पहला पन्ना: टीके की कमी पर गोल-गोल बतियाते अख़बार!

कोविड-19 के टीके के प्रचार की राजनीति और उसकी कमी की खबरों से निपटने के सरकारी तरीके और अखबारों के सहयोग पर आपने कल पढ़ा। कायदे से कल जो स्थिति बताई गई थी, आज उसका फॉलोअप होना चाहिए था। यह बताया जाना चाहिए था कि टीके की कमी की वास्तविक स्थिति क्या है, महाराष्ट्र कैसे जिम्मेदार है आदि। कल आपने पढ़ा कि 10 राज्यों में टीके की कमी से संबंधित खबर सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर थी। और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेडकर ने कहा था कि केंद्र जरूरत से ज्यादा टीके मुहैया कराता है। कल दिन भर टीके की कमी से संबंधित छिटपुट खबरें आती रहीं। कुछ लोगों ने यह भी बताया कि पहली खुराक लगवाने के बाद दूसरी खुराक लेने तय तारीख को पहुंचे तो पता चला कि टीका ही नहीं था। 

मैं नहीं जानता ऐसी खबरों में कितनी सच्चाई है पर एक व्यक्ति के साथ भी ऐसा हो तो उसका तनाव समझिए। जब टीके की कमी की चर्चा चल रही है और इतने दिन अखबारों ने उसका प्रचार किया है तो अब यह बताना चाहिए कि ऐसे लोगों को क्या करना चाहिए या यह कितनी परेशानी की बात है। दो चार दिन देर होने का क्या मतलब है। यह जब इसलिए भी जरूरी था कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कोविड पर राजनीति से बचने की मांग की है। फिर भी, आज द टेलीग्राफ को छोड़कर सभी अखबारों में कोविड पर प्रधानमंत्री का कहा लीड है जबकि उसमें कुछ खास नहीं है। यह आप शीर्षक से ही समझ जाएंगे। शीर्षक देखिए 

  1. मामले बढ़ने के बीच प्रधानमंत्री ने टेस्ट, ट्रैक और ट्रीट की जरूरत पर जोर दिया – द हिन्दू 
  2. एमवीए और केंद्र के बीच फिर गोले दागे गए, टीके की खुराक न होने से महाराष्ट्र ने टीका केंद्र बंद किए, राज्य सरकार ने भेदभाव पर सवाल उठाया, पर्यात टीके सुनिश्चित करूंगा, टेस्टिंग पर ध्यान दीजिए (हिन्दुस्तान टाइम्स) 
  3. दूसरे दौर की रणनीति बनाने के लिए प्रधानमंत्री मुख्यमंत्रियों से मिले (फ्लैग शीर्षक)। मुख्य शीर्षक है, टेस्ट करने और पता लगाने पर ध्यान दीजिए, टीके पर हमला मत कीजिए प्रधानमंत्री (इंडियन एक्सप्रेस) 
  4. प्रधानमंत्री ने वैक्सीन रणनीति का बचाव किया, कहा यह वैश्विक नियमों के क्रम में है। इंट्रो है, लोगों को राजनीति करने दीजिए, सारी खुराक एक राज्य में नहीं रख सकते। (टाइम्स ऑफ इंडिया) 

 

आप जानते हैं कि टेस्टिंग का मतलब तभी है जब संक्रमित पाए गए लोगों को आइसोलेट करने की पक्की व्यवस्था हो। पर यह नहीं हो पाया है। संक्रमित पाए गए लोगों को आइसोलेट करने की कोई नई या पक्की व्यवस्था की गई है, इसकी जानकारी अभी तक तो नहीं है। ऐसे में सिर्फ जांच करने से ज्यादा लोग संक्रमित होंगे तो उनकी पहचान भर होगी और डर का माहौल बनेगा। खबरों से ये बताने की कोशिश की गई है कि प्रधानमंत्री ने रणनीति बनाने के लिए मुख्यमंत्रियों से बात की लेकिन सिर्फ अपनी बात कही किसी की सुनी नहीं। इंडियन एक्सप्रेस ने उद्धव ठाकरे की बात छापी है और टाइम्स ऑफ इंडिया ने उसका जवाब। बाकी हिन्दू के शीर्षक ने बता दिया कि पूरे मामले में जांचने, पता लगाने और उपचार करने की मजबूरी के अलावा कुछ नहीं है। पर प्रचार प्रधानमंत्री को देना है तो लीड है। 

