चाहे तो गाइए, सच्चाई छिप नहीं सकती बनावट के उसूलों से खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से !
दिल्ली में ऑक्सीजन सप्लाई बाधित होने से शुक्रवार को 45 लोग मरे, खबर दो किस्तों में छपी और आज सिर्फ टेलीग्राफ में खबर है कि ऑक्सीजन आपूर्ति की दशा नहीं सुधरी है। अखबार की खबर का शीर्षक है, “मौतें बढ़ रही हैं ऑक्सीजन के लिए रीढ़ कंपा देने वाली रुलाई।” दूसरी ओर, सरकार समर्थकों पर न रोने का असर होता है न रोने की खबरें दिख रही हैं। कल आपने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित होने से 25 लोगों के मारे जाने की खबर और उसकी लीपापोती के बारे में पढ़ा। सच यह है कि एक अस्पताल में 25 नहीं, दो अस्पतालों में 45 लोग मरे। प्रचारकों की सरकार ने इसे संभाल लिया और खबरें दो किस्तों में छपीं। आज तीसरी किस्त सिर्फ टेलीग्राफ में है। बाकी अखबारों में कल की छूटी हुई खबर ही पहले पन्ने पर है।
यह देश की राजधानी की व्यवस्था है। और इस तथ्य के बावजूद है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से हाथ जोड़कर प्रधानमंत्री से इस मामले में आवश्यक कार्रवाई करने की मांग की। सर गंगाराम अस्पताल में मरीजों की मौत से जुड़ी खबर की लोपापोती के बावजूद दिल्ली के एक और अस्पताल में 20 लोगों की मौत हुई थी। यह खबर आज दिल्ली के सभी अखबारों में प्रमुखता से है। हालांकि, यह भी शुक्रवार की ही घटना है। इसे मिलाकर दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित होने से मरने वालों की संख्या एक दिन में 45 रही। इसे अखबारों ने दो दिन में या दो किस्तों में बताया है। व्यवस्था की गलती से एक भी मौत नहीं होनी चाहिए। यहां 45 मौतों का हेडलाइन मैनेजमेंट हो गया। दिल्ली से बाहर और दूर सामान्य दुर्घटनाओं में इससे कम लोगों की मौत की खबर इससे बहुत ज्यादा गंभीरता पाती रही है पर सरकारी या व्यवस्था की लापरवाही से हुई इन मौतों को दबाने-छिपाने की कोशिश चल रही है।
इसी का नतीजा है कि द टेलीग्राफ जैसी खबर किसी और अखबार में नहीं है। यही सिस्टम की हालत है और ऐसे ही नहीं है। यह देश में 30 साल से भी ज्यादा समय से चल रही हिन्दू-मुसलमान की राजनीति का नतीजा है। इसे मुस्लिम तुष्टिकरण का विरोध तो कहा जाता है पर इसकी आड़ में हिन्दुओं को आकर्षित किया जाता है। और एक हिन्दू के रूप में किसी को क्या शिकायत होती अगर चुनी गई सरकार ठीक से काम करती। पर चुनी गई सरकार की हालत आप नहीं जानते हैं क्योंकि आपके अखबार, टेलीविजन चैनल बताते नहीं है और सोशल मीडिया में को नियंत्रण में करने के लिए सारा जोर लगा दिया गया है। दूसरी ओर बंगाल जीतने के लिए संविधान विरोधी राजनीति आज भी जारी है।
आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आसनसोल में अपनी चुनावी रैली में 2018 की हिंसा का मामला उठाया था। द टेलीग्राफ ने इसकी चर्चा अपनी लीड खबर में की थी। ‘पहला पन्ना’ में इस खबर की चर्चा पिछले इतवार यानी 18 अप्रैल को की गई थी। आज आसनसोल का मामला इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर विस्तार से है। बेशक, यह एक ऐसी खबर है जो दिल्ली का पाठक बंगाल चुनाव के संबंध में पढ़ना जानना चाहेगा। पूरी खबर अच्छे से लिखी हुई है और ऐसी है जो पाठकों को समझनी चाहिए। हालांकि, इसमें यह नहीं लिखा है कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में पिछले ही हफ्ते इस हिंसा या झड़प के मामले को फिर उठाया था। दूसरी बात यह है कि अंग्रेजी अखबार में तो यह खबर छप गई पर इसे कितने स्थानीय लोग और मतदाता पढ़ेंगे या समझेंगे। बांग्ला अखबारों का तो मुझे पता नहीं है लेकिन हिन्दी अखबार अक्सर ‘हिन्दू’ अखबार की तरह रिपोर्टिंग करते हैं। वह अलग समस्या है।
इंडियन एक्सप्रेस में आज छपी सात कॉलम के एंकर का शीर्षक है, “आसनसोल में स्वागत है, भाईचारे का शहर अब एक नए बंटवारे से सड़ गया है।” यहां हिन्दी भाषी, स्थानीय बंगाली और 25 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। 2019 में लोकसभा चुनाव हुए 2018 के रामनवमी जुलूस के बारे में अखबार ने एक स्थानीय नागरिक, अशोक कुमार मंडल के हवाले से लिखा है, “…. बहुत सारे बाहरी थे। पर मैंने जो देखा उसे भुला नहीं सकता हूं। मेरे परिवार का घर जला दिया गया। मैंने दो समुदायों के बीच घृणा देखी है। हम अब भी साथ रहते हैं, कोशिश करते हैं और साथ काम करते हैं। थोडी-बहुत बातचीत भी करते हैं। पर जब दूसरा संकट आता है, मैं चाहता हूं ऐसी सरकार हो जो हमारे साथ खड़ी हो। और वह भाजपा है। बिल्कुल यही स्थिति है।”
यह तथ्य है कि आसनसोल ने 2014 में ही बाबुल सुप्रियो को अपना सांसद चुना था। अखबार ने आगे लिखा है, उन्होंने टीएमसी की डोला सेन को हराया था। 2019 में हिंसा का प्रभाव था। 2016 में आसनसोल शहर की दो सीटों पर तृणमूल पार्टी जीती थी पर 2019 में भाजपा ने सभी सात सीटें जीत लीं तथा सुप्रियो के जीतने का अंतर तकरीबन तीन गुना होकर दो लाख हो गया। इसके बाद अखबार ने चांदमारी क्षेत्र में रहने वाले मोहम्मत शब्बीर के हवाले से लिखा है, “इस समय 2019 के चुनाव प्रचार से ज्यादा अंतर नहीं है। तब भी भाजपा ने हिंसा का मामला उठाया था और अब भी उनके कार्यकर्ता घर-घर जाकर कहते हैं कि हिन्दू सरकार आनी चाहिए। हम डरे हुए हैं क्योंकि जहर बढ़ा ही है।”
अखबार ने लिखा है, कई क्षेत्रों में भाजपा ने भगवा झंडे लगाए हैं जिनपर ‘ओम’ लिखा है। इसपर एक भाजपा कार्यकर्ता ने कहा, यह टीएमसी की समस्या है। ओम से उन्हें क्या दिक्कत है। हम जिसमें विश्वास करते हैं उसे लोगों को दिखाने के लिए इसे लगा रहे हैं। अब मुसलमानों को खुश रखने वाली पार्टी के लिए वोट नहीं देंगे – यह तो हुई सत्तारूढ़ दल की राजनीति और अगर दिल्ली का हाल देखें यह उसका प्रशासन है। हालांकि कोशिश यह चल रही है कि दिल्ली की खराब स्थिति के लिए आम आदमी पार्टी की सरकार पर जिम्मेदारी डाल दी जाए। पर सच यह है कि दिल्ली में दोनों सरकारों की नहीं बन रही है और अगर इसलिए मौतें हो रही हैं तो वो किसी एक धर्म के लोगों की नहीं है। और ऐसा भी नहीं है कि उत्तर प्रदेश में जहां लोगों ने भाजपा की सरकार को चुनाव किया या मध्य प्रदेश में जहां राजनीति कर सरकाई बनाई गई, कोरोना की दशा ठीक है। या लोग कम मर रहे हैं।
