“ई मिसरा है तो भरतौल कइसे है यार?”
“भरतौल…? इ का होता है?”
बरेली के विधायक की भागी हुई लड़की पर बहस बनारस के गैर पंजीकृत ब्राह्मण महासभा की पंचायत में राजा घाट के चौंतरे पर हो रही थी। पंच गहन पीड़ा में थे और ये घटना उन्हें भविष्य के पंचक की तरह दिख रही थी।
एक पंडित जी ने उद्गार व्यक्त किया
“…ई भरतौल फरतौल समझ में नहीं आ रहा है। जइसे ई लौंडवा दलित-दलित खेल रहा है, लेकिन ससुर लिखता था सिंह”।
“हँ एक ठो…यो यो हनी सिंह भी तो है?”
पंचायत के वरिष्ठों ने घूर कर टिप्पणीकार को देखा तो वो सकपका गया।
मिसरा सरनाम से बनारस के बाभनों का अटैचमेंट अजब है। बनारसी में एक बानगी देखिए-
“हम तSS भिया राजेस मिसरा कSS नाव सुन के हदस गयिलीं। फेर पता चलल कि बरेली क कवनों बिधायक हss स्सार!”
हिन्दी में इसका तर्जुमा ये हुआ कि- राजेश मिश्रा का नाम सुन के दिल बैठ गया, मगर जब पता चला कि बरेली का कोई विधायक है तो चैन पड़ा, अंत में एक थूकी हुई गाली है जिसका मतलब पत्नी का भाई होता है।
हालांकि देश संविधान की किताब से चल रहा है। लेकिन समाज के पास कोई किताब नहीं है। ब्राह्मणों के मन में बेचैनी बहुत है, पीड़ा बहुत है। लेकिन वो कहते नहीं हैं। उन्हें अहसास है कि इस देश को सही राह पर ले जाने की ज़िम्मेदारी उनकी है, सम्हालने की ज़िम्मेदारी उनकी है, संविधान है तो हुआ करे। वो अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर लगे हुए हैं। हर मोड़ पर वो जरूरी समझौते करते हैं। सही दांव की तलाश में रहते हैं। छत्रपति से लेकर सिंधिया तक, सिंधिया से लेकर मोदी तक पिछड़ों को आगे करके, खुद को पर्दे के पीछे रख कर राष्ट्र निर्माण में लगे रहे। लेकिन देश उनकी अस्मिता के साथ, सम्मान के साथ लगातार अन्याय कर रहा है।
ये निचोड़ है देश की तमाम ब्राह्मण पंचायतों में बरेली के विधायक की बेटी के प्रकरण पर।
लेकिन बनारस सबसे अलग है। वो धरती पर नहीं महादेव के नंदी की सींग पर है। वही महादेव जो ऐसी बरात लेकर गौरा को लाने गए जिसकी चर्चा कलिकाल तक चली आ रही है। महादेव दुहाजू भी हैं। पार्वती से पहले सती उनसे विवाह करने का अपमान झेल चुकी थीं।
बहरहाल बनारस की पंचायत में चर्चा इस पर है कि जिस विधायक की बेटी भागी वो ब्राह्मण है भी कि नहीं।
“भरतौल कौन गोत्र होता है हो….”
“हमको नहीं पता…..हमारे बियाह के लिए एक बार हरदोई से एक ठो आया तो कहा- हमारा बृषभ गोत्र है। हमारे पिता जी कहे- इसको पानी भी मत पिलाना और दुआरे से लौटा दिए।“
“मतलब स्साले तरह-तरह के चोर बाभन हैं, अब बेटी इनकी नहीं भागेगी तो किसकी भागेगी।“
“लेकिन है तो बड़ी कलावती टाइप की… है कि नहीं ! ठसक पूरा विधायके वाला है बोल रही है टिबिया में कि हे राणा तुम्हारा नामोनिशान मिटा दूँगी।”
राणा कौन…? एक सवाल उठा
“है कौनो विधायक भरतोलवा का करीबी। राणा से तो राजपूत… मने ठाकुर लग रहा है”?
“ई ठकुरे स्साले अलग मजा ले रहे हैं। अपनी तो अकबर-बाबर को दे आते थे… हमारा एक कांड फंसा है तो स्साले खूब अंगुरी कर रहे हैं”।
“यार हमारा कइसे है। भरतोल हमारे में नहीं आता। आइंदा किसी ने स्साले को मिसरा कहा भी तो। धिक्कार है साले पर। एक बेटी नहीं सम्हाल पा रहा। इसको टिकट कौन दिलवाया। साला मेंव-मेंव बतिया रहा है। बभनों का विधायके नहीं लग रहा है”।
इस धिक्कार प्रबोधन के बाद पंचायत के पास न कुछ कहने को बचा था न सुनने को। पंचायत ने अलिखित, ग़ैर पंजीकृत प्रस्ताव मन ही मन पारित किया न पप्पू भरतोलवा को ब्राह्मण मानेंगे न समाज का अपमान होगा, और सभा उठ बैठी।
“भाई जब भरतोलवा ब्राह्मण है ही नहीं तो बहस है किस बात की, मिसरा लिखने से कोई मिसरा नहीं हो जाता”।
“एकदम सही… सिंह लिखने से कोई सिंह थोड़ी हो जाता है “?
“बरेली से ताज़ा ख़बर ये आ रही है कि स्साला दो कौड़ी का लंपट और लखैरा है। अब तक किसी को पता ही नहीं था कि वो दलित है। अरे वीडियो में नहीं देखे केतना मुस्किया के कहता है… चूंकि हम दलित हैं। मादर…!”
“देखो आज नहीं कल ये लौंडिया को चूस के फेंक देगा। उमिर में दूना है। ई लौंडिया लौट के फिर बाप के पास आएगी”!
पत्थर सा चेहरा लेकर आगे-आगे चल रहे पंडा जी ने गूंजती आवाज़ में कहा।
“…और तब अगर भरतोलवा ने इसे दुआर से दुत्कार के फेंक दिया तो मानना कि मिसरा है। कतल, मडर ये सब अच्छी बात नहीं है। वैदिकी हिंसा भी कोई चीज़ होती है”।
शाम ढल गयी थी। घाट पर गंगा आरती का वक्त हो चुका था। ब्राह्मण बटुक अपने-अपने विन्यास में व्यस्त थे। बनारस का सूरज एक बार फिर गंगा में डूब कर मर गया था।