प्रपंचतंत्र : मोदी की भाषा में छिपी तस्वीरें

HODELETE HFA CHICAGO OUT India prime minister Narendra Modi asks to take a photo with Dahleen Glanton's great nephew Baffour Akoto, age 5, after spotting him in the crowd during an official visit to Osaka, Japan, in August 2014. (Photo courtesy Edith Glanton/TNS)

अनिल यादव

नेता का ज्ञान जनता के काम न आए तो बेकार है. इस लिहाज से मनमोहन सिंह जितने बड़े अर्थशास्त्री थे नरेंद्र मोदी उतने ही बड़े प्रशासक हैं. इसमें कोई चिंता की बात नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी इतिहास की तथ्यात्मक और चित्रित जानकारियों के प्रति ढिठाई से अपने अज्ञान की नुमाइश करते हुए सारी दुनिया में हंसी उड़वा रहे हैं. पहले के प्रधानमंत्री भी झूठ बोलते रहे हैं लेकिन वे रंगे हाथ पकड़े नहीं जाते थे. वे इस तरह तौल कर बोलते थे कि जब तक सत्यापन का समय आता था उन पर नए मुद्दों की टनों मिट्टी पड़ चुकी होती थी और राजनीति के तात्कालिक तकाजे रोलर चलाकर जमीन बराबर कर देते थे.

इंदिरा गांधी को अक्सर एक विदेशी हाथ दिखाई देता था. वीपी सिंह जेब से एक पर्ची निकाल कर दिखाया करते थे जिस पर उनके मुताबिक राजीव गांधी के स्विस बैंक के खाते का नंबर लिखा हुआ था जिसमें बोफोर्स तोप की दलाली से मिली रकम जमा थी. अटल बिहारी बाजपेयी ने सन् बयालिस में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के खिलाफ गवाही देने के बावजूद अपने लिखे देशभक्ति के गीत लता मंगेशकर से गवाये. मनमोहन सिंह कहा करते थे कि वे रिमोट कंट्रोल से चलने वाले प्रधानमंत्री नहीं है जो कि हिमालय से भी धवल झूठ था.

कुछ लालबुझक्कड़ बता रहे हैं कि मोदी जानबूझ कर इतिहास की ऐसी तैसी कर रहे हैं ताकि सच और झूठ, इतिहास और गल्प, अंधेरे और उजाले का फर्क मिट जाए ताकि वे जनता को मनमाने ढंग से हांक सकें. आशंका की हवा में इतना उड़ने की जरूरत नहीं है. खुद मोदी तक जब ऐसी लनतरानियां पहुंचती होंगी तो वे मुदित होकर सोचने लगते होंगे कि क्या वाकई ऐसा संभव है? दरअसल झूठ और भ्रम मोदी को खुद हांक रहे हैं जो उन्हें आरएसएस के बौद्धिकों से विरसे में मिले हैं. वही उनकी शिक्षा और दीक्षा है. आरएसएस ने मुसलमानों के प्रति घृणा और मनुस्मृति के विधान से समाज चलाने की आतुरता में ऐसे बहुत से झूठ रचे हैं जिन्हें उनके नेता और बहुतेरे साधारणजन दोनों अंतिम सत्य मानते हैं. ये झूठ मोदी के भी सत्य हैं.

अच्छा है कि इस हाथ ले और उस हाथ दे हो जा रहा है. जिस तकनीक से लोगों तक झूठ पहुंच रहे हैं उसी से असलियत भी पहुंच रही है. एक तीर चलता है लेकिन रास्ते में ही काट दिया जाता है. अगर नेता का अज्ञान जनता को जागरूक करने लगे तो काम का है. लेकिन असल चिंता की बात मोदी की भाषा है.

प्रधानमंत्री ने जब कांग्रेस को कुत्ते से देशभक्ति सीखने या राहुल गांधी को अपनी मां की जबान में बोलने या पंद्रह मिनट में पांच बार एक शब्द का उच्चारण करने को कहा होगा तब उनके दिमाग में क्या चल रहा होगा? यकीनन वे खुद कुत्तों से देशभक्ति सीखने के बाद कांग्रेस को नसीहत तो नहीं ही दे रहे थे. वे संभवतः अपने मन में बने एक बिंब से विकृत खुशी खींचते हुए कांग्रेस को ऐसे पशुओं को जमावड़े के रूप में देख रहे थे जिनकी तुलना में कुत्ता बहुत श्रेष्ठ है. एक बिंब राहुल गांधी का होगा जो ‘विश्वेश्वरैया’ कहने की कोशिश में पस्त दयनीय, मंदबुद्धि बच्चा लगता होगा. उसकी इतालवी बोलती मां भी कई तस्वीरें बनाती होगी. मोदी के मनोजगत की निकटतम संभावित छवियां देखते हुए… ऐसा न हुआ तो मुझे जूते मारना, चौराहे पर जला देना, जो सजा काले चोर की वो मेरी… जैसे भाषण अचानक याद आते हैं जिनसे पता चलता है कि वे खुद को किस सलूक के लायक मानते हैं. हमारे प्रधानमंत्री ने विफल हो जाने पर अपने लिए ऐसी ही भूमिकाएं क्यों चुनी हैं!

यह भाषा अहंकार, कुंठा, डर और लपलपाती हिंसा का पता देते हुए यह भी बताती है कि ट्रॉलों और थोक के भाव पैदा हुए मनबढ़ सांप्रदायिक नौजवानों की गाली गलौज वाली भाषा का प्राथमिक स्रोत कहां है जिनकी हौसलाअफजाई मोदी बहुत निंदा सहकर भी करते हैं. यहीं एक बिंब मेरे दिमाग में आता है कि हर बार जब मोदी ऐसा भाषण देकर प्रधानमंत्री निवास में लौटते होंगे, तब क्या कम से कम कोई एक पोलिटिकल आदमी होगा जो कहता होगा, इस भाषा से आप जिन भस्मासुरों को पाल रहे हैं वे एक दिन आपको ही दौड़ा लेंगे. या गेट पर इंतजार करते अनेक चमचे, चिलगोजे और चकरबंध दांत निपोरते हुए कहते होंगे… साहेब! आपने विरोधियों की क्या बजाई है!!

 

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