डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़ुबानी – 14
116.
काॅंग्रेस के प्रभाव से दलित वर्गों को खतराउत्थान के जाल के खिलाफ चेतावनी
डा. सोलंकी की गम्भीर आशंका: ‘हम यूनियन जेक के लिए हैं’
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 19 अक्टूबर 1932)
हमारे पूना संवाददाता को दिए गए साक्षात्कार अनुसार डा. सोलंकी, एमएलसी, ने काॅंग्रेस को चेतावनी दी है कि वह ब्रिटिश ताज के प्रति दलित वर्गों की निष्ठा के मूल आधार को कमजोर कर रही है।
यह टिप्पणी यरवदा जेल में डा. आंबेडकर द्वारा मि. गाॅंधी से मुलाकात करने के बाद की गई थी, जिसमें मि. गाॅंधी ने ‘एण्टी अनटचेबिलिटी लीग’ के संविधान में दलित वर्गों के लिए सर्वाधिक प्राविधान करने की बात कही थी।
(हमारे निजी संवाददाता द्वारा)
पूना, अक्टूबर 18
डा. आंबेडकर कल पूना आए थे और कुछ समय तक लेजिस्लेटिव कौंसिल में रहे, परन्तु उन्होंने किसी को भी यह बात नहीं बताई कि उन्होंने यरवदा जेल में मि. गाॅंधी से मिलने की इजाजत ली है। हालाॅंकि वे शाम को ही मि. गाॅंधी से मिलने चले गए थे और लगभग आधे घण्टे तक उनके साथ रहे थे। बाद में वे अपने पेशेवर कार्य से सामन्तवाड़ी के लिए रवाना हुए। वे 26 अक्टूबर को बम्बई वापिस आयेंगे और फिर सम्भवतः 7 नवम्बर को इंग्लैण्ड के लिए प्रस्थान करेंगे।
डा. आंबेडकर का मत है कि गोलमेज सम्मेलन 22 नवम्बर से पहले शुरु नहीं होगा, क्योंकि 12 नवम्बर तक बहुत से प्रतिनिधियों का लन्दन पहुॅंचना ही असम्भव होगा। हालांकि अभी सवर्ण हिन्दुओं और दलित वर्गों के बीच वर्तमान स्थिति में राजनीति और सामाजिक कल्याण के बीच कोई रेखा खींचना कठिन है, परन्तु यह समझा जाता है कि परमिट की शर्तों के अन्तर्गत राजनीति करने पर पाबन्दी लगा दी गई है, इसलिए पूना-समझौता किसी मुकाम तक नहीं पहुॅंचा है।
फिर भी डा. आंबेडकर ने मि. गाॅंधी के समक्ष ‘एण्टी अनटचेबिलिटी लीग’ के भावी संविधान, उसकी प्रान्तीय तथा जिला कमेटियों और उसकी सामान्य प्रगति पर अपने विचार रखे हैं। उन्होंने कमेटियाॅं बनाने का मामला उठाया है और अपने मत को दृढ़ता से रखा है कि इन कमेटियों में दलित वर्ग के लोगों का बहुमत होना चाहिए। उनकी राय थी कि उनके लोगों की आवाज मुख्य होनी चाहिए और ऐसा कुछ नहीं किया जाना चाहिए, जो उनके लिए कड़ा साबित हो। अगर उत्थान के कार्य को सन्तोषजनक ढंग से आगे बढ़ाना है, तो सवर्ण हिन्दुओं को दलित वर्ग के लोगों की, उनकी मुक्ति के कार्य में, सहायता करनी चाहिए और उन्हें हर प्रकार से हिन्दुओं के आदर्शों का पालन करने के लिए उनको प्रेरित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
विशेष जनगणना
उन्होंने मि. गाॅंधी का ध्यान ‘लीग’ के उस प्रस्ताव की ओर भी खींचा, जिसमें भारत में दलित वर्गों की विशेष जनगणना कराने का प्रबन्ध करने को कहा गया है। उन्होंने काॅंग्रेस नेता को बताया कि इस प्रकार की कार्यवाही अनावश्यक है।
साक्षात्कार और मि. गाॅंधी के बीच मिसेज सरोजनी नायडू उपस्थित थीं। तथा वे लोग जो साक्षात्कार के बाद डा. आंबेडकर से मिले थे, उनकी यह धारणा बन गई थी कि मि. गाॅंधी ‘एण्टी अनटचेबिल्स लीग’ की कमेटियाॅं बनाने के सम्बन्ध में डा. आंबेडकर के प्रस्ताव के पक्ष में हैं।
