पगड़ी सँभाल चुनाव आयोग, तेरी रहबरी का सवाल है!

 

शेष नारायण सिंह

चुनाव आयोग की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ गयी है. कैराना और भंडारा-गोंदिया उपचुनाव में ईवीएम में बड़े पैमाने पर खामियां पाई गयीं औअर और चुनाव आयोग ने खुद स्वीकार किया है कि करीब बीस प्रतिशत मशीनें खराब थीं और करीब १२२ बूथों पर फिर से मतदान करवाए गए . कैराना में ७३ बूथों पर दोबारा वोट डालने का आदेश दे दिया गया . यानी एक से डेढ़ लाख वोटों को के बारे में संदेह की बात को चुनाव आयोग ने स्वीकार करके वहां दोबारा मतदान का फैसला कर लिया . उत्तर प्रदेश में तो बीजेपी समेत सभी पार्टियों ने ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी की शिकायत चुनाव आयोग के सक्षम अधिकारियों से की थी. यही राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग की सेवाओं की उपभोक्ता होती हैं . जब सभी पार्टियां ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रही हैं तो सबके लिए चिंता की बात है और लोकतंत्र की मूल अवधारणा को ही सवालों के घेरे में ले लिया गया है .

कैराना और गोंदिया में मतदान शुरू होते ही ईवीएम में गड़बड़ी की ख़बरें आने लगी थीं. बीजेपी की तरफ से किसी जेपीएस राठौर नाम के व्यक्ति ने लखनऊ में बाकायदा चिट्ठी लिखकर मशीनों की खराबी की शिकायत की दी थी. दिन में ही विपक्षी पार्टियों के नेता भी नई दिल्ली में निर्वाचन सदन गए और ईवीएम में खराबी की शिकायत चुनाव आयोग के पास पंहुचाया . उन लोगों ने तो और भी आरोप लगाया , सरकार और चुनाव आयोग की नीयत पर सवाल उठाया लेकिन उसकी सत्यता या असत्यता के बारे में टिप्पणी करना किसी पत्रकार के लिए उचित नहीं होगा. लेकिन इतनी बात तय है कि चुनाव आयोग ने बड़ी संख्या में बूथों पर दोबारा मतदान करवाने का आदेश दे दिया. .विपक्षी पार्टियों की तरफ से की गयी शिकायत में अधिकारियों द्वारा ईवीएम मशीनों में हेराफेरी की शिकायत की गयी थी . इस बात को थोडा बल इस लिए मिल गया है कि चुनाव् आयोग ने गोंदिया के कलेक्टर को वहां से हटाने का आदेश दे दिया है . चुनाव आयोग ने मौके पर तैनात आब्ज़र्वरों के सुझाव के आधार पर यह सारी कारर्वाई की . चुनाव आयोग की तरफ से कहा गया कि आब्ज़र्वरों ने ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों का अध्ययन किया और उन्होंने पाया कि उनमें गड़बड़ी थी इसलिए दुबारा मतदान का आदेश दिया गया है . आयोग की तरफ से कई ऐसी भी तर्क दे दिए गए जो चुनाव आयोग की क्षमता पर सवालिया निशान उठा देते है . बताया गया कि इन मशीनों के बारे में चुनाव संपन्न कराने वाले कर्मचारियों को सही प्रशिक्षण नहीं दिया गया था और मशीनें भयानक गर्मी के कारण भी सही कम नहीं कर पाईं. हालांकि आयोग की तरफ से कहा गया कि वी वी पी ए टी मशीनों में ही गड़बड़ी पायी गयी लेकिन शंका के बीज तो चुनाव आयोग ने डाल ही दिए हैं .

मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने एक अखबार को बताया कि वी वी पी ए टी मशीनों में खराबी कोई नई बात नहीं है लेकिन उसको तुरंत सुधार लिया जाता है . उन्होंने यह भी दावा किया कि २०१९ का चुनाव पूरी तरह से ईवीएएम और वीवीपीएटी के ज़रिये ही करवाया जाएगा .

२८ मई को संपन्न हुए उपचुनावों के दौरान जो कुछ भी हुआ वह लोकतंत्र के लिए निश्चित रूप से नुकसानदेह साबित होगा. पहली बार चुनाव आयोग का खुद का इक़बालिया बयान आया है कि बड़े पैमाने पर मशीनों में गड़बड़ी पाई गयी है . तरह तरह के आरोप प्रत्यारोप हवा में हैं लेकिन इतना तो तय है कि आचुनाव योग ने खुद स्वीकार करके मामले को बहुत ही गंभीर बना दिया है . एक बार फिर बैलट पेपर से चुनाव करवाने की मांग उठ रही है . लेकिन जिन लोगों ने मतदान के दौरान उमीदवारों के गुंडों को बूथ में घुसकर ज़बरदस्ती बैलट पेपरों पर मुहर लगाते देखा है उनको मालूम है कि वह रास्ता तो बिलकुल सही नहीं है, खासकर जब लोकतांत्रिक मान्यताओं वाले राजनेता चुनाव प्राक्रिया से बाहर हो रहे हैं और संसद और विधान सभाओं में ऐसे लोग भरते जा रहे हैं जिनके आपराधिक रिकार्ड सारी दुनिया को मालूम हैं .

