पहला पन्ना: घर-घर राशन पहुंचाने की दिल्ली सरकार की योजना रोकने की खबर आज टाइम्स ने भी छापी!

आज इंटरनेट पर टाइम्स ऑफ इंडिया खोलते हुए पहले पन्ने पर एक खबर दिखी, “सेना ने पूर्व पुलिस प्रमुख सिंह का बचाव किया, कहा, ट्रांसफर का मतलब दोषी होना नहीं है”। पिछले कुछ दिनों से मुंबई के पुलिस अधिकारी के खिलाफ एनआईए की कार्रवाई की खबर जिस ढंग से दिल्ली के अखबारों में छप रही है वह मीडिया ट्रायल ही है और यह पुरानी समस्या है। इसलिए भी कि मीडिया ट्रायल आम आदमी का भी होता है और कोई नहीं जानता कब किसकी बारी आ जाए और पूरा का पूरा मीडिया किसी रिया चक्रवर्ती पर टूट पड़े। पर वह अलग मुद्दा है।

मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर से संबंधित खबर को पहले पन्ने पर देखकर मेरे मन में हुआ कि यह खबर (इन दिनों) दिल्ली के अखबारों में पहले पन्ने पर होनी चाहिए पर होगी नहीं। और वही हुआ। मैं मुंबई का टाइम्स ऑफ इंडिया देख रहा था। दिल्ली के अखबारों में यह खबर है कि नहीं वह बाद में, टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर दिल्ली में पहले पन्ने पर नहीं है। यह दिलचस्प है कि दिल्ली में उस खबर की जगह दिल्ली सरकार की खबर है, “केंद्र ने दिल्ली सरकार की घर-घर राशन पहुंचाने की योजना को रोक दिया”। कहा कि शहर में अलग योजना लागू की जा सकती है। मुझे इतने से बात समझ नहीं आई। इसलिए आपको भी बता दूं कि खबर है क्या। आप जानते हैं कि राशन की दुकानों से राशन लेना कितना मुश्किल है। हमारे समय में और छोटे शहरों में तो राशन की दुकानें खुलती ही नहीं थीं और जब खुली होती थीं तो राशन नहीं होता था। सरकार किसी की हो 40 साल का तो याद है।

दिल्ली में स्थिति कुछ ठीक है। ऐसे में दिल्ली सरकार की योजना है कि आम आदमी के लिए निर्धारित सस्ता राशन उसके घर पहुंचा दिया जाए। आखिर दुकानदार को इसी काम के लिए राशन मिलता है। काले बाजार में बेचने के लिए तो होता नहीं है। क्यों नहीं उसे कुछ और पैसे दिए जाएं कि सबके घर पहुंचा दिया जाए। निश्चित रूप से यह एक अच्छा प्रयास है और दूसरे राज्यों को भी अनुकरण करना चाहिए। लेकिन खबर यह है कि केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार की “मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना” पर पानी फेर दिया है। कहां तो केंद्र की भाजपा सरकार अपने राज्यों में भी ऐसी योजना लागू करती पर वह इसे दिल्ली में लागू नहीं होने दे रही है। उसका कहना है सबसिडी वाले इस (केंद्र सरकार के) अनाज का उपयोग दिल्ली की सरकार नहीं कर सकती है। खबर तकनीकी भाषा में है। मोटी बात यही है।

बेशक, केंद्र सरकार ने कहा है कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार (मुख्यमंत्री के नाम से) दूसरी योजना शुरू कर सकती है। मेरे गांव में ऐसी छूट के लिए कहा जाता था, “ना नौ मन तेल होई ना राधा नचिहें”। उम्मीद है आप केंद्र सरकार की मंशा समझ रहे होंगे। पिछले कई दिनों से मैं शिकायत कर रहा था दिल्ली (सरकार) की खबरें दिल्ली के अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं होती हैं। कभी बंगाल चुनाव को महत्व मिलता है और कभी मुंबई में साढ़े तीन किलो जिलेटिन की बरामदगी को। आज यह खबर मुंबई के पुलिस कमिश्नर वाली खबर की कीमत पर है – तो मैं इसकी आलोचना या निन्दा नहीं कर रहा। आपको सूचना दे रहा हूं। इसे उदाहरण समझिए। अखबारों की खबरों के आधार पर राय मत बनाइए। और एक किसी अखबार की खबर पर तो बिल्कुल नहीं।

