पहला पन्ना: ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की ख़बर पर लीपापोती का कार्बन!

अभी तक आपने यह सुन लिया होगा कि मुख्यमंत्रियों की बैठक में कल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को डांट पड़ गई और उन्होंने प्रधानमंत्री से माफी मांगी। सरकारी प्रचार और संतुलन के लिहाज से आज की सबसे बड़ी खबर यही है। लेकिन हेडलाइन मैनेजमेंट की सरकारी व्यवस्था के तहत कल ही सरकार ने देश के 80 करोड़ गरीबों को पांच किलो अनाज मुफ्त बांटने की घोषणा की। यह वितरण मई और जून में होगा। देश में लोग मेडिकल ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं, कोविड की दवाइयां नहीं मिल रही हैं और सरकार अनाज बांटने की घोषणा कर रही है। ऑक्सीजन का क्या हुआ यह मुझे शीर्षक में तो नहीं दिखा। ढूंढ़कर बताता हूं। फिलहाल स्थिति यही है कि 56 ईंची की सरकार, सबसे मजबूत बताए जाने वाले प्रधानमंत्री की सरकार और पूर्ण बहुमत वाली बहुप्रचारित विकल्पहीन सरकार दिल्ली के अस्पतालों के लिए जरूरी ऑक्सीजन का इंतजाम नहीं कर पा रही है और ना कोई आश्वासन दिया है ना भरोसा। आदेश जरूर हैं पर उनका असर तो जब दिखेगा पर खबर वही है। 

द हिन्दू में आज पहले पन्ने पर लीड के साथ छपी खबर का शीर्षक है, ऑक्सीजन सप्लाई कम होने से दिल्ली के अस्पताल में 25 मरे। कई संस्थाओं ने आपूर्ति के लिए निराश कोशिश की। अखबार ने इस  खबर के साथ बिलखते परिवार वालों की तस्वीर भी छापी है। निखिल एम बाबू की बाईलाइन वाली इस खबर में साफ-साफ लिखा है, “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति का एक घातक अंत दिल्ली के सबसे बड़े (और पुराने) अस्पतालों में से एक, सर गंगा राम हॉस्पीटल की शुक्रवार सुबह की इस रिपोर्ट से हुआ कि 25 बेहद गंभीर मरीजों की मौत हो गई। ये मौतें गुजरे 24 घंटों में हुईं और 60 अन्य खतरे में हैं। अस्पताल का कहा मानें तो ये ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं किसी और कारण से मरने के जोखिम में हैं। पर अस्पतालों को शायद यह नहीं पता है कि मौत के कारण में दिलचस्पी पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर या पुलिस और सरकार की होती है। परिवार के लोगों के लिए मौत सिर्फ मौत है।   

फिर भी, द हिन्दू की खबर में आगे की लीपा-पोती दिलचस्प है। अखबार ने अस्पताल के एक बयान के हवाले से लिखा है, “25 सबसे बीमार मरीजों की मौत गुजरे 24 घंटे में हुई है। ऑक्सीजन दो घंटे और चलेगा। वेंटीलेटर और बीआईपीएपी (बीपैप) मशीनें ठीक से काम नहीं कर रही हैं और इसलिए आईसीयू में मैनुअल वेंटीलेशन करना पड़ रहा है। गंभीर संकट की आशंका है। 60 अन्य सबसे बीमार मरीजों की जान खतरे में है। शीघ्रता से ऑक्सीजन की जरूरत है। विमान से लाया जाना चाहिए। सरकारें कृपया मदद करें।” जाहिर है, इस बयान में ऑक्सीजन की कमी की बात छिपाई जा रही है। हालांकि अखबार ने फिर भी सीधा और सपाट शीर्षक लगाया है लेकिन खबर यह थी कि अस्पताल यह बात कहने की हिम्मत नहीं कर रहा है कि ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की जान गई। यह स्थिति चाहे जैसे बनी हो, 1975 के आपातकाल से बुरी है। तब अखबार (खासकर इंडियन एक्सप्रेस) जगह छोड़ देते थे कि यहां की खबर सेंसर ने पास नहीं की। तब कम से कम गलत और प्रचार या छवि सुधारने वाली खबर छापने का दबाव नहीं था। अभी अगर आपको लगता है कि अखबारों पर दबाव नहीं है और वे आदर्श पत्रकारिता कर रहे हैं तो मुझे कुछ नहीं कहना है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक ही है, “गंगा राम में कोविड से 25 मौतें, कारण ऑक्सीजन की कमी नहीं कहा गया है। अखबार ने अपनी इस मुख्य और लीड खबर के साथ अस्पताल के चेयरमैन की तस्वीर के साथ उनका बयान छापा है, “मैं इन मौतों का कारण ऑक्सीजन की कमी नहीं कहूंगा …. ।” हालांकि अखबार ने इसके साथ बताया है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति के संकट के कारण कई अस्पतालों ने नए दाखिले लेना बंद कर दिया है। शुक्रवार को रात 10.30 बजे बत्रा अस्पताल में सिर्फ आधे घंटे का ऑक्सीजन रह गया था। गुड़गांव के आर्टेमिस हॉस्पीटल का बयान है कि सिर्फ तीन घंटे का ऑक्सीजन रह गया है। कृपया शीघ्र मदद करें। दिल्ली – एनसीआर में सिलेंडर में ऑक्सीजन भरने वाले कई केंद्रों ने स्टॉक नहीं होने का बोर्ड लगा दिया। अखबार ने इसकी भी तस्वीर छापी है। 

