ईवीएम से जुड़े असल सवालों पर चुप साधे चुनाव आयोग ने दिया ‘हवाई’ मिथकों का विज्ञापनी जवाब!

संजय कुमार सिंह

 

आज के अखबारों में चुनाव आयोग का पूरे पेज का विज्ञापन है। अंग्रेजी अखबारों में अंग्रेजी में और हिन्दी वालों में हिन्दी में। इसका शीर्षक है, अपनी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के बारे में जानिए। इसे भारतीय लोकतंत्र का गौरव बताया गया है और यह भी कि ये 2000 से प्रयोग की जा रही हैं और मतदाताओं को भरोसा बढ़ाने के लिए अब इनमें वोटर वेरीफायएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) से युक्त कर दिया गया है। विज्ञापन में एक हिस्सा मिथक एवं वास्तविकताएं हैं और इनमें चार मिथक तथा वास्तविकता बताई गई है जो बहुत मतलब के नहीं हैं और ईवीएम के खिलाफ कोई दमदार आरोप (या मिथक) नहीं हैं। मैं इतने समय से ईवीएम के खिलाफ लिख रहा हूं पर ना मैंने कभी इन मिथकों के बारे में सुना ना लिखा। फिर भी सरकारी खर्चे पर इन मिथकों का सच बताया गया है जबकि जो बताए जाने हैं उनपर यह विज्ञापन चुप है। यही नहीं कब किस राज्य में कितने मतदान केंद्रों पर इनका उपयोग किया गया है। पारदर्शिता और सूचना के लिए यह जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध होनी चाहिए पर वह चुनाव आयोग के वेबसाइट पर रहे, यही पर्याप्त होगा। ईवीएम के प्रचार के साथ इनकी कोई तुक नहीं है।

कहने की जरूरत नहीं है कि चुनाव आयोग का यह विज्ञापन अनकांस्टीट्यूशन एंड टैम्परेबल (असंवैधानिक और छेड़छाड़ योग्य) कही जा चुकी मशीनों की साख बचाने के लिए है। हालांकि मशीनों के बारे में आरोप है कि उनसे छेड़छाड़ की जा सकती है और चुनाव आयोग इससे मना करता है पर वह अपनी मशीन साबित करने के लिए नहीं देता है औऱ चुनौती देने वालों पर जो शर्तें लगाई जाती हैं वह अव्यावहारिक हैं और लगभग ऐसी ही मैंने ब्लूटुथ ऑफ कर दिया है। तुम बिना छुए दूर से उसका ब्लूटुथ ऐक्टिवेट करके दिखाओ। तकनीक के आज के जमाने में चुनाव आयोग के बचाव को ऐसे ही बताया जा सकता है। हालांकि, मशीन से छेड़छाड़ संभल है यह कई बार साबित हो चुका है। हाल में दिल्ली विश्वविद्यालय चुनाव में भी यही हुआ और तब सबकी चिन्ता यही बताने की रही कि दिल्ली विश्वविद्यालय को ईवीएम चुनाव आयोग ने नहीं दिए थे। बाद में यह स्पष्ट हुआ कि ईवीएम बनाने वाली मशीनें इन्हें बाजार में बेचती हैं (जिनसे छेड़छाड़ संभव है) और चुनाव आयोग उनसे जो मशीनें लेता है वह अलग हैं। रंग-रूप आदि के साथ कनेक्टर के लिहाज से भी।

मेरे ख्याल से अब यह साबित करने की जरूरत नहीं रह गई है कि मशीन से छेड़छाड़ संभव है। चुनाव आयोग भी यही कहता रहा है कि उसकी मशीनें सुरक्षित रखी जाती हैं और (उस सुरक्षा में) छेड़छाड़ संभव नहीं है। पर सार्वजनिक मौकों पर मशीन के गड़बड़ प्रदर्शन पर वह चुप रहना ही बेहतर समझता है। विज्ञापन में बताया गया है कि वीवीपैट क्या है, अलग से लगाया जाने वाला प्रिंटर है, उसका प्रिंट पांच साल तक सुरक्षित रहता है, मतदाता को देखने के लिए सात सेकेंड तक उपलब्ध रहता है आदि। ईवीएम से वीवीपैट जोड़ने का आदेश सुप्रीम कोर्ट का है और वीवीपैट खरीदने के लिए चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार से 3174 करोड़ रुपए मांगे थे। इसमें काफी समय लगा। बताया जाता है 2014 से चुनाव आयोग ने 11 रीमांडर भेजे तब जाकर गए साल अप्रैल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसकी मंजूरी दी। कुल 16 लाख वीवीपैट मशीनें खरीदी जानी हैं जो सितंबर तक आनी थीं। कुल मिलाकर यह प्रचार वीवीपैट का है पर ईवीएम के प्रचार के रूप में पेश किया गया है।

