“अब्बास भाई….माफ़ करना, मैं आपका दर्द दुनिया को बता रहा हूँ !”

पुण्य प्रसून वाजपेयी

 

नाम -आसिफ, उम्र-25 बरस, शिक्षा-ग्रेजुएट
पिता का नाम-अब्बास, उम्र 55 बरस, पेशा-पत्रकार
मां का नाम-लक्ष्मी, उम्र 48 बरस, पेशा-पत्रकारिता की शिक्षिका

जो नाम लिखे गये हैं, वे सही नहीं हैं। यानी नाम छिपा लिए गये हैं। क्योंकि जिस घटना को मां-बाप ने ये कहकर छिपाया है और बेटे को समझा रहे हैं कि देश तो हमारा ही है तो दर्द हमें ही जब्त करना होगा, उस घटना के पीछे शायद नाम ही हैं, और नाम से जोड़कर देखे जाने वाला धर्म है। समाज के भीतर कितनी मोटी लकीर धर्म के नाम पर खींची जा चुकी है, ये घटना उसका सबूत है कि मुस्लिम बाप बंद कमरे में सिर्फ आंसू बहा सकता है। मां हिन्दू है पर वह भी खामोश है। दोनों उच्च शिक्षा प्राप्त ही नहीं बल्कि मुंबई-दिल्ली जैसी जगह में शानदार मीडिया हाउस में काम करते हुये उम्र गुजार चुके हैं। अब भी काम कर रहे हैं। पर ये कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं कि उनके बेटे के साथ क्या हो गया।

तो ये सच देश के केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन के लिये है। और जो हुआ है, वह इन दोनों सम्मानित जनों को इसलिये जानना चाहिए क्योंकि ये दोनों ही देश की सत्ताधारी पार्टी और सबसे ताकतवर सरकार से जुड़े हैं। और दोनों ही महानुभावों को ये पढ़ते वक्त इस अहसास से गुजरना होगा कि उनका विवाह भी हिन्दू महिला से हुआ है। पर दोनों ने अपने बच्चों के मुस्लिम नाम रखे हैं। और जाहिर है दोनों के बच्चे भी अच्छे स्कूल कॉलेज से आधुनिक शिक्षा पा रहे होंगे। और जो हादसा आसिफ के साथ हुआ है, वह आज नहीं तो कल इनके बच्चों के साथ भी किसी भी जगह हो सकता है क्योंकि अगर देश में धर्म के नाम जहर फैलेगा और शिकार जब कोई इस तरह प्रबुद्द तबके का लड़का होगा, जो कि सिंधिया स्कूल सरीखे स्कूल से पढ़कर निकला हो, वहां का टॉपर हो और हादसे के बाद बेटे में गुस्सा हो और मां-बाप उससे कह रहे हों- “देश तो हमारा ही है गुस्से को जब्त करना सीखना होगा” तो?

तो दिल्ली से सटा हुआ है नोएडा। आधुनिकतम शहर। तमाम अट्टालिकाएं। दुनिया की नामी गिरामी कंपनियां। दो महीने पहले ही दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति भी इसी नोएडा में पहुंचे थे। साथ में देश के प्रधानमंत्री भी थे। दुनिया में सैमसंग मोबाइल का सबसे बडा प्लांट नोएडा में खुला तो उसका उद्घाटन करने पहुंचे थे। जाहिर है जब प्लांट का उद्धाटन करने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून-जे-इन पहुंचे तो दुनिया ने जाना कि नोएडा भारत का आधुनिकतम शहर है। पर इसी प्लांट से चंद फर्लांग की दूरी पर चार दिन पहले कुछ लड़के आसिफ को घेर लेते हैं। आसिफ को गांव में रहने वाले लड़के सिर्फ इसलिये घेरते हैं क्योंकि आसिफ का एक दोस्त ये कहते हुए अपनी गाड़ी से रवाना होता है कि “आसिफ कल मिलेंगे। और घर पहुंच कर इकबाल को कहना कि प्रोजेक्ट रिपोर्ट जल्दी तैयार करे।” और उस जगह से गुजर रहे चंद लड़कों के कानों में सिर्फ ‘आसिफ’ शब्द जाता है। जगह ऐसी कि लोगों की आवाजाही लगातार हो रही है। प्रोफेशनल्स का आना जाना बना रहता है । इलाके में रिहाइशी मकान बड़ी संख्या में हैं। यानी मध्यम-उच्च मध्यम वर्ग के लोग बड़ी तादाद में रहते हैं। तो उनकी आवाजाही भी खूब होती है। पर इन सब से बेफिक्र वे चार पांच लडके अचानक आसिफ के पास आते हैं। घेर लेते हैं। और उसके बाद सवाल करते हैं।

“तुम्हारा नाम आसिफ है।”

“जी।”

“मुसलमान हो।”

