संजय कुमार सिंह
अगर भाजपा सरकार के लिए चिदंबरम ऐसा कह रहे हैं तो निश्चित रूप से मूल अंग्रेजी का लेख पढ़ना पड़ेगा। खासकर, इसलिए भी कि चार साल से यह सरकार येन-केन प्रकारेण चिदंबरम को फंसाने के चक्कर में है (और यह इसलिए नहीं कि उसे अपनी ईमानदारी साबित करनी है बल्कि इसलिए कि चिदंबरम ने गृहमंत्री रहते हुए जो कार्रवाई की थी उसका हिसाब बराबर करना है, हालांकि वह अलग मामला है)। इसलिए, मैंने लेख पढ़ने से पहले ही तय कर लिया कि अनुवाद में autarky के लिए आत्मनिर्भरता लिखना गलत है। इसकी जगह मनमानी होना चाहिए था। और यह लेख की भाषाशैली तथा तेवर के अनुकूल था। पर इस तरह का निर्णय कोई कनिष्ठ अनुवादक अपने स्तर पर नहीं कर सकता है और यह राय विचार करके ही किया जाना चाहिए था। अब हिन्दी अखबारों का जो हाल है उसमें ऐसी अपेक्षा कोई नहीं करता। इसलिए ऐसी गलतियां होती रहेंगी। जनसत्ता में हमलोग ऐसे शब्दों पर खूब माथा-पच्ची कर थे और तब जनसत्ता का अनुवाद अच्छा कहा जाता था और यह भी कि पढ़कर नहीं लगता है कि अनूदित है। यहां तो शीर्षक पढ़कर ही माथा ठनक गया।
वैसे लेख में भी बताया गया है कि ऑटॉर्की क्या है। असल में यह एक आर्थिक व्यवस्था है और इसका मतलब कोष्ठक में सेल्फ सफीसियंसी इन एन इकनोमिक सिस्टम ही लिखा है। इसका मतलब यह हुआ कि आर्थिक व्यवस्था के रूप में अटॉर्की एक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था होती है। अनुवादक को इससे भी शब्द का चयन सही लगेगा। पर लेख में कहा गया है कि बाजार की अर्थव्यवस्था पर भाजपा की स्थिति संदिग्ध है। कारोबार अनुकूल होने का दावा करते हुए इसने आयात विकल्प, शुल्क और गैर शुल्क बाधाओं, मूल्य नियंत्रण और लाइसेंस तथा परमिट का आयात विकल्प नए सिरे से खोज लिया है। आज अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने जो तरीके लागू किए गए हैं वो 2014 के मुकाबले ज्यादा हैं। हरेक निर्णय का सिरा किसी ने किसी ‘हित साधने वाले समूह’ से जुड़ा मिलेगा जो आमतौर पर किसी खास कारोबारी घराने का मुखौटा है।
पी चिदंबरम ने लिखा है कि चीन ने 1978 में और भारत ने 1991 में ऑटार्की (आत्म निर्भर अर्थव्यवस्था) को छोड़ दिया। उनके अनुसार व्यापार से ही द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सारी दुनिया ने बेजोड़ विकास देखा है। भिन्न देशों को मुक्त व्यापार की ओर ढकेलने का मुख्य तरीका द्विपक्षीय और बहुपक्षीय कारोबार करार रहा है और 1995 से इसकी जगह विश्व व्यापार संगठन ने ले ली है। भाजपा नेतृत्व वाली सरकार इस बात में यकीन करती नहीं लगती है कि व्यापार करार की कोई उपयोगिता है और भारत स्वेच्छा से डब्ल्यूटीओ में एक मुखर आवाज नहीं है। चिदंबरम ने लिखा है कि पहले (इस सराकार के आने के बाद) नीति बनाने में अराजकता रही और नोटबंदी के बाद जीएसटी को निन्दनीय ढंग से लागू किया गया। अब आत्मनिर्भरता की अर्थव्यवस्था अराजकता से जुड़ गई है। मुझे अफसोस है, देश इसकी भारी कीमत चुकाएगा।
इस लेख के अनुवाद पर टिप्पणी करने का आईडिया तब आया जब मैं एक और शब्द पर अटका। शब्द है Daft (डाफ्ट)। अगर सिर्फ अंग्रेजी का लेख पढ़ना होता तो मैं डाफ्ट शब्द का मायने देखने नहीं जाता। पर हिन्दी में इसके लिए मूर्ख या पागल लिखा गया है। वाक्य है – ऐसा नहीं है कि हमारे नेता और नीति निर्माता मूर्ख या पागल हैं। फादर कामिल बुल्के की डिक्सनरी में डाफ्ट के लिए चार विकल्प हैं और इनमें दो मूर्ख व पागल भी हैं। इस लिहाज से अनुवाद गलत नहीं है। पर यहां यह प्रयोग खटकता है। आइए, देखें क्यों? इसी वाक्य के आगे का वाक्य है। इसे मैं हिन्दी अनुवाद से ही लिया है, “हमारे कई नेता उच्च शिक्षित थे, निसंदेह होशियार थे, और निस्वार्थ व सादा जीवन जीया। हमारे प्रशासकों का निर्माण उन नौजवान पुरुषों और महिलाओं से हुआ, जिन्होंने विश्वविद्यालयों में शिक्षा हासिल की थी और नौकरी की सुरक्षा के अलावा उनके मन में समाज के लिए एक बेहतर और उपयोगी नागरिक बनने की जायज इच्छा थी। फिर भी, आजादी के बाद करीब तीस साल तक जो तरक्की हुई उसकी रफ्तार दुखदायी रूप से जीडीपी बढ़ने के मुकाबले बहुत ही धीमी रही, औसतन करीब साढ़े तीन फीसद और प्रति व्यक्ति आय में (में वृद्धि) 1.3 प्रतिशत रही।”
वैसे तो इस अनुवाद में भी प्रवाह नही है लेकिन मैं कहना यह चाहता हूं कि यहां जिन लोगों की बात हो रही है उनके मूर्ख या पागल होने की बात सपने में भी नहीं सोची जा सकती है। जाहिर है डाफ्ट के लिए किसी और शब्द का उपयोग किया जाना चाहिए। वह है – मंदबुद्धि, कमअक्ल, गैरजिम्मेदार आदि। कुल मिलाकर, मामला यह है कि अनुवाद इतना आसान नहीं है जितना माना जाता है पर अनूदित चीजों पर कहां कौन ध्यान देता है। हमारे देश में तो हिन्दी औपचारिकता ही है। हालांकि, हिन्दी अखबारों की दुनिया भी विचित्र है। हिन्दी के लेखकों को छापेंगे नहीं और अंग्रेजी वालों का अनुवाद करने की कुव्वत नहीं है। हिन्दी का संपादक भी अंग्रेजी में लिखने का मोह नहीं छोड़ पाता है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।