यरवदा जेल से ताजा खबर यह है कि मि. गाॅंधी पूरी तरह स्वस्थ है और डा. आंबेडकर ने अपने मित्रों को बताया है कि काॅंग्रेस नेता जीवन से भरपूर हैं और उनका सामान्य जीवन पूरी तरह लौट आया है।
आर्थिक असमानताएॅं
डा. आंबेडकर ने एक साक्षात्कार में कहा कि ‘अस्पृश्यता-विरोधी आन्दोलन में निश्चित रूप से एक सामान्य शिथिलता आ रही है’, किन्तु आन्दोलन के रूप में अभी उन प्रतिबन्धों से निपटना है, जो अछूतों को मन्दिरों में प्रवेश और अन्तरराष्ट्रीय भोज के विरुद्ध हैं। मैं इस बात से बहुत चिन्तित हूॅं कि उन्होंने लोगों के बीच बहुत बुरा महसूस किया है और वह उन्हें कोई स्थाई लाभ नहीं लाया है।
‘एण्टी अनटचेबिलिटी लीग’ और उसके कार्यकर्ताओं का एक ही उद्देश्य होना होना चाहिए कि वे मन्दिर-प्रवेश और अन्तरजातीय भोज के बजाय अछूतों के आर्थिक, शैक्षिक तथा सामाजिक सुधार पर ज्यादा ध्यान दें। उनके द्वारा कुएॅं खोलने और सरकारी स्कूलों में अछूत बच्चों के प्रवेश के लिए जनमत बनाना चाहिए।
बेलगाम का उल्लेख करते हुए, जहाॅं से दलित वर्गों के लोगों ने अपना अलग कुआॅं बनाने की माॅंग की थी, उन्होंने कहा कि परिषद को इस तरह की माॅंग को स्वीकार नहीं करना चाहिए। अछूतों को सार्वजनिक कुओं से पानी लेने के अपने अधिकार पर जोर देना चाहिए। इस मामले में उन्होंने आशंका व्यक्त की कि सम्भवतः वे कुछ निहित स्वार्थी दलों के दबाव में हैं।
हम यूनियन जैक के साथ हैं
डा. आंबेडकर के विश्वासपात्र लेफ्टिनेन्ट डा. सोलंकी, एमएलसी, ने उन बिन्दुओं पर, जो डा. आंबेडकर ने मि. गाॅंधी के साथ अपनी बातचीत में उठाए थे, आज सुबह साक्षात्कार में अपना महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया है। उन्होंने कहा कि इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि मि. गाॅंधी के अनशन ने उन बहुत से हिन्दुओं की चेतना को जगा दिया है, जो राजनीति से काफी असन्तुष्ट थे और मि. गाॅंधी के दृष्टिकोण से, जिसे उन्होंने यरवदा जेल से प्रेस को जारी किया था, मामले को गम्भीरता से ले रहे थे।
दूसरी ओर उनको डर था कि इस कार्य से अंग्रेजी ताज के प्रति दलित वर्गों की निष्ठा का आधार कमजोर हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘हम काॅंग्रेस के तिरंगे के साथ नहीं, बल्कि ब्रिटिश ध्वज के साथ हैं। इस बारे में किसी को कोई सन्देह नहीं होना चाहिए। हम सब राजनीतिक स्वतन्त्रता और राष्ट्रीय एकता से बाहर हैं, परन्तु ब्रिटिश साम्राज्य के अन्दर हैं।’
इसके बाद उन्होंने अस्पृश्यता-विरोधी लीग के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि वह इस बात से ज्यादा भयभीत हैं कि उसकी कमेटियों के सदस्यों में स्पष्ट रूप से काॅंग्रेस-समर्थक लोगों और हिन्दू महासभा का बहुमत होगा।
उत्थान का कार्य
लीग ने दलित वर्गों के उत्थान पर अगले तीन वर्षों में 25 लाख रुपए खर्च करने का प्रस्ताव रखा है। यह धन कहाॅं से आएगा? उनका विश्वास है कि यह धन उसी स्रोत से आएगा, जिस स्रोत से काॅंग्रेस को राजनीति करने के लिए अब तक आता रहा है। इस धन से किया गया उत्थान का कोई भी कार्य काॅंग्रेस का पक्षपात पूर्ण ही होगा। वे दलित वर्गों के बीच युवाओं को इस तरह से प्रशिक्षित करेंगे कि वे हिन्दुओं के बीच काॅंग्रेसी बने रहें।
