पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा भारतीय जनता पार्टी की राजनीति का हिस्सा है और उसे समझने की जरूरत है। खासकर दिल्ली चुनाव के बाद दंगे और उसकी पुलिसिया जांच पर अदालती टिप्पणियों के मद्देनजर। देशभर में जब कोविड से मौतें हो रही हैं, लोग ऑक्सीजन के लिए तड़प रहे हैं, श्मशान घाट पर शवों की लाइन लग रही है तो सत्तारूढ़ दल की प्राथमिकता बंगाल की हिंसा है। क्योंकि उसके सिस्टम को ऑक्सीजन इसी हिंसा से मिलती है। अगर ‘सिस्टम’ की बात करूं तो बंगाल में चुनाव जीतने के बावजूद ममता बनर्जी ने शपथ नहीं ली है, अधिकारी वही तैनात हैं जो चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने किए थे। ऐसे में हिंसा रोकना केंद्र सरकार (और चुनाव आयोग) की जिम्मेदारी है। निश्चित रूप से गलत है और इसपर रोक लगनी चाहिए। लेकिन सरकार और सिस्टम की प्राथमिकता?
अखबारों की खबरों और सोशल मीडिया के प्रचार से लग रहा है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ता, तृणमूल कार्यकर्ताओं के हाथों मारे जा रहे हैं। वही भाजपा जो चुनाव के पहले 200 सीटें जीत रही थी और दीदी तो गईं कहकर खुश हो रही थी। अब सब पलट गया। हर चीज के लिए जैसे दीदी जिम्मेदार हों। आइए, पहले कुछ तथ्य देख लें – ममता बनर्जी ने शांति बरतने और हिंसा रोकने की अपील की है। क्या भाजपा ने की और की तो भाजपा समर्थक किसी अखबार ने पहले पन्ने पर या खबरों के साथ प्रमुखता से छापा? द टेलीग्राफ के अनुसार गुस्सा कम करने की बजाय दक्षिणपंथी पारिस्थितिकीतंत्र (समझने की आसानी के लिए सिस्टम या व्यवस्था) कथित पीड़ितों और हमलावरों का धर्मवार प्रोफाइल तैयार कर रहा है और 2021 के जनादेश को पटरी से उतारने का माहौल बना रहा है। देश दुनिया को यह यकीन दिलाने की कोशिश चल रही है जैसे पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन के लिए उपयुक्त स्थितियां बन ही गई हों।
यह अलग बात है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा की हार का कारण बंगाल के जन–मानस को नहीं समझना है। भाजपा हारी क्योंकि उसके पास बंगाल में कोई लोकप्रिय बंगाली नेता है ही नहीं। अमित शाह और नरेन्द्र मोदी अगर बंगाल में लोकप्रिय हों भी तो मुख्यमंत्री नहीं बनने वाले थे यह बंगाल का बच्चा–बच्चा समझता था और चौकीदारों को वोट देने वालों से ज्यादा समझदार है। लेकिन चुनाव आयोग और सीबीआई की ताकत से चुनाव जीतने वाली पार्टी यह सब नहीं समझेगी और कथित रूप से खतरे में पड़े हिन्दुत्व को सुरक्षा देने के लिए दंगाइयों का साथ दे रहे अखबार अभी भी बाज नहीं आ रहे हैं।
इतवार को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद से राजनीतिक हिंसा में 17 मौतें होने के आरोप हैं। भाजपा ने कहा है कि उसके नौ कार्यकर्ता मारे गए, तृणमूल के छह और संयुक्त मोर्चा के दो। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा दो दिन के दौरे पर कोलकाता पहुंच गये हैं और भगवा समूह सोशल मीडिया पर देश भर में जबरदस्त अभियान चला रहा है। इसमें धार्मिक संदर्भ तो हैं ही कुछ फर्जी विजुअल भी हैं। कोलकाता पहुंचते ही नड्डा ने चुनावी हिंसा की तुलना बंटवारे से की। सोशल मीडिया पर चल रहे अभियान के क्रम में कल कंगना रनौत ने भी कुछ क्रांतिकारी ट्वीट कर दिया और जवाब में उनका अकाउंट स्थायी रूप से बंद कर दिया। कंगना का ट्वीट और नरेन्द्र मोदी से समर्थकों की अपेक्षा विस्तृत चर्चा का विषय है। लेकिन उसपर कोई चर्चा होगी नहीं। द टेलीग्राफ में उसपर खबर है। आप चाहें तो देख सकते हैं।
