बीबीसी न्यूज हिंदी ने 2 जुलाई को खबर दी कि व्लादिमिर पुतिन के संवैधानिक सुधारों को रूस में जनमत संग्रह में भारी समर्थन मिला है। संकेत हैं कि वे 2036 तक राष्ट्रपति बने रह सकते हैं।
रूस निर्वाचन आयोग के अनुसार बीते सप्ताह मताधिकार प्राप्त नागरिकों में से 64% ने वोट डाले। लगभग 87 फ़ीसदी मतों की गिनती हो चुकी है। इनमें 77 फ़ीसदी संवैधानिक सुधारों के समर्थन में गए हैं। इन सुधारों से पुतिन के छह-छह वर्ष के दो और कार्यकाल तक राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ हो गया है।
ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका
हम सब जानते हैं कि पूर्ववर्ती समाजवादी सोवियत संघ गणराज्य (यूएसएसआर) का गठन लेनिन के नेतृत्व में 1917 की महान बोल्शेविक क्रांति के बाद रुसी, उक्रेनी लिथुआनियाई, अजरबैज़ानी आदि राष्ट्रीयताओ के संगम से हुआ था.स्टालिन की लिखी किताब ‘नेश्नेलिटी क्वेश्चन’ के बाद कम्युनिस्ट हल्को में मान लिया गया कि वहां ज़ारशाही के विरुद्ध सफल हुई अवामी क्रांति से राष्ट्रीयता के मुद्दे का समाधान हो गया है. ये सच साबित नहीं हुआ। राष्ट्रीयता के मुद्दे को लेकर उससे सबसे पहले लिथुआनिया अलग हुआ। बाद तो एक–एक कर उसके संघराज्य में शामिल प्रांत अलग होते गए। सोवियत संघ का सबसे बड़ा घटक रूस साबूत बचा रहा। वहां 1960 के दशक में खुर्श्चेव के शासनकाल में पूंजीवाद और समाजवाद, दोनों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के संभव होने की मान्यता मिल जाने के बाद साम्यवादी विचारों का पतन शुरू हुआ.ये पतन 1980 के दशक में मिखाइल गोर्बाचेव के शासनकाल में चरम पर पहुँच गया।
पूंजीवादी देशों ने गोर्बाचेव की ग्लासनोस्त (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (व्यवस्था परिवर्तन) की घोषणा को सर माथे पर बिठाया। अमेरिका और सोवियत संघ के शीतयुद्ध का खत्मा मान लिया गया।
शीतयुद्ध – जेम्स बांड फिल्में
ब्रिटिश हुक्मरानी के साम्राज्य में सूर्य का अस्त नहीं होने के औपनिवेशिक दम्भ से सराबोर यूनाइटेड किंगडम के पत्रकार-साहित्यकार इयान हेली की जासूसी कहानियों पर जेम्स बांड शृंखला की फिल्में बनाने वाले उनकी सारी कहानियां ‘लील’ जाने के बावजूद नहीं माने कि शीतयुद्ध खत्म हो गया है। वे कहानियों के यहां-वहां से नोचे टुकड़ों पर ‘लाइसेंस्ड टु किल‘ ब्रिटिश खुफिया एजेंट और अश्वेत पर श्वेत के पराक्रम के नस्लवादी विचार के प्रतीक जेम्स बांड पर नई सहस्त्राब्दि का आरम्भ होने तक फिल्में बनाते रहे.
