सोमवार, 31 मई को अखबारों में मेहुल चोकसी को वापस लाने के लिए जेट भेजे जाने की खबर पहले पन्ने पर प्रमुखता से थी। मैंने उसी दिन उसे फालतू खबर कहा था और सरकारी प्रचार बताया था। यह उसी दिन मुझे समझ में आ रहा था कि मेहुल चोकसी वापस नहीं आएगा उसे लेने गए अधिकारियों और भेजने वालों को नहीं समझ में आया होगा? निश्चित रूप से पूरी कार्रवाई प्रचार के लिए थी और आज सबसे पहले इसी की चर्चा।
मैंने लिखा था, “…. जेट भेजना या वापस लाने की कोशिश औपचारिक कार्रवाइयां कम दिखावा ज्यादा हैं और खबर प्रमुखता से छापने का मकसद प्रचार के अलावा कुछ नहीं है ताकि लोग यह न समझें कि सरकार कुछ कर नहीं रही है। असल में सरकार कुछ कर नहीं सकती है और अगर कुछ कर सकती है तो वह कर नहीं रही है फिर भी यह सब प्रचार है।”आज के अखबारों में खबर है कि जेट खाली हाथ वापस आ गया है। जब गया था तो टाइम्स ऑफ इंडिया ने उसकी फोटो छापी थी। खाली वापस आया तो इंडियन एक्सप्रेस ने उसकी फोटो विस्तृत खबर के साथ छापी है। टाइम्स ऑफ इंडिया में छोटी सी है। हिन्दुस्तान टाइम्स में चार कॉलम में है और शीर्षक से लग रहा है कि विमान खाली हाथ वापस आया है। इंडियन एक्सप्रेस के शीर्षक से लग रहा है कि घूमने गया था मैड्रिड होता हुआ आया है।
आइए देखें इस मामले में दोनों दफा विस्तृत खबर देने वाला इंडियन एक्सप्रेस आज क्या कहता है। 31 मई को दो कॉलम में टॉप की इस खबर का शीर्षक चार लाइन में था और एएनआई द्वारा प्रसारित मेहुल चोकसी की फोटो थी जो उस समय डोमिनिका में पुलिस हिरासत में था। मुझे नहीं पता पूरा मामला क्या है और मैं वही जानता हूं जो अखबारों में छपा है। एक खबर है कि एंटीगुआ का नागरिक बगैर वैध दस्तावेज के डोमिनिका चला गया था और वहां गिरफ्तार हुआ। दूसरी खबर है कि उसका अपहरण किया गया था। इसपर तरह–तरह की अटकलें लगाई जा सकती हैं पर वह मेरा विषय नहीं है। मेरा विषय है कि यह पहले पन्ने की खबर नहीं है। पहले पन्ने पर प्रचार के लिए छपवाई गई है ताकि कि लगे कि सरकार कुछ काम कर रही है। हो सकता है सरकार कुछ और कर रही हो और यह रंग दिया गया हो पर जब सरकार ने कुछ बताना ही नहीं है, अखबारों की दिलचस्पी नहीं है तो हम भी लाचार है। इसलिए मैं विषय पर ही रहता हूं।
इसमें एक गंभीर मुद्दा यह है कि मेहुल चोकसी की पत्नी, प्रीति चोकसी का दावा है कि 23 मई को मेहुल को भारत, एंटीगुआ और डोमिनिका की एजेंसियों ने किडनैप किया था और उसे ‘टॉर्चर किया और मारने की योजना भी बनाई। “जिस महिला के साथ वो देखे गए, उसका नाम बारबरा है। वो पहचान की महिला है और अपहरण करने की योजना में शामिल थी। कुछ भारतीय लहजे में बोलने वाले लोगों ने मेहुल को मारने और समंदर में फेंकने की बात भी कही थी।” आप जानते हैं कि मेहुल भाई के साथ प्रधानमंत्री के करीबी नीरव मोदी भी भगोड़े हैं। मेहुल ने एंटीगुआ की नागरिकता ले ली और तब कहा गया था कि भारत ने कोई आपत्ति नहीं की थी। नीरव पहले से ही बेल्जियम के नागरिक हैं। दिलचस्प यह है कि मेहुल चोकसी के बारे में एंटीगुआ के प्रधानमंत्री जो बोल रहे हैं वह भारत में छप रहा है लेकिन मेहुल की पत्नी का कहा कम छपा है। ऐसे में मेहुल को भारत लाने में दिलचस्पी किसकी होगी, वहां उसके अपहरण की कोशिश क्यों होगी या वैध दस्तावेज के बिना वह डोमिनिका क्यों जाएगा – यह सब तो खबर हो सकती थी पर खबर बनाई गई है सरकार की कोशिशों और उम्मीद की और ऐसी उम्मीद की जेट भेज दिया गया। जिस देश के नागरिक ऑक्सीजन बिना मर रहे हैं अंतिम संस्कार नहीं हो रहा है उस देश की सरकार एक भगोड़े के लिए विमान भेज रही है जो सात दिन से ज्यादा खड़ा रहा। आठ सरकारी अधिकारियों का विदेश भ्रमण हुआ सो अलग।