महाराष्ट्र में मामले ज्यादा होने का शोर खूब रहा पर आज इंडियन एक्सप्रेस में खबर है कि उत्तर प्रदेश में संभावित संक्रमितों की संख्या सबसे ज्यादा, 1,19,604 और महीने के अंत तक 15 अप्रैल के मुकाबले आंकड़ा पांच गुना हो जाने की उम्मीद है। यह स्थिति तब है जब नोएडा-गाजियाबाद में जांच नहीं होने या रिपोर्ट मिलने में सामान्य से ज्यादा समय लगने के आरोप आम हैं। कायदे से पिछले साल लॉक डाउन करने की बजाय या हफ्ते 10 दिन बाद अगर जांच की व्यवस्था दुरुस्त हो गई होती और जांच के बाद असंक्रमित लोगों को काम पर जाने दिया जाता तो ना तब बीमारी इतनी फैलती ना अब लॉकडाउन करने में दिक्कत होती। सरकार को यह सब बताना-समझाना भी अखबार का ही काम है।
दिल्ली के दो अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी कम से कम 45 लोगों के मरने की खबर सार्वजनिक होने के बावजूद किसी अखबार ने पहले पन्ने पर यह नहीं बताया है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति दुरुस्त करने के लिए केंद्र सरकार ने क्या किया है। खास बात है यह कि संकट पांच दिनों से चल रहा है और अखबारों ने या सरकार ने अभी भी यह बताने की जरूरत नहीं समझी है कि इस मामले में क्या किया जा रहा है और स्थिति कब तक, कैसे सामान्य होगी। अगर मेरी याद्दाश्त सही है तो पहले ऐसी सूचनाएं विज्ञापनों के जरिए भी दी जाती थीं और ऐसी मौतों के लिए व्यवस्था की ओर से कोई जिम्मेदारी लेता था, माफी भी मांगने का रिवाज रहा है। पर अब समय बदल गया है और यह सब हमने चुना है।
इंडियन एक्सप्रेस ने आज बताया है कि दिल्ली में ऑक्सीजन टैंकर की कमी है (फ्लैग शीर्षक)। हाईकोर्ट का गुस्सा जारी है, “दिल्ली सरकार को हड़काया : एक पक्षीय नजरिया नहीं रख सकते, सक्रिय रहिए।” मुझे इस खबर या इसके पहले पन्ने पर होने से कोई शिकायत नहीं है। मैं पाठकों को बताना चाहता हूं कि द हिन्दू में एक खबर का शीर्षक है, “ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित करने वाले किसी भी व्यक्ति को टांग दिया जाएगा, दिल्ली हाईकोर्ट ने चेतावनी दी।”
अखबारों में आज यह खबर जरूर है कि टीकों और ऑक्सीजन पर सीमा शुल्क कम कर दिया गया है। इसी तरह ऑक्सीजन बनाने वाले उपकरण भी सेस से मुक्त होंगे। मुझे लगता है कि यह सरकारी प्रचार के सिवा कुछ नहीं है। सरकार ने ऐसे समय में दूसरे जरूरी फैसलों की जगह यह फैसला लिया तो इससे बहुत ज्यादा लोग प्रभावित नहीं होने वाले हैं और इतनी बड़ी खबर नहीं है कि पहले पन्ने पर जगह नहीं हो तो अंदर के पन्ने पर होने की सूचना प्रधानमंत्री की फोटो के साथ दी जाए (इंडियन एक्सप्रेस)। अखबार में इस सूचना से नीचे सिंगल कॉलम में ही छपी एक ‘खबर‘ का शीर्षक है, “भारत विरोधी ताकतें कोविड संकट का उपयोग अविश्वास पैदा करने के लिए कर सकती हैं : आरएसएस।”
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।