जहां तक ईवीएम के दोषमुक्त होने की बात है, इसपर राज्यसभा सदस्य और जनता पार्टी (जिसका भाजपा में विलय हो गया है) के प्रेसिडेंट सुब्रमण्यम स्वामी की किताब है, “इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन्स : अनकांस्टीट्यूशन एंड टैम्परेबल” (असंवैधानिक और छेड़छाड़ योग्य)। इसके मुताबिक ईवीएम जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड और इटली समेत कई देशों में पहले से प्रतिबंधित है और ऐसे देशों की संख्या बढ़ रही है। इसलिए, दुनिया भर में ईवीएम को लेकर आत्मविश्वास की कमी बढ़ रही है। भारत को एक ऐसी नाकाम प्रणाली के साथ क्यों रहना चाहिए जिसे दुनिया भर में त्याग दिया गया है। ईवीएम में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का जोखिम स्वाभाविक है। यह चाहे जितना भी मामूली हो लोकतंत्र में स्वीकार नहीं किया जा सकता है जहां चुनाव जीतने का मतलब बहुत कुछ होता है। पुस्तक में राजनीतिक, संवैधानिक और तकनीकी विशेषज्ञों के एक समूह के जरिए ईवीएम का उपयोग खत्म करने के लिए शक्तिशाली और ठोस मामला बनाया गया है। यह पुस्तक आंखें खोल देने वाली है और सभी भारतीय राजनीतिज्ञों और नागरिकों के लिए समान रूप से पढ़ने योग्य है।

अखबार में छपे चुनाव आयोग के विज्ञापन में दावा किया गया है कि ईवीएम के जरिए लगभग 10 लाख मतदान केंद्रों पर 113 राज्य विधानसभा के साधारण निर्वाचन और तीन लोकसभा निर्वाचन सफलतापूर्वक कराए गए हैं। दूसरी ओर, इस समय इस पुस्तक का 2010 का संस्करण उपलब्ध है यानी यह पुस्तक इन्हीं चुनावों के अनुभवों के आधार पर लिखी गई है। उसकी कोई चर्चा नहीं करके एकतरफा विज्ञापन में सिर्फ अपनी बात कहना मनमानी के सिवा और क्या हो सकता है। एक और पुस्तक भाजपा नेता, जीवीएल नरसिम्हा राव की है, “डेमोक्रेसी ऐट रिस्क! कैन वी ट्रस्ट आवर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन्स?” (लोकतंत्र खतरे में! क्या हम अपनी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर भरोसा कर सकते हैं?) इस पुस्तक के कवर पर ही लिखा है – चुनाव आयोग द्वारा भारत के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम की अक्षतता को आश्वस्त करने में नाकामी का चौंकाने वाला खुलासा। यह पुस्तक भी 2010 में आई थी।

यह पुस्तक भारत के नागरिकों को समर्पित है और लिखा है कि पूरी तरह पारदर्शी और जांचने योग्य चुनाव प्रणाली उनका हक है। निश्चित रूप से। इस पुस्तक की प्रस्तावना लाल कृष्ण आडवाणी की है और इसके 16 अध्यायों में एक है, चुनाव आयोग के ऐसे निर्णय जिनपर सवाल उठाए जा सकते हैं और दूसरा दोषपूर्ण मशीन छेड़छाड़ की चिन्ता बढ़ाते हैं। यही नहीं, इसमें एक अध्याय (आठवां) चुनाव आयोग द्वारा जांच का मजाक भी है। इसमें दो अध्याय सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर पर हैं और इनके नाम हैं, सॉफ्टवेयर सुरक्षित नहीं है …. ना ही हार्डवेयर। 15वां अध्याय ईवीएम के संवैधानिक होने पर सवाल उठाता है, नाम है – क्या भारतीय ईवीएम संवैधानिक हैं। अंतिम अध्याय है पारदर्शिता और जांच करने की योग्यता बहाल की जाए। इसके बाद ही वीपैट लगाने का निर्णय़ आया है। उसपर आगे बात करतें हैं।

वीवीपैट की मांग भारतीय जनता पार्टी ने की थी पर चुनाव आयोग ने तब कहा था कि प्रिंटर लगाना आसान नहीं है और इससे संबंधित ढेरों आशंकाएं रहने की संभावनाएं है। भाजपा ने तब ईवीएम के असुरक्षित भंडारण पर भी सवाल उठाए थे। और सिटिजन्स फॉर वेरीफायबिलिटी, ट्रांसपैरेंसी एंड अकाउंटैबिलिटी इन इलेक्शंस (वीटा या VeTa) के टेक्निकल कोऑर्डिनेटर, हरि के प्रसाद को ईवीएम की चोरी के आरोप में अगस्त 2010 में गिरफ्तार किया जा चुका है। वैसे तो यह पुराना मामला है और अभी उसके विस्तार में नहीं जाकर मैं यही जानना चाह रहा हूं (चेक करूंगा) कि ईवीएम की चोरी हो सकती है तो जहां रखा जाता है वहां छेड़छाड़ कैसे संभव नहीं है या छड़छाड़ करके वापस नहीं रखा जा सकता है क्या? वैसे हरिप्रसाद तकनीक के जानकार हैं और ईवीएम के विरोध में अग्रणी थे। उनकी गिरफ्तारी दूसरे विरोधियों को डराने के लिए की गई थी और उनका बचाव राम जेठमलानी और उनके पुत्र महेश जेठमलानी ने किया था। इसके बाद आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा में मशीन से छेड़खानी करके दिखा चुकी है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक हैं।

 



 

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