जोतदार को ज़मीन से बेदख़ल करना अन्याय है- डॉ.आंबेडकर

 

डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी – 18

पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे मेंयह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण  स्रोतग्रंथ  डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन  का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और  समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की अठारहवीं कड़ी – सम्पादक

 

143.

 

किसानों के लिए संरक्षण

बेदखल के अन्याय के खिलाफ डा. आंबेडकर की माॅंग

एन. एन. पाटिल ने संयुक्त संसदीय समिति का प्रस्ताव खारिज किया

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 22 दिसम्बर 193र्4)

 

(हमारे संवाददाता द्वारा)

अलीबाग, (डाक से)

 

कोलाबा जिला किसान सम्मेलन का तीसरा अधिवेशन 16 दिसम्बर को डा. बी. आर. आंबेडकर की अध्यक्षता में अलीबाग तालुका के अन्तर्गत चारी में हुआ। इस अधिवेशन की सभी प्रारम्भिक तैयारियाॅं स्वयं किसानों ने की थीं। बीच में मंच के साथ एक विशाल पण्डाल अध्यक्ष और विशिष्ट अतिथियों के लिए बनाया गया था। सभा के स्थान को झण्डों और झंडियों से सजाया गया था, तथा पण्डाल में ‘किसान जिन्दाबाद’ और ‘किसान संगठित हो’ के नारे लिखे कपड़े के बैनर टॅंगे हुए थे। किसानों ने डा. आंबेडकर को सारल, रीवास, हशिवरे और नारंजी में फूलों के हार पहिनाए। सम्मेलन ने अपनी सभा दोपहर दो बजे आरम्भ की, जिसमें जिले भर से लगभग 6,000 किसानों ने भाग लिया। सम्मेलन में उपस्थित महानुभावों में सर्वश्री जी. एन. सहस्रबुद्धे (बम्बई एस. एस. लीग), एम. वी. डोंडे (प्रधानाचार्य, परेल हाई स्कूल), एस. वी. पारुलेकर (भारत समाज सेवक), डी. वी. प्रधान, के. वी. चित्रे, टी. वी. पारवते (सम्पादक, मराठा), एस. जी. टिपनिस, सी. जी. देशपांडे, सूबेदार सावडकर, दामूअन्ना पोटनिस (भोर प्रजा परिषद), तथा अन्य प्रमुख थे। पेजारी के जमीदार मि. आर्देशिर बारिया ने भी सभा में भाग लिया था। अलीबाग के मामलातदार, पुलिस उपनिरीक्षक और अन्य सरकारी अधिकारी भी उपस्थित थे।

 

एन. एन. पाटिल का भाषण

स्वागत समिति के अध्यक्ष मि. एन. एन. पाटिल ने प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा, ‘इस जिले में किसानों का आन्दोलन, जब से मैंने और मेरे साथी मि. ए. वी. चित्रे ने संगठनात्मक रूप से काम शुरु किया था, पूरी कड़ाई से संचालित किया गया है। हमारा उद्देश्य किसानों का आर्थिक, समाजिक और नैतिक विकास करना है। हम चूॅंकि कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं, इसलिए अनेक अवसरों पर बड़े अधिकारियों और सशस्त्र पुलिस दलों ने हमारा साथ दिया है। 1932 के आरम्भ में हमारी किसान यूनियन को अवैध घोषित कर दिया गया था। इससे दो वर्षों तक हमारा काम रुक गया था। सौभाग्य से यह प्रतिबन्ध अब हटा लिया गया है, इसलिए आज हम फिर कोलाबा जनपद के इस किसान सम्मेलन के तीसरे अधिवेशन में मिलने में समर्थ हुए हैं।’

 

किसानों को संगठित होना है

उन्होंने सरकार से असहाय किसानों की संकटकाल में सहायता करने का अनुरोध किया। उन्होंने आने वाले संवैधानिक सुधारों को देखते हुए एक किसान राजनीतिक पार्टी बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति की उन सिफारिशों का उल्लेख किया, जो कुछ प्रान्तों में दूसरा सदन बनाने और विधानसभा के संघीय सदन के अप्रत्यक्ष चुनाव कराने के सम्बन्ध में गरीब किसानों के हितों को नुकसान पहुॅंचाने वाले हैं। अन्त में उन्होंने किसानों को संगठित होकर अपनी लड़ाई स्वयं लड़ने की अपील करते हुए कहा कि यही सही रास्ता है और इसी से उन्हें सफलता मिलेगी।