इस दिशा में यदि उनकी आशंका सही साबित हो गई, तो यह ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति दलित वर्गों की निष्ठा पर कुठाराघात होगा। क्या दलित वर्गों ने अपनी निष्ठा को कुछ लाख रुपए में खरीदने की अनुमति सवर्ण हिन्दुओं को दे दी है? समुदाय के पुराने जागरूक सदस्यों को इस तरह नहीं फाॅंसा जा सकता है। इससे युवा पीढ़ी के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है। अगर सवर्ण हिन्दू दलित वर्गों के प्रति वास्तव में गम्भीर हैं, तो यह साबित करने का उनके लिए एक ही तरीका है कि वे लीग की कमेटियों में दलित वर्गों के लोगों को अधिक से अधिक शामिल करें और भाइयों के रूप में उनकी सहायता करें।
117.
दलित वर्ग नेतृत्व में विश्वास
डा. आंबेडकर और डा. सोलंकी
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 27 अक्टूबर 1932)़
बम्बई में निवास करने वाले सूरत जिले के ‘महयावंशी’ समुदाय के लोगों ने ग्रान्ट रोड पर आयोजित एक जनसभा में डा. आंबेडकर, एमएलसी और डा. पी. जी. सोलंकी, एमएलसी के नेतृत्व में पूर्ण विश्वास का एक प्रस्ताव पास किया। इस सभा में ‘महयावंशी’ समुदाय ने अपने इस मत को भी दृढ़ता से रखा कि यदि भारत को स्व-शासन या उपनिवेश राज्य का स्तर दिया गया, तो वह ब्रिटिश ध्वज के अधीन ही होना चाहिए।
118.
एक पाठक का विचार
क्या अछूत हिन्दू हैं?
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 2 जनवरी 1933)़
सम्पादक,
दि टाइम्स आॅफ इंडिया,
महोदय,
मुझे एक बार पुनः आपके महत्वपूर्ण कालम के माध्यम से पूछना है, और मुझे आशा है कि आपके ‘रूढ़िवादी हिन्दू’ संवाददाता को, जो ‘मद्रासी फोबिया’ बीमारी से पीड़ित है, आगे लिखने से पहले उसे इस बीमारी से ठीक होना होगा। यदि मैं उसकी इस मानसिक बीमारी को पहले से जानता होता, तो मैं उसे गम्भीरता से नहीं लेता। अब, मैं ईमानदारी से महसूस करता हॅं कि मैंने उससे कुछ सवाल पूछ कर गलती की है, जिनके जवाब देने में या उनके निहितार्थ समझने में वह सक्षम नहीं लगते हैं। मैं अपने विवेचन में इस पत्र के द्वारा दुख प्रकट करता हूॅं और विनम्रता से माफी माॅंगता हूॅं।
मैंने सवाल उठाया था: क्या अछूत हिन्दू हैं? यह एक ईमानदार शंका है और इस पर मैं समाधान चाहता हॅं। मैं जिस सवाल से परेशान था, वह यह था कि अगर अछूत हिन्दू होते, तो उन्हें हिन्दू मन्दिरों में जाने से क्यों रोका जाता और उनके अपने मन्दिर होने का कारण क्या था? यदि वे हिन्दू हैं, तो मन्दिर-प्रवेश का प्रश्न कभी उभरता ही नहीं। फिर, यदि अछूत वास्तव में हिन्दू के निर्धारित शब्द के अन्तर्गत सबके साथ मिलकर रहना चाहते, तो डा. आंबेडकर दूसरे गोलमेज सममेलन में दलित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन के लिए पूरी शक्ति से नहीं लड़ रहे होते और क्या पूना समझौते का मतलब साम्प्रदायिक निर्णय की पुष्टि के सिवा क्या है, जो दलित वर्गों को हिन्दुओं से पृथक समुदाय के रूप में मान्यता देता है? हमें शब्दों से ज्यादा उसके प्रभाव को देखना चाहिए। हिन्दू राजनेता अभी भी दलित वर्गों को आंशिक रूप से देश के राजनीतिक जीवन में उनके तीव्र उभार के कारण और आंशिक रूप से भविष्य में अपनी स्थिति से डर के कारण गले लगाते हैं। अब तो वे अछूतों को, अगर डा. आंबेडकर चाहें, तो न सिर्फ हिन्दुओं में, बल्कि ब्राह्मणों में भी शामिल करने को तैयार हो जायेंगे। यह है आज की वास्तविक स्थिति।
‘एन. वी. एस.
