हरिवंश को ‘अपना’ बताने में फूहड़ हो गया प्रभात ख़बर !

 

इस रंग बदलती दुनिया में इंसान की नीयत ठीक नहीं ….

 

संजय कुमार सिंह

 

प्रभात खबर का आज का पहला पेज। इसमें दो बड़ी गलतियां हैं। अखबार का नाम पहले ही पेज पर दो बार लिखा है जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। पता नहीं यह निर्णय किसका है और क्यों है पर यह राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश को ‘अपना’ बनाने और बताने की फूहड़ कोशिश है। अगर प्रभात खबर को यह बताना पड़े कि हरिवंश उसके संपादक रहे हैं तो प्रधानमंत्री का वह कथन याद कीजिए कि चंद्रशेखर के इस्तीफा देने की सूचना उनके पास थी पर उन्होंने अखबार को नहीं दी।

दूसरी बड़ी गलती यह है हरिवंश के संपादक बनने से अगर झाऱंखड व बिहार को गर्व हो सकता है तो बलिया का क्या हुआ, पत्रकारिता का क्या हुआ, हिन्दी का, उनकी पार्टी और नीतिश कुमार का क्या हुआ भाजपा का क्या हुआ जिसके सहयोग और साथ के बिना यह संभव ही नहीं था। आज के दूसरे अखबारों में छपा है कि 41 साल बाद कोई गैर कांग्रेसी इस पद पर पहुंचा है। किसी टुटपुंजियां अखबार में या मालिक संपादक वाले अखबार में ऐसी खबर छपना और बात है पर किसी पेशेवर पत्रकार के लिए ऐसे खबर छपना दूसरा मतलब देता है।

इतनी सारी सूचनाओं को छोड़कर सिर्फ झारखंड औऱ बिहार को गर्व क्यों? जहां तक मेरी जानकारी है, हरिवंश संपादक के रूप में रांची में बैठते थे। तो बिहार को गर्व क्यों? और बिहार को गर्व है तो कोलकाता या बंगाल को क्यों नहीं? मैं नहीं कहता कि एक पाठक के रूप में मेरे इन सवालों का जवाब है ही नहीं। हो सकता हो, हो पर वह दिया क्यों नहीं गया। अखबार पाठक का होता है – मालिक, संपादक या पूर्व संपादक का नहीं। यह अंक ऐसा लग रहा है जैसे इसके पीछे की सोच हो – मेरी मर्जी।

यही नहीं, अखबार तो कोलकाता से भी निकलता है। हरिवंश का पत्रकारीय जीवन कोलकाता में भी बीता है। कोलकाता या बंगाल को गर्व क्यों नहीं? मेरी राय में यह सब आदमी को छोटा बनाने वाली पत्रकारिता है। या अहसान उतारने वाली पत्रकारिता है। पहले पेज पर सिंगल कॉलम में कुछ नई या पूरी जानकारी के साथ लिखी खबर इससे कम प्रभाव नहीं छोड़ती। लेकिन आज की पत्रकारिता यही है। मैं तो कहूंगा कि इस रंग बदलती दुनिया में इंसान की नीयत ठीक नहीं ….

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 



 

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