पहला पन्ना: चीन से जुड़ी 8 महीने पुरानी ख़बर लीड और गोलवलकर को सरकारी श्रद्धांजलि गायब!

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने शुक्रवार को ट्वीट किया (अंग्रेजी से अनुवाद), महान विचारक, विद्वान और उल्लेखनीय अगुआ एमएस गोलवलकर को उनके जन्म की सालगिरह पर याद किया जा रहा है। उनके विचार प्रेरणा के स्रोत रहेंगे और पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। कहने की जरूरत नहीं है कि संघ के पूर्व सर्वे-सर्वा का कल जन्मदिन था। इसपर पूर्व संस्कृति सचिव जवाहर सरकार की प्रतिक्रिया थी, (अंग्रेजी से अनुवाद)- 'पूर्व संस्कृति सचिव के रूप में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा आरएसएस के प्रमुख गोलवलकर की झूठी प्रशंसा को देखकर मेरा सिर शर्म से झुक गया है। गोलवलकर और आरएसएस ने गांधी के स्वसंत्रता संघर्ष का विरोध किया था और अपनी (पुस्तक) बंच ऑफ थॉट्स में गोलवलकर ने भारत के तिरंगे का भी विरोध किया है। सरदार पटेल ने उन्हें जेल भेजा था, आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था।' 

वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह, मीडिया विजिल के लिए अक्सर अख़बारों की समीक्षा करते हैं। इस ज़रूरी काम को ज़्यादा व्यवस्थित रूप देने के लिए आज से यह पहला पन्ना कॉलम शुरू किया जा रहा है। कॉलम को दैनिक रखने की कोशिश होगी। आशा है यह प्रयास आपको पसंद आयेगा- संपादक

आज हिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू और टाइम्स ऑफ इंडिया में एक ही खबर लीड है। अमूमन अच्छी और बड़ी खबर होने पर ऐसा होता है लेकिन आज अखबारों ने जिस खबर को जबरन बड़ी खबर बना दिया है वह सरकारी प्रचार और जनसंपर्क के अलावा कुछ नहीं है। मुख्य रूप से जो खबर है वह यही कि बीजिंग ने सफाई दी है। और यही हिन्दुस्तान टाइम्स ने शीर्षक लगाया है, सैन्य वापसी के बीच राजनयिक आरोप पर बीजिंग। मुझे लगता है कि यही स्थिति है और इसे इतनी प्रमुखता देने की जरूरत नहीं थी पर अखबार जो सामान्य माहौल है (भले उन्होंने ही बनाया हो) से अलग कैसे हो सकते हैं इसलिए इसे महत्व दिया गया है। पर खबर सही ढंग से हिन्दुस्तान टाइम्स ने ही पेश की है। मुख्य शीर्षक के बाद हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर का इंट्रो है, चीन ने कहा कि गलवान में उसके चार सैनिक मारे गए, झड़प के चुने हुए अंश लीक किए, उम्मीद जताई कि भारत को सीख मिल गई है। अखबार ने अपनी इस खबर के साथ बताया है कि 10वें दौर की सैनिक वार्ता आज होगी। आइए देखें बाकी अखबारों में यह खबर कैसे है।

द टेलीग्राफ में यह पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम की खबर है जो अंदर के पन्ने पर जारी है। लेकिन पहले पन्ने पर शीर्षक है, चीन ने कहा, गलवान में 4 सैनिक मारे गए थे। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पांच कॉलम में लीड है। फ्लैग शीर्षक है, “पहला चरण : टकराव से पहले सैनिक अपनी जगहों पर वापस।” मुख्य शीर्षक है, “पैंगोंग डिसएंगेजमेंट पूरा, टकराव वाले अन्य बिन्दुओं पर आज चर्चा होगी।” निश्चित रूप से इस शीर्षक से लग रहा है कि बहुत बड़ा काम हो रहा है। पर मुद्दा यह बना रहेगा कि यह सब, “न वहां कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है” के बावजूद हो रहा है। 15-16 जून की रात जब झड़प हुई थी तब क्या खबरें थीं इसे याद करने के लिए मेरी 22 जून की एक पोस्ट को याद करना जरूरी है। उसकी चर्चा आगे करूंगा। इंडियन एक्सप्रेस ने आज पहले पन्ने पर ही अपनी मुख्य खबर के साथ यह भी बताया है कि चीन ने माना कि गलवान में उसका एक अधिकारी और तीन सैनिक मारे गए थे। अखबार ने यह नहीं बताया है (और रिवाज भी नहीं है) कि तब उसने क्या खबर दी थी।

द हिन्दू ने भी इस पुरानी खबर को (सिर्फ चीन के स्वीकार करने के कारण) आज लीड बनाया है। मुख्य शीर्षक है, “गलवान में 4 पीएलए सैनिक मारे गए थे : चीन।” इसके साथ इंट्रो है, एलएसी पर झड़प के आठ महीने बाद बीजिंग ने चुप्पी तोड़ी।  इसके साथ डिसएंगेजमेंट पूर्ण होने की खबर भी है। अंग्रेजी के जो पांच अखबार मैं देखता हूं उनमें चार में तो यह खबर लीड है ही। फिर भी प्रस्तुति में इंडियन एक्सप्रेस का अंदाज  सबसे प्रचारात्मक है तो टाइम्स ऑफ इंडिया में सारी सूचनाएं एक साथ हैं। हालांकि इस मामले में टाइम्स की लीड अक्सर ऐसी होती है।

 

 

टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे पांच कॉलम में छापा है पर लीड बनाने का कारण भी बता दिया है और बेशक वह प्रचार नहीं, सूचना है। टाइम्स का शीर्षक देखिए, आठ महीने बाद चीन ने माना कि गलवानी घाटी की झड़प में चार सैनिक मारे गए थे। उपशीर्षक है, अनुमान में पीएलए के मृतकों की संख्या 45 तक बताई गई है। इस तरह अखबार ने उस समय की अपनी खबर का भी हवाला दिया जबकि ‘खबर’ यह भी है कि मरने वाले चार सैनिकों में एक अफसर है (इंडियन एक्सप्रेस)। मेरा मानना है कि आठ महीने पुरानी यह खबर अगर पांच में से चार अखबारों में लीड है तो सिर्फ इसलिए ये सरकार का प्रचार है। वरना ऐसी खबर लीड नहीं बनती। आज जो बड़ी खबर है वह निश्चित रूप से वही है जिसे द टेलीग्राफ ने लीड बनाया है। यह साधारण नहीं है कि देश का संस्कृति मंत्रालय जो करे उसके बारे में पूर्व संस्कृति सचिव कहें कि इससे मेरा सिर शर्म से झुक गया है।

हिन्दुत्व और संस्कृति की बात करने वाली सरकार के संस्कृति मंत्री या मंत्रालय के मामले में ऐसा होना और बड़ी बात है। द टेलीग्राफ की लीड का शीर्षक उसके अपने अंदाज में सिर्फ एक शब्द है, गोलवलकर।

हिन्दी में यह गोलवालकर भी पढ़ा जा सकता है और इस गढ़े गए शब्द का अर्थ लक्ष्य तक पहुंचाने वाला हो सकता है? खबर बेशक आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर से संबंधित है और खबर के साथ उनकी एक तस्वीर भी है। कैप्शन है, गोलवलकर कलकत्ता में 1972 में। खबर का उपशीर्षक है, लक्ष्य तय है : महिलाओं, मुसलमानों, ईसाइयों और दमितों को जानना चाहिए कि इस सरकार को कौन प्रेरित करता है। इसके साथ अनिता जोशुआ की खबर में बताया गया है कि भारत में सबसे खराब ढंग से रखा गया ‘राज’ (सीक्रेट) आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया है। अब प्रेरणास्रोत और मार्गदर्शक शक्तियां एम.एस गोलवलकर के विचार हैं। आगे लिखा है, गलती मत कीजिए, अगर मौका दिया जाए तो यह आने वाली कई “पीढ़ियों” तक चलेगा।

खबर यह है कि केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने शुक्रवार को ट्वीट किया (अंग्रेजी से अनुवाद), महान विचारक, विद्वान और उल्लेखनीय अगुआ एमएस गोलवलकर को उनके जन्म की सालगिरह पर याद किया जा रहा है। उनके विचार प्रेरणा के स्रोत रहेंगे और पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। कहने की जरूरत नहीं है कि संघ के पूर्व सर्वे-सर्वा का कल जन्मदिन था। इसपर पूर्व संस्कृति सचिव जवाहर सरकार की प्रतिक्रिया थी, (अंग्रेजी से अनुवाद)- ‘पूर्व संस्कृति सचिव के रूप में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा आरएसएस के प्रमुख गोलवलकर की झूठी प्रशंसा को देखकर मेरा सिर शर्म से झुक गया है। गोलवलकर और आरएसएस ने गांधी के स्वसंत्रता संघर्ष का विरोध किया था और अपनी (पुस्तक) बंच ऑफ थॉट्स में गोलवलकर ने भारत के तिरंगे का भी विरोध किया है। सरदार पटेल ने उन्हें जेल भेजा था, आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था।’  अखबार ने इसपर कल जो सब हुआ उसका विवरण दिया है और प्रमुखता से प्रकाशित किया जो दूसरे अखबारों में इस ढंग से तो नहीं ही होगा।

आइए, अब यह भी याद कर लें कि गलवान घाटी में जब झड़प हुई थी तो क्या हुआ था। संदर्भ के लिए मैं 22 जून 2020 की अपनी फेसबुक पोस्ट शीर्षक और अंतिम टिप्पणी समेत जस का तस पेस्ट कर रहा हूं। याद रहे वह बिहार में चुनाव करीब होने का समय था और अब सरकार बंगाल में चुनाव की तैयारी कर रही है। मेरी पोस्ट का शीर्षक था, यह राजनीति नहीं है।