बम्बई, 28 दिसम्बर।
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सेवा में,
पुलिस आयुक्त
बम्बई।
महोदय,
समता सैनिक दल का एक जुलूस निकालने का प्रस्ताव है, जिसके मुखिया डा. बी. आर. आंबेडकर हैं। यह जुलूस 8 जनवरी 1933 को सुबह 7 बजे वर्तमान व्यवस्था के अनुसार टाउन हाल से आरम्भ होगा और दामोदर हाल, परेल में समाप्त होगा। मेरी समिति इस जुलूस में बैण्ड बजाने का इरादा करती है। हमाराी सेना का अपना खुद का बैण्ड है, जिसे वह मिलिटरी स्टाइल में बजाता है। मुझे आशा है कि आप हमें बैण्ड के साथ जुलूस निकालने की अनुमति प्रदान करेंगे।
जुलूस का मार्ग इस तरह है- मिन्ट रोड, धोबी तालाब, गिरगाम रोड, फोरस रोड, परेल रोड, लाल बाग और पोइबावड़ी।
आपका सदैव कृतज्ञ
(ह0)
ए. जी. शहाणे
अवैतनिक सचिव,
समता सैनिक दल
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आंबेडकर की वायसराय से मन्दिर बिल पास करने की माॅंग
पर महात्मा को अपना जीवन दाॅंव पर नहीं लगाना चाहिए
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 24 जनवरी 1933)़
बम्बई, सोमवार।
गोलमेज सम्मेलन के प्रतिनिधि डा. बी. आर. आंबेडकर और सर पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास लन्दन से आज सुबह ‘गंगा’ जहाज से बम्बई पहुॅंचे।
डा. आंबेडकर ने प्रेस को बताया कि ‘महात्मा गाॅंधी को अछूतों को मन्दिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए अपने जीवन को दाॅंव पर नहीं लगाना चाहिए।’
एक अन्य प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है कि वायसराय मन्दिर प्रवेश बिल को दोनों जगह- मद्रास कौंसिल और केन्द्रीय विधानसभा में स्वीकृति नहीं देंगे। उनके विचार से ये दोनों उपाय जरूरी हैं और हिन्दू समाज के हित में हैं।
गोलमेज सम्मेलन के परिणाम का संकेत देते हुए उन्होंने कहा कि संघ को, इसमें शामिल होने के लिए सहमत होने वाले राजाओं पर निर्भर नहीं होना चाहिए। अगर उन्होंने श्वेत पत्र के प्रकाशन से पहले संघ में शामिल होने की इच्छा व्यक्त नहीं की, तो ब्रिटिश भारत को केन्द्र में जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।
सर पुरुषोत्तमदास ने अपनी टिप्पणी यह कहकर सुरक्षित रखी कि वे अपना लिखित बयान जारी करेंगे।
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आंबेडकर सोमवार को वायसराय से मिलेंगे
महात्मा से दिल्ली से लौटकर मन्त्रणा
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 26 जनवरी 1933)
महामहिम वायसराय प्राप्त निमन्त्रण के प्रत्युत्तर में डा. आंबेडकर ने सूचित किया है कि वे शनिवार (इसी 28 जनवरी) को दिल्ली पहुॅंचेंगे, जिससे वे सोमवार (30 जनवरी) को वायसराय से मिल सकें।
डा. आंबेडकर को एक टेलिग्राम महात्मा गाॅंधी से भी प्राप्त हुआ है, जिसमें उन्हें यरवदा में मिलने का निमन्त्रण दिया गया है। सम्भावना है कि डा. बी. आर. आंबेडकर दिल्ली में वायसराय से मिलने के बाद महात्माजी से मिलने जायेंगे।
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अहमदाबाद में दलित वर्ग सम्मेलन
डा. आंबेडकर की अध्यक्षता करेंगे
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 1 फरवरी 1933)
अहमदाबाद, 31 जनवरी।
स्थानीय दलित वर्ग अनुयायियों ने अहमदाबाद में डा. आंबेडकर की अध्यक्षता में एक सम्मेलन करने का निश्चय किया है। -ए. पी.
