चुनाव चर्चा: किसान आंदोलन के ताप से पिघल न जाए खट्टर सरकार!

भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को भौगोलिक रूप से कई तरफ से घेरे हुए हरियाणा में मौजूदा स्थिति में अगर चुनाव हुए तो भाजपा की हालत बहुत पतली होने की प्रबल संभावना है। 2014 में भाजपा ने 47 सीटें जीती थी और उसके तुरंत पहले के चुनाव में चार सीट जीती थी। मौजूदा स्थिति में चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ़ हो जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए।

हरियाणा की करीब दो बरस पुरानी मनोहर लाल खट्टर सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के बनाये तीन कृषि कानून की वापसी की मांग पर जोर देने के लिये दिल्ली बॉर्डर पर कडाके की ठंड में भी पिछले डेढ माह से लामबंद एक लाख से अधिक औरत , मर्द , बूढे और जवान किसानों के समर्थन में उठी जबर्दस्त लहर में घुलट जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये। खट्टर सरकार के घुलटने से इस राज्य में नया चुनाव करा ने की नौबत भी आ सकती है।

दरअसल राज्य की 14 वीं विधान सभा के 2019 में हुए पिछले चुनाव में खट्टर जी और मोदी जी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार के बावजूद उस की खिचड़ी सरकार का गठन ही अचरज की बात थी। इस सरकार का तमाम अंतर्विरोधों के बीच इतने दिन तक टिके रहना और भी ज्यादा आश्चर्यजनक है, हम चुनाव चर्चा के आज के अंक में कुछ भूली बिसरी बातो का भी संक्षिप्त जायजा लेंगे  लेकिन पहले  सियासी हालात को टटोल लेंगे तो बेहतर होगा।

हरियाणा में किसानों के प्रतिरोध के कारण कोई भाजपा नेता जन सभा करने में असमर्थ है। खुद मुख्यमंत्री खट्टर सार्वजानिक सभा नहीं कर पा रहे हैं। करनाल में किसानों के प्रतिरोध के बीच पुलिस के आंसू गैस के गोले दागने आदि के हस्तक्षेप के बाबजूद खट्टर जी की सभा नहीं हो सकी। करनाल के कैमला में मुख्यमंत्री ‘ किसान महापंचायत ‘ टांय-टांय फिस्स हो गई। मुख्यमंत्री का हेलीकॉप्टर कैमला नहीं उतर सका ।

 

विपक्ष

हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता रह चुके इंडियन नैशनल लोकदल (इनेलो ) के प्रधान महासचिव और अभी सदन में उसके एकमात्र विधायक अभय सिंह चौटाला ने किसानों की मांग के समर्थन में सदन से सशर्त इस्तीफा दे दिया है।

हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे दिवंगत देवीलाल के पौत्र और ओम प्रकाश चौटाला के पुत्र अभय सिंह चौटाला ने सिरसा में किसानो के बीच पहुंच विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र लिखा. उन्होने वही से इसे ईमेल से विधान सभा अध्यक्ष को भेज भी दिया। चौटाला जी ने पत्र में साफ लिख दिया है कि आगामी गणतंत्र दिवस तक यानि  26 जनवरी 2021 तक कृषि कानून वापस नहीं लिया जाता है तो विधानसभा की सदस्यता से उनका  भेजा यह इस्तीफा 27 जनवरी को स्वीकार कर लिया जाए।

उन्होंने यही बात आंदोलनकारी किसानों के समर्थन में बहादुरगढ़ के जाखौदा बाईपास में जनसभा में कही। उन्होंने वहां प्रेस कांफ्रेंस बुला कर कहा कि वह टीकरी बार्डर पर भी आंदोलनकारी किसानों के बीच जाएंगे और पूरे राज्य में इन कानूनों के खिलाफ ही नहीं मोदी सरकार और खट्टर सरकार , दोनों के किसान विरोधी काम को लेकर गांव-गांव जाकर जागरूकता अभियान चलाएंगे। उन्होंने कहा कि इन कानूनों को बनाने से पहले किसी भी किसान संगठन से विचार विमर्श नहीं किया गया। न ही किसी ने ऐसे कानूनों की मांग की थी। सरकार पूँजीपतियों को लाभ पहुंचने के लिए जीएसटी में तो संशोधन कर देती है लेकिन किसानों की जबरदस्त मांग के बावजूद इन कानूनों को रद्द नहीं किया जा रहा।

उन्होंने कहा कि भीषण ठंड में चल रहे आंदोलन की वजह से अब तक 60 किसान दिवंगत हो चुके हैं। किसान संगठनों के साथ वार्ता के आठ दौर हो चुके, मगर सरकार किसानों की मांग मानने को तैयार नहीं है। इसलिए किसानों की लड़ाई में वह उनके साथ हैं। विधानसभा स्पीकर को भेजे त्याग पत्र में अभय चौटाला ने स्पष्ट किया कि उनके इसी पत्र को इस्तीफा मान लिया जाए। त्याग पत्र पर  अभय चौटाला के हस्ताक्षर के साथ 11 जनवरी की तारीख है। अभय चौटाला राज्य के पहले विधायक हैं जिन्होंने किसानों की मांग के समर्थन में विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है।  इस्तीफा  ‘ समयबद्ध ‘ है पर उसकी सत्यता में कोई संदेह नहीं है.  