  1. चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए, प्रमुख ठिकानों पर कब्जा जमा लिया। किसी को पता नहीं चला, बताया नहीं गया।
  2. पांच-छह मई को टकराव हुआ, घुसपैठ की बात सामने आई। पर सरकार ने कुछ नहीं कहा। पूछने पर भी नहीं।
  3. 15-16 जून की रात चीनी और भारतीय सैनिकों में संघर्ष हुआ 20 सैनिक शहीद हुए। एएनआई ने यह खबर 16 जून को रात 9:49 पर दी।
  4. एएनआई ने ही 16 जून की ही रात 9:54 पर खबर दी कि भारतीय इंटरसेप्ट्स से पता चलता है कि चीन के 43 सैनिक मारे गए हैं। इंटरसेप्ट की खबर एएनआई को इतनी जल्दी मिलना सामान्य नहीं है।
  5. चीन के साथ तनाव तो 1962 के बाद या उससे पहले से है। लेकिन सीमा पर मोटा-मोटी शांति रही है। जब तनाव हुआ तो सरकार ने कई दिनों तक ना खबरों का खंडन किया ना कोई कार्रवाई करती नजर आई।
  6. कोविड-19 पर सर्वदलीय बैठक से पहले 17 जून को प्रधानमंत्री ने इस विवाद पर पहली बार कुछ कहा, …. लेकिन उकसाने पर हर हाल में हम यथोचित जवाब देने में सक्षम हैं। 20 शहादत के बाद उकसाने पर यथोचित जवाब का मतलब आप समझ सकते हैं। हालांकि इसकी जो विज्ञप्ति जारी हुई उसमें भी हिन्दी का यथोचित शब्द निर्णायक हो गया और अंग्रेजी में तो बदल ही गया। यानी अखबारों में वह छपा जो प्रधानमंत्री ने कहा ही नहीं।
  7. इसके बाद प्रधानमंत्री का जो बयान आया वह चीन के पक्ष में ज्यादा भारत के पक्ष में कम था। इसीलिए सोशल मीडिया पर छाया रहा कि चीन ने उसका अनुवाद करके अपने लोगों को दिखाया है। बाद में इसका स्पष्टीकरण जारी हुआ।
  8. भारतीय शहीद सैनिकों की टीम के सबसे वरिष्ठ अधिकारी तेलंगाना के थे। दूसरे शहीदों में बंगाल से लेकर पंजाब, उड़ीसा और झारखंड के जवान थे। कुल मिलाकर सेना भारत की है लेकिन बिहार रेजीमेंट नाम होने पर बिहारियों को गर्व होने की बात प्रधानमंत्री ने कही। भाजपा ने इस आशय का ट्वीट किया।
  9. किसी खंडन स्पष्टीकरण बजाय यह एएनआई की ओर से यह दावा किया गया कि शहीदों को बिहारी कहना सामान्य है। सेना में ऐसा कहा जाता है। यह सब इस तथ्य के बावजूद कि एएनआई की संपादक ने इसी मई में ट्वीट कर मीडिया को बताया था कि पुलित्जर पुरस्कार पाने वाले कश्मीर के फोटोग्राफर भारतीय हैं, कश्मीरी नहीं। उन्हें कश्मीर वैसे ही नहीं लिखा जाए जैसे किसी तमिल को पुरस्कार मिलने पर उसे तमिल नहीं लिखा जाता। लेकिन बिहार चुनाव से पहले सेना के बिहार रेजीमेंट के जवानों के शहीद होने पर बिहारियों को गर्व होना सामान्य बात हो गई।
  10. इसकी तुलना पुलवामा से कीजिए तो लगता है गलतियां छिपाने के लिए इस बार पहले जैसा बड़बोलापन नहीं है।
  11. और अब आज की एक प्रमुख खबर है कि पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना से जारी तनाव के बीच सरकार ने तीनों सेनाओं को घातक हथियार और गोला-बारूद की खरीद के लिए 500 करोड़ रुपये के आपात फंड को मंजूरी दी गई है। क्या आपको लगता है कि सेना के पास आवश्यक हथियार नहीं होना सामान्य बात है और तनाव के समय रुपए आवंटित करने की खबर छपवाना सामान्य है। अगर हथियार जरूरी थे तो महीने भर में खरीदे जाने चाहिए थे। उसका ऑर्डर किया जाना चाहिए था न कि वेंटीलेटर खरीदने की तरह प्रचार। दोनों मामलों में सरकार का रवैया एक ही है।

बिहार में इसे भोज के समय कोहड़ा रोपना कहा जाता है।

 

अब जब गोलवलकर की बात चल ही निकली है तो मैं चाहूंगा कि वरिष्ठ पत्रकार हरतोष सिंह बल का लिखा लेख दो प्रधानमंत्रियों के गुरु – गोलवलकर जरूर पढ़ें। लंबा है पर पढ़ लेंगे तो आंखें खुल जाएंगी। बाकी आपकी मर्जी नीचे के शीर्षक पर क्लिक करें–

 

गोलवलकर: जिसने देश को बाँट दिया 

संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

 

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