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डा. आंबेडकर की नई माॅंग
मन्दिर प्रवेश पर्याप्त नहीं, जाति का उन्मूलन जरूरी
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 6 फरवरी 1933)़
हमारे संवाददाता द्वारा
पूना, 4 फरवरी।
डा. आंबेडकर ने अपने लोगों–सामान्यतः ‘अछूतों’ और गाॅंधीजी के शब्दों में ‘हरिजनों’ की उन्नति के लिए एक नया बिल तैयार किया है। वे आज दोपहर इस स्थिति पर अपना बयान देने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन यह अनुमान लगाया जाता है कि उनका यह नया बिल मन्दिर प्रवेश के अभियान तन्त्र के केन्द्र में एक जिन्दा बम है।
डा. आंबेडकर आज सुबह बम्बई से मि. गाॅंधी से मिलने के लिए यरवदा जेल आए। गोलमेज सम्मेलन से लौटने के बाद यह उनकी पहली मुलाकात है। वे सीधे यरवदा गए और डेढ़ घण्टे तक जेल की चारदीवारी में रहे। बातचीत पूरी तरह से विशिष्ट थी। कुछ समय के लिए डा. स्टेनली जोन्स और कुछ अन्य लोग मौजूद रहे थे। जेल से निकलने के बाद, डा. आंबेडकर रेलवे स्टेशन गए और 3 बजकर 30 मिनट पर बम्बई के लिए रवाना हो गए।
मन्दिर प्रवेश पर्याप्त नहीं
यह समझा जाता है कि डा. आंबेडकर ने मि. गाॅंधी को स्पष्ट रूप से बता दिया है कि उनके समुदाय के लोग सिर्फ मन्दिरों में प्रवेश करने से सन्तुष्ट नहीं होंगे। वे सचमुच अब इस मुद्दे से आगे बढ़ गए हैं और उन्होंने उनकी भावनाओं से उन्हें स्पष्ट शब्दों में बता दिया है कि अछूतों को प्रस्तावित शर्तों के अधीन मन्दिरों में प्रवेश करने की कोई इच्छा नहीं है। बता दें कि डा. आंबेडकर ने लन्दन जाने से पहले पूना में एक साक्षात्कार में कहा था कि मन्दिर-प्रवेश उनका मुख्य ध्येय नहीं है, वरन उनका मुख्य ध्येय उनके लोगों का नैतिक और सामाजिक उत्थान है, जिसके लिए उनका शिक्षित होना ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन्होंने मि. गाॅंधी और उनके समाज-सुधारक मित्रों से सम्पूर्ण जातिव्यवस्था पर प्रहार करने, उसे समूल नष्ट करने और हरिजनों को बिना किसी प्रतिबन्ध के हिन्दू समाज में शामिल करने की माॅंग की है।
वे कहते हैं, मन्दिरों में प्रवेश करने से हरिजनों का स्तर पर्याप्त रूप से ऊपर नहीं उठेगा। अभी भी जाति-आधारित समाज में उनका स्तर सबसे नीचे है। उनको ऐसा काम करने के लिए बाध्य किया जायेगा, जो उनके आत्म-सम्मान को कम करने वाला होगा, और परिणामतः वही काम अस्पृश्यता के तथाकथित उन्मूलन के लिए सुरक्षित हो जायेगा। संक्षेप में वे हीन भावना से ग्रस्त हो जायेंगे और उनका घृणित स्तर प्रायः पहले जैसा ही हो जायेगा।
मि. गाॅंधी का इन्कार
समझा जाता है कि मि. गाॅंधी ने डा. आंबेडकर की बात को मानने से इन्कार कर दिया है। उन्होंने कहा है कि वे अस्पृश्यता को एक पाप मानते हैं, जबकि जाति मात्र एक सामाजिक विशेषता है। दोनों के बीच पूरी तरह क्या सही बातचीत हुई, यह नहीं पता, पर डा. आंबेडकर इस बातचीत के परिणाम से पूरी तरह सन्तुष्ट नजर नहीं आए।
