बिहार में एक बार फिर नरसंहार की घटना सुर्ख़ियों में है. यह घटना पिछले 29 मार्च को मधुबनी जिले में हुई . यह होली का दिन था. लोग रंग -गुलाल के मिजाज में थे. लेकिन किसे पता था कुछ लोगों के मन में खून भी सवार था . निर्ममता से पांच लोगों की हत्या हुई ,जो एक ही परिवार के थे. मरने वाले दलित -पिछड़े नहीं , राजपूत परिवार के लोग थे. एक तो सीमा सुरक्षा बल का जवान था. सरहदों की रक्षा तो उसने की लेकिन अपने परिवार की रक्षा करने में विफल रहा. स्वयं मारा गया.
इस नरसंहार को लेकर मीडिया में गजब का सन्नाटा रहा . मीडिया का इतना सरकारीकरण हो गया है कि वह अपना धर्म और कर्म भूल चुका है. नरसंहार की खबर छपने से नीतीश सरकार के कथित सुशासन की छवि धूमिल होगी ,इसलिए इसे दबा दो. संस्थागत मीडिया ने तो इसे अपने जाने दबा ही दिया था, सोशल मीडिया का कमाल है कि यह खबर जनता के बीच आ सकी.
किसी भी नरसंहार की मैं निंदा-भर्त्सना करूँगा. कुछ लोग हैं, जो बथानी टोला और लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार पर खुश होते या चुप होते हैं ,और सेनारी पर भोकार करते हैं. मैं किसी भी नरसंहार पर दुखी होने वालों में हूँ . मैंने बथानी टोला की भी पीड़ा देखी है और सेनारी की भी . इंसान -मनुष्य से ऊपर कुछ भी नहीं है. इस तरह के संहार हमारे समाज के लिए शर्म की बात है .इसे हर हाल में रोकना चाहिए.
नरसंहार होते ही उसे जातीय रूप देने की कोशिश होती है. इस घटना में भी दो जातियों के लोग हैं और स्वाभाविक है, इसे लेकर चर्चा होगी . लेकिन हमें घटना की तहों तक जाना चाहिए. मैंने जो जानकारी इकट्ठी की है उसके अनुसार बेनीपट्टी की घटना आर्थिक – सामाजिक है. सरकार इसे रोक सकती थी. लेकिन उसने इसे अंजाम होने दिया. इसकी जरूर जांच होनी चाहिए. स्थानीय दरोगा को निलंबित किया गया है. लेकिन डीएम -एसपी के खिलाफ तुरंत करवाई की जानी चाहिए थी . मौजूदा राज में दरोगा की औकात इतनी दयनीय कर दी गई है कि उससे किसी नतीजे की उम्मीद आप नहीं कर सकते.
घटना मधुबनी जिले के बेनीपट्टी प्रखंड के महमदपुर गाँव की है. यह राजपूत -बहुल गाँव है. बगल का गाँव है व्यासपुर,जो ब्राह्मण -बहुल है. वह मैथिल ब्राह्मणों का इलाका है, जो मछली के शौक़ीन होते हैं. महमदपुर के उत्पीड़ित राजपूत परिवार ने बंदोबस्ती में तालाब लिया हुआ था, जिसमें मछलियां पल रही थीं. व्यासपुर के कुछ मनबढ़ू ,जो जाति से ब्राह्मण हैं, मछलियां चुरा लाते थे. मछलियों की रक्षा करने में पांच लोग कुर्बान हो गए. दरअसल यह उनके रोजगार पर हमला था. इसकी रक्षा करना उनका धर्म था.वस्तुतः रक्षा करने की जिम्मेदारी सरकार की थी.
वहां से विधायक हैं झा जी. यानी मैथिल ब्राह्मण. बिहार में मंत्री रह चुके हैं. जातिवादी दौर में स्वाभाविक है, ब्राह्मण उनके समर्थक रहे होंगे. अब नरसंहार को लेकर जो राजनीति हो रही है, उसमें उस विधायक को जोड़ देने से कुछ मतलब सिद्ध होने की उम्मीद होती है. इसलिए इस पर बल दिया जा रहा. लेकिन यह मूल मकसद को बरगलाना ही है.
घटना के सभी पहलुओं की समीक्षा होनी चाहिए. इसके सामाजिक -आर्थिक पहलुओं और यदि इन सब का कोई राजनीतिक अंतरसम्बन्ध है,तो उसका भी. घटना में मारे गए लोग जाति से राजपूत,लेकिन पेशे से मछुवारे है. यदि वह परिवार जो जाति से राजपूत है और जिनमें से एक सीमा सुरक्षा बल का जवान है, जब अपनी मछलियों की रक्षा नहीं कर सकते, तब अन्य गरीब पारम्परिक मल्लाह -मछुवारों के साथ क्या होता होगा, अनुमान किया जा सकता है. यह तो निश्चित है कि मृतकों ने प्रतिरोध -प्रोटेस्ट किया, तभी उनकी हत्या हुई. हम उनके प्रतिरोध को सलाम करना चाहेंगे. उनकी शहादत बिहार सरकार के लिए डूब मरने की बात होनी चाहिए.
बिहार सरकार को नरसंहार के अपराधियों को जल्दी से जल्दी सजा दिलाने की व्यवस्था तो करनी ही चाहिए, पूरे बिहार में इस तरह के मामलों को एक दफा मुआइना करवाना चाहिए, जिससे दूसरी कोई घटना नहीं हो. इसके साथ ही हर समय जाति का रोटी-पराठा पकाने वाले लोगों से गुजारिश होगी कि वे अपने आसपास ऐसी कोई घटना नहीं होने दें. सामाजिक सौहार्द हर हाल में जरुरी है.
*प्रेम कुमार मणि वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। सत्तर के दशक में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य रहे। मनुस्मृति पर लिखी इनकी किताब बहुत प्रसिद्ध है। कई पुरस्कारों से सम्मानित हैं। बिहार विधान परिषद में मनोनीत सदस्य रहे हैं।