आज द हिन्दू में पहले पन्ने पर एक खबर है, “तृणमूल ने कहा, “पक्षपाती चुनाव आयोग से निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद नहीं”। चुनाव आयोग का पक्षपात ढंका-छिपा नहीं है। तर्कों के साथ खुलेआम है। एक छोटे से राज्य का चुनाव आठ चरण में कराने के रिकार्ड के साथ है। ऐसे में पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ और चुनाव लड़ रही पार्टी का यह आरोप कितना महत्वपूर्ण है आप समझ सकते हैं। देखिए आपके अखबार में है? इससे पहले कि मैं आज के दूसरे अखबार देखूं साथी पत्रकारों के एक व्हाट्सऐप्प ग्रुप पर खबर आई है, “भ्रष्टाचार के खिलाफ देश भर में सीबीआई की मुहिम, 100 जगहों पर मारे छापे”। वैसे तो यह खबर कल की है और पहले पन्ने पर है कि नहीं मैंने अभी नहीं देखा है। लेकिन यह आज की महत्वपूर्ण खबर है और हो सकता है टीवी वालों ने कल इसपर चर्चा नहीं की हो तो आज लपक लें। टेलीविजन की पत्रकारिता ऐसे ही चल रही है। उसकी भी पोल खोल शुरू करूंगा।

अभी मुद्दा यह है कि देश के कई राज्यों में जब चुनाव चल रहे हैं, एक राज्य में सत्तारूढ़ दल चुनाव आयोग पर पक्षपाती होने का आरोप लगा रहा है तो क्या गृहमंत्रालय के तहत काम कर रही सीबीआई (जिसकी अपनी साख पिंजड़े में बंद तोते की है) को छापा मारकर सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ होने का प्रचार करना चाहिए? क्या यह सीबीआई का दुरुपयोग नहीं है? पुलवामा हमले से समय पर सवाल उठाने को तो देशद्रोह कहा जा सकता है। जांच की चर्चा किए बगैर उसे भुनाया भी जा सकता है लेकिन सीबीआई का यह छापा चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी तो पड़ सकता था। सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा भी है कि जिन विभागों में औचक निरीक्षण किया गया, उनमें लंबे समय से भ्रष्टाचार और अनियमितता की शिकायतें मिल रही थी।

आज की इन खबरों की चर्चा के बाद मैं बताऊं कि पांच में तीन अखबारों में कोरोना की खबर लीड है। जिन अखबारों में लीड नहीं है वे हैं इंडियन एक्सप्रेस और द टेलीग्राफ। द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर आधा विज्ञापन है और इंडियन एक्सप्रेस पूरा खाली। इसके अलावा, द टेलीग्राफ कोलकाता का अखबार है और इंडियन एक्सप्रेस के दिल्ली एडिशन की बात कर रहा हूं। विज्ञापन टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स ही नहीं द हिन्दू में भी है। ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर कई एक्सक्लूसिव खबरें हैं लेकिन कोरोना की खबर नहीं होना चौंकाता है। दूसरे सीबीआई के छापे की खबर पहले पन्ने पर प्रमुखता से नहीं है। लगता है अखबार सीबीआई की सेवा भावना का प्रचार कर अपनी सेवा भावना व्यक्त करने के पक्ष में नहीं हैं।