वरना आज की खबर यह है कि भारत में टीकों का स्टॉक सिर्फ 5.5 दिन का है। एक और हफ्ते की आपूर्ति रास्ते में है। (टाइम्स ऑफ इंडिया) कई राज्यों में चुनाव से पहले टीके का इतना प्रचार और अब स्टॉक न होने की खबरें। न तब संयम था ना अब पारदर्शिता है। कहने की जरूरत नहीं है कि इससे पहले केंद्र सरकार ने एक ऐप्प का ऐसे ही प्रचार किया था और ऐसा लग रहा था कि उसके बिना कोविड से निपटा ही नहीं जा सकता है। या ऐप्प है तो कोविड नहीं रहेगा। कोविड से निपटना बहुत सफल भले नहीं कहा जा सके पर अब लोग ऐप्प को भूल से गए हैं। सरकार और मीडिया भी। 

आज के अखबारों में एक और महत्वूपर्ण खबर है – बनारस की अदालत ने कहा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के पास मस्जिद कांपलेक्स का सर्वेक्षण किया जाए और पता किया जाए कि मस्जिद से पहले मंदिर तो नहीं था। यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर, टाइम्स ऑफ इंडिया में अधपन्ने की लीड है जबकि हिन्दू में सिंगल कॉलम में है। इंडियन एक्सप्रेस में यह टॉप पर दो कॉलम में है। एक्सप्रेस का शीर्षक है, काशी विश्वनाथ बनाम ज्ञानवापी मस्जिद अदालत ने एएसआई को विवादास्पद स्थल का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया। अखबार ने बताया है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड इसके खिलाफ हाईकोर्ट जाएगा। एक्सप्रेस ने यह स्पष्ट किया है कि 1991 का एक कानून इस मामले में भी लागू होगा। 

यह कानून तब बना था जब अयोध्या विवाद चरम पर था और इसके अनुसार, अयोध्या के विवादास्पद मामले को छोड़कर सभी पूजास्थल 15 अगस्त 1947 की स्थिति के अनुसार रखे जाएंगे। इसका मतलब हुआ कि इससे पहले की स्थिति को लेकर अदालत में कोई चुनौती नहीं दी जा सकती है। वैसे भी, अयोध्या मामले में 1991 से पहले और बाद में जो हुआ उसके आधार पर नए विवाद की कोई जरूरत या गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। न्याय की बात करना तो बेमानी ही है। अब तो पूरा मामला जिसकी लाठी उसकी भैंस का लगता है। आपने शायद पढ़ा हो, 1991 के इस कानून को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। इसपर पत्रकार राणा अय्यूब का ट्वीट उल्लेखनीय है (अंग्रेजी से अनुवाद) “भारत में एक और मस्जिद के विध्वंस की तैयारी। न्यायपालिका द्वारा स्वीकृत, व्यवस्था द्वारा समर्थित, उदारों की चुप्पी से बढ़ावा और नागरिकों की भागीदारी से संभव। मुस्लिम अल्पसंख्यकों को अपमानित करने का एक और दिन। कोई है लोकतंत्र?”

 

आज दिल्ली के चारो अखबारों में बंगाल चुनाव की खबर नहीं है। पर द टेलीग्राफ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की फोटो के साथ छपी लीड का शीर्षक है, ऑपरेशन बंगाल प्रदेश से पर्दा हटा। इस खबर के अनुसार, योगी आदित्यनाथ ने बंगाल में भाजपा के सत्ता में आने पर वही सब करने के लिए कहा है जो उन्होंने उत्तर प्रदेश में किया है। कहने की जरूरत नहीं है कि हिन्दी में योगी आदित्य नाथ का भाषण बंगाल की जनता को समझ में नहीं आएगा और बंगाल में भाजपा नेता अनुवादकों का सहारा ले रहे हों ऐसा भी नहीं दिख रहा है। इसका एकमात्र कारण यही हो सकता है कि वे जानते हैं कि उनका कहा बंगालियों (या बांग्लाभाषियों) को पसंद नहीं आएगा और वे सिर्फ वहां के हिन्दी भाषियों के अपने प्रदेश के निवासियों को प्रभावित करने के लिए बोलते हों। दिल्ली में यह बड़ी खबर नहीं है। पर कोलकाता में तो है ही।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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