पहला पन्ना: डबल इंजन की सरकार कानून का दुरुपयोग कर रही है, PM परीक्षा पे चर्चा करेंगे!

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी जांच में पाया है कि राज्य की पुलिस एक खास शैली में काम कर रही है और यह बेहद स्पष्ट है। अपनी इस खबर से अखबार ने बताया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनवरी 2018 और दिसंबर 2020 के बीच एनएसए के तहत गिरफ्तारी को चुनौती देने वाले 120 मामले में फैसला दिया। इनमें 94 मामले खारिज कर दिए गए। ये मामले राज्य के 32 जिलों के हैं और गौ हत्या से लेकर सांप्रदायिक हिंसा, राजनीतिक मामले आदि से संबंधित हैं।

महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने आखिरकार इस्तीफा दे दिया, रफाल सौदे में भ्रष्टाचार का मामला खत्म ही नहीं हो रहा है, आज राज्यों के विधानसभा चुनावों के तीसरे चरण के मतदान के बाद पश्चिम बंगाल के पांच चरण रह जाएंगे और छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों पर हमले के बाद एक पार्टी विशेष के पक्ष में बनने वाले माहौल का क्या होगा – सब देखने समझने की बातें हैं। आज 475 सीटों पर मतदान है, यह भी एक खबर है तो कोरोना का मामला अपनी जगह है ही। महाराष्ट्र के गृहमंत्री के मामले की जांच होनी है और सीबीआई प्रमुख का पद खाली है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार इसके लिए उच्चाधिकार समिति की बैठक लगभग एक महीने बाद, 2 मई को होगी। इससे पहले, सीबीआई प्रमुख को हटाने की आधी रात की कार्रवाई आपको याद होगी। अर्थव्यवस्था की खराब हालत, जीएसटी वसूली बढ़ने के प्रचार के बीच निर्माण गतिविधि सात महीने में सबसे कम (धीमी) होने की खबरों के बीच एक खबर यह भी है कि विदेश मंत्री जयशंकर आज रूसी विदेश मंत्री से मिलेंगे। पहले पन्ने पर इतनी सारी खबरों के बीच कौन सी खबर कैसे छपी है कहां नहीं छपी है बताने से जरूरी आज इंडियन एक्सप्रेस की एक्सक्लूसिव खबर की चर्चा करना है।

वैसे तो, अभी तक की स्थिति के अनुसार, महाराष्ट्र के गृहमंत्री का इस्तीफा आरोपों के आधार पर है। लेकिन खबर ऐसे छपी है जैसे आरोप सही साबित हो गए हों। इस मामले में राज्य सरकार को अस्थिर करने की कोशिशों से इनकार नहीं किया जा सकता है। हो सकता है इसी कारण मुख्यमंत्री ने उनसे तब इस्तीफा नहीं मांगा हो और अब उन्होंने नैतिक आधार पर इस्तीफा दिया है। इसमें राजनीति भी हो सकती है। लेकिन रफाल सौदे में रिश्वत की खबर क्या इतनी साधारण है कि उससे विवाद भर भड़का है (टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक) और देशमुख के इस्तीफे की खबर लीड है।  इंडियन एक्सप्रेस ने रफाल वाली खबर तो ठीक-ठाक छापा है लेकिन उपशीर्षक में यह भी बताया है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही खारिज कर दिया है। बेशक ऐसा है लेकिन क्या इस आधार पर नए तथ्यों की भी जांच नहीं होगी? द टेलीग्राफ ने इस खबर को लीड बनाया है। शीर्षक है, घोटाला जो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। द टेलीग्राफ ने एक अन्य खबर के जरिए बताया है कि किस कंपनी को कितने पैसे मिले और वह किसकी है। देशमुख वाली खबर द टेलीग्राफ में अंदर के पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। शीर्षक है, “देशमुख ने इस्तीफा दिया भाजपा ने उद्धव को निशाने पर लिया।”

 

मुझे लगता है कि देशमुख और रफाल वाली खबर का महत्व के लिहाज से सबसे सही डिसप्ले हिन्दू में है। हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए तो देशमुख ने इस्तीफा दिया। दो कॉलम की यह खबर टॉप पर है और इसके ठीक नीचे, चार कॉलम में खबर है, सरकार ने रफाल रिपोर्ट को बकवास कहा, कांग्रेस ने जांच की मांग की। खबर पढ़ने से पता चलता है कि आरोप को बकवास कहने वाले सरकार के प्रतिनिधि हैं, केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद। इस सरकार में बयान देने, आरोप लगाने के लिए मंत्रियों का चयन भी दिलचस्प होता है। कानून मंत्री क्यों और कैसे मान लेगा कि उसकी सरकार या उसके मुखिया ने कुछ गैर कानूनी किया जबकि चुटकी बजाकर कानून बनाए जा रहे हैं। सरकारी वकील तो सरकार का ही पक्ष रखेगा अगर वही मान ले कि सरकार गलत है तो मुकदमे का क्या मतलब? स्थिति यह है कि जिसपर आरोप है वह सामने आकर नहीं कहता कि गलत है। जो सरकार का बचाव करता है वही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के नैतिक अधिकारों की बात करता है। 

इंडियन एक्सप्रेस की एक खोजी खबर के अनुसार उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा दायर भिन्न एफआईआर में एक जैसे विवरण होते हैं, जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी गिरफ्तारी आदेश से पता चलता है कि उसमें दिमाग नहीं लगाया गया है, अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई में आवश्यक प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है, जमानत रोकने के लिए एक ही कानून (एनएसए) का बार-बार उपयोग किया जाता है। खबर के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए कानून के दुरुपयोग के कई मामले चिन्हित किए हैं। इस कानून के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार मिलता है कि वह बगैर आरोप या ट्रायल के किसी को गिरफ्तार कर ले। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी जांच में पाया है कि राज्य की पुलिस एक खास शैली में काम कर रही है और यह बेहद स्पष्ट है। अपनी इस खबर से अखबार ने बताया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनवरी 2018 और दिसंबर 2020 के बीच एनएसए के तहत गिरफ्तारी को चुनौती देने वाले 120 मामले में फैसला दिया। इनमें 94 मामले खारिज कर दिए गए। ये मामले राज्य के 32 जिलों के हैं और गौ हत्या से लेकर सांप्रदायिक हिंसा, राजनीतिक मामले आदि से संबंधित हैं। अखबार ने अपनी इस खबर के साथ एक और खबर छापी है। जमानत के बावजूद जेल : डीएम को एनएसए क्यों पसंद है। इंडियन एक्सप्रेस की इस खोजी खबर का आज यह पहला हिस्सा छपा है। 

आप जानते हैं कि नवंबर 2016 में विधानसभा चुनावों से पहले अचानक की गई नोटबंदी से उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को लाभ हुआ था। केंद्र में भाजपा की सरकार के साथ राज्यों में भाजपा की सरकार हो तो उसे डबल इंजन वाली सरकार कहा जाता है। जनविरोधी कानून और उसका मनमाना उपयोग शासन का एक तरीका है और लोकप्रियता का दुरुपयोग भी। अब अखबारों में ऐसी खोजी खबरें नहीं छपतीं हैं और 120 मामलों की चर्चा एक साथ हो रही है। कायदे से एक भी मामला छूटना नहीं चाहिए और संबंधित लोगों, विभागों को इसपर नजर रखना चाहिए। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार ने तो जो किया सो किया उसे करने भी दिया गया। विरोध में खबरें कम छपी या छपी तो उसका असर नहीं हुआ। इंडियन एक्सप्रेस देर से ही सही, ऐसी खबरें करता रहता है। दूसरे अखबारों ने तो हाथ झाड़ लिए हैं। और प्रधानमंत्री प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते। लगता ही नहीं है कि जनता से उनका संपर्क है। और टाइम्स ऑफ इंडिया में आज चर्चा है कि प्रधानमंत्री कल बच्चों के साथ परीक्षा पे चर्चा करेंगे। यह देश की सामान्य स्थिति है। प्रधानमंत्री भाजपा के प्रधान चुनाव प्रचारक हो गए हैं सो अलग और बात इतनी ही नहीं है, सहायता के लिए गृहमंत्री को भी जोड़ लिया है। बेशक पार्टी के लिए प्रचार भी जरूरी है लेकिन चुनाव के दौरान सुरक्षा बलों पर हमला सरकार के चुनाव में व्यस्त रहने के कारण तो नहीं होता है। 

राजकाज के इस हाल में कोरोना के मामले (और मौत भी) पिछले साल के मुकाबले काफी तेज हैं। टीका उपलब्ध है, पर्याप्त है लेकिन 45 साल से कम के लोग नहीं लगवा सकते हैं। कारण ना बताया गया है और ना मुझे समझ में आया है। आज हिन्दुस्तान टाइम्स में खबर है, दिल्ली के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि 25 साल से ऊपर वालों को टीका लगवाने दिया जाए। आप जानते हैं कि हाल ही में दिल्ली सरकार के अधिकार कम कर दिए गए हैं। इस कारण आलाम यह है कि गैर कानूनी गिरफ्तारियों पर तो रोक नहीं है 25 साल का व्यक्ति टीका नहीं लगवा सकता है। जहां तक सरकार की बातों और आश्वासनों का मामला है, प्रधानमंत्री 50 दिन में सपनों का भारत बना रहे थे। अब ना वे याद करते हैं ना अखबार वाले याद दिलाते हैं। 

इस साल ताली-थाली भी नहीं बजवा रहे हैं और हां, कल सोशल मीडिया पर खबर थी कि असम में 90 वोटर वाले एक मतदान केंद्र पर 171 वोट पड़ गए थे। यह खबर आज किसी अखबार में पहले पन्ने पर तो नहीं दिखी। बीबीसी की एक खबर के अनुसार, हाफलॉन्ग विधानसभा क्षेत्र में खोटलिर एलपी स्कूल के 107 (ए) मतदान केंद्र पर केवल 90 मतदाता पंजीकृत हैं लेकिन एक अप्रैल को यहाँ 171 वोट डाले गए। हिंदुस्तान टाइम्स ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के हवाले से रिपोर्ट दी है कि अधिकारियों ने इसकी जानकारी सोमवार को दी। हाफलॉन्ग में 74 फ़ीसद मतदान हुआ था। इस घटना के सामने आने के बाद ज़िला निर्वाचन अधिकारी ने मतदान केंद्र के पांच चुनाव अधिकारियों को निलंबित कर यहां दोबारा मतदान कराने का प्रस्ताव रखा है। हालांकि दोबारा चुनाव के आदेश जारी नहीं किए गए हैं। इससे आप समझ सकते हैं कि जो खबरें आती हैं वे कितनी दुर्लभ और पवित्र किस्म की हैं। आपके अखबार में यह खबर है? 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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