स्वच्छता अभियान की झाड़ू से गाँधी के धर्म की सफ़ाई!

पंकज श्रीवास्तव

राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पर आज सुबह मोदीजी की पुलिस जब दिल्ली में घुसने की कोशिश कर रहे हज़ारों किसानों पर लाठियाँ बरसाते हुए महात्मा गाँधी की डेढ़ सौंवी जयंती मना रही थी तो कथित ‘मोदी विरोधी’ एनडीटीवी राष्ट्रीय स्वच्छता दिवस’ मना रहा था। मुंबई के होटल सन-एन-सैंड के सामने लहराते समंदर की पृष्ठभूमि वाले सुसज्जित मंच पर अमिताभ बच्चन समेत फ़िल्मी दुनिया के तमाम सितारे भारत को साफ़ करने के तरह-तरह के उपाय बता रहे थे। बीच-बीच में मोदी जी अपने संदेशों के साथ प्रकट हो रहे थे। किसानों की चीखें और सड़क पर बहते लहू के दृश्यों के लिए चैनल पर कोई जगह नहीं थी।

न, एनडीटीवी ने किसी साज़िश के तहत ऐसा नहीं किया होगा। वह लगातार स्वच्छता अभियान चला रहा है तो ऐसा कार्यक्रम पहले से ही तय रहा होगा। हैरानी बस यह थी कि किसानों पर हुई बर्बरता की ख़बर उसके लिए ऐसी नहीं थी जिस पर वह अपने कार्यक्रम को थोड़ी देर के लिए स्थगित कर देता। गाँधी जयंती पर हो रहे इस अन्याय से लोगों को रूबरू करता। यही नहीं, आमतौर पर चलने वाला ‘टिकर’ (स्क्रीन पर नीचे नज़र आने वाली चलायमान पट्टी) भी ग़ायब था जहाँ आप यूँ किसी कार्यक्रम के दौरान भी दुनिया भर की ख़बरें चलते देखते हैं।

ज़ाहिर है, यह प्राथमिकताओं का मसला है। यह सटीक रूपक था कि स्वच्छता अभियान के नाम पर दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने किया क्या है। हुआ यह है कि स्वच्छता अभियान की आड़ में तमाम ज़रूरी सवालों को ग़ायब कर दिया गया है। वरना गाँधी और शास्त्री जी के जन्मदिवस पर इस देश की भूख मिटाने वाले किसानों को राजधानी में घुसने से रोकने की बात कौन सोच सकता था! और कोई ऐसा करता तो कौन सा समाचार माध्यम इसके प्रति आँख मूँदे रह सकता था! क्या किसानों का राजधानी में प्रवेश असंवैधानिक क़रार दिया जा चुका है?

ग़ौर कीजिए कि प्रधानमंत्री बनने के बाद, पीएम मोदी ने महात्मा गाँधी को इस क़दर ‘स्वच्छता’ से जोड़ा कि उनका असल संदेश ग़ायब जैसा हो गया। वह संदेश था- सत्य और अहिंसा।

महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती पर आज देश के तमाम हिंदी-अंग्रेज़ी अख़बारों में प्रधानमंत्री मोदी का एक लेख छपा है। इस लंबे लेख में ‘अहिंसा’ शब्द सिर्फ़ एक बार अपवादस्वरूप आया है। सारा ज़ोर स्वच्छता पर है। यह संयोग नहीं है। ऐसा बहुत सचेत ढंग से किया गया। (यह भी इतिहास की एक घटना है कि सभी अख़बारों ने बिना किसी सवाल के संपादकीय पेज पर हूबहू एक लेख छापा। वरना संपादकीय पेज पर लेख छपने की यह शर्त तो रहती ही थी कि वह कहीं और न छपे)। इस तरह मोदी जी ने सुनिश्चित किया कि 2 अक्टूबर पर सत्य और अहिंसा की नहीं, बस स्वच्छता की बात होती रहे। उन्होंने गाँधी का चश्मा बतौर प्रतीक ले लिया गया, लेकिन नज़र और नज़रिया, दोनों ग़ायब कर दिया।

इस तरह मोदी जी ने 2 अक्टूबर को ‘स्वच्छता दिवस’ बना दिया जबकि यह दिन सत्य और अहिंसा के लिए समर्पित है। जैसे यह बात भुला दी गई है कि 2007 से पूरी दुनिया में 2 अक्टूबर को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ मनाया जाता है। उसी वर्ष 15 जून मे संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस प्रस्ताव पर मतदान हुआ था। महात्मा गाँधी के जन्मदिन को अहिंसा से जोड़ने की वजह बहुत स्पष्ट थी। महात्मा गाँधी, ईसा मसीह और गौतम बुद्ध के बाद पहले ऐसे महामानव थे जिन्होंने हिंसा-प्रतिहिंसा से भरी दुनिया में अहिंसा के मूल्य को पुनर्स्थापित किया। साम्राज्यवादी शोषण के शिकार भारत जैसे महादेश में अहिंसा के हथियार के ज़रिए उन्होंने आज़ादी की जैसी अलख जगाई उसने पूरी दुनिया को अनुप्राणित किया। बेहद ग़रीब और आम लोगों में ब्रितानी साम्राज्य की ताक़त का भय निकाल देना किसी चमत्कार की ही तरह था। परमाणु हथियारों पर बैठी और अपनी हवस से पर्यावरण और पारिस्थिकीय संतुलन बरबाद करने पर आमादा दुनिया में अगर महात्मा गाँधी के रास्ते में उपाय नज़र आ रहा है तो यह यूँ ही नहीं है।

