चंद्र प्रकाश झा
उधर , राज्यसभा की उत्तर प्रदेश से 10 सीट, गुजरात से 4 -4 सीट और पश्चिम बंगाल से 6 सीट पर 23 मार्च को होने वाले द्विवार्षिक चुनाव के लिए नामांकन -पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया समाप्त हो गई। उम्मीदवारों में उत्तर प्रदेश से केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ( भाजपा ),फिल्म अभिनेत्री जया बच्चन ( सपा ) , गुजरात से केंद्रीय मंत्री , मनसुख मडाविया और कर्नाटक से राजीव चंद्रशेखर प्रमुख हैं। राज्यसभा की एक सीट पर बसपा को सपा ने समर्थन देकर लोकसभा की गोरखपुर और फूलपुर सीट पर मिले समर्थन के बीच दोनों के सम्बन्ध और बढ़ा दिया .
रिपब्लिक टीवी के मालिक और रक्षा सेवाओं के विवादित वैश्विक कारोबारी, राजीव चंद्रशेखर पिछली बार बतौर निर्दलीय भाजपा के समर्थन से जीते थे। इस बार वह खुल कर भगवा पाले में आ गए हैं। उन्होंने अपना पर्चा दाखिल करने से पहले सोमवार को भाजपा की औपचारिक सदस्य्ता ग्रहण कर ली। विवाद रिपब्लिक टीवी के कामकाज से ज्यादा उनके ‘ हितों के टकराव ‘ को लेकर है। शराब कारोबारी विजय माल्या , भारतीय बैंकों से लिए सैंकड़ों करोड़ रूपये के ऋण और ब्याज चुकाए बगैर लन्दन फरार होने के पहले इसी तरह कर्नाटक से बतौर निर्दलीय भाजपा के समर्थन से जीते थे। माल्या के भी मामले में भी ‘ हितों का टकराव ‘ था। उन्हें किंगफिशर विमानन कम्पनी का मालिक होने के बावजूद विमानन मामले की संसदीय सलाहकार कमेटी सदस्य भी बना दिया गया था।
राजीव चंद्रशेखर रक्षा कारोबारी होने के बावजूद रक्षा मंत्रालय की संसदीय सलाहकार कमेटी के सदस्य भी हैं। इसका सीधा मतलब यही हुआ कि उनकी सारी अँगुलियां घी में है।वह एनसीसी के भी केंद्रीय परामर्श समिति के सदस्य है। उनकी इंजीनियरिंग सॉफ्टवेयर कंपनी ,ऐक्सिस आईटीऐंडटी , ने बेंगलुरु की कैडस डिजिटेक खरीदी है जो एयरोस्पेस, रक्षा, वाहन, परिवहन और ऊर्जा क्षेत्र को सेवाएं मुहैया कराती है।
कर्नाटक में राज्य सभा की सभी चार सीट के चुनाव बिन -विरोध संपन्न हो सकते थे लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा
के जनता दल प्रत्याशी के सामने अपना तीसरा उम्मीदवार खड़ा कर दिया। राज्य विधान सभा के नए चुनाव इसी वर्ष अप्रैल -मई में निर्धारित हैं।
त्रिपुरा विधान सभा की सभी 60 सीटों पर 11 फरवरी को मतदान से पहले ही अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित चारलिम सीट पर मार्क्सवादी
कम्युनिस्ट पार्टी ( माकपा ) के उम्मीदवार रामेन्द्र नारायण देबबर्मा के निधन के कारण वहाँ नए सिरे से चुनाव के लिए मतदान कराये गए। इसमें भाजपा
के उम्मीदवार , नवनियुक्त उप -मुख्यमंत्री जिष्णु देबबर्मन हैं. वह त्रिपुरा के पूर्ववर्ती राजपरिवार के हैं . भाजपा -आईपीएफटी गठबंधन के
अधिकतर जनजातीय विधायक आईपीएफटी के ही हैं. माकपा ने पलाश देबबर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया था. लेकिन वह त्रिपुरा में भाजपा – आईपीएफटी गठबंधन सरकार बनने के बाद से उत्पन्न हिंसा के माहौल के विरोध में चुनाव मैदान से हट गए.
