संजय कुमार सिंह
कांग्रेस का आरोप है कि मेहुल चौकसी ने अरुण जेटली की बेटी-दामाद की फर्म को हायर किया था। सचिन पायलट ने कहा कि मेहुल चौकसी के घोटाले से जुड़े सारे काग़ज़ात वित्त मंत्रालय, एसएफआईओ और सबको 2015 में फारवर्ड कर दिए गए थे। वित्तमंत्री की बेटी सोनाली जेटली और उनके दामाद को मेहुल चौकसी की फ़र्म ने हायर किया। बाद में इन लोगों ने पैसे ये कहते हुए लौटा दिये कि हमने इनका कोई काम नहीं किया। यह राशि 24 लाख रुपये है। फर्म ने पैसे मेहुल चौकसी के भागने के बाद लौटाए। कांग्रेस नेता राजीव सातव ने कहा कि पूरे मामले में मेहुल चौकसी और वित्त मंत्री के बेटी-दामाद की मिलीभगत थी। सवाल यह भी उठता है कि भागने के बाद ये पैसे सरकार को क्यों नहीं दिए? वापस क्यों किया गया?
द टेलीग्राफ ने इस खबर को पहले पेज पर, “जेटली के करीबी की फर्म पर नैतिक सवाल” शीर्षक से छापा है। खबर कहती है कि कांग्रेस ने ऐसे दस्तावेज जारी किए हैं जिसमें दावा किया गया है कि पीएनबी घोटाले के आरोपी मेहुल चोकसी को वित्त मंत्री अरुण जेटली की बेटी और दामाद की लॉफर्म ने इस साल 20 फरवरी को 24 लाख रुपए वापस किए। यह पहले से पता था कि चोकसी ने इस फर्म को दिसंबर 2017 में रीटेन किया था और यह भी कि, अधिवक्ताओं ने इसे करार को रद्द करके पैसे वापस कर दिए थे और पैसे तब लौटाए जब इस साल जनवरी-फरवरी में यह घोटाला सामने आया। पर अभी तक जो चीज मालूम नहीं थी वह यह कि राशि ठीक-ठीक कितनी थी और किस तारीख को वापस की गई। कांग्रेस ने जो दस्तावेज जारी किए हैं उसके अनुसार यह तारीख 20 फरवरी है और अगर यह सही है तो इसका मतलब यह हुआ कि पैसे तब लौटाए गए जब घोटाला पूरे उफान पर था और पंजाब नेशनल बैंक को 12,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का चूना लगाने के बाद चोकसी और उनके रिश्तेदार नीरव मोदी देश छोड़कर भाग चुके थे।
टेलीग्राफ ने लिखा है कि कोई लॉ फर्म चोकसी को ग्राहक बनाए इसमें कुछ गलत नहीं है क्योंकि हर किसी को कानूनी सलाह लेने और बचाव पाने का अधिकार है। पर पैसे लौटाने की तारीख ने कांग्रेस नेताओं को एक नैतिक सवाल पूछने के लिए प्रेरित किया है। क्या वित्त मंत्री की बेटी-दामाद की लॉ-फर्म को पैसे लौटाने से पहले जांच करने वाली एजेंसियों को बताना नहीं चाहिए था ताकि एजेंसियों को मौका मिलता कि वे इस राशि को जब्त करने के बारे में विचार कर पातीं। टेलीग्राफ ने लिखा है कि उसे लॉ-फर्म या अरुण जेटली से प्रतिक्रिया लेने की कोशिशों में कामयाबी नहीं मिली। अखबार ने लिखा है कि द वायर ने इस बारे में 11 मार्च को खबर दी थी।
दिल्ली के अंग्रेजी अखबारों में हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले या पहले के आधे पन्ने पर नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया में भी यह खबर पहले के अधपन्ने या पहले पन्ने पर नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में भी यह ख़बर पहले पन्ने पर नहीं है। अंदर भी कहाँ है, खोजना मुश्किल है।
हिन्दी अखबारों में नवभारत टाइम्स में लीड सीबीआई पर सीबीआई के छापे की खबर है और इसी में एक बॉक्स है, चोकसी से मिलीभगत के आरोप। यह खबर पांच लाइनों में है और इतने में जितना हो सकता है उतना ही विस्तार है। दैनिक हिन्दुस्तान में भी यह खबर पहले पेज पर नहीं दिखी। दैनिक भास्कर में यह खबर पहले पेज पर सिंगल कॉलम में है। शीर्षक है, मेहुल चोकसी ने जेटली की बेटी को पैसे दिए, फाइल दबाकर जेटली ने उसे भागने दिया। यह खबर पेज पांच पर जारी है। राजस्थान पत्रिका में यह खबर पहले पेज पर डबल कॉलम में है। फ्लैग हेडिंग है, आरोप : कांग्रेस ने वित्त मंत्री से इस्तीफा मांगा। शीर्षक है, मेहुल चौकसी ने जेटली की बेटी को दिया है पैसा : राहुल। इसके साथ ही अखबार ने 24 लाख लिए गए थे शीर्षक से एक खबर छोटी खबर छापी है। दोनों खबरें अंदर के पन्नों पर जारी हैं। नवोदय टाइम्स, दैनिक जागरण, अमर उजाला में यह खबर पहले पेज पर नहीं है।
कहने की जरूरत नहीं है कि सीबीआई पर सीबीआई के छापे की खबर भले अनूठी है पर अब सबको मालूम है फिर भी ज्यादातर अखबारों में लीड है। यही नहीं, आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों में देश में एक करोड़ रुपए की कमाई दिखाने वालों की संख्या बढ़ी है, रिटर्न दाखिल करने वाले भी बढ़े हैं और ऐसी सरकारी खबरें भी ज्यादातर अखबारों में प्रमुखता से है पर विपक्ष के नेता का एक गंभीर आरोप मय सबूतों के सिरे से गायब है। रैली में यह कहने के बावजूद कि मीडिया वालों ने इस खबर को दबा दिया।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।