प्रकाश के रे
जेरूसलम में पहली बार ऐसा हो रहा है जब मेयर के चुनाव के लिए 13 नवंबर को दुबारा मतदान की नौबत आयी है. नियमों के मुताबिक विजयी उम्मीदवार को कम-से-कम 40 फ़ीसदी वोट मिलने चाहिए, लेकिन पहले चरण के मतदान में ऐसा नहीं हो पाने की वज़ह से पहले दो स्थानों पर रहे उम्मीदवार मंगलवार को फिर से मतदाताओं का सामना करेंगे. इस महीने के पहले हफ़्ते में हुए चुनाव में हालाँकि एक फ़िलीस्तीनी पैनल मैदान में था, पर शहर की नगरपालिका परिषद में उसे एक भी सीट नहीं मिली है. यह स्वाभाविक ही था क्योंकि दशकों से पूर्वी जेरूसलम के बाशिंदे इन चुनावों का बहिष्कार करते आये हैं. लगभग ढाई लाख मतों में से इस पैनल को तीन हज़ार वोट ही मिल सके.
इसी बीच इज़रायल ने पूर्वी जेरूसलम में 792 नए घर बनाने की अनुमति देते हुए इस इलाक़े में यहूदियों को बसाने की अपनी नीति को और आगे बढ़ा दिया है. साल 1967 में वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरूसलम पर क़ब्ज़ा करने के बाद से बनी सौ से अधिक बस्तियों में क़रीब साढ़े छह लाख यहूदी बसाये जा चुके हैं. कुल मिलाकर, इस पवित्र शहर में फ़िलहाल वही सब चल रहा है, जो हमेशा से होता आया है. लेकिन दो दिलचस्प घटनाओं का उल्लेख करना ज़रूरी है, जो यह इंगित करती हैं कि जेरूसलम में मिथकों और मान्यताओं की कितनी अहमियत है तथा शहर में आपसी भरोसे का संकट कितना गहरा है.
पिछले दिनों यहूदियों के लिए सबसे पवित्र जगह वेस्टर्न वॉल के पत्थरों के बीच एक साँप एक कबूतर को डराता हुआ दिखा था. इस घटना को अनेक हिब्रू वेबसाइटों ने मसीहा के आने की पूर्व सूचना कहा है. उनके लिए साँप शैतान का और कबूतर इज़रायल का प्रतीक है. इस घटना को हाल की कुछ ऐसी घटनाओं से जोड़कर देखा जा रहा है, जिनके आधार पर रब्बाइयों का एक समूह यह कहने लगा है कि टेम्पल माउंट पर तीसरा मंदिर बनाने का वक़्त आ गया है. वेस्टर्न वॉल से पत्थर गिरने की घटनाएँ भी इसी कड़ी में हैं. चार महीने पहले वेस्टर्न वॉल से एक पत्थर गिरा था. उसके बाद टेम्पल माउंट परिसर से धूल का एक बादल उठा था, जो कुछ देर के लिए डोम ऑफ़ रॉक के इर्द-गिर्द रहा था. यहूदियों के पहले मंदिर को बेबिलोनियाई हमले में तबाह कर दिया गया था और दूसरा मंदिर रोमनों के हमले में ख़त्म हुआ था. ऐसी मान्यता है कि तीसरे मंदिर का बनने के बाद मसीहा का आगमन होगा तथा उसके कुछ समय बाद दुनिया ख़त्म हो जाएगी. साँप और कबूतर से पहले लाल बछिया के पैदा होने और मृत सागर में मछलियों के देखे जाने को भी बाइबल की बातों से जोड़कर देखा जा रहा है. ऐसा दो हज़ार साल में पहली बार हुआ है कि लाल बछिया पैदा हुई है.
इन घटनाओं को अंधविश्वास या पौराणिकता कह कर ख़ारिज़ करना आसान है, पर इससे पहले दो बातों का ध्यान ज़रूर रखा जाना चाहिए. जेरूसलम को आप मिथकों और इतिहास के अलग-अलग चश्मे से नहीं देख सकते. इन दोनों को अलग किया भी नहीं जा सकता. पुरातात्विक और लिखित आधारों पर वहाँ मिथकों को इतिहास में तथा इतिहास को मिथकों में बदलने का काम भी अनवरत जारी है. किंग सालोमन का ख़ज़ाना आज तक खोजा जा रहा है. अपने अपने धर्म की महत्ता और उसकी ऐतिहासिकता को स्थापित करने के प्रयास में जेरूसलम की हर गली, गुफा और पत्थर को देखा जाता है. और, जेरूसलम की सबसे बड़ी महत्ता तो यही है कि आख़िरत और क़यामत का मंच यहीं बनना है. बहरहाल, कुछ लोगों ने तो इन सब चीज़ों की शुरुआत का वक़्त भी बता दिया है- 2021.
अभी ज़मीन बेचने का जो विवाद उठा है, वह अदीब जौदेह से जुड़ा हुआ है. फ़िलीस्तीनियों का आरोप है कि
अगला ख़रीदार ख़ालिद अतारी था जो रमल्ला में बैंक
ख़ैर, फिर क्या हुआ कि पिछले
इसी दौरान एक दुखद घटना यह हुई है कि एक कार दुर्घटना में मारे गये अल्ला किरेश नामक फ़िलीस्तीनी को दफ़न करने से पूर्वी जेरूसलम के हर क़ब्रिस्तान ने मना कर दिया. किरेश पर भी किसी यहूदी को घर बेचने का आरोप था और उसके ख़िलाफ़ भी अल-अक़्सा से फ़तवा दिया गया था. आख़िरकार किरेश को शहर से बिना किसी आयोजन के दफ़न करना पड़ा. कुछ साल पहले एक यहूदी नाटककार और अभिनेता जुलियानो मेर-ख़ामिस को यहूदियों ने दफ़न करने से मना कर दिया था, तो उन्हें अपने घर में अपनी माँ की क़ब्र के पास दफ़न किया गया था. उनकी माँ के साथ भी यहूदियों का बर्ताव ऐसा ही था. इन माँ-बेटे पर इज़रायल के ख़िलाफ़ फ़िलीस्तीनियों के साथ खड़ा होने का आरोप था.
विडंबना देखिये, जुलियानो को इज़रायल के द्वारा दख़ल शहर जेनिन में फ़िलीस्तीनी आतंकवादि
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