द टेलीग्राफ की आज की मुख्य खबर का शीर्षक है, “भाजपा आग से मत खेलिए, मुख्यमंत्री हमें शांति की ओर ले चलिए।” मुझे लगता है कि आज के समय में किसी भी अखबार को ऐसा ही करना चाहिए। सबसे पहले तो यह सच बताए कि हिंसा में हर तरफ के लोग मरे हैं। और यह भी कि समर्थक भले चाहते हैं, पर सरकार निष्पक्ष कार्रवाई कर रही है। लेकिन करे तब तो। आज इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को लीड बनाया है। लाल रंग में फ्लैग शीर्षक है, “नड्डा रशेज टू स्टेट” (भाजपा अध्यक्ष पहुंचे)। मुख्य शीर्षक है, “बंगाल की हिंसा में मरने वाले 14 हुए, प्रधानमंत्री ने राज्यपाल को फोन किया, ममता ने कार्रवाई की अपील की।” लेकिन नड्डा क्या करने गए? आग में घी डालने? वरना हिंसा रोकने का काम तो पुलिस और सुरक्षा बलों का है। राज्यपाल ने बुलाया?
इंडियन एक्सप्रेस में इस खबर के साथ फोटो भी है और इसका कैप्शन है, “भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अभिजीत सरकार के परिवार से मुलाकात की जिसे मंगलवार को कोलकाता में चुनाव के बाद की हिंसा मार दिया गया था।” आप कह सकते हैं कि नड्डा यह समझने गए हैं कि जो पार्टी 200 सीटों से जीत रही थी वह इतनी कमजोर कैसे हो गई। लेकिन आग में घी डालना भी ऐसा ही कुछ होता है। और भाजपा जो कर रही है उसका विवरण ऊपर टेलीग्राफ ने दिया है। इंडियन एक्सप्रेस ने 14 लोगों के मारे जाने की इस खबर को लीड बनाया है पर दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से 25 लोगों के मर जाने की खबर को इतनी प्रमुखता नहीं दी थी। ऑक्सीजन की कमी से मौत की खबर को अलग छापा था और दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सहायता मांगी उसे लीड बनाया था। यहां उसी प्रधानमंत्री की कार्रवाई को लीड बनाया है जो ऑक्सीजन की कमी के मामले में कुछ नहीं कर पा रहा है। दिल्ली हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद।
हिन्दुस्तान टाइम्स में इस खबर का शीर्षक है, “प्रधानमंत्री ने राज्यपाल को फोन किया, बंगाल की हिंसा पर भाजपा सुप्रीम कोर्ट गई।” इसके ठीक नीचे की खबर का शीर्षक है, “उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के प्रमुख क्षेत्रों में भाजपा को झटका, सपा को फायदा।”आप समझ सकते हैं कि ऊपर वाली खबर नहीं होती तो नीचे वाली खबर ऊपर होती और ज्यादा पढ़ी जाती है। संभव है, “ऊपर वाली खबर हेडलाइन मैनेजमेंट का हिस्सा हो पर इसकी सच्चाई दो चार दिन में स्पष्ट होगी।” टाइम्स ऑफ इंडिया में भी दोनों खबरें लगभग एक जैसी हैं और वैसे ही ऊपर नीचे। द हिन्दू में भी यह खबर है, चुनाव के बाद की हिंसा पर प्रधानमंत्री ने गवरनर को फोन किया।
