अख़बारनामा: छाया हुआ है ‘इंटरव्यू’, जो आत्मप्रचार ज़्यादा है !

अगर कल टेलीविजन पर यह इंटरव्यू आ ही गया तो आज के अखबारों में नया क्या है

संजय कुमार सिंह

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इंटरव्यू को कल टेलीविजन वालों ने तो खूब दिखाया ही, आज के अखबारों ने भी जस का तस छाप दिया है। अगर कल टेलीविजन पर यह इंटरव्यू आ ही गया तो आज के अखबारों में नया क्या है? अव्वल तो एक टेलीविजन समाचार एजेंसी को दिया इंटरव्यू टेलीविजन पर भले दिखाया गया, अखबारों में हू ब हू छापने का कोई मतलब नहीं है। कई कारणों से और इनमें सबसे महत्वपूर्ण है कि इंटरव्यू पुराना हो चुका है। इसीलिए कहा जाता है कि प्रधानमंत्री को प्रेस कांफ्रेंस करना चाहिए। हर अखबार और चैनल के एक या ज्यादा लोग होंगे तो उनके सवाल अलग होंगे लिखने या प्रस्तुति का अंदाज अलग होगा तो वह प्रधानमंत्री से बातचीत के रूप में प्रस्तुत होगा। अभी तो यह एक चुनाव लड़ने वाले नेता के प्रचार के रूप में है। हालांकि, खबर वह भी है पर उसमें विविधता नहीं है। या कह सकते हैं एकरसता के कारण नीरसता है।

कल के इंटरव्यू को अगर छापना ही था तो उसमें अंदाज अपना होना था। मैं नहीं कहूंगा कि नहीं है, पर जो है वह दिखे और व्यक्त भी तो हो। दूसरों से अलग होगा तभी उसमें दिलचस्पी होगी। और इसमें कोई शक नहीं है कि अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ ने उसे सबसे अच्छे से छापा है। अखबार के मुताबिक इंटरव्यू की सबसे खास बात यह रही कि प्रधानमंत्री ने आगामी चुनाव को “जनता बनाम महागठबंधन” में बदलने की कोशिश की और इसमें खुद को जनता का तकरीबन पर्याय बना दिया और राष्ट्रपति शैली में दोबारा मोदी बनाम अन्य का चुनाव बनाने की कोशिश की जिसका 2014 में अच्छा लाभ मिला था। इस सिलसिले में अखबार ने 1967 में गुजर चुके पुलित्जर विजेता अमेरिकी कवि कार्ल सैंडबर्ग की कविता, “आई ऐम द पीपुल, द मॉब” के अंश भी छापे हैं। कुल मिलाकर, जेपी यादव की रिपोर्ट पठनीय है। यह कल के इंटरव्यू पर एक नजरिया है।

इंडियन एक्सप्रेस में भी राम मंदिर पर प्रधानमंत्री का जवाब लीड है – कानूनी प्रक्रिया खत्म हो जाने दीजिए, सरकार कोशिश करेगी। कांग्रेस से कहा कि शांति, सुरक्षा और सौहार्द के हित में अपने अधिवक्ताओं को सुप्रीम कोर्ट में बाधाएं खड़ी करने से रोके। एक्सप्रेस ने इसके साथ सिंगल कॉलम में एक खबर छापी है, “टिप्पणी मंदिर की दिशा में कदम है : आरएसएस।” खबर के अनुसार आरएसएस ने इस टिप्पणी का स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि सरकार अपने इस कार्यकाल में अपना वादा पूरा करेगी। जाहिर है कि पहली नजर में जो बयान मंदिर के लिए जबरदस्ती नहीं किए जाने का भरोसा देता लगता है उसे आरएसएस मंदिर की दिशा में कदम के रूप में देखता है तो यह भाजपा के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहमति है। और यह मंदिर की मांग करने वालों को संतुष्ट करेगा।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी इंटरव्यू के इसी अंश को लीड बनाया है। न्यायिक प्रक्रिया खत्म होने से पहले राम मंदिर पर कोई अध्यादेश नहीं, प्रधानमंत्री ने संकेत दिया। अखबार ने खबर की शुरुआत में लिखा है, पिछले 70 साल से जो सरकार में हैं उन्होंने समाधान रोक रखा है। अगर प्रधानमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस में ऐसा कहा होता तो दो सवाल जरूर पूछे जाते (या यहां भी पूछे जाने चाहिए थे) कि 70 साल की सरकारों में वे भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार और फिर गैर कांग्रेसी सरकारों को भी समान रूप से जिम्मेदार मानते हैं कि नहीं?

