अटकल की पत्रकारिता, जरूरी प्रतिक्रिया है ही नहीं
संजय कुमार सिंह
आज के अखबारों में एक ही खबर प्रमुखता से छाई हुई है- प्रियंका राजनीति में आई। अलग अखबारों ने इसे अलग अंदाज में पेश किया है। जैसे दैनिक भास्कर ने प्रियंका की तुलना इंदिरा गांधी से की है और यह भी बताया है कि सोनिया गांधी पार्टी में कब, कैसे आईं तथा प्रमुखता से यह बताया है कि सोनिया गांधी अब चुनाव नहीं लड़ेंगी और राय बरेली से प्रियंका ही उतरेंगी। वैसे तो यह खबर कोई घोषणा नहीं है पर हेमंत अत्री ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि सोनिया ने पहले ही चुनाव नहीं लड़ने की बात कही थी और राहुल गांधी ने प्रियंका को पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाकर मां सोनिया गांधी की सक्रिय राजनीति से विदाई का रास्ता साफ कर दिया है। सूत्रों के हवाले से छपने वाली खबरों पर मैं भरोसा नहीं करता लेकिन ऐसी खबरें खूब छपती हैं और आसानी से भुला भी दी जाती हैं।
प्रियंका गांधी राजनीति में आईं, कांग्रेस ने उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया है। इसके अलावा खबरों में ज्यादातर अटकल है। इस चक्कर में आज एक महत्वपूर्ण खबर दब या छूट गई है। और अटकलों के कारण वह भी पूरी नहीं है। आज केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की जगह रेल मंत्री पीयूष गोयल को अस्थायी तौर पर वित्त मामलों का अतिरिक्त प्रभार दिए जाने की आधिकारिक खबर है। और बजट पेश किए जाने से कुछ दिन पहले यह तय नहीं है कि बजट कौन पेश करेगा। इस संबंध में भिन्न अखबारों की खबरें दिलचस्प हैं। यह खबर इसलिए महत्वपूर्ण है कि बजट पेश किए जाने में कुछ ही दिन रह गए हैं और इसपर अटकलें छपती रही हैं कि बजट में क्या होगा और अब बजट पेश करने वाले मंत्री ही बदल गए। पुरानी अटकलों पर तो किसी अखबार में पहले पन्ने पर कुछ नहीं ही है, बजट पीयूष गोयल पेश करेंगे यह घोषणा भी सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया में लीड है।
ऐसा नहीं है कि प्रियंका गांधी की खबर है तो वही पूरी है। प्रियंका गांधी के राजनीति में आने से अगर कोई सबसे ज्यादा प्रभावित होगा तो वह है उनके पति, रॉबर्ट वाड्रा। आपने किसी अखबार में रॉबर्ट वाड्रा की प्रतिक्रिया देखी क्या? उनकी प्रतिक्रिया नवभारत टाइम्स में प्रमुखता से छपी है। नभाटा ने पहले पन्ने से पहले के अपने अध पन्ने पर खबर छापी है और शीर्षक लगाया है, “प्रियंका भी मैदान में राहुल का ‘ब्रह्मास्त्र’।” अखबार ने पीयूष गोयल वाली खबर को प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ छापा है, अब पीयूष गोयल पेश करेंगे अंतरिम बजट? लेकिन प्रियंका के राजनीति में आने की खबर पर उनके पति की प्रतिक्रिया नभाटा ने ही सबसे प्रमुखता से छापी है, “बधाई …. मैं जिन्दगी के हर मोड़ पर साथ हूं। आप सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करें।”
अमर उजाला ने न्यूजडायरी में सबसे ऊपर छापा है- पीयूष गोयल पेश कर सकते हैं अंतरिम बजट। एजेंसी की इस खबर में लिखा है, रेल मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया। … अरुण जेटली स्वस्थ होने तक बिना विभाग के मंत्री रहेंगे। माना जा रहा है कि गोयल ही एक फरवरी को संसद में अंतरिम बजट पेश करेंगे। खबर में लिखा है जेटली का मंगलवार को न्यूयॉर्क में आपरेशन हुआ है। डॉक्टरों ने उन्हें कम से कम दो सप्ताह आराम की सलाह दी है। मालूम हो कि 13 जनवरी को इलाज के लिए जेटली अमेरिका गए थे। इस पूरी सूचना के बाद पीयूष गोयल पेश कर सकते हैं अंतरिम बजट का मतलब यही हो सकता है कि अखबार को पूर्ण बजट भी पेश होने की उम्मीद है। वरना बजट तो पीयूष गोयल को ही पेश करना चाहिए। क्योंकि जेटली के बीमार होने और इलाज के लिए विदेश जाने के 11 दिन बाद और बजट पेश करने की निश्चित तारीख से नौ दिन पहले उन्हें मंत्री क्यों बनाया जाएगा?