इंडियन एक्सप्रेस की लीड का शीर्षक है, “दिल्ली घुटने पर, मुख्यमंत्री केजरीवाल ने पीएम से अपील की : आपके मार्गदर्शन और हस्तक्षेप की आवश्यकता है।” और सच यह है कि ऐसे महान प्रधानमंत्री और कोई भी कानून बना देने का बहुमत रखने वाली सरकार के बावजूद देश की राजधानी के अस्पतालों की ऑक्सीजन की मांग चार दिनों से पूरी नहीं हो पा रही है। 25 लोग सर गंगाराम अस्पताल में मर गए। तो जो लीपापोती हो रही है अभी उसपर और बताता हूं। आज इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर लीड और सेकेंड लीड तो नहीं है पर पहले पन्ने पर जरूर है। इसका शीर्षक है, दिल्ली के अस्पताल ने चौथी दिन ऑक्सीजन मांगा, 25 कोविड मरीज गंगा राम में मर गए। अखबार ने बताया है कि अस्पताल ने इन मौतों को आधिकारिक तौर पर ऑक्सीजन की कमी से नहीं जोड़ा। हालांकि एक्सप्रेस में इसके ऊपर ही एक खबर है, जीटीबी अस्पताल के बाहर एक ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ तीन मरीज इंतजार कर रहे थे। और कल इसी अखबार ने खबर दी थी कि एक साल पहले बताया जा चुका था कि ऑक्सीजन की कमी होगी। पर सेवा भाव है कि छूटता नहीं है। आज इस अखबार के शीर्षक से लग रहा है अस्पतालों को चार दिनों में अपना कोई इंतजाम कर लेना चाहिए था। केंद्र सरकार से क्यों मांग रहे हैं। 

इंडियन एक्सप्रेस का मुख्यालय मुंबई में है और वहां एक्सप्रेस टावर्स को कौन नहीं जानता। इसलिए महाराष्ट्र से इन दिनों एक्सप्रेस का कुछ खास लगाव चल रहा है। दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से 25 लोगों के मरने की खबर को अखबार ने लगभग वही महत्व दिया है जो विरार के अस्पताल में आग लगने से 17 लोगों की मौत की खबर को दिया है। द हिन्दू में यह खबर लीड है लेकिन मौत 15 ही लोगों की बताई गई है। कुल मिलाकर, अखबारों की खबरों से यह तय नहीं है कि ऑक्सीजन की कमी का दिल्ली में स्वास्थ्य व्यवस्था पर क्या असर है। अगर गंगाराम अस्पताल की मौतें ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं हैं तो ऑक्सीजन भरने वाले केंद्रों में ऑक्सीजन न हो, एक सिलेंडर के सहारे तीन मरीजों का दाखिले के लिए इंतजार करना जो बताता है वह खबर नहीं है? बाकी अखबारों में क्यों नहीं है। 

बात इतनी ही नहीं है। दिल्ली के एक अस्पताल में 24 घंटे में 25 कोविड-19 मरीजों की मौत हो जाए तो वैसे भी पहले पन्ने की खबर है। ऑक्सीजन की कमी की कोई बात नहीं होती तो भी। लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर कम से कम इस शीर्षक से पहले पन्ने पर नहीं है। जो है उसकी चर्चा बाद में करूंगा उससे पहले यह जानना दिलचस्प है कि द टेलीग्राफ में इन मौतों की रिपोर्ट कैसे की गई है। फ्लैग शीर्षक है, “25 मौतें कमी के कारण नहीं : अस्पताल।” मुख्य शीर्षक है, “गंगा राम का ऑक्सीजन ट्रायल।” इसमें अखबार ने बताया है, “…. अस्पताल ने इन मौतों की घोषणा शुक्रवार को सवरे 8.00 बजे के कुछ बाद की। सवेरे 9:20 पर एक ऑक्सीजन टैंकर गंगा राम अस्पताल पहुंचा जो अस्पताल की करीब पांच घंटे की जरूरतें पूरी करेगा।”

इसके बावजूद अस्पताल कह रहा है और अखबार बता रहे हैं कि मौतें ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई। जब आईसीयू में दबाव कम हो गया तो हमने मरीजों को मैनुअली ऑकसीजन दी। अब दबाव क्यों कम हुआ ये डॉक्टर तो नहीं ही जान सकते हैं उसके लिए एक जांच समिति बैठाई जा सकती है। पर मेरी चिन्ता का विषय वह नहीं। मेरी चिन्ता का विषय यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को सार्वजनिक रूप से डांटा और उन्होंने माफी भी मांगी पर यह खबर अखबारों में उतनी प्रमुखता से क्यों नहीं है जब इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर लीड है। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर दो कॉलम में है। 

 

हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर का शीर्षक है, “केजरीवाल ने ऑक्सीजन की अपील की, प्रधानमंत्री ने इनहाउस मीटिंग को प्रासारित करने के लिए झिड़क दिया।” यह खबर अपने आप में जो है सो है। इसे तो सबने कल ही देख और जान लिया था। आज इस खबर के साथ बताया जाना चाहिए था कि प्रधानमंत्री ने क्या जवाब दिया, या नहीं दिया। पर हिन्दुस्तान टाइम्स में ऐसा कुछ नहीं है। अखबार की खबर इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार का पक्ष बताती है लेकिन मूल मुद्दा रह गया। इंडियन एक्सप्रेस में भी ये सूचनाएं इंट्रो या उपशीर्षक की तरह हैं पर प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया या लाचारी दिखाई जैसी कोई सूचना नहीं है। कुल मिलाकर लोग मर रहे हैं, प्रधानमंत्री राहत की अपील नहीं सुन रहे हैं और यह खबर भी नहीं है। 56 ईंची सरकार चाहे ऑक्सीजन का बंदोबस्त न कर पाए हेडलाइन मैनेजमेंट अच्छा कर रही है। वरना खबर यह भी है कि विमान से ऑक्सीजन लाने की मांग या जरूरत है तो सरकार ने राज्यों को निर्देश दिया है कि ऑक्सीजन के टैंकर रोके नहीं जाएं। सरकार अपने स्तर पर और मंत्रियों के ट्वीट के जरिए यह भी प्रचार कर रही है कि ऑक्सीजन टैंकर माल गाड़ियों से ढोए जा रहे हैं। पर यह जवाब नहीं है कि विमान से क्यों नहीं या पीएम केयर्स के पैसे किस काम के लिए बचाकर रखे गए हैं। अब यह स्पष्ट हो चला है कि हेडलाइन मैनेजमेंट ही सरकार की सफलता का राज और यही प्रशांत किशोर ने कहा तो लीक करके बंगाल जीतने की हवा बनाई गई। उसका सच दो मई को पता चलेगा तब तक पढ़ते रहिए पहला पन्ना – रोज दिन में।  

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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