पहला पन्ना: नारदा मामले में सीबीआई के रवैये पर सवाल, शीर्षक सिर्फ TOI में 

“सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से मुश्किल सवाल पूछे और उसे नारदा घोटाले में चार्जशीट हुए तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को हाउस अरेस्ट रखने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपनी याचिका वापस लेने के लिए मजबूर किया। अदालत ने ब्यूरो के पक्षपातपूर्ण रवैये पर सवाल उठाया और पूछा कि एफआईआर में शामिल एक समूह के लोगों को  गिरफ्तार कर लिया गया है और दूसरे को छोड़ दिया गया है क्योंकि वे अब भाजपा में चले गए हैं।”

नारदा मामले में गिरफ्तार तृणमूल नेताओं को जमानत देने के मामले में हाईकोर्ट के जजों में सहमति नहीं होने के बाद सुप्रीम कोर्ट आई सीबीआई से शीर्ष अदालत ने कई सवाल पूछे। एक सवाल यह भी है कि कुछ लोगों को गिरफ्तार और कुछ लोगों को क्यों छोड़ दिया गया। यह सवाल आज सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया में शीर्षक के रूप है जबकि यही इस मामले का मूल सवाल है। सीबीआई, गिरफ्तारी पर ममता बनर्जी और अन्य समर्थकों के विरोध को मुद्दा बना रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी अस्वीकार कर दिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का पहला पैराग्राफ हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, “सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से मुश्किल सवाल पूछे और उसे नारदा घोटाले में चार्जशीट हुए तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को हाउस अरेस्ट रखने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपनी याचिका वापस लेने के लिए मजबूर किया। अदालत ने ब्यूरो के पक्षपातपूर्ण रवैये पर सवाल उठाया और पूछा कि एफआईआर में शामिल एक समूह के लोगों को  गिरफ्तार कर लिया गया है और दूसरे को छोड़ दिया गया है क्योंकि वे अब भाजपा में चले गए हैं।” सीबीआई के नए निदेशक की नियुक्ति के दिन सुप्रीम कोर्ट में लताड़ की यह खबर ठीक से छपी होती तो वे जान पाते कि एजेंसी ने अपना क्या हाल बना रखा है। पर यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में है ही नहीं जबकि टेलीग्राफ ने कई सवाल और टिप्पणियां छापी हैं।  

नारदा मामले में तृणमूल नेताओं की गिरफ्तारी और उन्हें जबरन हिरासत में रखने की सीबीआई की कोशिशों के बीच कोलकाता हाईकोर्ट में मामला नहीं निपट पाया तो सीबीआई सुप्रीम कोर्ट आई। आप जानते हैं कि तृणमूल पार्टी से पश्चिम बंगाल चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार के नियंत्रण में काम करने वाली सीबीआई ने नारदा मामला में तृणमूल के चार नेताओं को गिरफ्तार कर रखा है। निचली अदालत ने उसी दिन जमानत दे दी और हाईकोर्ट में उसी दिन या रात मामला स्टे हो गया। उसके बाद जो कुछ हुआ वह बताता रहा हूं। इसमें खास बात यह है कि तृणमूल से भाजपा में शामिल हुआ नेताओं को तो गिरफ्तार नहीं किया गया है पर जो भाजपा छोड़कर वापस तृणमूल चले गए उनके खिलाफ सीबीआई की कार्रवाई चल रही है। सीधेसीधे पार्टी लाइन पर काम कर रही सीबीआई की अपनी दलीलें हैं और हाई कोर्ट में उनका जवाब भी दिया गया है। पर जजों में असहमति रही। इसके बाद यह मामला पांच जजों की पीठ के पास है। फिलहाल पश्चिम बंगाल के दो मंत्री  तृणमूल के कुल चार बड़े नेता घर में ही कैद हैं। यह अजीब स्थिति है लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स में आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी इसपर पहले पन्ने पर कोई खबर नहीं है। हालांकि पहले पन्ने पर आधा विज्ञापन है और आज पहले पन्ने से पहले वाला अधपन्ना तो है लेकिन खबर उस पर भी नहीं है। 

आज ऐसी खबर के शीर्षक देखिए

  1. इंडियन एक्सप्रेस-नारदा गिरफ्तारियां : सीबीआई ने अपील वापस ली क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को फैसला करने दिया जाए।
  2. टाइम्स ऑफ इंडिया: नारदा मामले में कुछ लोगों को गिरफ्तार और कुछ लोगों को क्यों छोड़ दिया गया : सुप्रीम कोर्ट
  3. द हिन्दू: टीएमसी नेताओं की हिरासत के लिए सीबीआई की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया
  4. द टेलीग्राफ: सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट की घटनाओं के बारे में सवाल पूछे

अब इसमें इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक देखिये। सीबीआई को कितना भोलाभाला दिखाया जा रहा है। खबर में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा (ऑब्जर्व किया) कि मामला कलकत्ता हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है और पहले उसे ही सुनवाई करना चाहिए। इसपर सीबीआई ने अपनी अपील वापस ले ली। पहले पन्ने पर तीन कॉलम में दो लाइन के इस शीर्षक के साथ कुल 32 लाइन की खबर में ऐसा कुछ नहीं है जिससे लगे कि सीबीआई से कुछ पूछा गया या उसकी खबर ली गई। यह जरूर बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट भी एक संवैधानिक अदालत है। हिन्दू में यह खबर सिंगल कॉलम में है और खबर का पहला पैराग्राफ है,  “सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई परिसर में ममता बनर्जी के धरने और कब्जा करने को टीएमसी के चार नेताओं की आजादी छीनने का आधार मानने से इनकार कर दिया जिससे सीबीआई उनकी हिरासत के लिए अपनी अपील वापस लेने को मजबूर हुई।” केंद्र सरकार के समर्थक इस दलील के आधार पर सीबीआई की मजबूरी और टीएमसी की मनमानी का प्रचार कर रहे थे। 

इस मामले में टेलीग्राफ ने जो सवाल छापे हैं वे संक्षेप में इस प्रकार हैं :
1)
क्या कलकत्ता हाईकोर्ट को देर रात निचली अदालत के फैसले पर स्टे लगाना चाहिए था?
2)
क्या सबूतों से छेड़छाड़ वही अभियुक्त करेंगे जो गिरफ्तार  किए गए हैं और वो नहीं जिनपर आरोप भी तैयार नहीं किया गया है?
3)
न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने कहा कि जमानत के मामले में ऐसा फैसला उन्होंने कभी नहीं देखा। जमानत या तो दी जाती है या नहीं दी जाती है पर आदेश हमेशा आमराय से होता है।
4)
न्यायमूर्ति गवई ने सीबीआई के वकील, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इस दलील को नहीं माना कि निचली अदालत (सीबीआई की विशेष अदालत) ने दफ्तर पर मुख्यमंत्री और तृणमूल कार्यकर्ताओं द्वारा कब्जा कर लिए जाने के कारण अभियुक्तों को जमानत दे दी।

आज मुझे ट्वीटर मामले में किसी बड़ी खबर की उम्मीद थी। पर वैसा कुछ हुआ नहीं। मुझे लगता कि यह भी हेडलाइन मैनेजमेंट का हिस्सा है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर अधपन्ने पर है। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार द्वारा बनाई गई खबर है और अगर आज यह पहले पन्ने पर नहीं होती तो सीबीआई वाली यहां हो सकती थी और यह सरकार के प्रचारकों की रणनीति हो सकती है। इसे ठीक से फॉलो करने की जरूरत है। मैं कर रहा हूं और बताता रहूंगा। 


लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।  

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