इसी खबर को एजेंसी के ही हवाले से दैनिक भास्कर ने, “अंतरिम बजट से नौ दिन पहले मिली जिम्मेदारी” फ्लैग शीर्षक से छापा है। मुख्य खबर का शीर्षक है, “जेटली की सर्जरी; पीयूष गोयल को वित्त विभाग का अतिरिक्त जिम्मा”। खबर में साफ-साफ लिखा है, अमेरिका में केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली की मंगलवार को सर्जरी हो गई। उनको दो हफ्ते आराम करना होगा। इसके चलते जेटली के वित्त और कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी रेल मंत्री पीयूष गोयल को सौंपी गई है। बजट पेश करने में महज नौ दिन पहले। वे एक फरवरी को चुनावी साल के कारण अंतरिम बजट पेश करेंगे। यह मोदी सरकार का अंतिम बजट है।
दिलचस्प यह है कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को चार कॉलम में लीड बनाया है पर शीर्षक यही कहता है कि वे बजट पेश कर सकते हैं। अखबार ने इसके साथ प्रमुखता से लिखा है, अरुण जेटली बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बने रहेंगे। अखबार ने अपनी खबर की शुरुआत इस तरह की है, “इस बात के स्पष्ट संकेत में कि अमेरिका में बीमारी की छुट्टी पर चल रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को मोदी सरकार का अंतिम बजट नहीं पेश करेंगे, रेल और कोयला मंत्री पीयूष गोयल को बुधवार को मंत्रालय का अस्थायी प्रभार सौंप दिया गया। टाइम्स ने भी नभाटा की तरह प्रियंका की खबर को पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर छापा है।
नवोदय टाइम्स ने इस खबर को चार कॉलम में छापा है। शीर्षक है, अब बजट पेश करने की जिम्मेदारी पीयूष पर। उपशीर्षक है, गोयल को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार, जेतली की तबियत नहीं सुधरी। ब्यूरो की इस खबर में अखबार ने लिखा है, राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी सूचना में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सलाह पर वित्त मंत्रालय और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार अस्थायी रूप से गोयल को सौंपा गया है। गोयल के पास जो मंत्रालय हैं वह उनका कामकाज भी देखेंगे।
दैनिक हिन्दुस्तान में दोनों खबरों का शीर्षक बहुत स्पष्ट है। प्रियंका को पूर्वी यूपी की कमान छह कॉलम में लीड है और बगैर किसी टीका टिप्पणी के साफ-सुथरी खबर है। राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की खबर इसके साथ ही पर अलग से छपी हैं। अखबार में पीयूष गोयल की खबर भी इसी तरह स्पष्ट और दो कॉलम में छापी है। शीर्षक है, पीयूष गोयल को मिला वित्त मंत्रालय का प्रभार। अखबार ने जिम्मेदारी के तहत यह भी बताया है कि पीयूष गोयल ही इस बार अंतरिम बजट पेश कर सकते हैं। मतलब भ्रम यहां भी है। क्यों है, पता नहीं। शायद इसलिए कि इस बारे में कुछ सप्ष्ट कहा नहीं गया है। लेकिन ऐसा ही हो तो अटकलों की क्या जरूरत?
दैनिक जागरण ने पहले पन्ने पर दो कॉलम में साफ-साफ बताया है, “जेटली की गैरहाजिरी में गोयल पेश करेंगे बजट”। वैसे तो यह प्रेस ट्रस्ट और रायटर की खबर बताई गई है और ऐसी ही दूसरी एजेंसियों का नाम नहीं लिखकर कई अखबार अक्सर एजेंसी या एजेंसियां लिखते हैं। इस खबर में कहा गया है, “सरकारी सूत्रों ने बताया कि वर्ष 2019-20 का अंतरिम बजट अब गोयल ही पेश करेंगे।” यानी यह सूचना प्रेस ट्रस्ट अथवा रायटर को किसी सरकारी सूत्र ने दी जिसे जागरण ने बिना जाने छाप दिया है। और शीर्षक भी इसी पर है। जबकि सभी अखबार शीर्षक में ऐसा कहने से बचते हुए नजर आ रहे हैं।
मैं नहीं समझता कि आज पीयूष गोयल को चार्ज मिलने की खबर के साथ यह बताना जरूरी था कि वे बजट पेश करेंगे कि नहीं। अगर इस बारे में स्पष्ट सूचना या घोषणा नहीं है तो अटकल लगाने की जरूरत नहीं है। मेरे ख्याल से सभी अखबारों को पढ़कर भी यही लगता है कि वित्त मंत्री का अस्थायी कार्यभार तो पीयूष गोयल के पास है लेकिन वे बजट पेश करेंगे कि नहीं यह तय नहीं है। लेकिन जागरण की सूत्रों वाली पत्रकारिता के कारण भ्रम है और मजेदार यह है कि ‘सूत्र’ जागरण का होता तो मैं भी उसके सूत्रों की खबरों के आधार पर अटकल लगाता। लेकिन इस बार तो सूत्र किसी एजेंसी के हैं और पता नहीं वह एजेंसी कौन है।
नोट : कल से सोमवार तक चार दिन छुट्टी मनाऊँगा। मंगलवार, 29 जनवरी के अखबारों की चर्चा के साथ फिर मिलूंगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )