बच्चों की नृशंस हत्या पर इतना सन्नाटा क्यों, रहनुमा !

विकास नारायण राय

 

गुजरे इतवार से फिल्म स्टार श्रीदेवी की दुबई में अकाल मृत्यु भारतीय मीडिया में राष्ट्रीय शोक बनकर छायी हुयी है. यहाँ तक कि मोदी और राहुल जैसों ने भी ग्लैमर की दुनिया की इस मीडिया इवेंट पर ट्विटर के माध्यम से जुड़ने में तनिक देर नहीं की. सभी की संवेदनाओं का सम्मान करते हुए भी, पूछना पड़ेगा कि उसी रोज के दो बेहद हृदयविदारक हादसों पर इन तमाम रहनुमा हलको में इतना सन्नाटा क्यों?

बिहार के मुजफ्फरपुर में बीस स्कूली बच्चों को एक शराबी ड्राइवर के बेकाबू तेज गति वाहन से कुचलने (अब तक 9 की मृत्यु) को महज सड़क दुर्घटना के खाते में नहीं डाला जा सकता. न अकेले दोषी ड्राइवर को जिम्मेदार ठहरा कर इसका कानूनी पटाक्षेप संभव है. दरअसल, ये ऐसी नृशंस हत्याएं हैं, जिनकी जिम्मेदार नीतीश कुमार की शराबबंदी और नितिन गडकरी की ऑटो नीतियां हैं. वह राष्ट्रीय मीडिया भी जो इन नीतियों के लिए तालियाँ जुटाता रहा है.

हापुड़ के पिलखुआ में सात किशोर श्रमिक, आबादी से लगे अँधेरे रेल ट्रैक को पार करने में वहां से गुजरती ट्रेन की चपेट में आकर कट मरे. उस व्यापक इस्तेमाल में आने वाले शार्ट कट रास्ते पर न सुरक्षा फेंसिंग है, न चेतावनी व्यवस्था, न रोशनी, न सड़क और न संचालित रेल क्रासिंग. प्रधानमन्त्री मोदी के बुलेट ट्रेन की प्राथमिकता के चलते ट्रेन पटरियों पर हजारों उपेक्षित स्थान असुरक्षित रखे जाने की बाध्यता के शिकार हैं.

भारत ने सड़क यातायात को दुर्घटना रहित करने के नवम्बर 2015 के ब्रासीलिया घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये हुए हैं, जिसके अनुसार सन 2020 तक दुर्घटनाओं और इनमें होने वाली मृत्यु को आधा करने का लक्ष्य रखा गया है. जबकि, सरकार की लागू सड़क परिवहन नीतियों में मृत्यु दर में अंकुश लगाने वाली समुचित प्राथमिकताओं का शायद ही संकेत मिले.

जहाँ 2006 में सड़क पर प्रति सौ दुर्घटना में 20.4 व्यक्तियों की मौत होती थी, 2015 में यह बढ़कर 26.3 पहुँच गयी. हाल के वर्षों में प्रति वर्ष पांच लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गयी हैं. इनकी मुख्य वजह हैं, तेज रफ्तार वाहन और शराबी ड्राइवर. तेज रफ्तार, सड़क पर होने वाली 48 प्रतिशत दुर्घटनाओं और 44 प्रतिशत मौतों के पीछे रहती है. दो पैर व दो पहिया वाहन इस्तेमाल करने वालों के लिए सड़क पर घोर अव्यवस्था भी मारक दुर्घटनाओं की एक बड़ी वजह है. उनका, नित चौड़े होते राजमार्गों पर तेज वाहनों के बीच सड़क पार करना एक आत्मघाती व्यवस्था ही कहलाएगी.

मुख्य मंत्री नितीश कुमार की बिहार राज्य में लागू की गयी पूर्ण शराबबंदी, जैसा कि चेताया गया था, एक पूरी तरह विफल कवायद बन चुकी है. लोग, दरअसल, कम समय में ज्यादा शराब गटकने के आदी हो रहे हैं. राज्य में तस्करी से आने वाली रेगुलर शराब के महंगी होने के कारण, अवैध शराब के उत्पादन में बेहद वृद्धि हुयी है. इसने राजनीतिक सत्ताधारियों, आबकारी व् पुलिस कर्मियों, शराब माफिया और छोटे-बड़े गुंडों के लिए, अघोषित समृद्धि का दरवाजा खोल दिया है.

एक तरह से, मुजफ्फरपुर प्रकरण में आने वाले समय के बिहार की तस्वीर देखी जा सकती है. सड़क हादसे उसके महज एक आयाम होंगे. ‘पूर्ण शराबबंदी’ पहल से नीतीश कुमार अपने लिए प्रधानमन्त्री पद के दावेदार का एक विशिष्ट स्वरूप गढ़ना चाहते थे. वे अगर इसी तरह शेर की सवारी की जिद पर कायम रहे तो बिहार के व्यापक माफियाकरण का श्रेय अवश्य ले जायेंगे.

केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की छवि मीडिया ने एक कार्यकुशल विकास संचालक की बना रखी है. यह अकारण नहीं है. गडकरी ने विरासत में मिली हाई वे और हाई स्पीड नीति को यातायात विकास के मॉडल के रूप में और चमका रखा है. यहाँ तक कि तेज कारों की बढ़ती जनसंख्या के दबाव में,  हाई वे बनाने की गति तीन गुना बढ़ाकर प्रतिदिन 30 किलोमीटर कर दी गयी है. बेशक हाई वे पहले की तरह असुरक्षित रहेंगे.

दरअसल, गडकरी के नेतृत्व में हाई वे और हाई स्पीड आयामों को एक दूसरे का सफल पूरक बना दिया गया है. दोनों आयाम जीडीपी गणना में भी शरीक किये जाते हैं. हाल में ग्रेटर नॉएडा में गडकरी की छत्र-छाया में संपन्न हुये ऑटो एक्सपो 2018 में प्रदर्शित भविष्य की इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों में ऐश-आराम के आकर्षण के साथ तीव्र गति का नुस्खा ही हावी दिखा. बाजार में उतरने के बाद ये गाड़ियां सिर्फ गडकरी के हाई वे पर ही तो नहीं दौड़ेंगी. गाहे-, मुजफ्फरपुर की तरह, छोटे-मोटे शहरों की सड़क पर भी बच्चे इन्हें लाये जाने की कीमत अपनी जान से चुकाते रहेंगे.

शायद किसी दिन कोई सड़क विज्ञानी हमें आज जैसी दीवानगी से बचा सके. विकास की और ग्लैमर की भी. वह चाहे तो और बातों के अलावा यह भी बताये कि मोदी की बुलेट ट्रेन और गडकरी की हाई स्पीड सड़क में से कौन अधिक घातक कही जायेगी? नीतीश की शराबबंदी उसके अध्ययन का जरूरी फुटनोट होगी ही! फिलहाल, मुजफ्फरपुर और हापुड़ के सड़क शिकार परिवारों को हम सब की ओर से दिली संवेदना पहुंचे.

 

(अवकाश प्राप्त आईपीएस विकास नारायण राय, हरियाणा के डीजीपी और नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद के निदेशक रह चुके हैं।)

 



 

First Published on:
Exit mobile version