पहले कोरोना की खबरों की चर्चा कर लूं फिर उनकी चर्चा करूंगा जो आज लीड बनी है। इससे आप तय कर सकेंगे कि दोनों खबरों में कौन महत्वपूर्ण है और क्यों लीड बनाई गई है या नहीं बनाई गई है। सबसे पहले हिन्दुस्तान टाइम्स। कायदे से कोरोना की खबर यहां भी लीड नहीं है। यह खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है। एचटी और टीओआई में अधपन्ना पहले है पर खबरों का पहला पन्ना वह नहीं हो सकता है। इस लिहाज से हिन्दुस्तान टाइम्स में कोरोना की खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है और उसका शीर्षक है, राज्यों ने नई पाबंदियां लगाईं क्योंकि दैनिक मामले 40,000 पार कर गए। टाइम्स ऑफ इंडिया में अधपन्ने पर भी विज्ञापन है लेकिन पहले पन्ने पर लीड है सक्रिय मामले बढ़कर एक दिन में 19,000 हुए, सितंबर से सबसे बड़ी वृद्धि। हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक यहां इंट्रो है, नए मामले पहली बार (111 दिन में) 40,000 पार गए। द हिन्दू का शीर्षक है, पांच राज्यों में नए संक्रमण का 80 प्रतिशत। भारत में गुजरे 24 घंटे में कोविड-19 से मौत के 154 मामले दर्ज हुए। यह खबर इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर नहीं है और पहले पन्ने की लीड है, “प्रधानमंत्री, अमेरिकी रक्षा मंत्री ने भारत-प्रशांत स्थिरता के लिए रणनीतिक साझेदारी पर जोर दिया”। उपशीर्षक है, ऑस्टिन आज राजनाथ से मिलेंगे; प्रधानमंत्री ने कहा कि संबंधों की जड़ें लोकतंत्र, बहुलवाद में हैं। ऐसा ही शीर्षक हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड का है, “मोदी और ऑस्टिन ने भारत प्रशांत रक्षा संबंधों की चर्चा की”। हिन्दुस्तान टाइम्स में दिल्ली सरकार की राशन योजना दिल्ली-केंद्र टकराव का नया कारण शीर्षक से है।

आज की कुछ खबरें जो रेखांकित करने लायक हैं। देखिए आपके अखबार में हैं।

इंडियन एक्सप्रेस

  1. संसदीय समिति ने पार्टी लाइन से अलग, सरकार से कहा कि तीन में से एक कृषि कानून को लागू किया जाए।
  2. “मध्य प्रदेश के ‘लव जेहाद’ कानून के तीन महीने : 21 मामले, आधे से ज्यादा में जोड़े एक दूसरे को जानते थे”। फ्लैग शीर्षक है, अभी तक 25 गिरफ्तार।
  3. सोने की तस्करी के मामले में केरल की पुलिस ने ईडी अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।

द हिन्दू

  1. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों की विधानसभाएं केंद्रीय कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पास कर सकती हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया

  1. परिवारों की बचत आधी रह गई, दूसरी तिमाही में जीडीपी का 10.4 प्रतिशत अब तो जीडीपी ही….

द टेलीग्राफ

  1. बंगाल चुनाव में भाजपा की हालत का जो वर्णन किया है वह गोदी मीडिया में दुर्लभ है। यहां एक खबर और है जो टाइम्स ऑफ इंडिया में अलग शीर्षक है, भारत में गरीबों की संख्या दूनी हुई। मध्यम वर्ग छोटा हुआ। चुनाव के समय ऐसी खबर ढूंढ़ते रह जाएंगे।

सीबीआई की जो खबर पहले पन्ने पर है ही नहीं, वह यहां सेकेंड लीड है। कोरोना का मामला सिंगल कॉलम और सुप्रीम कोर्ट की वह खबर जो अंग्रेजी अखबारों में है ही नहीं – वह टॉप लीड। अब आरक्षण वाले अंग्रेजी अखबार तो पढ़ते नहीं हैं। लेकिन सवाल है कि क्या आपको या आपके बच्चों को आरक्षण से फर्क पड़ता है?


लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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