चंद सेकेंड के लिये आसिफ को समझ नहीं आता वह क्या कहे क्योंकि मां तो हिन्दू है। और घर में रमजान या ईद के साथ साथ होली दीपावली ही नहीं सरस्वती पूजा तक मनायी जाती है।

“चुप क्यों है….मुसलमान हो।”

“हां। तो”

“बोलो जय माता दी।”

“क्या मतलब।”

“कोई मतलब नहीं बोलो जय माता दी।”

“क्यों।”

“जब बोलना होगा तो बोल लूंगा। लेकिन आप लोगों के कहने पर क्यों बोलूं।”

“नहीं तुम पहले बोलो जय माता दी।”

“मैं तुम्हारे कहने पर तो नहीं बोलूंगा।”

तभी एक लड़का मुक्का मारता है।

“ये क्या मतलब है। वाट आर यू डूइंग।”

“अरे ये तो अंग्रेजी भी बोलता है। तो बोलो जय माता दी।”

“आई विल सी यू।”

“अबे क्या बोल रहा है”

और उसके बाद चारो पांचों लड़के आसिफ पर ताबड़तोड़ हमला कर देते हैं। लात-घूंसे जमने लगते हैं। आसिफ सिर्फ विरोध कर पाता है। सूजे हुए चेहरे के साथ घर पहुंचता है। क्या हुआ पिता देखकर चौकते हैं। और सारी घटना सुनने के बाद पिता को भी समझ नहीं आता कि ये कौन सा वक्त है। आसिफ गुस्से में पुलिस में शिकायत करने की बात कहता है। उन लड़कों को सबक सिखाने के लिये कहता है। पिता किसी तरह बेटे का गुस्सा
शांत करते हैं। शाम ढलते ढलते मां भी घर पहुंचती है। मां को भी समझ नहीं आता वह करे क्या। दोनों को डर है कि पुलिस में शिकायत करेंगे तो फिर होगा क्या। भरोसा ही नहीं जागता कि पुलिस कार्रवाई करेगी। क्योंकि नोएडा जैसे आधुकितम शहर- समाज में जब बेखौफ इस तरह उनके बेटे का साथ हो गया जो कि देश दुनिया घूमे हुये हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त किये हुये हैं। हर हालात को जानते समझते हैं। फिर भी इस तरह खुले तौर पर अगर ये सब हो गया तो क्या करें। क्योंकि बेटे में गुस्सा है और पिता अपने बेटे से विनती करता है कि “खामोश हो जाओ। गुस्से को जब्त करो। ये हमारी जमीन है। ये देश हमारा है। अब अगर समाज को इस तरह बनाया जा रहा है तो फिर समाज बिगड़ने या बदला लेने के रास्ते तो हम नहीं चल सकते।”

बीते तीन दिनों से मां बाप बारी बारी से घर में रहते हैं। बेटे के साथ रहते हैं। लगातार समझा रहे हैं और बात बात में घर से ना निकलने को लेकर माता -पिता जब इस घटना का जिक्र कर देते हैं तो मैं भी सन्नाटे में आ जाता हूं। बाकायदा मुझे घटना बताकर घटना भूलने का जिक्र करते हैं। मैं पुलिस थाने का जिक्र कर उन लड़कों की निशानदेही की बात करता हूं। पर जिस तरह मां बाप गुहार लगाने के अंदाज में कहते हैं, कुछ मत कीजिए। हम बेटे को समझा रहे हैं, “गुस्सा जब्त करना सीखे,ये देश हमारा ही तो है।”

“पर ये कैसा देश हम बना रहे हैं, जहां हमीं खामोश हो जाएं।”

“नही.. तो आप क्या कर लेंगे। कैसे किसे समझाएंगे। कौन कार्रवाई करेगा। कानून का खौफ होता तो क्या इस तरह होता। और कल्पना कीजिये जगह जगह से जब इस तरह की खबरें आती हैं तो क्या होता है। लेकिन इस तरह शहर में पढ़े लिखे बेटे के साथ उसके भीतर क्या चल रहा होगा…. । ये भी तो सोचिए। क्या सोचे। लड़ने निकल पड़े। आपसे भी गुजारिश है इसका जिक्र किसी से ना करें।”

24 घंटे  मैं भी इसी कशमकश में रहा क्या वाकई हम इतने कमजोर हो चुके हैं या देश में कानून का राज है ही नहीं। या फिर समाज में जहर इतना भर दिया गया है कि जहर निकालने की जगह जहर पीकर खामोश रहने का हमें आदी बनाया जा रहा है। मैं क्या करुं…अब्बास भाई मुझे माफ करना मैंने आपके दर्द को कागज पर उकेर दिया। सार्वजनिक कर रहा हूं। दुनिया का सामने ला रहा हूं। कम से कम लेखन मुझे ये तो ताकत देता है।

 

(लेखक मशहूर पत्रकार हैं। यह कहानी उन्होंने 4 सितंबर को अपने फ़ेसबुक पेज पर लिखी थी।)



 

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