 

खट्टर सरकार में शामिल जननायक जनता पार्टी  ( जजपा ) नेता दुष्यंत चौटाला के बारे में अभय चौटाला ने कहा कि वे ताऊ देवीलाल के पोते हैं इसलिए उन्हें औरों से भी पहले किसानों का समर्थन करना चाहिए लेकिन वह सत्ता की लालच में ऐसा नहीं कर रहें।

भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार समर्थकों में देवीलाल परिवार से उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, बिजली मंत्री रणजीत चौटाला और एक बोर्ड के चेयरमैन आदित्य चौटाला भी हैं। जजपा  विधायक नैना चौटाला और कांग्रेस विधायक अमित सिहाग भी ताऊ देवीलाल के परिवार से हैं।

प्रदेश में विपक्षी राजनीतिक दल किसानों समर्थन में लगातार सामने आ रहे हैं. सत्तापक्ष के सोमवीर सांगवान समेत कुछ विधायकों ने विधान सभा की सदस्यता से इस्तीफे तो अभी नहीं दिए है।  पर उन्होंने  राज्य सरकार के बोर्ड एवं निगमों के लाभकारी चेयरमैन पद छोड़ दिए हैं। महम के निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू ने सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी है।

पिछ्ला चुनाव

राज्य में 90 सदस्यों की विधान सभा के 21 अक्टूबर 2019 को हुए पिछले चुनाव में  68.20 % मतदान हुआ था।  24 अक्टूबर  2019 को घोषित आधिकारिक परिणाम के अनुसार भाजपा को बहुमत तो नहीं मिला पर वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने में सफल रही।  भाजपा ने जननायक जनता पार्टी  से चुनाव परिणाम बाद की साँठगाँठ कर और सात निर्दलीयों का सत्ता और धन बल से समर्थन जुटा कर 27 अक्टूबर 2019 को नई सरकार बना ली। इस सरकार में खट्टर जी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर फिर काबिज होने में कामयाब हो गए। जजपा अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला को उप मुख्यमंत्री का पद मिल गया।

वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अपने दम पर बहुमत मिल गया था।  इसके परिणामस्वरुप राज्य में कांग्रेस का 10 बरस का राज खत्म हो गया।  वैसे कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के संयुक्त नेतृत्व में भाजपा को कड़ी टक्कर देकर 30 सीटें जीती थी।  ये 2014 के चुनाव में उसकी जीती सीटों से 15 ज्यादा थी।

पिछले चुनाव में देवी लाल परिवार से विभिन्न दलों से छह प्रत्याशी थे।  इनमें जीतने वालों में जजपा की टिकट पर दुष्यंत चौटाला और उनकी माता नैना सिंह चौटाला , इनेलो से अभय सिंह चौटाला , कांग्रेस के अमित सिहाग चौटाला ( डबवाली ) , कांग्रेस के ‘ विद्रोही ‘ निर्दलीय रंजीत सिंह चौटाला शामिल थे। 

दिवंगत मुख्यमंत्री भजन लाल के परिवार से भी दो , कुलदीप बिश्नोई और दुला राम जीते। कांग्रेस के वंशवादी विधायकों में खुद भूपिंदर सिंह हुड्डा और उनके पुत्र रणबीर सिंह हुड्डा  शामिल हैं। 

दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के परिजन विधायकों में किरण चौधरी प्रमुख हैं। वह बंसी लाल की पुत्रवधु हैं और अभी तोशाम से विधान सभा सदस्य हैं। भारत में आंतरिक आपातकाल में रक्षा मंत्री रहे बंसीलाल ने बाद में कांग्रेस से पृथक अपनी क्षेत्रीय पार्टी हरियाणा विकास पार्टी बनायी थी जिसका कांग्रेस में विलय हो चुका है।

खट्टर जी

5 मई 1954 को पैदा हुए गैर -जाट  खट्टर जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रह चुके हैं। वह राज्य के 10 वें और भाजपा के पहले मुख्यमंत्री हैं। वह पहली बार 26 अक्टूबर  2014 को मुख्यमंत्री बने थे।  वह करनाल से विधायक हैं। वह सियासत में घुसने से पहले दिल्ली के सदर बाज़ार में छोटी मोटी दुकान चलाते थे। दिल्ली में ही उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। वह 1977 के लोक सभा चुनाव के बाद आरएसएस से जुड़े और तीन बरस बाद उसके प्रचारक बन गए।  

वह 1994 में आरएसएस का प्रचारक जीवन छोड़ भाजपा में घुस गए। खट्टर जी, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भाजपा की ओर से महेंद्रगढ़ से निर्वाचित राम बिलास शर्मा, अम्बाला कैंट से विधायक बने अनिल विज जैसे सारे दावेदारों को दरकिनार कर आसीन हुए हैं. जाहिर है उनके विरोधी भाजपा में भी हैं।

पृथक हरियाणा

पृथक हरियाणा राज्य का पहला चुनाव 1967 में हुआ था।  उसका गठन 1966 में भाषाई आधार पर किया गया था। यह,  भारत के राज्यों के प्रथम पुनर्गठन के फॉर्मूला के ही आधार पर ही किया गया। भारत- पाकिस्तान की सीमा से लगे सिख -बहुल और मुख्यतः पंजाबी -भाषी , पंजाब सूबा को विभक्त कर हरियाणा राज्य का गठन कर उसमें  ‘ हरियाणवी बोली’ और हिंदी -भाषी क्षेत्रों को शामिल किया गया। 

पंजाब के साथ-साथ हरियाणा की भी राजधानी चंडीगढ़ है, जो प्रशासनिक रूप से केंद्र -शासित प्रदेश है। दोनों ने चंडीगढ़ पर अपना दावा बरकरार रखा है। कालान्तर में पंजाब ने चंडीगढ़ से लगे अपने क्षेत्र , मोहाली को विकसित किया, जहां के स्टेडियम में क्रिकेट मैच होते रहते हैं। हरियाणा ने भी चंडीगढ़ से लगे अपने क्षेत्र पंचकुला को विकसित कर लिया। दोनों के राज्यपाल अलग -अलग होते है। लेकिन दोनों के एक ही , पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट हैं जो चंडीगढ़ में है। कुछेक बार कांग्रेस शासन काल मे , दोनों राज्यों के महाअधिवक्ता एक ही रहे हैं। पंजाब के राज्यपाल चंडीगढ़ के प्रशासक होते है।

पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला एक नौकरी भर्ती घोटाले में अदालती दोष सिद्ध होने के बाद 10 साल की सजा काट रहे हैं। उन्हें उनके पिता देवीलाल (अब दिवंगत ) ने केंद्र में 1989 में गठित विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में उप प्रधानमंत्री बनने के ऐन पहले हरियाणा के मुख्य मंत्री की अपनी कुर्सी सौंपी थी।

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गढ़ी सांपला किलोई से निर्वाचित विधायक हैं। वह फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की जुगत में हैं। उनके पिता भारत की संविधान सभा के सदस्य थे। उनके पुत्र , दीपेंदर सिंह हुड्डा 2014 के लोक सभा चुनाव में रोहतक निर्वाचन क्षेत्र से जीते थे। वह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं।

अभय चौटाला के अनुसार सनातनी हिन्दू जाट, सिख जाट और दलित समुदाय कुल मिलाकर हरियाणा की आबादी में करीब 50 फीसदी हैं। राज्य के करीब 80 जातीय समुदायों में से 63 अनुसूचित जातियों अथवा अन्य पिछड़े वर्ग के रूप में अधिसूचित बताये जाते हैं। करीब 26 प्रतिशत ओबीसी में यादव अथवा अहीर , सैनी , गूजर आदि भी शामिल हैं।  

लेकिन राज्य का  ‘ जातीय ‘ समीकरण  कुल मिलाकर करीब 30 फीसदी जाट समुदाय के पक्ष में माना जाता है। वैसे , यह जातीय समुदाय,  सनातनी हिन्दू ही नहीं , बिश्नोई जाट, सिख और मुस्लिम धारा में भी विभक्त है। हुड्डा जी, खुद जाट हैं। 

2014 के चुनाव में अधिकतर जाट भाजपा की तरफ खिसक गए। उस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 20.6 प्रतिशत,  आईएनएलडी को 24.1 प्रतिशत और बसपा को 4.4 फीसदी वोट मिले थे। प्रदेश की 90 में से 17 विधान सभा सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं।  

राज्य में अनुसूचित जनजातियों, ईसाईयों की तादाद लगभग नगण्य है। मुस्लिम करीब 7 फीसदी माने जाते हैं। जाट समुदाय को फिलहाल सरकारी नौकरियों में आरक्षण की अपनी माँग को लेकर भाजपा की कथित बेरूखी के कारण नाराज कहा जाता है। चुनाव में मनोहर लाल खट्टर सरकार में कथित भ्रष्टाचार का मुद्दा उठना भी स्वाभाविक है।

बहरहाल , भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को भौगोलिक रूप से कई तरफ से घेरे हुए हरियाणा में मौजूदा स्थिति में अगर चुनाव हुए तो भाजपा की हालत बहुत पतली होने की प्रबल संभावना है। 2014 में भाजपा ने 47 सीटें जीती थी और उसके तुरंत पहले के चुनाव में चार सीट जीती थी। मौजूदा स्थिति में चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ़ हो जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए।

 

*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं। 

 

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