अख़बारनामा: चार दिन बाद छपा गवर्नर मलिक का बयान तो शीर्षकों में उलटबाँसी- फँस गए, सब बता दिया!

संजय कुमार सिंह


ग्वालियर के आईटीएम यूनिवर्सिटी में पिछले शनिवार यानी 24 नवंबर को जम्मू व कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जो कहा वह आज बुधवार यानी 28 नवंबर के कई अखबारों में पहले पन्ने पर है। शनिवार को क्यों नहीं छपा यह अलग मुद्दा है। वह भी शायद बाद में मालूम हो। पर फिलहाल तो आज का मुद्दा। राज्यपाल ने जो कहा उसके लिए नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) ने राज्यपाल की तारीफ की है। इंडियन एक्सप्रेस, अमर उजाला और राजस्थान पत्रिका ने इस खबर को लीड बनाया है। एक्सप्रेस का शीर्षक है, “जम्मू और कश्मीर में केंद्र क्या चाहता : मलिक ने इसे जान जाने दिया”। उपशीर्षक है, “अगर मैंने दिल्ली से उम्मीद की होती तो (सजाद) लोन की सरकार बनवानी पड़ती …. इतिहास में मैं एक गैर ईमानदार व्यक्ति के रूप में दर्ज हो जाता”। लोन पीपुल्स कांफ्रेंस के प्रमुख हैं और भाजपा का समर्थन करते रहे हैं।

खबरों के मुताबिक, राज्यपाल ने कहा था, “… लिहाजा मैंने मामले को ही खत्म कर दिया। जो गाली देंगे, देंगे लेकिन मैं कनविनस्ड हूं कि मैंने ठीक काम किया है।” लोन ने इस पर नाराजगी जताई है और इसे “चरित्र हनन” कहा है। दूसरी, ओर दिल्ली की ओर नहीं देखने के लिए महबूबा मुफ्ती और उमर अबदुल्ला ने मलिक को बधाई दी है। एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, अब्दुल्ला ने ट्वीटर पर यह भी लिखा है, “…. हमलोगों ने भी कभी नहीं सुना कि राजनीतिक तौर पर नियुक्त कोई राज्यपाल केंद्र की इच्छा के खिलाफ कार्रवाई करे।” महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया है, “फैक्स की गड़बड़ी वाले मामले को छोड़कर यह जानकर अच्छा लगा कि गवर्नर साब ने केंद्र के आदेश का इंतजार नहीं किया और विधानसभा भंग करने के विकल्प का चुनाव किया। राज्य में लोकतंत्र की जो कहानी है उसके मद्देनजर यह बेजोड़ हो सकता है।” हालांकि, राज्यपाल ने कहा है कि सोशल मीडिया पर सरकार नहीं बनती (दैनिक हिन्दुस्तान)।

विधान सभा भंग करने के बारे में राज्यपाल ने कहा है, “मैंने दिल्ली में किसी से बात नहीं की। वहां से कोई हस्तक्षेप नहीं था। मैंने जो कहा उसका मतलब यह था कि अगर मैंने दिल्ली के हस्तक्षेप का इंतजार किया या चाहा होता तो मुझे लोन से सरकार बनाने के लिए कहना पड़ता क्योंकि वे भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने का दावा कर रहे थे। इसलिए स्वाभाविक तौर पर मैंने उनसे कहा होता।” उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि राज्य में तोड़फोड़ या दबाव में कोई सरकार नहीं बननी चाहिए। राज्यपाल ने यह भी कहा, दोनों (उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती) ने कहा है कि वे यही (विधान सभा भंग कराना) चाहते थे तो समस्या कहां है?

टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पेज पर चार कॉलम में है। शीर्षक का अनुवाद इस तरह होगा, “अगर मैंने दिल्ली से राय की होती तो मुमकिन है मुझे लोन को मुख्यमंत्री बनाना पड़ता”। इससे यह भी स्पष्ट है कि विधानसभा भंग करने में केंद्र का दखल नहीं था और निर्णय राज्यपाल का अपना था। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पेज पर नहीं है। कोलकाता के अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ में यह खबर पहले पेज पर तीन कॉलम में है। शीर्षक है, “गवरनर स्पिल्स बीन्स”। मतलब राज्यपाल ने सब कुछ साफ-साफ बता दिया। अपनी खबर में अखबार ने बताया है कि दो विधायक वाली पार्टी के नेता (लोन) को सरकार बनाने के लिए बुलाने का मतलब होता 26 भाजपा विधायकों के समर्थन वाले को प्रतिद्वंद्वी तीन पार्टी के समूह के मुकाबले प्राथमिकता देना जिसके पास 87 सदस्यों की विधानसभा में 56 लोगों का समर्थन था। अखबार ने लिखा है कि राज्यपाल ने सीएनएन-न्यूज 18 से कहा, “मैंने क्या गलत किया है?”।

अमर उजाला में यह खबर लीड है। शीर्षक है, “दिल्ली की तरफ देखता तो लोन को सीएम बनाना पड़ता”। उपशीर्षक है, “विधानसभा भंग करने पर जम्मू कश्मीर के राज्यपाल की सफाई : मैं इतिहास में बेईमान के तौर पर दर्ज होना नहीं चाहता …. विवाद बढ़ा तो पलटे, बोले – दिल्ली ने कभी हस्तक्षेप नहीं किया”। अखबार ने मिलकर सरकार बनाने का दावा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्रियों ने की राज्यपाल की प्रशंसा शीर्षक से दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों का बयान भी मुख्य खबर के साथ प्रमुखता से छापा है। जानिए कौन हैं सज्जाद लोन भी है और राज्यपाल का यू टर्न भी। इसमें अखबार ने कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का बयान छापा है कि मलिक ने दिल्ली के इशारे पर ही विधानसभा भंग की। इसके गंभीर परिणाम होंगे राज्यपाल भी भाजपा नेताओं से यू-टर्न लेने की प्रेरणा ले रहे हैं।

राजस्थान पत्रिका ने इस खबर को लीड बनाया है – सच या सियासत। फ्लैग शीर्षक है, “राज्यपाल मलिक के बयान से फिर गर्माई राजनीति”। मुख्य शीर्षक है, “केंद्र की सुनता तो लोन होते जम्मू कश्मीर के सीएम, मैं होता बेईमान”। दैनिक भास्कर में यह खबर पहले पेज पर दो कॉलम में है। नवोदय टाइम्स में यह खबर पहले पेज पर साढ़े तीन कॉलम में बॉटम है। इसके साथ राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री कविन्द्र गुप्ता का बयान है कि राज्यपाल सुर्खियों में बने रहने के लिए ऐसा बयान दे रहे हैं। नवभारत टाइम्स में यह खबर पहले पेज पर दो कॉलम में है। दैनिक हिन्दुस्तान में यह खबर खबरों के पहले पेज पर दो कॉलम में है। शीर्षक है, “राज्यपाल सत्यपाल मलिक विवादित बयान देकर फंसे”। अखबार ने राज्यपाल का पक्ष एक अलग खबर में दिया है जो अंदर के पेज पर है। दैनिक जागरण में यह खबर खबरों के पहले पेज पर चार कॉलम में है, शीर्षक है, “दिल्ली की सुनता तो लोन-कश्मीर के सीएम होते।”

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 



 

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