खबर नवोदय टाइम्स में प्रमुखता से छपी थी, खंडन कई अखबारों में लीड/बॉटम है
संजय कुमार सिंह
मिशन शक्ति की घोषणा (27 मार्च) आपको याद होगी। आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद कैसे प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित किया और एक ऐसी क्षमता हासिल करने की घोषणा की जिसके बारे में बाद में बताया गया कि यह क्षमता बहुत पहले हासिल हो गई थी। इसके जवाब में कहा गया कि उस समय की सरकार ने इस परीक्षण से मना कर दिया था (और इस सरकार ने यह वीरता दिखाई है)। इसके साथ सवाल यह था कि सरकार ने यह ‘वीरता’ आचार संहिता लागू होने के बाद क्यों दिखाई और दिखाई भी तो यह घोषणा प्रधानमंत्री को करने की क्या जरूरत थी। सरकार के जिस विभाग की उपलब्धि है वही घोषणा करता।
आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत को चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया। इसके लिए दलील यह दी गई कि प्रधानमंत्री ने सरकारी दूरदर्शन के संसाधनों का उपयोग (या दुरुपयोग) नहीं किया। यहां मामला पद के दुरुपयोग का है और चुनाव आयोग ने सरकारी संसाधन के दुरुपयोग का मामला निपटा दिया। इस मामले में अगर यह देखा जाए कि चुनाव आयोग क्या कर सकता था – तो लगेगा कि चुनाव आयोग के पास और कोई चारा भी नहीं था। वह दोष मानता तो सजा क्या देता और चूंकि सजा दे ही नहीं सकता है तो दोष क्यों मानना। निश्चित रूप से यह चेतावनी देने से ऊपर का मामला था। इसलिए चुनाव आयोग ने भी इससे एक तरह से पीछा छुड़ाया। हालांकि, यह एक अलग विषय है।
विपक्ष कहां मानने वाला था। मिशन शक्ति पर पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा, “कई सालों से भारत के पास सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता मौजूद है। लेकिन बेवकूफ सरकार ही डिफेंस सीक्रेट का खुलासा करती है। क्योंकि, एक सबल और दिमागदार सरकार कभी नहीं चाहेगी कि उसके डिफेंस सिक्रेट सबके सामने आए।” इसे इस तथ्य से जोड़कर देखिए कि सरकार रफाल विमान की कीमत इसी आड़ में नहीं बता रही है। ऐसा नहीं है कि कीमत बता देने से युद्ध विमान की क्षमता मालूम हो जाएगी। अंदाजा जरूर लग सकता है पर संभावना इस बात की भी रहेगी कि आपने किन्हीं कारणों से कीमत कम या ज्यादा दी होगी। पर सरकार कीमत को लेकर बेहद सतर्क है। कारण आप जानते हैं और बहाना गोपनीयता का। दूसरी ओर यह घोषणा।
अगर आपने अभी तक इस मामले को ठीक से फॉलो किया हो तो यह सब जानते होंगे। अंतरिक्ष में कचरा एक गंभीर मुद्दा है और आप भी सोच रहे होंगे कि सरकार ने ये क्या किया। ठीक किया या नहीं और मुमकिन है आप यह भी सोच रहे हों कि जब क्षमता थी ही तो एक उपग्रह को गिराकर, अंतरिक्ष में अनावश्यक कचरा फैलाने की क्या जरूरत थी? मुमकिन है आपके दिमाग में यह भी हो कि सरकार ने गलत किया और कहीं वाकई यह सब चुनाव प्रचार के लिए तो नहीं है। आपके पास इस उलझन से निकलने का कोई चारा नहीं है। आपको भ्रमित करने की पूरी व्यवस्था है और मीडिया यह काम बखूबी कर रहा है। मैं रोज यही बताने की कोशिश करता हूं।
आइए, अब बताऊं कि इस मामले में आगे क्या हुआ। संभवतः आपको मालूम न हो, आपने ध्यान न दिया हो या मालूम भी हो। आज की चर्चा योग्य खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर, इंडियन एक्सप्रेस में लीड और टाइम्स ऑफ इंडिया में भी कुछ अलग ढंग और शीर्षक से, पर लीड है। हिन्दी अखबारों में अमर उजाला में बॉटम है। नवभारत टाइम्स में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है और भी जगह होगी या नहीं होगी। अखबार में खबर छपना महत्वपूर्ण नहीं है। खबर बनाना या पैदा किया जाना है ज्यादा महत्वपूर्ण और दिलचस्प है। मैं आज इस खबर की चर्चा इसलिए कर रहा हूं कि इस खबर को देखकर मुझे (3 अप्रैल) नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर छपी एक खबर की याद आई। खबर की कतरन पोस्ट कर रहा हूं।
इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, “नासा ने भारत के एक उपग्रह को मार गिराए जाने को भयंकर बताया”। मुख्य शीर्षक है, “भारत के परीक्षण से अंतरिक्ष में फैला मलबा, स्पेस सेंटर को खतरा”। अखबार ने लाल रीवर्स में छापा है, “स्पेस सेंटर को मलबे से खतरा 44 प्रतिशत बढ़ा”। इतने से आप इस खबर की गंभीरता समझ सकते हैं। नवोदय टाइम्स ने इसे उसी गंभीरता से छापा था जितनी गंभीर यह खबर है। बाकी अखबारों का मुझे पता नहीं है। कुछेक अखबारों में यह खबर जरूर थी। आपके अखबार में होगी तो आपने देखा ही होगा। यह खबर वाशिंगटन डेटलाइन से एजेंसी की है। और देश के अखबारों में छपी हो न हो, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिशन शक्ति का प्रभाव आप समझ सकते हैं।
मेरा मानना है कि चिदंबरम नेता हैं और उनका ट्वीट राजनीतिक था। वह डीआरडीओ को संबोधित नहीं था उसकी भाषा-शैली भी सरकार के लिए थी। ऐसे में एक सरकारी मुलाजिम के लिए लिखना कि, “पलटवार किया” अनुचित है। मुमकिन है, उन्होंने सरकार के कहने पर ऐसा किया हो और यह वास्तव में पलटवार ही हो। फिर भी अखबार को इसमें क्यों पड़ना? अखबार पलटवार शब्द का उपयोग किए बगैर यही बात कह सकता था। हालांकि, डीआरडीओ प्रमुख को भी इस पलटवार से बचना चाहिए था। कोई जरूरत नहीं थी कि वे चिदंबरम के ट्वीट का जवाब देते। अगर देना ही था जो नासा के आरोपों या शंकाओं का जवाब देते – देश को भी अच्छा लगता। पर उसकी जरूरत कहां है?
इसी खबर में आगे कहा गया है, मिशन शक्ति की अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा आलोचना करने और लाइव सैटेलाइट के मार गिराने से उत्पन्न मलबे से खतरे की आशंका को डीआरडीओ के चेयरमैन जी सतीश रेड्डी ने सिरे से खारिज किया। उन्होंने कहा कि मिशन शक्ति के दौरान हमने 300 किलोमीटर से भी कम दूरी के लोअर ऑर्बिट को चुना जिससे दुनियाभर के अन्य देशों के स्पेस असेट्स को मलबे से कोई नुकसान न हो। यह बात पहले भी कही गई थी। नासा की खबर इसके बाद की है। फिर भी। उन्होंने साफ किया कि यह सारा मलबा 45 दिन के अंदर नष्ट हो जाएगा। उन्होंने बताया कि भारतीय इंटरसेप्टर की क्षमता 1000 किलोमीटर के ऑर्बिट में सैटेलाइट को गिराने की है।