हम सुझाव नहीं दे रहे, काल्पनिक प्रश्न उकेर रहे हैं। क्या रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ,विश्व में वास्तविक युद्ध का ख़तरा खत्म होने देंगे? मोदीजी के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को कुछ लोग क्या यूं ही देसी जेम्स बांड कहते हैं? बहरहाल, हम व्लादिमीर पुतिन, डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद मोदी, तीनों के कोरोना काल में चुनावी रणनीतियों -कार्यनीतियों की मीडिया विजिल के चुनाव चर्चा स्तम्भ के तहत तीन विशेष आलेखों में से इस प्रथम आलेख में पुतिन की चर्चा करेंगे।
सब कहने लगे हैं कि कोरोना काल दुनिया बदल देगा। ये बात चुनावों पर भी लागू होती है। इंदौर के एक्टिविस्ट गिरीश मालवीय ने खबरों का पहाड़ खोद जानकारी ‘छानी’ है. वो कहते हैं, ‘ पुतिन सविधान संशोधन के जरिए 2036 तक राष्ट्रपति रहेंगे। कोई नही बता रहा कि संविधान संशोधन के लिए वोटिंग ऑनलाइन थी. ऑनलाइन वोटिंग 7 दिनों तक चली। चुनाव निगरानी समूह, गोलोस के अनुसार वोटिंग की ऑनलाइन प्रक्रिया संवैधानिक मानकों को पूरा नहीं करती। वोटिंग के लिए दबाव, सत्ता के दुरुपयोग और गैर कानूनी प्रचार आदि की शिकायतें हैं। पर कौन सुनता है? दरअसल, कोरोना काल मे पूरे विश्व मे तानाशाही को प्रश्रय मिला है। तानाशाह सत्ता पर पकड़ बनाए रखने कोरोना का इस्तेमाल कर रहे है। धीरे-धीरे रूस में कोरोना के केस कम हो जाएंगे। नवम्बर में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव तक कोरोना कहर जारी रहेगा। ट्रम्प ऑनलाइन वोटिंग के खिलाफ हैं।
गिरीश जी ये उल्लेख करना भूल गए कि नरेंद्र मोदी ऑनलाइन वोटिंग के पक्ष में बताये जाते हैं। उनकी ही भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने राज्य विधान सभा के इसी बरस नवम्बर तक निर्धारित चुनाव के लिए ऑनलाइन वोटिंग कराने के सुझाव का खुला समर्थन किया है।
स्टालिन के भी आगे
विपक्ष का आरोप है कि पुतिन आजीवन राष्ट्रपति बने रहना चाहते हैं पर पुतिन ने इस आरोप को ख़ारिज कर दिया है। पुतिन, जोसेफ स्टालिन के बाद सर्वाधिक समय के शासक पहले ही बन चुके है। अब वे स्टालिन का भी रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं। पुतिन के रूस पर सर्वाधिक समय तक राज करने के मसूबों को चुनौती देना फिलवक्त किसी के लिए आसान नहीं माना जा रहा है। पुतिन सरकार के आलोचक, अलेक्सी नवालनी ने घोषित परिणाम को फरेब कहा है। वह कहते हैं कि ये परिणाम देश की अवाम का सही जनमत नहीं दर्शाते हैं। सात दिनों तक चले मतदान में गंभीर अनियमितता के आरोप लगे हैं। उनकी स्वतंत्र जांच नहीं हुई है। उलटे ,रुस के आंतरिक मामलों के मंत्रालय ने ऐलान कर दिया कि वोटिंग में कुछ भी ऐसा गलत नहीं हुआ जिससे परिणाम प्रभावित हुए हों। पूर्ववर्ती सोवियत समाचार एजेंसी, तास की जगह कायम
‘ इंटरफैक्स ‘ की रिपोर्ट के अनुसार जब ये ऐलान किया गया वोटिंग चल ही रही थी। पुतिन विरोधियों ने इन संवैधानिक परिवर्तनों के ख़िलाफ़ बड़ी संख्या में रूस की राजधानी मॉस्को और महानगर सेंट पीटर्सबर्ग में विरोध प्रदर्शन किये हैं।
संवैधानिक सुधार
पुतिन के समर्थकों के अनुसार 200 से अधिक संवैधानिक सुधार किए गए हैं। इनसे ‘ राष्ट्रीय स्थिरता ‘ सुनिश्चित करने के प्रयासों को बल मिलेगा। 67 वर्षीय पुतिन ने राष्ट्रपति पद पर छह साल का अपना मौजूदा कार्यकाल 2024 में ख़त्म होने के बाद फिर राष्ट्रपति बनने मैदान में उतरने के बारे में अभी तक कुछ भी नहीं कहा है। पर उन्होंने शातिरा सियासी बयान दिया है कि ‘ ये अहम है कि उनके पास ऐसा करने का विकल्प है।‘ वे पिछले 20 बरस से राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के बतौर पर रूस की सत्ता पर काबिज़ हैं।
चुनाव माहौल
रूस में चुनाव के वक़्त मतदान केंद्रों पर माहौल भारत की ही तरह उत्साह का होता है। मतदान के लिए नागरिक आम तौर पर नए या धुले परिधान में आते हैं। वे गीत गाते हैं। संगीत बजाते हैं। उनके खाने -पीने के स्टॉल होते हैं। इस बार माहौल उल्लासविहीन था। वोट डालने आये सभी नागरिकों का पोलिंग बूथ के गेट पर थर्मामीटर से तापमान जाँचा गया। फिर उन्हें कोरोना वायरस से बचने के लिए और किसी भी और जांच के बजाय मास्क पहना दिया गया। माहौल उल्लासविहीन होने का बड़ा कारण ये था कि वोटिंग पहली बार ऑनलाइन थी। ऑनलाइन वोटिंग के लिए परंपरागत पोलिंग बूथों पर विशेष कियोस्क के प्रबंध किये गए।
