जितेन्द्र कुमार
कर्नाटक में पत्रकारों के पूछे जाने के बाद राहुल गांधी ने जवाब दिया कि हां, अगर उनकी पार्टी को बहुमत मिलता है तो वह प्रधानमंत्री बनने को तैयार हैं। इससे सबसे ज्यादा पीड़ा ‘गरीबी के लाल’ हमारे अपने प्रधान सेवक माननीय नरेंद्र दामोदार भाई मोदी को हुआ है। पीड़ित प्रधानसेवकजी ने राहुल पर आक्रमण करते हुए न सिर्फ उन्हें ‘अंहकारी/उद्दंड’ कहा है, बल्कि यह भी कहा कि उनकी पार्टी कांग्रेस में इतने वरिष्ठ नेतागण के रहते वह (राहुल गांधी) ऐसी ओछी बातें कैसे कर सकते हैं! राहुल को लगभग धमकाते हुए प्रधानसेवक जी ने उन्हें इस बारे में सोचने की सलाह दी! मोदी जी का यह भी कहना था कि जो लोग चालीस या उससे अधिक वर्षों से पार्टी की सेवा कर रहे हैं, कम से कम उनकी इज्जत का ख्याल तो राहुल को रखना ही चाहिए था!
सचमुच हमारे प्रधानसेवक उदारता के प्रतिमूर्ति हैं! इसलिए तो ‘गरीबी के लाल’ को साक्षात भगवान का अवतार बताया गया (बकौल उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू) है! और जिनमें खुद इतना बड़प्पन हो उन्हें कौन क्या याद दिला सकता है या कह सकता है? उन्हें यह कैसे बताया जा सकता है कि उनकी यह बात अगर ‘लौहपुरुष’ लालकृष्ण आडवाणी ने सुनी होगी तो उनको कैसा लगा होगा? या फिर अपने डॉक्टर साहब मुरली मनोहर जोशी या राजनाथ सिंह या नितिन गडकरी या फिर सुषमा स्वराज ने सुनी होगीं तो वे कैसा महसूस कर रहे होंगे?
ऐसा लगता है वे सब लोग संतुष्ट होगें कि प्रधानसेवक जी उन सबकी कितना कद्र करते हैं! ऐसा सोचना स्वाभाविक भी है। आडवाणी जी के दिमाग में खाली बैठे-बैठे यह बात तो आती ही होगी कि अब वह राममंदिर के बहाने रथयात्रा लेकर देश की सामाजिक समरसता को तार-तार करने निकले थे तो यही वह ’बाल नरेंद्र’ था जिसने ‘सारथी’ की भूमिका निभाई थी! इतना ही नहीं, उन्हें यह भी याद आ रहा होगा कि रथयात्रा के दौरान जब उन्हें प्यास लगती थी तो कैसे दौड़कर वह ‘अबोध बाल नरेन्द्र’ पानी ले आता था, और पसीना से जब वह तर-बतर हो जाते थे तो कैसे नरेन्द्र भाई कंधे पर भगवा गमछा तक दे देते थे। शायद आडवाणी जी तो यह याद करके अभी अभिभूत हो रहे होगें कि कैसे उनका अपना ‘बाल नरेन्द्र’ कभी-कभी उसी गमछा या तौलिया से सर पर बलबला आए पसीने को भी प्यार से पोंछ दिया करता था! मैं आडवाणी जी की उस खुशी में अपने को शामिल करना चाहता हूं जिससे वह यकीनी तौर पर अभिभूत हो रहे होगें!
उसी तरह मैं डॉक्टर साहब मुरली मनोहर जोशी की कश्मीर से कन्याकुमारी तक निकाली गई ‘एकता यात्रा’ को भी याद करने की कोशिश करता हूँ, जिसमें फिर से सारथी की भूमिका बाल नरेन्द्र को निभानी पड़ी थी। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष जोशी जी को भी वह वक्त याद आ रहा होगा जब आडवाणी जी के ‘खास आदमी’ नरेन्द्र भाई ने उनकी कितनी सेवा की थी! जब मुरली मनोहर जोशी को लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती और ‘वीरबालक’ नरेन्द्र मोदी के साथ इंडियन एयर फोर्स के विशेष विमान एएन 32 से श्रीनगर के लालचौक पर 26 जनवरी 1992 को तिरंगा फहराने के लिए ले जाया जा रहा था तो नरेन्द्र भाई ने कंपकपाती ठंड में किस तरह अपना बंद गले का काला ऊनी नेहरू कोट जोशी जी को ऑफर कर दिया था!
