पहला पन्ना: के.वी.छात्रों से ‘थैंक यू मोदी’ हैशटैग चलवाने के निर्देश पर सन्नाटा!

मुख्य खबरों या सरकार विरोधी खबरों से ध्यान हटाने के लिए सरकार मीडिया को पर्याप्त मसाला देती रहती है और मीडिया अपनी तरफ से मामले नहीं उठाता है यह अब कोई नई बात नहीं है। हाल के इसके उदाहरणों में ट्वीटर से पंगा, सीबीएसई की परीक्षा नहीं होने की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा करना, मेहुल चोकसी को लाने के लिए जेट भेज दिया जाना और उसके खाली वापस आने को भी ईवेंट बना देना जैसे कई मामले हैं जिससे जो खबरें सामने आनी चाहिए वो नहीं आ रही हैं। 12वीं की परीक्षा नहीं होने की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा किए जाने से ही साफ था कि सरकार इसका राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। इसके बाद सरकार (असल में प्रधानमंत्री) के समर्थन में ट्वीटर पर खूब माहौल बनाया गया। असली खबर यह है कि शिक्षा मंत्रालय इस मामले को प्रचार देने में लगा था। इससे संबंधित व्हाट्सऐप्प की खबरों का यह स्क्रीनशॉट मेरे पास भी कोई दिनों से है पर खबर कहीं नहीं छपी। आज यह खबर द टेलीग्राफ में है। 

खबर के अनुसार केंद्रीय विद्यालय संगठन के अधिकारियों ने कम से कम दो क्षेत्रों में अपने स्कूलों से कहा है कि कक्षा 12 के बच्चों से वीडियो संदेश ट्वीट करने के लिए कहा जाए जिसमें वे हैशटैग थैंकयू मोदी सर के तहत बोर्ड की परीक्षा रद्द करने के लिए वीडियो संदेश ट्वीट करें। अखबार ने लिखा है कि कई प्रचार्यों और शिक्षकों ने यह बात कही है। शिक्षाविदों का मानना है कि इस तरह के कदम से स्कूलों और शिक्षकों का सम्मान कम होगा कि उन्हें किसी का आदेश आगे पहुंचाना पड़ रहा है और राजनीतिक प्रचार के लिए छात्रों या बच्चों का उपयोग किया जा रहा है। अखबार ने लिखा है कि जर्मनी में जब नाजियों का राज था तो प्रचार मंत्रालय ने स्कूलों पर नियंत्रण करने की कोशिश की थी। 

वैसे तो भारत में इस तरह का इशारा अधिकृत तौर पर नहीं आया था पर कई शिक्षकों ने इस बात पर जोर दिया है कि स्कूलों के पास आदेश को मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अखबार ने यह भी लिखा है कि केंद्रीय विद्यालय संगठन के अधिकारी ने कहा कि शिक्षा मंत्रालय ने अनधिकृत रूप से स्कूलों से कहा था कि वे छात्रों को ऐसे ट्वीट करने के लिए प्रेरित करे। अखबार ने लिखा है कि इस संबंध में संबंधित अधिकारियों को भेजे गए मेल का कोई जवाब नहीं आया। फोन पर भी जवाब नहीं मिला। दूसरी ओर, बैंगलोर के एक शिक्षक ने कहा कि न सिर्फ छात्रों के व्हाट्सऐप्प समूह में संदेश भेजे गए बल्कि बच्चों को फोन करके भी कहा गया। आमतौर पर अखबारों में ऐसी खबरें नहीं छपती हैं और मेहुल चोकसी को लाने के लिए जेट भेजा गया जैसी खबरों से सरकार का प्रचार किया जाता है।   

 

जीएसटी वसूली का प्रचार 

इधर कई महीने से जीएसटी वसूली बढ़ी का प्रचार किया जा रहा है और हर महीने की वसूली की खबर पहले पन्ने पर छपती रही है। जब सरकार को मरने वालों से भी जीएसटी वसूलना है और कहीं भी राहत नहीं देना है तो यह प्रचार जरूरी है। आप जानते हैं कि भिन्न कारणों और उपायों से छोटे कारोबार बंद हो रहे हैं और जो कारोबारी बिना टैक्स सामान बेचते थे वो अब लगभग नहीं रहे। लॉक डाउन में तो वैसे ही बंद हैं। ऐसे में वसूली बढ़ना कोशिश करके बढ़ाना है क्योंकि अब दूध और सब्जियों पर भी टैक्स लग रहा है। इसके बावजूद वसूली बढ़े तो खबर भी है। लेकिन आज सभी अखबारों में खबर है कि मई में जीएसटी वसूली कम हुई। दूसरी ओर, इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है, “लगातार आठ महीने जीएसटी वसूली एक लाख करोड़ से ऊपर हुई”। खबर यह है कि अप्रैल की बिक्री पर यह 1.41 लाख करोड़ रुपए था जो मई में कम होकर 1.02 लाख करोड़ रह गया है। लगभग सभी अखबारों में यही शीर्षक है लेकिन राजा का बाजा बजाना हो तो रास्ते ढूंढ़ने पड़ते हैं।

 

सोशल मीडिया को कसने की कोशिशें 

कॉरपोरेट या गोदी मीडिया में नहीं के बराबर है। आज भी हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर खबर है, “नए नियम दुरुपयोग रोकने के लिए : प्रसाद।” लेकिन मुद्दा है कि दुरुपयोग कर कौन रहा है और सरकार क्यों चिन्तित है और सरकार को चिन्ता है तो दुरुपयोग करने वालों को वह क्यों नहीं रोक रही है जो मीडिया (या ट्वीटर से) कह रही है कि फलाने को रोका जाए या फलाने ट्वीट पर से फलां टैग हटाया जाए। हाल में खबर थी कि सरकार ने एक कार्टूनिस्ट को रोकने के लिए लिखा है। आप समझ सकते हैं कि कार्टूनिस्ट का कोई कार्टून अगर सरकार विरोधी है या आदतन वह सरकार विरोधी है तो सरकार उसके खिलाफ कार्रवाई करे। ट्वीटर ऐसा कोई कार्टून प्रकाशित करता है तो उसके खिलाफ भी करे (जैसा अखबारों के मामले में होता है) पर सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है और ट्वीटर से कहा जा रहा है कि वह उसे बैन कर दे। यह कैसा कानून है?

 

हिन्दी या अंग्रेजी में बात करने की मजबूरी

द हिन्दू में आज पहले पन्ने पर खबर है कि दिल्ली के सरकारी अस्पताल में बाकायदा आदेश निकालकर कहा गया है कि वहां की नर्सें आपस में हिन्दी या अंग्रेजी में ही बात करें अपनी मातृभाषा मलयालम में बात नहीं कर सकती हैं। यह अंधेर नगरी चौपट राजा का बढ़ाया उदाहरण है पर किसी और अखबार में नहीं छपी है। कहने की जरूरत नहीं है कि दिल्ली में नौकरी करने वाली ये नर्सें मरीजों और मलयालम नहीं जानने वालों से अंग्रेजी-हिन्दी में ही बातें करती होंगी पर आपस में मलयालम में बात करें तो किसी को क्यों एतराज हो सकता है और हो भी तो सरकार को क्यों हो जिसने सब जानते हुए उन्हें नौकरी पर रखा है। 

 

अमरिन्दर सिंह और योगी आदित्यनाथ में अंतर 

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह दिल्ली आए तो कल द हिन्दू में खबर लीड थी। हालांकि उन्होंने यह कहा था कि पार्टी का आंतरिक मामला है। और भी अखबारों में खबर पहले पन्ने पर थी। लेकिन कल सोशल मीडिया पर चर्चा रही कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जन्म दिन था और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह ने उन्हें ट्वीटर पर (या सार्वजनिक रूप से) बधाई नहीं दी जबकि पहले ऐसा करते रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग इसमें राजनीति तलाश रहे थे। कांग्रेस का अंदरूनी मामला लीड बन सकता है लेकिन भाजपाइयों से जुड़ा या मामला आज खबर नहीं है। 

एक तरफ तो ऐसे अजीबोगरीब आदेश की खबर नहीं छपती है और दूसरी ओर मेहुल चोकसी के मामले में बहुत सारे सवालों के जवाब नहीं हैं। उदाहरण के लिए उसे लाने के लिए भेजे गए जेट का खर्चा किसने कैसे कितना चुकाया। और किसे क्यों कैसे लगा था कि डोमिनिका की अदालत उसे भारत भेज देगी और भारतीय अदालतों की तरह वहां अगली तारीख नहीं पड़ेगी।

 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध आलोचक हैं।

 

First Published on:
Exit mobile version