पुतिन इतिहास
पुतिन 2018 में भारी जीत दर्ज कर चौथी बार राष्ट्रपति बने थे। तब पुतिन को 75 फीसद वोट मिले थे। मुख्य विपक्षी नेता अलेक्सई नवालनी के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंधित लगा दिया गया था। उस चुनाव में पुतिन के अलावा ‘कम्युनिस्ट्स ऑफ रसिया‘ पार्टी अध्यक्ष मैक्सिम सुरायकिन, एक अन्य कम्युनिस्ट गुट के पावेल ग्रुडिनिन, ‘ऑल पीपुल्स यूनियन पार्टी‘ के सर्गेइ बाबुरिन, सिविल इनिशिएटिव पार्टी के सेनिया सोबचाक, बोरिस तितोव, योबलोको पार्टी के सहसंस्थापक ग्रिगोरी यावलिन्सकी और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ रशिया के प्रमुख व्लादिमीर जिरिनोवस्की समेत कई उम्मीदवार थे. पुतिन के बाद सर्वाधिक 13.3 फीसदी वोट कम्यूनिस्ट उम्मीदवार पावेल ग्रुडिनिन को मिले थे।
7 अक्टूबर 1952 को पैदा हुए व्लादिमीर व्लादिमीरोविच पुतिन 7 मई 2012 से राष्ट्रपति हैं। वे इससे पहले 2000 से 2008 तक राष्ट्रपति और 1999 से 2000 एवं 2008 से 2012 तक प्रधानमंत्री थे। वे प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान रूस की
‘ संयुक्त रूस पार्टी‘ के अध्यक्ष भी थे। वे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ रूस में 1975 से 1991 तक रहे। वे इसके साथ ही सोवियत सेना में भी रहे थे. उन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल का दर्जा मिला था। वे उस दौरान खुफिया एजेंसी, केजीबी में भी 16 साल रहे थे।
पुतिन ने सेना से सेवानिवृत्त बाद अपने पैतृक शहर, सेंट पीटर्सबर्ग में राजनीति में पदार्पण किया। वह 1996 में मास्को में राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की सरकार में शामिल हो गए। फिर येल्तसिन के अचानक इस्तीफा देने के बाद 31 दिसम्बर 1999 को वे कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। पुतिन ने 2000 और 2004 का राष्ट्रपति चुनाव जीता। पुतिन रूसी संविधान में तय कार्यकाल सीमा के कारण 2008 में लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य थे। उन्होंने चालबाजी की। पुतिन 2008 में दिमित्री मेदवेदेव को राष्ट्रपति चुनाव जितवा कर खुद को प्रधानमंत्री नियुक्त करा लिया। पुतिन ने 2011 में कानून बदल कर राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल से छह वर्ष करवा लिया।
पुतिन ने जब 2012 में राष्ट्रपति पद के लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ने करने की घोषणा की तो कई रूसी शहरों में भारी विरोध प्रदर्शन हुए। पुतिन ने उस विरोध को कुचल कर 2012 का भी राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया।
दावा किया गया है कि रूस में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के रूप में पुतिन के पहले कार्यकाल (1999-2008) के दौरान वास्तविक आय में 2.5 गुणा और वास्तविक पारिश्रमिक में तीन गुणा वृद्धि हुई. बेरोजगारी और गरीबी आधी कम हो गयी. क्रय-शक्ति क्षमता में 72% और सकल घरेलू उत्पाद में 6 गुणा वृद्धि हुई।
इन दावों की हम मीडिया विजिल की तरफ से पुष्टि नहीं कर सकते। लेकिन ऑनलाइन जनमत संग्रह में अनियमितताओं को शिकायतों को पृथमदृष्टया गंभीर मानते हैं।
*जार– व्याभिचार
*ज़ार– क्रांति पूर्व रूस के शासक का पद
*मुख्य तस्वीर रूस में ऑनलाइन वोटिंग के सहारे पुतिनशाही को मज़बूती देने का विरोध करते रूसी नागरिक।
वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा का मंगलवारी साप्ताहिक स्तम्भ ‘चुनाव चर्चा’ लगभग साल भर पहले, लोकसभा चुनाव के बाद स्थगित हो गया था। कुछ हफ़्ते पहले यह फिर शुरू हो गया। मीडिया हल्कों में सी.पी. के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं। सी.पी. आजकल बिहार में अपने गांव में हैं और बिहार में बढ़ती चुनावी आहट और राजनीतिक सरगर्मियों को हम तक पहुँचाने के लिए उनसे बेहतर कौन हो सकता था। वैसे उनकी नज़र हर तरफ़ है। जैसे इस बार रूस घुमा लाये आपको- संपादक