दिल्ली दंगे के अभियुक्तों के वकील और ऐसे 80 लोगों को जमानत दिलाने वाले महमूद प्राचा पर दिल्ली पुलिस के छापे को वकीलों के संगठन, बार कौंसिल ऑफ दिल्ली ने बहुत गंभीर मसला कहा है। प्राचा का दावा है कि उन्होंने दंगे में शामिल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 22 पदाधिकारियों को जेल भिजवाया है। ऐसे वकील को सरकारी संरक्षण की बजाय उनपर छापा पड़े और सरकार समर्थक टू मच डेमोक्रेसी (बहुत ज्यादा लोकतंत्र) की बात करें तो लोकतंत्र की सच्ची हालत अखबारों से ही मालूम होगी। पर क्या अखबार ऐसा कर रहे हैं? आप खुद सोचिए।
द हिन्दू में आज छपी एक खबर के मुताबिक बार कौंसिल ने इस मामले में गृहमंत्री से तत्काल कार्रवाई की मांग की है। खबर के मुताबिक, कौंसिल ने लिखा है, बार एसोसिएशन / बार कौंसिल के प्रतिनिधियों और दिल्ली पुलिस के बीच यह समझ रही है कि किसी वकील के खिलाफ मामले की स्थिति में बार एसोसिएशन / बार कौंसिल के प्रतिनिधियों को सूचना दी जाएगी और उन्हें भरोसे में लिया जाएगा। यह सहमति न्याय देने की व्यवस्था से संबंधित दो शाखाओं के बीच समन्वय बनाए रखने के लिए है। इस पत्र पर बीसीडी के वाइस चेयरमैन हिमल अख्तर, सदस्य राजीव खोसला और बीसीडी के पूर्व चेयरमैन केसी मित्तल के दस्तखत हैं।
पत्र में आगे कहा गया है कि प्राचा के मामले में नहीं लगता है कि इस सहमति का पालन किया गया है। हम इस मामले के भिन्न पहलुओं में नहीं जाना चाहते हैं पर स्पष्टतः दिल्ली पुलिस की कार्रवाई इस लिहाज से गड़बड़ है और जहां तक विधि समुदाय का संबंध है, यह बहुत ही गंभीर मामला है। वकीलों का मानना है कि इस (छापे) से उनके स्वतंत्र रूप से काम करने की जिम्मेदारी बाधित होती है और यह संविधान के साथ-साथ एडवोकेट ऐक्ट 1961 तथा बार कौंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के खिलाफ है।
दिल्ली हाईकोर्ट की महिला वकीलों के संगठन, दिल्ली हाईकोर्ट वीमेन लॉयर्स फोरम ने दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट को पत्र लिखकर वकीलों को धमकाने की हाल की कथित प्रवृत्ति के खिलाफ चिन्ता व्यक्त की है और कहा है कि नागरिक अधिकारों की रक्षा करने वाले वकीलों को व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया जा रहा है और जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को धमकाने की एक प्रवृत्ति उभर रही है। महिला वकीलों ने भी प्राचा के कार्यालय पर छापे का उल्लेख किया है। और कहा है कि इसमें एक पैटर्न उभरता दिख रहा है और इसे नजरअंदाज करना मुश्किल है।
द वायर ने बताया था कि यह छापा 15 घंटे चला। द वायर से बातचीत में महमूद प्राचा ने आरोप लगाया था कि यह छापा अमित शाह के आदेश पर डाला गया था। उन्होंने कहा है, असली मकसद मेरा हार्ड डिस्क लेना था क्योंकि इसमें आरएसएस और भाजपा के खिलाफ शिकायतें थीं जिसके जरिए हम शाह के उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों से जोड़ सकते थे। शाह मेरे पीछे पड़े हैं लेकिन मैं भी उनके पीछे लगा हूं। उन्होंने दावा किया कि दंगा भड़काने के आरोपी कपिल मिश्रा और अमित शाह के बीच संबंध है। अपने खिलाफ शिकायत और उसकी जांच के संबंध में उन्होंने कहा है, अगर कोई मुवक्किल गलत जानकारी दे तो वकील को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
जो भी हो, मामला वाकई गंभीर और नामुमकिन को मुमकिन करने वाला है। यह अलग बात है कि इसके संयोग होने की संभावना कम है और सरकार के खिलाफ वोकल लोगों को परेशान करने का अभियान पूरी बेशर्मी से जारी है और इसमें प्राचा अकेले नहीं है।