इस जवाब के आधार पर यह सवाल भी बनता कि कांग्रेस के वकील अगर सुप्रीम कोर्ट में बाधा खड़ी करते हैं तो भाजपा क्या इसका मुकाबला नहीं कर सकती है। उसने हार मान ली है या उसके पास वकील नहीं हैं या अपने वकीलों को उसने अर्थसास्त्री या प्रशासनिक अधिकारी बना रखा है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर एक खबर को लीड बनाया है जो बताती है कि उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की रक्षा के लिए आधा प्रतिशत गौ कल्याण सेस लगाया जाएगा। आज यह एक प्रमुख खबर है जो दूसरे अखबारों में इंटरव्यू अच्छे से छापने की होड़ में दब गई है।

हिन्दुस्तान टाइम्स ने भी राम मंदिर के मामले को ही लीड बनाया है, “राम मंदिर मामले में कार्रवाई कोर्ट के आदेश के बाद ही : मोदी”। हिन्दुस्तान टाइम्स ने भी पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर एक अच्छी खबर छापी है, “भाजपा के लिए नैरेटिव बड़ी चिन्ता है”। इस खबर का हाईलाइट किया हुआ अंश गौरतलब है, यह तथ्य कि कांग्रेस ने भाजपा को तीन राज्यों में किसी गठजोड़ के बिना हराया से पता चलता है कि केमिस्ट्री के अभी भी अंकगणित से बेहतर होने की संभावना है।

हिन्दी अखबारों में ज्यादातर में वही है जिसके लिए यह इंटरव्यू था। दैनिक भास्कर ने भी पूरे इंटरव्यू को विस्तार में सवाल-जवाब के रूप में छापा है जो इंटरव्यू कम, आत्मप्रचार ज्यादा है। इस चक्कर में नए साल के जश्न की फोटो भी पहले पन्ने पर नहीं है। राजस्थान पत्रिका में यह खबर राम मंदिर वाले शीर्षक से ही है पर इसके साथ कांग्रेस की प्रतिक्रिया भी है। शीर्षक है, “इंटरव्यू में बस मैं, मेरा और मुझे : कांग्रेस।” अखबार ने मोदी जी से कांग्रेस के 10 सवाल भी पहले पन्ने पर ही छापे हैं और रणदीप सिंह सुरजेवाला का कहा भी कि, इंटरव्यू “खोदा पहाड़ निकली चुहिया” जैसा है। नवभारत टाइम्स ने तो ऐसे छापा है जैसे इंटरव्यू उसे ही दिया गया हो। साथ में इंट्रो है, “प्रधानमंत्री के तौर पर बेहद कम इंटरव्यू देने वाले नरेन्द्र मोदी ने 95 मिनट लंबा इंटरव्यू देकर आम चुनाव से पहले अपनी सरकार और बीजेपी की तस्वीर दिखाने की कोशिश की है। …. सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर पर 4 जनवरी को सुनवाई होनी है।” हिन्दुस्तान में शीर्षक औरों से अलग, पर वही है जो इंटरव्यू का मकसद था या जो टेलीग्राफ ने बताया है, “लोकसभा चुनाव गठबंधन और जनता के बीच : मोदी”।

हिन्दुस्तान ने इस लीड के साथ, “हक की बात : सबरीमाला पर महिलाओं की सबसे लंबी श्रृंखला” की फोटो चार कॉलम में टॉप पर छापी है। देश (समाज) में लैंगिक समानता कायम करने के लिए महिलाओं ने 620 किलोमीटर लंबी श्रृंखला बनाई जो केरल के 14 जिलों से गुजरी। मंगलवार को यह मानव श्रृंखला सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के समर्थन में बनाई गई। देखिए यह फोटो या खबर आपके अखबार में है? नहीं है तो क्या होनी नहीं चाहिए थी और होनी चाहिए थी तो क्यों नहीं है? दैनिक जागरण ने भी इंटरव्यू की खबर को छह कॉलम में लीड बनाया है। शीर्षक है, “अगला चुनाव महागठबंधन और जनता के बीच”। इसके साथ संघ की प्रतिक्रिया बॉक्स है।

अमर उजाला में भी पूरी खबर पांच कॉलम में विस्तार से है। संघ और कांग्रेस की बहुत छोटी सी प्रतिक्रिया के साथ। नवोदय टाइम्स में भी यही लीड है पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की प्रतिक्रिया के साथ भाजपा प्रवक्का शाहनवाज हुसैन की भी प्रतिक्रिया है। शीर्षक है, “विपक्ष की झूठी कहानियों को किया ध्वस्त : भाजपा”। यहां पहले पन्ने पर संघ की प्रतिक्रिया नहीं है। कहा जा सकता है कि इस इंटरव्यू को जिस ढंग से छापा गया है उसके बाद प्रेस कांफ्रेंस की जरूरत रह ही नहीं गई है। जब अपनी बात इतनी आसानी से छप सकती है तो प्रेस कांफ्रेंस की माथापच्ची कोई क्यों करे जब उसका अपना कोई संजय बारू नहीं है या बनाया ही नहीं है। पूरे इंटरव्यू में ऐसा कुछ नहीं है जो नहीं छापते तो कुछ छूट जाता उल्टे इस इंटरव्यू के लिए कुछ छूट गया है।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )

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