हो सकता है, डॉक्टर साहब मोदी जी की ‘भारत माता की जय’ के उस उदघोष को भूल गए हों जो जोशी जी के साथ चल रहे 67 भाजपा कार्यकर्तों का ‘विशाल जुलूस’ उस कर्फ्यूग्रस्त श्रीनगर में कर रहा था। लेकिन उस बात को जरूर याद कर रहे होगें जब सुरक्षाबलों से घिरे होने के बावजूद जोशी जी सहित सभी लोग डर से हकलान हो रहे थे और मोदीजी ने धीरे से उनके कान में कहा था ‘ये लोग बहुत खतरनाक हैं, लेकिन डरने की जरूरत नहीं है, मुझे अपनी जान से आपकी जान ज्यादा प्यारी है, फिर भी, जल्दी से जल्दी झंडा फहराकर कश्मीर से निकल जाना है।’ क्या मुरली मनोहर जोशी मोदी जी से मिले इस भरोसे को भूल पाए होगें? क्या वह आज भी एहसानमंद नहीं होगें प्रधानसेवक जी की उदारता से!
यह सब भी छोड़िए! जब प्रधानसेवक जी ने अपने और राजनाथ सिंह के साथ लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक मंडल में शामिल किया था तो वह उन सबके लिए अहोभाग्य वाला क्षण नहीं रहा होगा क्या! आखिर इतनी उदारता हमने किस भारतीय राजनेता में देखा है?
पिछले महीने, अप्रैल 2018 में प्रवीण धोंती ने प्रतिष्ठित पत्रिका कारवां में नितिन गडकरी पर कवर स्टोरी लिखी है। इसमें प्रवीण, बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन और नितिन गडकरी की आपसी बातचीत का सार-संक्षेप कुछ इन शब्दों में पेश करते हैं “बात 2015 के गर्मी के बाद के महीने की है। शाहनवाज गडकरी से शिकायत करते हुए पूछते हैं कि आप लोग यह कैसी सरकार चला रहे हैं? मैंने मुसलमान होते हुए अपनी पूरी जिंदगी इस पार्टी में खपा दी है। मैं पिछले कई हफ्ते से मोदी जी से मिलने का समय मांग रहा हूँ, लेकिन मुझे मिलने का समय ही नहीं दिया जा रहा है! गडकरी ने इसपर हंसते हुए जवाब दिया- शाहनवाज, आप परेशान क्यों हो रहे हैं? मोदीजी वह व्यक्ति हैं जो अपनी मां से भी दो साल के बाद मिले हैं।”
वैसे मुझे ‘बदतमीज़’ राहुल गांधी का वह ‘कृत्य’ याद है जब उनके पिता व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की लाश पार्टी कार्यालय में श्रंद्धाजलि के लिए रखी गई थी। एक अनजान वयोवृद्ध व्यक्ति राजीव गांधी को श्रंद्धाजलि देकर लौट रहा है लेकिन भीमकाय काया (शरीर) के चलते झूककर जूते नहीं पहन पा रहा है और वह ‘उद्दंड’ राहुल गांधी घुटने के बल बैठकर उस अनजान वृद्ध को जूते पहना रहा है। वह तस्वीर हिन्दुस्तान अखबार ने अपने पहले पेज पर छापी थी। याद रखिए, उस ‘बदतमीज’ राहुल गांधी का बाप प्रधानमंत्री था, दादी प्रधानमंत्री थी और उनका नाना भी प्रधानमंत्री रहा था, फिर भी वह ‘घृष्टता’ राहुल गांधी ने की थी!
हमारे दिमाग में यकीनी तौर पर यह बात भी आती ही रहती है कि राहुल गांधी से ज्यादा कृतघ्न व्यक्ति इस दुनिया में कौन है और नरेंद्र भाई से ज़्यादा विश्वसनीय इंसान इस धरती पर कौन है?
जितेंद्र कुमार वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया विजिल सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य हैं।