 

डा. आंबेडकर का भाषण

जब डा. आंबेडकर बोलने के लिए उठे, तो लोगों ने जयकारा लगााकर और तालियाॅं बजाकर उनका स्वागत किया। डा. आंबेडकर ने निम्नलिखित भाषण् दिया-

‘आज आपको अपना ध्यान अपने दुखों को दूर करने के तरीकों का पता लगाने पर करना है। मैं आपको बताना चाहता हूॅं कि ‘शेतकारी’ शब्द आज आम तौर पर गलत अर्थ में प्रयोग किया जाता है। जिन लोगों के कब्जे में विशाल जमीन है, लेकिन उस जमीन पर हाथ से काम करने के लिए उनके पास कोई आदमी नहीं है, उन लोगों को उनके साथ वर्गीकृत किया जाता है, जो अपनी रोटी के लिए उनके खेत पर कड़ी मेहनत करते हैं और जिनके खुद के पास जमीन का एक टुकड़ा भी नहीं है। इन दो वर्गों के हित व्यापक रूप से अलग-अलग हैं और एक दूसरे के विपरीत हैं। इन दोनों को एक-दूसरे से जोड़ना गलत होगा। मेरा यह सुझाव है कि ‘शेतकारी’ शब्द की एक स्पष्ट परिभाषा होनी चाहिए।

 

मध्यस्थता की आवश्यकता

अब मैं उस सवाल पर आता हूॅं, जिसे आज श्रोता विशेष रूप से ‘चारी’ के लोग समझते हैं। मेरा मतलब हड़ताल से है, जो पिछले दो सालों से ‘चारी’ के जोतदारों ने भूस्वामियों के खिलाफ घोषित की हुई है। हड़ताल के गुणदोष में जाए बिना मैं समझता हूॅं कि ऐसे सभी विवाद, जो भूस्वामियों और उनके जोतदारों के बीच मौजूद हों सकते हैं, उनका निपटारा वास्तव में सरकारी अधिकारी के साथ दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों से बनाए गए ‘मध्यस्थता बोर्ड’ द्वारा किया जाना चाहिए, जिसका कुछ अधिकारों के साथ कानूनी स्तर हो। ऐसे ‘मध्यस्थता बोर्ड’ के निर्णय को दोनों पक्षों को मानने के लिए बाध्य होना चाहिए। मुझे कोई कारण नजर नहीं आता कि इस तरह के मामले में सरकार को क्यों नहीं हस्तक्षेप करना चाहिए और इस तरह के बोर्ड का गठन करना चाहिए।

 

बेदखली का पाप

मैं जानता हूॅं, प्रेसीडेंसी के इस भाग में जोतदार किसानों के दुख बहुत बड़े हैं, जिनमें एक दुख यहाॅं की लोकप्रिय व्यवस्था ‘खोती प्रथा’ से उत्पन्न हुआ है। मुझे इसकी दयनीय स्थिति का ज्ञान है, जिसमें जोतदारों को मनमाने ढंग से ‘खोतों’ के सहारे छोड़ दिया जाता है। भूस्वामी द्वारा जोतदार को उसकी जमीन से अपनी इच्छा से बेदखल कर दिया जाता है, जिससे उसकी आमदनी खत्म हो जाती है और उसका जीवन दुखी हो जाता है। यह खुला अन्याय है, जिसे जोतदार सहते आ रहे हैं। जोतदार को बेदखल करने के लिए खोत को दी गई ऐसी आजादी जोतदार को उसके उस फल से कर देती है, जिसके लिए उसने कई वर्षों से मिट्टी में श्रम किया है। जोतदारों के इन दुखों को समाप्त करने के लिए तुरन्त कानून बनाया जाना चाहिए, जो खोत को जमीन से बेदखल किए गए पीड़ित जोतदारों को उचित मुआवजा देने के लिए बाध्य करे। मेरे विचार में, ये अन्याय इस चरम सीमा तक पहुॅंच गए हैं कि जब भी जोतदार और खोत के बीच भूस्वामी की इच्छाओं का पालन करने के लिए जोतदार को बाध्य करने के लिए विवाद पैदा होता है, तो भूस्वामी बेदखल किए गए जोतदार को खोत की जमीन पर बने हुए उसके घर को ध्वस्त करने की धमकी देते हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि इस घोर अन्याय को क्यों होने दिया जा रहा है? मुझे कहना होगा कि सरकार भी इस गम्भीर प्रकृति के अपराध में दोषी है, अन्यथा इस तरह का अमानवीय अन्याय कभी नहीं होता। बम्बई में कुछ मिल-मालिकों द्वारा आवासीय सुविधा दिए जाने का उदाहरण लीजिए। जब मजदूर हड़ताल करते हैं, तो उस समय उन्हें अपनी नौकरी के साथ-साथ अपने आवासों को खोने का भी डर रहता है, जो उनकी लड़ाई के जोश को कम कर देता है। इस तरह की स्थिति क्यों है? आज के इस सम्मेलन को इस सम्बन्ध में अपनी भावनाओं पर विचार-विमर्श करना होगा।

 

काॅंग्रेस में विश्वास न करें

आपको यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जिन दुखों की यहाॅं मैंने चर्चा की है, उनका हल सिर्फ सशक्त कानून बनाकर ही हो सकता है। हड़ताल करने से ये दुख दूर नहीं होने वाले हैं। मैं समस्या के हल के लिए हड़ताल के अधिकार का सहारा लेने के विरुद्ध नहीं हूॅं। पर यह एक ऐसा हथियार नहीं है, जिसे वे हर समय उपयोग कर सकते हैं। इसलिए आपके पास अब फिर से एक प्रश्न है, जिसे हल करना है कि आपके हित का कानून कैसे बने? इसका एक ही हल है कि जब तक आपके प्रतिनिधि विधान मण्डलों में नहीं होंगे, तब तक आप अपने हित का कानून बनाने में समर्थ नहीं होगें। आपको ऐसे आदमी चुनने चाहिए, जो हमेशा आपके हितों के लिए काम करें। आपको अपना प्रतिनिधि चुनते समय इस झूठे प्रचार में विश्वास करना नहीं चाहिए कि काॅंग्रेस के नेता ही आपके हितैषी हैं, और आपके हित के लिए लड़ रहे हैं। काॅंग्रेस आज किसी का प्रतिनिधित्व नहीं करती है, वह सिर्फ अंग्रेज-विरोधी तत्व है, इसके सिवा कुछ नहीं।

किसानों के उत्थान और बेहतर विकास के लिए प्रस्ताव पारित करने के बाद अध्यक्ष ने धन्यवाद स्वरूप कुछ शब्द बोलने के बाद सम्मेलन को समाप्त कर दिया।

 

पिछली कड़ियाँ–

 

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16अछूतों से घृणा करने वाले सवर्ण नेताओं पर भरोसा न करें- डॉ.आंबेडकर

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14. मन्दिर प्रवेश पर्याप्त नहीं, जाति का उन्मूलन ज़रूरी-डॉ.आंबेडकर

13. गाँधी जी से मिलकर आश्चर्य हुआ कि हममें बहुत ज़्यादा समानता है- डॉ.आंबेडकर

 12.‘पृथक निर्वाचन मंडल’ पर गाँधीजी का अनशन और डॉ.आंबेडकर के तर्क

11. हम अंतरजातीय भोज नहीं, सरकारी नौकरियाँ चाहते हैं-डॉ.आंबेडकर

10.पृथक निर्वाचन मंडल की माँग पर डॉक्टर अांबेडकर का स्वागत और विरोध!

9. डॉ.आंबेडकर ने मुसलमानों से हाथ मिलाया!

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7. दलित वर्ग का प्रतिनिधि कौन- गाँधी या अांबेडकर?

6. दलित वर्गों के लिए सांविधानिक संरक्षण ज़रूरी-डॉ.अांबेडकर

5. अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानून ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर

4. ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे !

3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !

2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

 



कँवल भारती : महत्‍वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत। दलित विषयों पर तीखी टिप्‍पणियों के लिए विख्‍यात। कई पुस्‍तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार। मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य।



 

 

 

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