कहने की जरूरत नहीं है कि केंद्र की भाजपा सरकार ने अपने फायदे के लिए बंगाल की हिंसा को इतना महत्व दिया है। इसके कई मकसद हो सकते हैं और इनमें एक है, हार से मुंह छिपाना। वैसे, कारण महत्वपूर्ण नहीं है सिर्फ समझने की चीज है और उन्हें समझना चाहिए जो इसे ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों से ज्यादा महत्व दे रहे हैं। क्या यह चुनाव से पहले भाजपा नेताओं के भाषणों से अलग या अछूता है? जो हो, तथ्य यह है कि केंद्र सरकार कोरोना से निपटने में बुरी तरह नाकाम रही है। खत्म होने से पहले ही उसपर अपनी विजय का दावा कर दिया था। उसपर राजनीति करती रही। बाद में जब ऑक्सीजन और दवाइयों की कमी हुई तो सरकार ने प्रचार चाहे जो किया और धमका कर खबरें चाहे रुकवा लीं पर राहत आम आदमी तक नहीं पहुंची। वह भी नहीं, जो विदेशों से मुफ्त आई थी।
इंडिया टुडे डॉट इन में 4 मई 2021 को आनंद पटेल ने लिखा है कि कोविड से लड़ने के लिए विदेशी सहायता पहली बार सिंगापुर से 25 अप्रैल को आई थी। भारत में ऑक्सीजन और अन्य चिकित्सा सामग्रियों की भारी कमी रही पर भारत सरकार को इनके लिए एसओपी (सामान्य परिचालन प्रक्रिया) बनाने में सात दिन लगे। इसकी घोषणा दो मई को हुई। इंडिया टुडे ने 30 अप्रैल को भी एक खबर की थी, “भारत के लिए दुनिया भर से कोविड सहायता की भरमार। पर इसका वितरण कैसे होगा?” दूसरी ओर भारत सरकार बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से हारी हुई लड़ाई लड़ रही है। अखबार आपको वैसी ही खबरें दे रहे हैं। ये नहीं बता रहे हैं कि नागरिकों की रक्षा तो दूर विदेशी सहायता का वितरण भी समय पर ठीक से नहीं हो रहा है।
इस संबंध में आज द हिन्दू में खबर है कि विदेशी सहायता केंद्रीय इकाइयों के जरिए बँटेगी। हिन्दुस्तान टाइम्स में खबर है, “कुछ राज्यों ने कहा विदेशी सहायता नहीं मिली, केंद्र ने कहा रास्ते में है।” और नड्डा जी कोलकाता पहुंच गए। इससे आप सरकार की प्राथमिकता और गति को समझ सकते हैं। विदेश से आई सहायता में ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ ऑक्सीजन बनाने वाली मशीनें भी हैं। कल मैंने लिखा था कि हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि कोई सहायता करना चाहे भी तो कर नहीं सकता है क्योंकि उसे ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिलेंगे। भरने की व्यवस्था नहीं होगी। पर मशीनें हैं सिलेंडर भी (लेकिन रास्ते में)। इसलिए लोग मर भी रहे हैं।
इसके अलावा, आज टाइम्स ऑफ इंडिया में खबर है कि टीके लगवाने वालों की संख्या रोज घट रही है क्योंकि निजी अस्पतालों में टीके नहीं हैं। एक तरफ कोरोना का हाल दूसरी तरफ टीकों की जरूरत और सरकार की भूमिका तथा प्रचार की पूरी कोशिशों के बावजूद टीके की कमी। नागरिकों को कुछ समझ नहीं आ रहे हैं पर अखबार क्या कुछ बता रहे हैं? हिन्दुस्तान टाइम्स की खबरों से पता चलता है कि अमेरिका में 12 साल से कम के बच्चों को भी टीका लगाने की शुरुआत हो सकती है। वहां फाइजर की दवा दी जाएगी। पिछले परीक्षण से पता चला कि इसकी कुशलता 100% है। अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिस्ट्रेशन इसे अगले हफ्ते मंजूरी दे देगा। भारत में सरकारी प्रचार और वास्तविकता को याद कीजिए।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और मशहूर अनुवादक हैं।