किसान आंदोलन चलते डेढ़ महीने होने को आए। दोनों और से तथाकथित कोशिशों के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकल रहा है और केंद्रीय मंत्री किसान नेताओं को धमकाने की कोशिश कर चुके हैं तो भारतीय प्रधानमंत्री अमेरिका के प्रदर्शन को गैर कानूनी कह रहे हैं, यह दिलचस्प है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड के साथ अमेरिकी प्रतिक्रिया के बीच में विश्व नेताओं की प्रतिक्रिया के साथ है। पहले पन्ने पर छोटी सी खबर में दुनिया भर के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री भी। 

टाइम्स ऑफ इंडिया में भी यह खबर, प्रतिक्रिया के रूप में पहले पन्ने पर शीर्षक समेत 11 लाइनों में है और शीर्षक है, सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण जरूरी है। टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर करीब आधा विज्ञापन है। हिन्दू में यह खबर ठीक-ठाक सिंगल कॉलम में है। शीर्षक है, मोदी ने प्रदर्शन को ‘गैरकानूनी’ कहा। द टेलीग्राफ ने अमेरिका की खबर को किसान आंदोलन की खबर के साथ बराबरी में रखा है। कहने की जरूरत नहीं है कि सामान्य स्थितियों में या अखबारों पर सरकार के गैरकानूनी या अदृश्य नियंत्रण न होने की स्थिति में दिल्ली के पास कल की ट्रैक्टर रैली का अभूतपूर्व दृश्य आज पहले पन्ने पर छाया होना चाहिए था। पर ऐसा है नहीं। टाइम्स ऑफ इंडिया में बिल्कुल नहीं। 

द हिन्दू में भी आज पहले पन्ने पर विज्ञापन नहीं है और किसान रैली की खबर फोटो के साथ पांच कॉलम में है। शीर्षक है, किसानों ने गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड का ‘रिहर्सल’ किया। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर दो कॉलम में दो कॉलम की फोटो के साथ है। शीर्षक है, वार्ता आज, (नरेन्द्र) तोमर (कृषिमंत्री) संप्रदाय प्रमुख से मिले, किसान यूनियन ने कहा कोई संबंध नहीं। पहले पन्ने पर छपी फोटो का कैप्शन अखबार ने लगाया है, दिल्ली के सिंघु बॉर्डर से टिकरी तक ट्रैक्टर मार्च में किसान। ट्रैक्टर मार्च और रिहर्सल का अंतर आप समझ सकते हैं। जिस संप्रदाय प्रमुख से मिलने का शीर्षक है वो हैं, बाबा लक्खा सिंह जो पंजाब आधार वाले नानकसर सिख संप्रदाय के प्रमुखों में एक हैं।

किसानों की खबर को हिन्दुस्तान टाइम्स ने आज पहले पन्ने से पहले के अपने अधपन्ने पर रखा है। और चार कॉलम में फोटो का शीर्षक लगाया है, राजधानी की सीमा पर ट्रैक्टर मार्च। इसका कैप्शन है, नए कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए किसानों ने अपने ट्रैक्टर निकाले और वेस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेसवे पर टिकरी से सिंघु बॉर्डर तक रैली की। कहने की जरूरत नहीं है कि इन सबमें द टेलीग्राफ की प्रस्तुति बिल्कुल अलग है।   

दो शब्दों का उसका शीर्षक अंग्रेजी के ‘कैपिटल’ शब्द से खेल है। अमेरिकी सरकार का मुख्यालय जहां है उसे कैपिटॉल हिल कहा जाता है। यह अंग्रेजी के कैपिटल यानी राजधानी या अंग्रेजी के बड़े अक्षरों के लिए उपयोग किए जाने वाले कैपिटल से अलग तरह से लिखा जाता है और इसमें बाद वाले ए की जगह ओ का प्रयोग किया जाता है। द टेलीग्राफ ने इस कैपिटल के टल में एक एल जोड़कर टोल बना दिया है। इसका मतलब होता है, पथकर, टैक्स या वसूली। नुकसान की गणना के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। यह शीर्षक अमेरिका की खबर का है। 

दूसरा शीर्षक राजधानी या बड़े वाले कैपिटल में एक एल जोड़ कर टल को टॉल यानी लंबा बना दिया गया है। लंबे आदमी को टॉल कहा जाता है। यहां टॉल किसान आंदोलन की लंबाई और कल की ट्रैक्टर रैली या रिहर्सल की लंबाई या सफलता के लिए है। शब्दों के हिज्जे में इस तरह के मामूली हेर-फेर से द टेलीग्राफ अंग्रेजी के शब्दों का अच्छा ज्ञान देता है और नहीं जानने वालों के लिए जानने का मौका भी। एक शब्दों के ये दो शीर्षक दो लाइन के दो उपशीर्षक के साथ हैं जो प्रधानमंत्री को संबोधित हैं। 

इनके जरिए, प्रधानमंत्री को बताया गया है कि अमेरिका में उत्पात मचाने वाले प्रदर्शनकारी नहीं आपके मित्र द्वारा उकसाए गए अंग्रेजी वाले ठग यानी गुण्डे थे। दूसरा शीर्षक किसानों के लिए है,  प्रधानमंत्री जी, वे गैर कानूनी प्रदर्शनकारी नहीं बल्कि गौरवशाली किसान हैं जिन्हें आपने निराश किया है। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री की तथाकथित प्रतिक्रिया कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना वाली थी और द टेलीग्राफ ने उन्हें और उनके जरिए अपने पाठकों को बता है कि मामला वैसा है नहीं जैसा वे बनाना चाहते हैं।  

 

संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार हैं और अनुवाद के क्षेत्र के कुछ सबसे अहम नामों में से हैं।

 

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