इंडियन एक्सप्रेस की आज की खबर बताती है कि मेहुल को वापस लाने के लिए भेजा गया विमान कतर एयरवेज की निजी शाखा का था और एक हफ्ते इंतजार करके वापस आ गया है। वापसी में सात घंटे में मैड्रिड पहुंचा 90 मिनट रुककर दिल्ली रवाना हुआ और स्थानीय समय से रात 11 बजे भारत पहुंचा मतलब मैड्रिड से दिल्ली पहुंचने में कितना समय लगा यह नहीं बताया गया है। यह 13 सीट वाला बमबार्डियर का विमान था और 28 मई को स्थानीय समय से 1.15 पीएम पर पहुंचा था। मैं पहले लिख चुका हूं कि भारत में खबर 31 मई को छपी थी। विमान में आठ अधिकारी गए थे। यह सब मैंने इसलिए लिखा कि यह पहले पन्ने पर छपा है। अभी मुझे यह नहीं पता चला है कि विमान में अधिकारी कौन थे, किस विभाग के थे और किसके कहने पर गए होंगे और विमान का खर्चा किसने कैसे कहां भुगतान किया होगा। पर वह सरकारी प्रचार का विषय भी नहीं होगा। बताना तो यह था कि सरकार मेहुल चोकसी को वापस लाने के लिए कितना गंभीर है। वरना जिस फैसले के लिए सात दिन इंतजार किया गया उसके लिए और इंतजार किया जा सकता था या यहीं इंतजार किया जाता कि फैसला हो जाए। ऐसा तो हो नहीं सकता था कि डोमिनिका की अदालत अगर उसे वापस भारत भेजने का आदेश देती और उसके “रिश्तेदार” वहां नहीं होते तो उसे समदर में फेंक दिया जाता या फांसी चढ़ा दिया जाता। बैंकों के करोड़ों डूब जाते उसे वापस ले आया जाता तो नहीं डूबते। फिर भारत को विमान भेजने की क्या जल्दी थी? कौन बताएगा? कोई पूछ क्यों नहीं रहा है। हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस में और भी विवरण है। मैड्रिड से दिल्ली पहुंचने का समय भी पर मेरे हिसाब से यह सब खबर की गंभीरता बताने के लिए है। इसका जवाब नहीं कि विमान भेजने की जल्दी किसे थी और किसने भेजा। क्यों भेजा?
एक तरफ तो यह या ऐसी खबर पहले पन्ने पर है और दूसरी तरफ द टेलीग्राफ के पहले पन्ने की लगभग सारी खबरें दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं हैं। आज अखबार में ऐसी एक-दो नहीं तीन खबरें ऐसी हैं जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर दो कॉलम में नहीं है। सिर्फ एक खबर दूसरे अखबारों में अलग शीर्षक से है। पर टेलीग्राफ का शीर्षक उसे फिर भी अनूठा बनाता है। अखबार ने लिखा है, वैक्सीन को चकमा दे सकने वाले म्युटेशन – यह खबर एक अध्ययन के हवाले से है और दूसरे अखबारों में भी है। दूसरी और तीसरी खबरें एक साझे शीर्षक के तहत हैं। साझा शीर्षक है, हम क्या कर सकते हैं और सरकार को क्या नहीं करना चाहिए। यादें और मानवता को जीवित रखने के लिए इतवार को श्रद्धांजलि। तीसरी खबर, स्कूल कर्मचारियों से मारे गए सहकर्मियों के लिए आर्थिक सहयोग देने की अपील और चौथी खबर दार्जिलिंग के 10 प्रतिशत चाय बगान बिक्री के लिए उपलब्ध हैं पर खरीदार नहीं हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।