124
केवल पहला कदम
(दि फ्री प्रेस जर्नल, 7 फरवरी 1933)
डा. आंबेडकर ने पूना में महात्मा गाॅंधी के साथ बातचीत में दलित वर्गों के प्रश्न को पूरी शिद्दत से उठाया। वे उनके लिए सिर्फ मन्दिर-प्रवेश का अधिकार नहीं चाहते। इसे वे अपने मिशन में ज्यादा महत्व नहीं देते हैं। उनका लक्ष्य सम्पूर्ण जातिव्यवस्था का खात्मा है। उन्होंने कहा कि वे दलित वर्गों का प्रवेश समानता के आधार पर हिन्दू समाज में चाहते हैं। महात्मा गाॅंधी ने स्पष्ट किया है कि मन्दिर-प्रवेश स्वयं वर्तमान अस्पृश्यता-विरोधी आन्दोलन का एकमात्र उद्देश्य नहीं है, और पूना समझौते में हरिजनों की आर्थिक मुक्ति के लिए व्यापक कार्य करने के पर्याप्त प्राविधान हैं।
डा. आंबेडकर मन्दिर-प्रवेश आन्दोलन से इतनी जल्दी पीछे हटकर गलती करेंगे। हजारों शिक्षित हिन्दू मन्दिर-प्रवेश या मूर्ति-पूजा में विश्वास नहीं करते हैं, परन्तु वे पूरे उत्साह से इस आन्दोलन का समर्थन करते हैं, क्योंकि यह केवल संघर्ष की शुरुआत है। आज अगर अस्पृश्यता समाप्त होती है, तो कल जाति भी समाप्त होगी, और उसके बाद हिन्दूधर्म की पूर्ण शुद्धि होगीे और हिन्दुओं में एक सजातीय एकता आ जायेगी। यह सोचना मुश्किल है कि दलित वर्गों की आर्थिक मुक्ति के लिए कोई भी कार्य स्थायी प्रकृति का तब तक नहीं होगा, जब तक कि सामाजिक समानता का पहला सिद्धान्त स्थापित नहीं होता है, और यह सिद्धान्त मन्दिर-प्रवेश आन्दोलन से पूरी तरह स्थापित हो जाता है। किन्तु यह डा. आंबेडकर को अपने दम पर हरिजनों की समस्या पर प्रहार करने से नहीं रोकता है। क्या वे हाथों में राजनीतिक शक्ति प्राप्त किए बिना इस कार्य में सफल हो सकते हैं? डा. आंबेडकर को सबसे पहले अपने निजी राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करना चाहिए।
125
डा. आंबेडकर का बम: गाॅंधी की परीक्षा
सेवा में,
सम्पादक,
टाइम्स आॅफ इंडिया,
महोदय,
आपका पूना संवाददाता बिल्कुल सही है। डा. आंबेडकर ने ‘मन्दिर प्रवेश के अभियान तन्त्र जीवित बम फेंक दिया है।’ यह इससे ज्यादा कुछ नहीं है। यह बम (जो देश में ही निर्मित है) काॅंग्रेस कैम्प पर गिराया गया है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि काॅंग्रेस लगभग मर चुकी है, और यह मन्दिर-प्रवेश अभियान एक लाश में जिन्दा रखने के लिए एक रोचक प्रयास है। डा. आंबेडकर ने आरम्भ से ही हमें चेतावनी दी थी कि मि. गाॅंधी और उनकी काॅंग्रेस का यह बवंडर प्रचार सिर्फ एक राजनीतिक स्टण्ट है। अब उन्होंने मि. गाॅंधी को अग्नि-परीक्षा में डाल दिया है। हमारे सामने दो गम्भीर प्रश्न हैं-(1) क्या मि. गाॅंधी मन्दिर के मुद्दे पर गम्भीर है, या यह केवल नाटक है? (2) अकेले मन्दिर खुल जाने से क्या दलित वर्गों का जीवन स्तर ऊपर उठ जायेगा? मि गाॅंधी वास्तव में मन्दिर-प्रवेश के मुद्दे पर गम्भीर नहीं हैं, यह उनके उस वक्तव्य से साबित हो जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे ‘स्वयं इन मन्दिरों में कभी प्रवेश नहीं करते हैं।’ महान सनातनी हिन्दू नेता मि. एम. के. आचार्य ने सूरत में अपने भाषण में हमें स्मरण कराया था कि ‘मि. गाॅंधी ने कभी किसी मन्दिर में पूजा नहीं की है, और वे मन्दिर-पूजा के विधि-विधान के बारे में बहुत कम जानते हैं।’ मि. आचार्य जैसे समस्त सनातनी हिन्दू, जो पिछले 20 सालों से मि. गाॅंधी में विश्वास करते हैं, उन्हें और काॅंग्रेस को छोड़ चुके हैं।
मि. आचार्य ने मि. गाॅंधी को चुनौती दी है: ‘क्यों नहीं मि. गाॅंधी अपने खुद के मन्दिर स्थापित करें, और देखें कि अछूतों सहित सारे हिन्दू उनमें पूजा करने जायेंगे या नहीं?’ यह कोई नहीं कह सकता कि मि. गाॅंधी के पास नैतिक साहस की कमी है। लेकिन वे मि. आचार्य की चुनौती को स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि महात्मा एक चतुर राजनेता हैं। और यह शुद्ध धार्मिक सवाल नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक रणनीति का सवाल है। मि. आचार्य यह भूल जाते हैं कि महात्मा ने अक्सर हमसे कहा था, ‘मैं जिन परम धार्मिक लोगों से मिला हॅूं, वे प्रछन्न राजनीतिक ही हैं। मैं, फिर भी, राजनीतिक भेष में रहता हूॅं, लेकिन मेरा हृदय धार्मिक है। मेरा धर्म मेरी राजनीति है।’ (आत्मकथा) उन्होंने हमेशा नीति और राजनीति के लिए धर्म के सिद्धान्त को कम महत्व दिया है। उन जख्मों का वर्णन करना असम्भव है, जो उन्होंने सामान्यतः देश पर, और विशेषकर हिन्दूधर्म पर लगाए हैं। पूना समझौते को दखिए, जो जल्दबाजी में किया गया है। अब पूरा देश इस बात को मान रहा है कि यह समझौता पूरी तरह सवर्ण हिन्दुओं के लिए अन्यायपूर्ण है। मि. गाॅंधी ने देश पर एक अन्यायपूर्ण समाधान की मुहर लगा दी है। अब वे हरिजनों के लिए मन्दिर प्रवेश की बात करके, जिसे हरिजन वास्तव में नहीं चाहते हैं, देश पर एक और मुहर लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
पिछली कड़ियाँ–
13. गाँधी जी से मिलकर आश्चर्य हुआ कि हममें बहुत ज़्यादा समानता है- डॉ.आंबेडकर
12.‘पृथक निर्वाचन मंडल’ पर गाँधीजी का अनशन और डॉ.आंबेडकर के तर्क
11. हम अंतरजातीय भोज नहीं, सरकारी नौकरियाँ चाहते हैं-डॉ.आंबेडकर
10.पृथक निर्वाचन मंडल की माँग पर डॉक्टर अांबेडकर का स्वागत और विरोध!
9. डॉ.आंबेडकर ने मुसलमानों से हाथ मिलाया!
8. जब अछूतों ने कहा- हमें आंबेडकर नहीं, गाँधी पर भरोसा!
7. दलित वर्ग का प्रतिनिधि कौन- गाँधी या अांबेडकर?
6. दलित वर्गों के लिए सांविधानिक संरक्षण ज़रूरी-डॉ.अांबेडकर
5. अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानून ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर
4. ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे !
3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !
2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी
1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी