‘टू मच डेमोक्रेसी’ का दिखावा और सबूत प्लांट करने का घिनौना काम !

अमेरिकी अखबार द वाशिंगटन पोस्ट ने उत्तरी अमेरिका के तीन विशेषज्ञों से पूछा था। और उनका कहना था कि निष्कर्ष ठीक हैं। पोस्ट ने खबर दी है कि आर्सेनल ने एक गंभीर और विश्वसनीय रिपोर्ट  प्रकाशित की है। इससे अभियोजन  में कंप्यूटर से बरामद सबूत की विश्वसनीयता पर तत्काल सवाल खड़े होते हैं। यह नामुमकिन मुमकिन है का उदाहरण है।

भीमा कोरेगांव मामले में नया रहस्योद्घाटन

 

मानवाधिकार कार्यकर्ता रोना जैकब विल्सन के वकीलों ने बांबे हाईकोर्ट को एक डाटा फोरेन्सिक रिपोर्ट दी है जिसमें कहा गया है कि उनके कंप्यूटर में सबूत प्लांट किए गए हैं। विल्सन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या और हिंसा उकसाने के एक मामले में लगभग तीन साल से जेल में हैं। उनपर हिंसा उकासने की साजिश रचने के आरोप हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर मुंबई हाई कोर्ट से मांग की गई है कि रोना विल्सन और उनके सह-अभियुक्तों के खिलाफ भीमा कोरेगांव मामला खत्म किया जाए। विल्सन कमेटी फॉर द रिलीज ऑफ पॉलीटिकल प्रिजनर्स के सदस्य हैं और 15 अन्य लोगों के साथ महाराष्ट्र में न्यायिक हिरासत में हैं। इनमें 83 साल के फादर स्टैन स्वामी, अधिवक्ता और ट्रेड यूनियनिस्ट सुधा भारद्वाज शामिल हैं। इनमें कई बुजुर्ग शिक्षाविद, अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं। 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित इस मामले को नेशनल इनवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) देख रही है जो केंद्र सरकार को रिपोर्ट करती है। पहले यह मामला महाराष्ट्र पुलिस के पास था लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार नहीं रही तो एनआईए ने इस मामले को अपने हाथ में ले लिया जो सीधे केंद्र सरकार को रिपोर्ट करने वाली एजेंसी है। मैसाच्यूसेट्स की आर्सेनल कंसलटिंग की यह रिपोर्ट अदालत में दाखिल की गई है। इसमें कहा गया है कि विल्सन के कंप्यूटर को जब्त करने से कोई दो साल पहले उससे छेड़छाड़ की गई थी। पुणे पुलिस ने इसे विल्सन के  दिल्ली के घर से अप्रैल 2018 में जब्त किया था। यह सब कंप्यूटर को हैक करके किया गया था और आर्सेनल ने पाया कि इसी हैकर या हमलावर ने काफी सारे मालवेयर डाले हैं और यह सब चार साल की अवधि में किया गया है। इसके जरिए ना सिर्फ श्री विल्सन के कंप्यूटर से छेड़छाड़ की गई है बल्कि भीमा कोरेगांव मामले से जुड़े दूसरे अभियुक्तों और अन्य हाईप्रोफाइल भारतीय मामलों से जुड़े लोगों पर (कंप्यूटर) हमला किया गया है। कारवां पत्रिका ने भी ऐसी एक जांच करवाई है।   

नागरिक अधिकार समूह, अमनेस्टी इंटरनेशनल और टोरंटो विश्वविद्यालय के इंटरनेट वाच डॉग सिटिजन लैब ने  गए साल यह खुलासा किया था कि 2019 में जासूसी करने वाले एक स्पाईवेयर का संयोजित उपयोग किया गया था और एक अभियान के तहत कम से कम नौ लोगों को निशाना बनाया गया था। मानवाधिकार के लिए काम करने वाले इन लोगों में से आठ भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार लोगों की रिहाई के लिए काम कर रहे हैं। 2019 में ही पता चला था कि व्हाइट्सऐप्प के जरिए कुछ लोगों के फोन में घुसपैठ करके जासूसी के लिए एक स्पाईवेयर पेगासस का उपयोग किया गया। यह सिर्फ सरकारों को बेचा जाता है। 

उस समय राज्य सभा में इस बारे में बार-बार पूछने पर दूरसंचार और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदन को इतना ही बताया था कि, मेरी सर्वश्रेष्ठ जानकारी के अनुसार कोई अनअधिकृत इंटरसेप्शन नहीं हुआ है। आर्सेनल की रिपोर्ट मार्क स्पेंसर की लिखी है जो जांच करने वाली कंपनी के प्रेसिडेंट हैं। इस कंपनी ने अमेरिकी एजेंसियों के लिए आतंकवाद के और भी बहुत सारे मामलों की जांच की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, आर्सेनल ने सबूतों से छेड़छाड़ के जो मामले देखे हैं उनमें यह सबसे गंभीर मामलों में एक है। और यह कई कारणों से है। इनमें एक है पहले और अंतिम आपत्तिजनक दस्तावेज की डिलीवरी के बीच लंबा अंतर शामिल है। दूसरी ओर, अभियोजन की ओर से सबसे विस्फोटक खुलासा पुणे की अदालत में यही था जो 2018 में किया गया था कि विल्सन के कंप्यूटर में चिट्ठी मिली है।      

कुल मिलाकर, विल्सन के कंप्यूटर में 52 फाइलें प्लांट की गई थीं। आर्सेनल की रिपोर्ट और द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक पहली कार्रवाई 13 जून 2016 को हुई थी। दोपहर बाद 3.07 मिनट पर किसी ने कवि और सह-अभियुक्त वरवर राव के ई-मेल अकाउंट का उपयोग करते हुए विल्सन को कई मेल भेजे। भेजने वाला कई बार प्रयास करता रहा ताकि विल्सन एक खास डॉक्यूमेंट को खोलें। शाम 6.18 बजे विल्सन ने जवाब दिया कि उन्होंने उस रिपोर्ट को सफलतापूर्वक खोल लिया है। पर वह पढ़ा नहीं जा सकता है और वे कंप्यूटर के मामले में दक्ष नहीं हैं। हालांकि, इस दस्तावेज को खोलना आगे जो होने वाला था उसकी शुरुआत भर थी। इसके जरिए नेटवायर रिमोट ऐक्सेस ट्रोजन या आरएटी नाम का एक मालवेयर इंस्टाल कर दिया गया। इससे घुसपैठ करने वाले को लक्ष्य कंप्यूटर का प्रशासनिक नियंत्रण मिल जाता है। दूसरी ओर, इसे समझे बगैर विल्सन असल में एक संदिग्ध कमांड और कंट्रोल सर्वर को खोल रहे थे। 

एक जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हिंसा हुई। एक व्यक्ति की मौत हुई थी। 14 मार्च 2018 को हमलावर (जिसकी पहचान नहीं हुई है) ने विल्सन के कंप्यूटर में एक थंब ड्राइव से नौ दस्तावेज कॉपी करके विल्सन के कंप्यूटर में फोल्डर बनाकर इस तरह रख दिए कि उनकी नजर न पड़े। ये दस्तावेज उन 10 दस्तावेजों में हैं जिन्हें अभियोजन ने पेश किया है। इस तरह विल्सन के कंप्यूटर पर कोई 22 महीनों तक हमालवर का नियंत्रण रहा और यह उस दिन भी था जब पुणे पुलिस ने इसे जब्त किया। यह सब इसलिए भी पकड़ा जा सका कि विल्सन के कंप्यूटर में विन्डोज 2007 लगा हुआ था जबकि जो आपत्तिजनक दस्तावेज सबूत के तौर पर पेश किए गए हैं वे विन्डोज 2010 और 2013 के हैं। तकनीकी रूप से ऐसी फाइलें खोलना या सेव करना संभव नहीं होता है। आर्सेनल को विल्सन के कंप्यूटर में इसे खोलने-पढ़ने का कोई सबूत भी नहीं मिला। जो पत्र था उसे अदालत में पढ़कर सुनाया जा चुका है। इस तरह, मामला यह है कि विन्डोज 2007 कंप्यूटर में ऐसी फाइल मिली जो विन्डोज 2010 या 2013  से पीडीएफ फाइल बनाई गई थी। 

अखबार ने लिखा है कि एजेंसी ने प्रवक्ता ने फोन कॉल का जवाब नहीं दिया ना ही व्हाट्सऐप्प किए गए सवालों पर प्रतिक्रिया दी। अखबार में इस खबर के साथ प्रकाशित, ‘कंप्यूटर पर हमला, क्या यह आपके साथ भी हो सकता है’ में बताया है कि आर्सेनल की इस रिपोर्ट के बारे में अमेरिकी अखबार द वाशिंगटन पोस्ट ने उत्तरी अमेरिका के तीन विशेषज्ञों से पूछा था। और उनका कहना था कि निष्कर्ष ठीक हैं। पोस्ट ने खबर दी है कि आर्सेनल ने एक गंभीर और विश्वसनीय रिपोर्ट  प्रकाशित की है। इससे अभियोजन  में कंप्यूटर से बरामद सबूत की विश्वसनीयता पर तत्काल सवाल खड़े होते हैं। यह नामुमकिन मुमकिन है का उदाहरण है। 

 

(द टेलीग्राफ में 11 फरवरी 2021 को प्रकाशित फिरोज एल विनसेन्ट और आर्सेलन की रिपोर्ट के आधार पर अनुवाद, संपादन और लेखन।) 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं। 

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