चुनाव चर्चा: ‘मोदी है तो मुमकिन है’, चुनाव भी!

इंडिया टुडे के 21 जनवरी 2021 के ‘मूड ओफ द नेशन’  सर्वे को जारी कर मोदी जी के ‘सब चंगा सी’ जुमले की तर्ज़ पर दावा किया गया कि भारत के 73% लोग कोविड-19 महामारी और अन्य मसलों पर उनकी सरकार के कामकाज से संतुष्ट हैं. सवाल है कि ये सर्वे कराने की जरुरत क्यो पड़ी? जाहिर है ये मोदी सरकार के इशारे पर प्रोपेगैंडा के लिये किया गया. प्रोपेगैंडा मोदी सरकार का ऑक्सीजन है.

‘इंडिया दैट इज भारत’  के बरस 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिये कुछ भी अकल्पनीय नहीं है.वह खुद ही ऐलानिया ये जुमला कहते रहे हैं कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’..हमलोग ये भी जानते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी जी हर हमेशा ‘ चुनाव मोड’ में होते हैं. उन्हे चुनावी रैलियो में धाराप्रवाह भाषण देने में आनंद आता है.उनकी चुनाव लीला अपरम्पार है.मोदी जी की चुनावी लीला की सानी दुनिया के चुनाव इतिहास में नहीं मिलती है. मोदी जी तानाशाह हैं या नहीं, इस पर दो राय हो सकती है. पर ये आंकलन लगभग निर्विवाद है कि वह प्राचीन काल से उत्तर आधुनिक काल तक के इतिहास में हुए सभी तानाशाहो से ज्यादा मह्त्वाकांक्षी और चतुर भी हैं.

मोदी जी को जर्मनी के मारे गये तानाशाह अडोल्फ़ हिटलर  की तरह सैन्यशक्ति का प्रदर्शन करने और अपने राजकाज की खामियों पर पर्दा डालने के लिये भरी सभा में रोने धोने का भी शौक है. लेकिन वह अपने शासन का अंत हिटलर की तरह नहीं चाहते हैं. उनकी जागृत इच्छा है कि इतिहास दुनिया में सर्वाधिक आधी सदी से कुछ ज्यादा तक राज करने वाले स्पेन के तानाशाह जनरल फ्रांको से भी ज्यादा शासन करने वाले के रूप में उन्हें याद करे. मगर एक पेंच है. भारत लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था का देश है. देश का संविधान यही  निर्दिष्ट करता है. इसलिए मोदी सरकार जब तक मौजूदा संविधान पलटने की कोशिश में कामयाब नहीं हो जाती है उसे चुनाव कराने ही होंगे चाहे वे यथेष्ट स्वतंत्र एवम निष्पक्ष न रहें. इसलिए चुनाव पर मोदी जी की नज़र गड़ी रह्ती है. चुनाव के जरिये मोदी जी को अपनी सरकार का प्रोपगैंडा तेज करने का मौका भी मिल जाता है.

तो क्या मोदी जी कोरोना महामारी , तेजी से लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, दिनो-दिन जोर पकडते किसान आंदोलन की चुनौती से एक झट्के में निपटने के लिए पुलवामा टाईप का कोई ड्रामा करवा के या फिर सीधा युद्ध की स्थिति पैदा कर लोकसभा का मध्यावधि चुनाव भी करवा सकते है? इसे कयास कह कर खारिज करने वालो से फिर से यही निवेदन किया जा सकता है कि मोदी जी के लिये कुछ भी अकल्पनीय नहीं है. वे चतुर शासक के रूप में हर बुरी-अच्छी सम्भावना टटोलते रहते है. इस संदर्भ में मोदी सरकार की सराहना में इंडिया टुडे का जनवरी 2021 में किया गया एक सर्वे गौरतलब है जिस का ब्योरा हम इस लेख में आगे देंगे. पहले मोदी जी के  ‘चुनाव प्रेम’ की चर्चा कर लें तो बेहतर रहेगा. 

 

जेम्स माईकल लिंगदोह

मोदी जी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में ‘गोधरा दंगे’ के तुरंत बाद विधानसभा भंग कर नया चुनाव कराने का प्रशासकीय कदम उठाया तो इसे स्वतंत्र एव निष्पक्ष चुनाव के लिये सही नहीं मान कर तत्कालीन मुख्य निर्वाचन आयुक्त जेम्स माईकल लिंगदोह ने अस्वीकार कर दिया था. मोदी जी की गुजरात राज्य सरकार ने इसे भारत के सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने इसे नामंजूर कर निर्वाचन आयोग के निर्णय को भारत के संविधान के प्रावधानों के अनुरूप माना जिसके तहत आयोग को स्वतंत्र एवम निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने के लिये हिंसा और अशांति के माहौल में चुनाव नहीं कराने का भी संवैधानिक अधिकार है. 

मोदीजी ने तब गुजरात की एक जनसभा में खूब ललकारा था कि लिंगदोह, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की तरह इसाई हैं इसलिये वह हिंदुत्व का आवेग रोकने के लिए राज्य में नया चुनाव नहीं होने देना चाहते हैं. लिंगदोह जी ने कहा था कि जो नहीं जानते कि वह नास्तिक हैं उनको कोई जवाब क्यो दें. मोदी जी को इस असत्य कटाक्ष के लिये तत्कालीन प्रधानमंत्री (अब दिवंगत) अटल बिहारी वाजपेयी के निर्देश पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी थी. 

बाद में लिंगदोह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मोदी जी बहुत ही ज्यादा महत्वाकांक्षी है. उनकी भविष्यवाणी मोदी जी के प्रधानमंत्री बन जाने पर सच साबित हुई.  इस संदर्भ मे अटल जी की खुली नसीहत भी गौरतलब है जो उन्होंने मोदी जी को राजधर्म पालन करने के लिए दी थी।

 

अहम ब्रम्हास्मि

बहरहाल ये बात विगत की है. मौजूदा तथ्य ये है कि मोदी जी का राज 2014 से लगातार कायम है. उन्होने *अहम ब्रम्हास्मि* के भाव में हाल में अपनी दाढी बढाकर भगवान ब्रम्हा की तरह कर ली है. उन्होने कहा नही है. पर मंतव्य स्पष्ट है. मोदी जी कही बात ब्रह्म वाक्य है. उन्होने भारत के भाग्य में जो लिख दिया है वही होगा. 

कोरोना कोविड 19 महामारी की चौतरफा मार के बीच 2021 का श्रीगणेश होते ही मोदी जी के अंदर के चतुर शासक ने हिसाब किताब जोड़ लिया कि इस बरस बहुत चुनाव होने हैं. जम्मू कश्मीर में अर्से से लम्बित चुनाव के अलावा असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल  ही नहीं उत्तर प्रदेश जैसे अहम राज्य और केंद्र शासित प्रदेश पुड्डुचेरी में भी चुनाव होना है. हरियाणा और मध्यप्रदेश विधानसभा के मध्यावधि  चुनाव कराने की नौबत आ सकती है, जहाँ मोदी जी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेत़ृत्व वाली सरकार को विधायकों का बहुमत समर्थन संदेह के घेरे में आता जा रहा है. बिहार में जनता दल यूनाईटेड के नीतीश कुमार के मुख्यमंत्रित्व में भाजपा और कुछ छोटे दलो की नवम्बर 2020 में बनी नई गठधन सरकार का भी भविष्य संदिग्ध है क्योंकि उसे हासिल बहुमत दहाई संख्या से कम ही है. 

 

इंडिया टुडे का कथित ‘मूड ओफ द नेशन‘ सर्वे

इंडिया टुडे के 21 जनवरी 2021 के ‘मूड ओफ द नेशन’  सर्वे को जारी कर मोदी जी के ‘सब चंगा सी’ जुमले की तर्ज़ पर दावा किया गया कि भारत के 73% लोग कोविड-19 महामारी और अन्य मसलों पर उनकी सरकार के कामकाज से संतुष्ट हैं. सर्वे में भारत के उन लाखो बिदेसिया मजदूरो में से शायद ही किसी का समावेश था जो अचानक बिना किसी तैयरी के 25 मार्च 2020 को रात आठ बजे मोदी जी के लॉकडाउन घोषित कर देने पर रोजगार ही नहीं बल्कि ठौर-ठिकाना से भी वंचित हो सडक पर आ गये थे. जिनमें से अनेक की घर वापसी के रास्ते में कई दिन पैदल चलते-चलते मौत हो गई. सर्वे में देश के 135 करोड लोगों में से सिर्फ 8400 लोगो को शामिल कर उनके इंटर्व्यू को अलग-अलग टुकड़ों में जोड़-घटा कर 12232 दरशा दिया गया था. सवाल है कि ये सर्वे कराने की जरुरत क्यो पड़ी? जाहिर है ये मोदी सरकार के इशारे पर प्रोपेगैंडा के लिये किया गया. प्रोपेगैंडा मोदी सरकार का ऑक्सीजन है. 

अमेरिका की मोर्निंग कंसल्ट फर्म और कर्वी इनसाइट्स के सहयोग से किये गये इस सर्वे के मुताबिक मोदी जी के हिंदुत्व एजेंडा के समर्थक और भी बढे है. मोदीजी की  लोकप्रियता विश्व के बड़े नेताओ में सबसे ज्यादा बढी है. 87 फीसद लोग आर्थिक मोर्चे पर उनकी सरकार के प्रदर्शन को सराहते है. ऐसा ही सर्वे पिछले बरस अगस्त में कराया गया था जिसमें 77 फीसद लोग मोदी सरकार से संतुष्ट बताये गये थे. इन सर्वेक्षणों का मकसद ये घोषित करना था कि महामारी, लॉकडाउन और आर्थिक संकट के बावजूद मोदी सरकार के प्रति आमतौर पर और मोदीजी के प्रति खास तौर पर लोगो का समर्थन बरकरार है. सर्वे के मुताबिक ये समर्थन जनवरी 2020 के 54 फीसदी से दो बरस में बढ कर 74 प्रतिशत हो गया. 

बहरहाल हम उन राज्यों की संक्षिप्त चर्चा कर लें जहाँ इस बरस चुनाव पूर्व निर्धारित हैं या कराने की जरुरत पड सकती है. इन में से असम और बंगाल के चुनाव के बारे में हम इस कॉलम के हालिया अंको में भी विस्तार से चर्चा कर चुके हैं और आगे भी करेंगे. 

 

असम 

भारत के संविधान के तहत चुनावों के कार्यक्रम तय करने का अधिकार सरकार के पास नहीं बल्कि निर्वाचन आयोग के हवाले है. मोदी जी ने ‘अहम ब्रम्हास्मि’ भाव में खुद ही मुनादी कर दी कि असम विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम अगले माह के प्रारम्भ में घोषित कर दिये जायेंगे. असम की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल इसी बरस अप्रैल में समाप्त होने वाला है. जाहिर है, नये चुनाव उसके पहले ही कराने होंगे. वहाँ अभी भाजपा और असम गण परिषद (अगप) की गठबंधन सरकार है. भाजपा के सर्बानंदा सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं जो  पहले कांग्रेस में थे.

 

जम्मू-कश्मीर 

इस राज्य में भी 2021 में चुनाव होने हैं. वहाँ अभी राष्ट्रपति शासन लागू है. नागरिक अधिकार लगभग स्थगित हैं.

 

बंगाल 

बंगाल में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा अभी नही हुई है. इसकी पूरी सम्भावना है कि बंगाल के चुनाव भी असम चुनाव के साथ ही करा दिये जायें. वहाँ अभी ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की सरकार है जिस की मुख्यमंत्री पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी हैं. 

 

केरल

केरल में भी इसी बरस चुनाव निर्धारित हैं. वहाँ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के नेतृत्व में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) की सरकार है, इसके मुख्यमंत्री सीपीएम के ही पिनराई विजयन हैं .

 

तमिलनाडु

इस दक्षिणी राज्य में भी इसी बरस के पूर्वार्ध में चुनाव होने हैं. राज्य मे पिछले चुनाव में जीती ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम ( एआईएडीएमके) का शासन है. इसके मुख्यमंत्री एडापडि के पलानीस्वामी हैं. एआईएडीएमके पार्टी , मोदी सरकार का खुला समर्थन करती है। 

 

पुडुचेरी 

‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी कम निकले’ (मिर्ज़ा ग़ालिब) 

भारतीय पुलिस सेवा की 1972  में प्रथम महिला अधिकारी बनी किरण बेदी , प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के  ‘न्यू इंडिया’ में सियासत में घुसने के बहुत पहले जब दिल्ली के तिहाड़ जेल की अधीक्षक बनीं तो उनके कामकाज की सराहना हुई थी. उन्होने इसके पहले बतौर  दिल्ली ट्रैफिक पुलिस उपायुक्त भारत की राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर लावारिस और यत्र-तत्र-सर्वत्र ग़लत तरीके से  पार्क किए या चलाये जाने वाले मोटर  वाहनों को क्रेन से उठवा लेने के काम में बड़ी चुस्ती फुर्ती दिखाई थी. आम लोग उन्हें ‘क्रेन’ बेदी कहने लगे थे.

