विष्णु नागर
अरविंद केजरीवाल के बारे में जो भी किसी की राय हो,यह तो तथ्य है कि वह ऐसे अपार बहुमत से मुख्यमंत्री बने हैं,जो बहुमत आज तक किसी सरकार को प्राप्त नहीं हुआ।कांग्रेस को तो विधानसभा में एक भी सीट नहीं मिली,भाजपा को भी 70 में से तीन ही सीटें मिलीं।
ऐसे अपार बहुमत से बनी सरकार को मोदी सरकार काम नहीं करने दे रही। पिछले उपराज्यपाल मान लिया गड़बड़ थे,घमंडी थे मगर ये उपराज्यपाल भी क्या ऐसे ही हैं?ये भी काम नहीं करने दे रहे।मोदी सरकार,उपराज्यपाल के जरिए एक ही रणनीति पर चल रही है कि जैसे भी हो,इस सरकार को काम नहीं करने देना है,ताकि अगले विधानसभा चुनाव में इसे नाकारा सरकार बताकर सत्ता से बाहर किया जाए।
यह कुंठाग्रस्त व्यक्ति की रणनीति ही हो सकती है।एक तो इस तरह विधानसभा के लिए जो अपार बहुमत केजरीवाल सरकार को लोगों ने दिया है,यह उसका सीधा अपमान है यानी दूसरे शब्दों में उस दिल्ली की जनता का अपमान है, जिसने उस समय केजरीवाल की पार्टी को अभूतपूर्व बहुमत दिया,जब मोदीजी की व्यक्तिगत लोकप्रियता भी शिखर पर थी,जबकि इसी दिल्ली की जनता ने लोकसभा की सभी सीटें मोदीजी को दी थीं।
एक अकुंठित प्रधानमंत्री यह करता कि केजरीवाल सरकार को भी काम करने देता और केंद्र सरकार भी उन सारे मामलों में जमकर काम करती,जो स्पष्टतया उसके विषय हैं।केंद्र की सरकार, इस सरकार को काम करने देने का श्रेेय भी लेती और अपने सांसदों तथा उपराज्यपाल के माध्यम से भी काम करवाती।इससे दिल्ली के नागरिकों का लाभ होता और असंभव नहीं कि अगला विधानसभा चुनाव भाजपा जीत जाती या बेहद मजबूत विपक्ष के रूप में उभरती।उसके विधायकों को ड्रामेबाजी के जरिए नहीं,जनता से मिली ताकत के माध्यम से बोलने का हक मिलता,लोकतंत्र को मजबूती मिलती।लेकिन यहाँ तो घमंड ही घमंड है।ये बताओ मोदीजी मेट्रो का किराया बढ़वाकर आपने यह तो दिखा दिया कि चलेगी तो आपकी ही मगर तमाम गरीबों की जिंदगी के दो-तीन घंटे छीनकर,मेट्रो में चलने के उनके अधिकार को छीनकर भाजपा ने क्या हासिल किया? क्या लोगों के दिल जीतने का यही तरीका है?क्या कुंठा आदमी को बड़ा बनाती है या प्रधानमंत्री बनाकर भी छोटा बनाए रखती है?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और चर्चित व्यंग्यकार हैं।