पूर्वोत्तर तीन राज्यों के होली के बाद पहले ही दिन घोषित हुए परिणामों को लेकर खबरिया टीवी चैनल पर हुल्लड़ -सी मची रही और सभी अखबारों के पन्ने कमोबेश भगवा रंग में रंग गए । भाजपा तो जीती पर ” उसका ” राष्ट्रवाद का कवच हार गया. भाजपा ने त्रिपुरा की 60 सदस्यों वाली विधानसभा के चुनावों में अलगाववादी आई.पी.एफ.टी. के साथ मिलकर 43 सीटें जीतीं, त्रिपुरा में भाजपा की कभी कोई सीट नहीं थी। उसे पिछले चुनाव में 1.5 % ही वोट मिले थे।
मेघालय में जनादेश विखंडित मिला। राज्य में 10 बरस से सत्ता में रही कांग्रेस स्पष्ट बहुमत से बहुत दूर रह गई। भाजपा ने खुद दो सीट जीती .
लेकिंन उसके , केंद्रीय सत्ता के बल से लेकर धनबल , बाहुबल और राजनीतिक टिकरम से देर -सबीर वहाँ भी सरकार बना लेने की संभावना से स्पष्ट इंकार नहीं किया जा सकता है।
नगालैंड में परिणाम मिलते ही भाजपा की सरकार बनाने का दावा ठोंक दिया गया , दावा ठोंकने राज्यपाल पीबी आचार्य के सम्मुख पहुंचे नेताओं में नए
मुख्यमंत्री बने नीफ़यूई रिओ और आरएसएस के भाजपा के संगठन सचिव बने राम माधव भी थे। वही पूर्वोत्तर राज्यों के भाजपा -प्रभारी भी हैं। नगालैंड में भाजपा , कांग्रेस , नगा पीपुल्स फ्रंट समेत 11 राजनीतिक दलों ने संयुक्त रूप से घोषणा कर दी थी कि वे ” नगा समस्या ” का वहाँ के जनजातीय संगठनों एवं अन्य समुदायों को स्वीकार्य समाधान होने तक विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे., लेकिन बाद में भाजपा उक्त संयुक्त घोषणा से पीछे हट गई। कांग्रेस ने भाजपा गठबंधन के खिलाफ ‘ धर्मनिरपेक्ष ‘ उम्मीदवारों का समर्थन करने की घोषणा की थी इसका कितना असर हुआ या उसकी साफ तवीर चुनाव परिणाम से नही मिलती है
देश के सीमांत छोटे -से राज्य त्रिपुरा में लगातार 25 बरस सत्ता में रहे मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाले वाम मोर्चा की विधानसभा
चुनाव में ” करारी ” हार और केंद्रीय सत्ता पर काबिज भाजपा की ” शानदार ” जीत का गहन तात्कालिक -दीर्घकालिक अर्थ लोगों को समझाने में लगभग पूरी मीडिया जुटी हुई है .शनिवार को अधिकृत परिणाम पूरी तरह घोषित होने के पहले ही मीडिया ने भाजपा के भगवा ध्वज की विजयश्री घोषित कर दी .खबरिया टीवी चैनलों ने अपने -अपने पोलस्टर की ठेका पर खरीदी फर्राटा सेवा की बदौलत , मतदान खत्म होते ही कूड़ा -अंदर -कूड़ा -बाहर के सिद्धांत पर अपने कम्प्यूटरी विश्लेषण और एग्जिट पोल के जरिए भाजपा की प्रशस्ति की हुल्लड़ दर्शकों -श्रोताओं को एकपक्षीय सम्प्रेषण से मगन कर दिया दिया। अखबारों के साप्ताहिक अवकाश के दिन रविवार के अंक के पन्ने सत्तामुखी चुनावी विश्लेषण में इतने सरोबोर थे कि एक फिल्मकार , संजय झा मस्तान , को सोशल मीडिया पर ‘ काला हास्य ‘ की अपनी लोकप्रिय शृंखला में कहना पड़ा कि उन सबने ” लाल रंग धो दिया ” .
इसी वर्ष राजस्थान, मध्य प्रदेश, समेत कुछेक अन्य राज्यों के भी चुनाव निर्धारित हैं। इस बीच , प्रधानमंत्री मोदी जी के गणतंत्र दिवस की पूर्व-संध्या पर उवाचित नया जुमला ,’ एक राष्ट्र एक चुनाव ‘ को लेकर लोकसभा का अगला चुनाव भी मई 2019 के पहले ही कराये जाने की अटकलें भी बढ़ रही हैं.
मीडियाविजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है। सीपी की इस श्रृंखला की कड़ियाँ हम चुनाव से पहले, चुनाव के दौरान और चुनाव बाद भी पेश करते रहेंगे।