डॉक्टर मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल में वे कथित भ्रष्टाचार आदि के विरुद्ध भारतीय जनता पार्टी और उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ (आरएसएस ) की शह पर समाजसेवी अन्ना हजारे के आन्दोलन में भारत के इनकम टैक्स विभाग के पूर्व अफसर अरविन्द  केजरीवाल, भारत के सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण, भारतीय थल सेना के रिटायर्ड चीफ ऑफ द स्टाफ जनरल वीके सिंह आदि के साथ ही कूद पड़ीं.

मोदीजी ने 2014 का लोक सभा चुनाव जीत, केंद्र में अपनी पहली सरकार बना लेने के बाद किरण बेदी को भी कृतार्थ किया. मोदीजी उन्हें दिल्ली का ही उपराज्यपाल बना देते तो आसमान नहीं टूट जाता. जो भी कारण हों, किरण जी को  पहले गोआ का और फिर 29 मई 2016 को केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी का  लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त कर दिया गया. उनका मौजूदा कार्यकाल इसी बरस 21 मई को समाप्त होना था. 

सवाल है ऐसा क्या हो गया जो मोदी सरकार तब तक इंतजार नहीं कर सकती थी ? बर्खास्तगी के मायने इस सवाल में छिपे हुए हैं. भारत में ब्रिटिश राज में गवर्नर को लाट साहिब और लेफ्टिनेंट गवर्नर को छोटा लाट साहिब भी कहते थे.

16 फरवरी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षरित आदेश पर किरण जी को पुडुचेरी के  उपराज्यपाल पद से  बर्खास्त कर दिया गया.  मोदी सरकार ने मुख्यमंत्री नारायणसामी द्वारा 10 फरवरी 2021 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपे ज्ञापन का संज्ञान ले लिया. ज्ञापन में किरण बेदी को पुडुचेरी की उपराज्यपाल पद से तत्काल हटाने का निवेदन किया गया था. ज्ञापन में कुछ संगीन आरोप भी शामिल बताए गये. एक ये भी आरोप था कि किरण जी उपराज्यपाल निवास में ‘दरबार’ चलाती हैं. मोदी सरकार ने छोटी लाट साहिबा के पद से ही हटा दिया. तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सौंदरराजन को पुडुचेरी के उपराज्यपाल पद का भी  अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया गया.

पुडुचेरी में मंगलवार को ही सियासी संकट उत्पन्न हो गया. विधान सभा के एक और कांग्रेस सदस्य ए जॉन कुमार के इस्तीफा से वहाँ कांग्रेस के वी नारयणसामी की गठबंधन सरकार ने सदन में बहुमत खो दिया। माह भर में  विधान सभा की सदस्यता से इस्तीफा देने वाले वह चौथे विधायक हैं. कुल 33  सदस्यों की विधान सभा में  कांग्रेस गठबंधन के स्पीकर समेत 14 विधायक ही रह गए.  कांग्रेस की सहयोगी पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के तीन विधायक हैं.ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस’ के सात, अन्नाद्रमुक के चार और भाजपा के तीन विधायक हैं. शेष निर्दलीय और मनोनीत विधयक हैं.

मुख्यमंत्री नारायणसामी ने विधानसभा में अपनी सरकार को बहुमत होने का दावा किया. नई उपराज्यपाल ने उन्हे विधान सभा में बहुमत साबित करने कहा. बहुमत साबित करने में असफल रहे मुख्यमंत्री नारायणसामी ने इस्तीफा दे दिया.  पुडुचेरी विधान सभा का मौजूदा कार्यकाल 21 जून को खतम होना है. जाहिर है अब अगले कुछ माह में नई विधान सभा के लिए नए चुनाव कराने होंगे.

कुल मिला कर देखा जाये तो इस बरस के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में भी चुनाव ही चुनाव हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार में पंचायत चुनाव भी अगले कुछ सप्ताह में होने वाले हैं. राज्यसभा की कुछ सीटो पर द्विवार्षिक चुनाव तथा लोकसभा और विभिन्न विधानसभा की रिक्त सीटो पर उप चुनाव के अलावा स्थानीय निकयों के भी ढेर चुनाव हैं. ऐसे में मोदी जी को कुछ तो करना ही होगा, क्योंकि भाजपा के चुनावी तारणहार एकमेव रूप से मोदी जी है. वे क्या करेंगे. लाज़िम है, ‘हम देखेंगे।’

 

*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं। 

 

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