इससे 43 साल पहले अमरीका के छोटे से शहर फ़ुलटन में शीतयुद्ध की घोषणा करते हुए अपने ऐतिहासिक भाषण में चुनाव में ताज़ा-ताज़ा हारे हुए ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा था: बाल्टिक तट पर श्टेटिन से लेकर ऐड्रियाटिक तट पर ट्रीएस्टे तक समूचे महाद्वीप पर लोहे का एक पर्दा उतर आया है.
लौह यवनिका या आयरन कर्टेन से चर्चिल का आशय यह था कि इसके पूरब में पश्चिम से अलग एक कम्युनिस्ट प्रणाली स्थापित की गई है, जो पश्चिम की सभ्य दुनिया के लिये एक चुनौती है. उस समय सामान्य नागरिक इस सीमा के आर-पार यात्रा कर सकते थे. बाद में ऐसी यात्रा मुश्किल हो गई. युगोस्लाविया कम्युनिस्ट सुरक्षा प्रणाली से बाहर जा चुका था. उसके नागरिकों को पश्चिम की यात्रा की सुविधा थी. पोलैंड और हंगरी के नागरिक भी यात्रा कर सकते थे. 1968 के बाद चेकोस्लोवाक नागरिकों की यह स्वतंत्रता छिन चुकी थी.
पूर्वी जर्मनी के नागरिक 1961 तक बेरोकटोक पश्चिम की यात्रा करते थे. इसका फ़ायदा उठाते हुए पूरब में अपना प्रशिक्षण समाप्त करने के बाद बहुतेरे नागरिक पश्चिम चले जा रहे थे. प्रशिक्षित लोगों को पश्चिम में बेहतर वेतन मिलता था. ख़ासकर पूर्वी जर्मनी के बीचोबीच बर्लिन का पश्चिमी हिस्सा देश छोड़ने का आसान मौक़ा देता था. इसे रोकने के लिये 13 अगस्त, 1961 को पश्चिम बर्लिन के इर्दगिर्द कांटेतार का बेड़ा लगाते हुए शहर के दोनों हिस्सों के बीच की सीमा बंद कर दी गई. बाद में बेड़े के बदले ऊंची दीवार बना दी गई. दोनों जर्मन राज्यों के बीच की सीमा भी सील कर दी गई. यह थी बर्लिन दीवार की कहानी. पूर्वी जर्मन नागरिकों के लिये इस दीवार के आरपार यात्रा बेहद मुश्किल हो गई. सारी आबादी एक दीवार के अंदर जकड़ गई. सिर्फ़ पेंशनयाफ़्ता लोगों को यात्रा की अनुमति आसानी से मिल जाती थी. मूलतः आर्थिक कारणों से बनी दीवार अब एक राजनीतिक व वैचारिक दीवार बन चुकी थी, जिसकी वजह से समाजवादी पूरब का मानवतावादी दावा पूरी तरह से खोखला सिद्ध होता था.
पूर्वी जर्मन नागरिकों को पूरब के समाजवादी पड़ोसी देशों की यात्रा की छूट मिलती रही, हालांकि 1980 के बाद पोलैंड की यात्रा के लिये कड़े नियम बना दिये गये थे. चेकोस्लोवाकिया और हंगरी पूर्वी जर्मन सैलानियों के प्रिय लक्ष्य हुआ करते थे. सबसे बड़ी बात यह थी कि इन देशों की पश्चिमी देशों से लगी सीमाएं बंद थीं, उन्हें पार करते हुए पश्चिम में भागना संभव नहीं था.
सच पूछिये तो उस समय इस घटना के ऐतिहासिक महत्व का कोई अंदाज़ा मुझे नहीं था. मुझे तो दो-तीन दिन पहले यह ख़बर मिली, जब पश्चिम जर्मन टीवी कार्यक्रमों में इसकी चर्चा होने लगी. लेकिन पूरब के अनेक युवा-युवतियों को पहले से इसका पता था, वे छुट्टी मनाने के बहाने हंगरी पहुंच गये थे, और जब औपचारिक रूप से बेड़ा काटकर सीमा खोली गई, सैकड़ों युवा एक-दूसरे को धकियाते हुए ऑस्ट्रियाई सीमा के अंदर घुस गये. अब उनके लिये एक दूसरा जीवन इंतज़ार कर रहा था, अब तक के समाजवादी अनुभव की जिसमें कोई भूमिका नहीं होनी थी. नहीं होनी थी?
एक नासूर की तरह समाजवाद उनके ज़ेहन में रह गया था, आने वाले वर्षों में बार-बार जिसका पता चलना था.
हंगरी वारसॉ संधि का सदस्य देश था. पूर्वी जर्मन सरकार ने तुरंत क़दम उठाये और दोनों देशों ने नागरिकों के लिये वीसामुक्त यात्रा की सुविधा बंद कर दी. हंगरी जाने के लिये देश छोड़ चुके दसियों हज़ार नागरिक चेकोस्लोवाकिया में अटक गये. कई हज़ार नागरिकों ने प्राग में पश्चिम जर्मन दूतावास में शरण ली. एक भयानक राजनयिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई, जिसमें पूर्वी जर्मनी, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया के अलावा अब पश्चिम जर्मनी भी शामिल हो गया था.
वृद्ध हो चुके पूर्वी जर्मन नेता एरिष होनेकर बीमार थे. इस वजह से पूर्वी जर्मन नेतृत्व भी अनिर्णय की स्थिति में था. बहरहाल, पर्दे के पीछे दोनों जर्मन राज्यों के बीच गहन व जटिल बातचीत के बाद तय हुआ कि प्राग के पश्चिम जर्मन दूतावास में अवैध रूप से ठहरे पूर्वी जर्मनों को पश्चिम जाने की अनुमति दी जाएगी, लेकिन उन्हें ट्रेन से पूर्वी जर्मनी होकर जाना पड़ेगा. यह शर्त क्यों जोड़ी गई, यह किसी की समझ में नहीं आया.
इस बीच लाइपज़िग नगर में हर सोमवार को मोमबत्ती हाथ में लेकर नागरिकों का प्रदर्शन जारी था. उनके नारे थे Wir sind das Volk (जनता हम हैं), Keine Gewalt (कोई हिंसा नहीं) और एक हिस्सा नारा लगा रहा था Wir wollen raus (हम निकलना चाहते हैं). जल्द ही यह नारा बदलकर होने वाला था: Wir bleiben hier (हम यहीं रहेंगे).
मैं पत्नी के साथ एक हफ़्ते के लिये पश्चिम जर्मनी में श्टुटगार्ट में गया हुआ था. वहीं शाम को अचानक टीवी पर ख़बर आई: स्वास्थ्य के कारणों से एरिष होनेकर ने पार्टी व राज्य के सभी पदों से इस्तीफ़ा दे दिया है. नये नेता चुने गये हैं युवा संगठन के पूर्व प्रमुख एगोन क्रेन्त्ज़.
बर्लिन की दीवार बनी हुई थी. लेकिन सभी को पता था कि उसमें दरारें पड़ चुकी हैं. अगर वह हंगरी में टूटी है, तो बर्लिन शहर के बीच भी उसका भविष्य अब अनिश्चित है. सभी को पता था कि जो कुछ है, वह नहीं रहेगा. क्या होगा, कोई नहीं जानता था.
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