महात्मा गाँधी को तमाम लोग बीसवीं सदी का महानतम हिंदू भी कहते हैं।( यह अलग बात है कि वह हिंदूराष्ट्रवादियों की बर्बरता के शिकार होकर शहीद हुए।) पर यह समझना होगा कि गाँधी जी के लिए धर्म का मतलब क्या था! गाँधीा बार-बार कहते थे —‘मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है, सत्य मेरा भगवान है और अहिंसा उसे पाने का साधन।’

इसका अर्थ यही हुआ कि अहिंसा को दरकिनार करना गाँधी को दरकिनार करना है। और यही हो रहा है। जिस दौर में मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार महात्मा गाँधी के नाम पर स्वच्छता का रात-दिन ढोल बजा रही है,  ‘सत्य’ और ‘अहिंसा’ सर्वाधिक उपेक्षित है। सत्ताधारी पार्टी, झूठ और दुष्प्रचार को कैसे अपना चुनावी हथियार मान चुकी है, वह हाल में वायरल हुए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के भाषण से स्पष्ट है। यह वही दौर है जब न जाने कितने मुसलमानों को पीट-पीट कर मार डाला गया और हत्यारों को केंद्रीय मंत्रियों ने माला पहनाई। ‘हिंसा’ भाषा से भी होती है और इस कसौटी पर मोदी के मंत्री या योगी आदित्यनाथ जैसे मुख्यमंत्री ही नहीं, ख़ुद मोदी भी कठघरे में हैं।

‘दीमक की तरह फैल रहे घुसैठियों की सफ़ाई’ जैसा बयान जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की ओर से आता है, तो समझना मुश्किल नहीं कि सफ़ाई अभियान में जुटे दिमाग़ों में इतिहास की कुछ सर्वाधिक घृणित नाज़ी कार्रवाइयाँ बजबजा रही हैं।

ज़ाहिर है, यह महात्मा गाँधी की दुंदुभि बजाकर उनके विचारों की हत्या करने का अभियान है। स्वच्छता, गाँधी जी की कोई मूल स्थापना नहीं थी। प्रभु वर्ग ‘शुचिता’ का डंका हमेशा से बजाता आया है। यही शुचिता वर्णव्यवस्था का आधार रही है जिसके नाम पर न जाने कितना अन्याय हुआ है। जहाँ तक अपने आसपास के स्थान, शहर और गाँव को साफ़ करने की बात है, इसके होने या न होने का संबंध व्यवस्था से है। यह सिर्फ़ इच्छा का मसला नहीं है। किसके कपड़े गंदे हैं और कौन दिन में कितनी बार नहाता है, इसके पीछे स्पष्ट सामाजिक-आर्थिक कारण हैं। आख़िर शौचालय बनाने के हाहाकारी अभियान में, मल-जल की निकासी और उससे नदियों को बचाने की कौन सी व्यवस्था है? सीवर सफ़ाई करने वालों का जीवन सुरक्षित करने में उतना ख़र्च भी नहीं होता जितना सफ़ाई अभियान के विज्ञापनों पर नहीं हुआ।

हद तो यह है कि इस अभियान के तहत आम आदमी को ही दोषी ठहरा दिया गया जो केले का छिलका सड़क पर फेंक देता है। लेकिन वह नगर निगम अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गया जिस पर जगह-जगह कुड़ेदान रखवाने और कूड़े के दैनिक निस्तारण की जिम्मेदारी थी। वरना ऐसा क्यों है जिस बनारस में बीती चौथाई सदी से लगभग हर निकाय बीजेपी के कब्जे में है, वह देश के सर्वाधिक गंदे शहरों में है। पीएम मोदी बीते चार सालों से जिस शहर के सांसद हैं, वह भी अगर स्वच्छ नहीं हो सका तो क्यों?

महात्मा गाँधी निश्चित ही स्वच्छता पर ज़ोर देते थे, लेकिन यह बार-बार याद करने की ज़रूरत है कि सत्य और अहिंसा उनका ‘धर्म’ था। महात्मा गाँधी के धर्म को उनसे छीनने वाले निश्चित ही अपराधी हैं। गाँधी के धर्म के मर्म पर स्वच्छता अभियान के नाम पर जितना कूड़ा डाला गया है, इसका आकलन इतिहास ज़रूर करेगा। यह भरोसा गाँधी ही देते हैं। उन्होंने ही कहा था-

‘जब मैं निराश होता हूँ, मैं याद कर लेता हूँ कि समस्त इतिहास के दौरान सत्य और प्रेम के मार्ग की ही हमेशा विजय होती है। कितने ही तानाशाह और हत्यारे हुए हैं, और कुछ समय के लिए वो अजेय लग सकते हैं, लेकिन अंत में उनका पतन होता है। इसके बारे में सोचो- हमेशा।’

 

लेखक मीडिया विजिल के संस्थापक संपादक है।



 

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