पहला पन्ना: कोरोना टीके की खबर- एक्सप्रेस में विज्ञापन है खबर नहीं, HT में खबर है विज्ञापन नहीं!

28 फरवरी से शुरू करके कल चार मार्च तक रोज टीके की खबर को लीड बनाने वाले इंडियन एक्सप्रेस ने आज टीके की ही एक खबर को लीड नहीं बनाया है लेकिन पहले पन्ने पर रखा है। यह खबर बाकी के चार अखबारों में सिर्फ हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर है। हालांकि, हिन्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने टीके की ही एक खबर को लीड बनाया है जो इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर नहीं है। आज सबसे पहले टीके से संबंधित इन्हीं दो खबरों की चर्चा। हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड का शीर्षक है, “टीकाकरण अभियान का दूसरा चरण पहले गीयर में अटका है”। बेशक यह एक महत्वपूर्ण खबर है और इन दिनों टीकाकरण अगर जानने-समझने का विषय है तो इसलिए नहीं छोड़ दिया जाना चाहिए कि हम पांच दिन छाप चुके। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसी खबर के साथ छापा है, “जब पर्याप्त क्षमता है तो आयु के प्रतिबंध क्यों लगाए जाएं : हाईकोर्ट ने पूछा”।

इंडियन एक्सप्रेस ने अगर लगातार पांच दिन टीके से संबंधित खबरें छापीं तो यह सवाल बताता है कि खबरों में सब कुछ नहीं था और तभी हाईकोर्ट को पूछना पड़ा होगा। सवाल उठाने का काम मीडिया का है और इससे जवाब मिलते होते जो मुझे यह कॉलम लिखने की जरूरत नहीं थी। पर हालात ऐसे हैं कि सवाल पूछे नहीं जाते और जवाब तो खैर। इंडियन एक्सप्रेस में इस खबर का शीर्षक है,  “टीकाकरण पर सख्त नियंत्रण का कारण स्पष्ट किया जाए : दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से कहा।” हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर पहले पन्ने पर नहीं है तो उसका कारण समझने में सहूलियत के लिए मैं इंडियन एक्सप्रेस की पांच खबरों का शीर्षक आज फिर यहां लिख देता हूं।

1– 28 फरवरी 2021

केंद्र ने टीका लगवाने की योग्यता के लिए कोमोरबिडिटी तय की, शुल्क की सीमा 250 रुपए प्रति खुराक तय

2– 01 मार्च 2021

टीकाकरण के दूसरे दौर की शुरुआत आज होगी, ऑनलाइन समय तय किया जा सकता है

3– 02 मार्च 2021

दूसरा चरण, पहला दिन : प्राथमिकता वाले समूहों से 1.46 लाख लोगों को पहला खुराक लगा, 25 लाख ने पंजीकरण कराए

4– 03 मार्च 2021

केंद्र ने टीकाकरण की पहुंच का विस्तार किया : लंबे सत्र, सभी निजी अस्पतालों को राजी किया जा सकता है

5– अंतिम चरण का अंतरिम डाटा आ गया है : भारत बायोटेक का कोविड टीका 81% प्रभावी है

इसके बाद फैसला आप कीजिए, कारण खुद समझिए। आज एक नहीं दो-दो खबरें हैं पर लीड क्यों नहीं है। क्या इसका संबंध इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर लीड के ऊपर छपे विज्ञापन से हो सकता है? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि विज्ञापन हिन्दुस्तान टाइम्स में नहीं है। वहां खबर है। अखबारों के पतन की शुरुआत पैसे लेकर खबरें छापने से हुई थी। चुनावों में जो जीतता बताया जाता था उसकी जमानत जब्त हो जाती थी। विज्ञापन की सामग्री खबर के रूप में अब भी छपती है। और टाइम जैसी पत्रिका इसका शिकार हो चुकी है। पर वह अलग मुद्दा है। खेल बड़ा है। इसलिए विज्ञापन है तो खबर नहीं और खबर है तो विज्ञापन नहीं – साधारण नहीं है। कहा जा सकता है कि विज्ञापन के बावजूद खबर छपी है या बिना विज्ञापन के भी नहीं छपी है पर आज जो है क्या वह चर्चा के लायक नहीं है?

ऐसा नहीं है कि पांच दिन तक लीड बनाने के बाद इस खबर को छठे दिन लीड बनाना जरूरी था या बना देते तो आसमान गिर पड़ता। यह संपादकीय विवेक का मामला है और इसका कोई नियम नहीं होता। लेकिन परिस्थितियां भी कुछ कहती हैं। लीड पहले पन्ने की या उस दिन की सबसे प्रमुख खबर को बनाया जाता है और यह अभियान भी हो सकता है। इस लिहाज से लगातार पांच दिन टीके की खबर को लीड बनाना अगर गलत नहीं था तो आज नहीं बनाना अटपटा जरूर है। पर इस अटपटेपन की बात कौन करे जब यह खबर आज दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर है ही नहीं। यही है मीडिया की आजादी और विवेक का मामला – जिसका उपयोग मुझे लगता है कि संयमित रूप से किया जाना चाहिए और नहीं किया जा रहा है। यह किसी एक अखबार या मीडिया संस्थान की बात नहीं है सब पर लागू होती है। टीके की खबरों को इतना प्रचार दिए जाने के बीच हाईकोर्ट के सवाल कम महत्वपूर्ण क्यों हैं?

इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दुस्तान टाइम्स की खबरों से आपको बताऊं कि हाईकोर्ट ने टीकाकरण के संबंध में क्या सवाल उठाए हैं। अदालत ने यह भी पूछा है कि देश के नागरिकों को टीका लगाने का अभियान जब अनुकूलतम और सर्वश्रेष्ठ नहीं है तब केंद्र सरकार कोविड-19 के टीके क्यों दान दे रही है या बेच रही है। अदालत की पीठ ने कहा है, “हम इनका पूरा उपयोग नहीं कर रहे हैं। हम या तो दूसरे देशों को दान दे रहे हैं या फिर अपने लोगों को टीका नहीं लगा रहे हैं। अर्जेसीं और जिम्मेदारी की इस समझ की आवश्यकता है।” इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार अदालत ने यह स्पष्ट करने के लिए कहा है कि कोविड-19 का टीका ले सकने वाले लोगों के वर्गों पर सख्त नियंत्रण रखने की तुक क्या है।

इंडियन एक्सप्रेस में आज पहले पन्ने पर तस्वीर के साथ एक खबर है, माओवादियों के हमले में तीन पुलिस वाले मारे गए। झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले में हुए इस विस्फोट में दो अन्य जख्मी भी हुए हैं। कल जमशेदपुर के एक पत्रकार मित्र ने दिन में ही यह खबर फोटो के साथ भेज दी थी तो मैं सोच रहा था कि अब रिपोर्टिंग कितना आसान है। पर यह खबर दूसरे अखबारों में प्रमुखता से नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में ही एक और खबर छत्तीसगढ़ मॉडल को असम में दोहराने की है। गुजरात मॉडल के बाद छत्तीसगढ़ मॉडल का अपना महत्व है और ऐसी खबरें भी इंडियन एक्सप्रेस ही करता है। पर यही अखबारों का काम है इसके लिए प्रशंसा की अपेक्षा नहीं होनी चाहिए पर बांटों और राज करो के जमाने में जब पत्रकारों के भी खेमे बन गए हैं तो दूसरे खेमे के पत्रकार साथी अक्सर कहते हैं, कुछ तो अच्छा किया होगा उसे भी बताओ। मैं इसमें विश्वास नहीं करता फिर भी बता रहा हूं ताकि मेरे पाठकों को खबर मिलती रहे।

और खबर यह भी है कि नोदीप कौर के सहअभियुक्त शिव कुमार को भी जमानत मिल गई। यह खबर आज टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। द टेलीग्राफ ने पहले ही पन्ने पर दो कॉलम में छापा है और शीर्षक में ही बताया है कि जेल से छूट कर उन्हें ‘ट्रॉमा’ (अभिघात असल में मानसिक आघात)  के लिए अस्पताल जाना पड़ा। कहने की जरूरत नहीं है कि पुलिस हिरासत में इनकी पिटाई को लेकर मीडिया में खबरें नहीं के बराबर हैं और कोई जनहित याचिका नहीं डाल रहा है कि पुलिस को पीटने का अधिकार किसने दिया। एक जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने प्रचार याचिका कहा, जुर्माना लगाया तो अखबारों ने जुर्माने की खबर पचा ली। द टेलीग्राफ की लीड ट्वीटर पर चल रहे हैशटैग मोदी जॉब दो से संबंधित है। और इसकी चर्चा तो दूसरे अखबारों में नहीं ही होनी है। कम से कम पहले पन्ने पर तो नहीं ही। इसलिए पहला पन्ना पढ़िए-पढ़ाइए। कॉरपोरेट मीडिया को जानिए।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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