डॉ.स्कन्द शुक्ल
क्वॉण्टम-सिद्धान्त उनके लिए केवल भौतिकी की क्लास में अस्तित्व रखता है। नम्बर लाओ, टॉप करो, नौकरी पाओ, पैसे कमाओ। उसके बाद भौतिकी किनारे करके परम्परा का चोगा ओढ़ लो। स्वयं को श्रेष्ठ समझो , सामने वाले को हीन। अपनी जाति सबसे अच्छी , अपना धर्म सबसे ऊँचा, अपनी नस्ल सबसे उत्तम , अपना देश सबसे ऊँचा।
क्वॉण्टम का अर्थ पैकेट होता है। कैसा पैकेट ? हर पदार्थ को यह सिद्धान्त एक पैकेटावस्था से निर्मित बताता है। आप और मैं हड्डी-मांस-चमड़ी के बने हैं , हड्डी-मांस-चमड़ी परमाणुओं से। परमाणु बने हैं अनेक लघुतर कणों से जिन्हें अनेकानेक नाम और पहचान से जाना जाता है। लेकिन फिर हर कण केवल कण नहीं है, वह तरंग भी है। समस्त पदार्थ का एक तरंग-रूप भी है। वह जो उसके कण-रूप से संलग्न है। परमाणु का हर लघुतर कण , हर परमाणु , हर अणु कण और तरंग दोनों के गुण-धर्म रखता है। स्थूल जगत् के प्राणी भी ऐसे ही हैं। हाथी एक कण-समूह है लेकिन उसका भी एक तरंग-रूप है। मैं और आप भी केवल कणों से नहीं बने, हमारा भी एक तरंग-स्वरूप है।
क्या कहा: कहाँ है ? दिखता या महसूसता क्यों नहीं ? क्योंकि क्वॉण्टम की सच्चाइयाँ स्थूल जगत् की सच्चाइयों से अलग हैं। जो आपने देखा या सुना है ,आपको उसकी आदत है। पानी आपको तरल , ठोस या भाप के रूप में दिखता है। ऑक्सीजन आपके लिए गैस है और लोहा ठोस। सचिन तेन्दुलकर एक समय में एक ही स्थान में पाये जा सकते हैं। मैं लखनऊ से दिल्ली एक की रास्ते से जा सकता हूँ , एक-साथ कई रास्तों से नहीं। एक शहर में रहने वाला एक मित्र दूसरे शहर में रहने वाले दूसरे मित्र को बिना छुए या कहे प्रभावित नहीं कर सकता। मामाजी या फूफाजी कहाँ हैं , उनकी सारी स्थितियाँ नापी जा सकती हैं और अगर वे चल कर कहीं जा रहे हैं , तो उनकी गति भी। हम एकदम नियति वाली गणितीयता के साथ जीने के अभ्यस्त हैं : लम्बाई नाप लो , चौड़ाई भी , वज़न भी। हर गुण-धर्म की माप सम्भव है।
उन्होंने क्वॉण्टम की दुनिया में इससे उलट सारी सच्चाइयाँ पढ़ी हैं। पास हुए हैं। अच्छे नम्बर लाये हैं। नौकरी पायी है। पैसे भी। लेकिन फिर भी वे मानव-निर्मित सामाजिक चोंचलों को इतनी गम्भीरता से लेते हैं , मानो ये युगों-युगों से हैं और युगों-युगों तक बने रहेंगे।
सच तो यह है कि क्वॉण्टम-सिद्धान्त भी ब्रह्माण्ड में हर जगह नहीं ठहरते। ब्लैक होलों के भीतर सिंग्युलैरिटी में उनका भी लोप हो जाता है। वहाँ क्या नियम चलते हैं , हम नहीं जानते। अगर अन्य ब्रह्माण्डों के होने का दावा सत्य है , तो वहाँ क्या नियम होंगे , यह भी नहीं। लेकिन मानवीय विवाह में जाति-धर्म-नस्ल को एकदम सत्य मानने वाले भाई साहब इस बात से आश्वस्त हैं कि उनके वाले सम्प्रदाय/मजहब/धर्म में इस बात का और इस तरह की बातों का उल्लेख है।
मैं उनसे गणितीय सूत्रों को प्रस्तुत करने की बात करता हूँ। सिद्धि तभी मानी जाएगी जब गणित या प्रयोग में से कोई भी सच सामने लाकर रख दे। बाक़ी तो कहानियों-क़िस्सों में कुछ भी लिखा जा सकता है।
वे हकला रहे हैं।
पेशे से चिकित्सक (एम.डी.मेडिसिन) डॉ.स्कन्द शुक्ल संवेदनशील कवि और उपन्यासकार भी हैं। इन दिनों वे शरीर से लेकर ब्रह्माण्ड तक की तमाम जटिलताओं के वैज्ञानिक कारणों को सरल हिंदी में समझाने का अभियान चला रहे हैं।