ऐसा नहीं है कि पहली बार मतदान के तरीकों की विश्वसनीयता पर राजनीतिक पार्टियों ने सवाल उठाया है. खासकर विपक्षी पार्टियां इस तरह की बातें अक्सर करती रही हैं लेकिन चुनाव आयोग की विश्वसनीयता ऐसी थी कि उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया जाता था . आज की भारतीय जनता पार्टी अपने पूर्व अवतार में भारतीय जनसंघ नाम से जानी जाती थी। 60 के दशक में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद जब कांग्रेस पार्टी कमजोर हुई तो जनसंघ एक महत्वपूर्ण पार्टी के रूप में उभरी। जनसंघ के बड़े नेता थे, प्रो. बलराज मधोक। 1967 में इनके नेतृत्व में ही जनसंघ ने चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था और उत्तर भारत में कांग्रेस के विकल्प के रूप में आगे बढ़ रही थी लेकिन 1971 के लोकसभा चुनावों में पार्टी बुरी तरह से हार गई।बलराज मधोक भी चुनाव हार गए, उनकी पार्टी में घमासान शुरू हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी नए नेता के रूप में उभरे और बलराज मधोक को जनसंघ से निकाल दिया गया । पार्टी से निकाले जाने के पहले बलराज मधोक ने 1971 के चुनावों की ऐसी व्याख्या की थी जिसे समकालीन राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी बहुत ही कुतूहल से याद करते है। 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया और उनकी पार्टी भारी बहुमत से विजयी रहीथी. भारतीय जनसंघ को भारी नुकसान हुआ लेकिन प्रो मधोक हार मानने को तैयार नहीं थे।

उन्होंने एक आरोप लगाया कि चुनाव में प्रयोग हुए मतपत्रों में रूस से लाया गया ऐसा केमिकल लगा दिया गया था जिसकी वजह से, वोट देते समय मतदाता चाहे जिस निशान पर मुहर लगाता था, मुहर की स्याही खिंचकर इंदिरा गांधी के चुनाव निशान, गाय बछड़ा पर ही पहुंच जाती थी। उन्होंने कहा कि इस तरह का काम कांग्रेस और चुनाव आयोग ने पूरे देश में करवा रखा था। बलराज मधोक ने कहा कि वास्तव में कांग्रेस चुनाव जीती नहीं है, केमिकल लगे मतपत्रों की हेराफेरी की वजह से कांग्रेस को बहुमत मिला है। मधोक के इस सिद्घांत को आम तौर पर हास्यास्पद माना गया।

अपने भारतीय जनता पार्टी अवतार में भी पार्टी ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाया था. लोकसभा चुनाव 2009 के बाद भी कांग्रेस को सीटें उसकी उम्मीद से ज्यादा ही मिली थीं . बीजेपी के नेताओं की उम्मीद से तो दुगुनी ज्यादा सीटें कांग्रेस को मिली थीं. बीजेपी वाले चुनाव नतीजों के आने के बाद दंग रह गए। कुछ दिन तो शांत रहे लेकिन थोड़ा संभल जाने के बाद पार्टी के सर्वोच्च नेता लालकृष्ण आडवाणी ने आरोप लगाया कि चुनाव में जो इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन इस्तेमाल की गई उसकी चिप के साथ बड़े पैमाने पर हेराफेरी की गई थी लिहाजा कांग्रेस को आराम से सरकार चलाने लायक बहुमत मिल गया और आडवाणी जी प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए। उसके बाद तेलुगू देशम और राष्ट्रीय जनता दल ने भी यही बात कहना शुरू कर दिया।

उसी साल दक्षिण मुंबई से शिवसेना के पराजित उम्मीदवार मोहन रावले ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी और प्रार्थना की कि पंद्रहवीं लोकसभा का चुनाव रद्द कर दिया जाय। उनका आरोप था कि ईवीएम से चुनाव करवाने में पूरी तरह से हेराफेरी की गई है। अपने चुनाव क्षेत्र के बारे में तो उन्होंने लगभग पूरी तरह से ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी पर भरोसा जताया और वहां के चुनाव को रद्द करने की मांग की थी..

हालांकि यह भी सच है कि ईवीएम का आविष्कार लोकतंत्र के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है। ईवीएम शुरू होने कारण बाहुबलियों और बदमाशों की बूथ कैप्चर करने की क्षमता लगभग पूरी तरह से काबू में आ गई थी. बैलट पेपर के जमाने में इनकी ताकत बहुत ज्यादा होती थी. बंडल के बंडल बैलट पेपर लेकर बदमाशों के कारिंदे बैठ जाते थे और मनपसंद उम्मीदवार को वोट देकर विजयी बना देते थे। शुरू में ऐसा माना जाता था कि ईवीएम के लागू होने के बाद यह संभव नहीं है। मशीन को डिजाइन इस तरह से किया गया है कि एक वोट पूरी तरह से पड़ जाने के बाद ही अगला वोट डाला जा सकता है। ऐसी हालत में अगर पूरी व्यवस्था ही बूथ कैप्चर करना चाहे और किसी भी उम्मीदवार का एजेंट विरोध न करे तभी उन्हें सफलता मिलेगी। सबको मालूम है कि अस्सी के दशक में गुडों ने जब राजनीति में प्रवेश करना शुरू किया तब से जनता के वोट को लूटकर लोकतंत्र का मखौल उड़ाने का सिलसिला शुरू हुआ था, क्योंकि बूथ कैप्चर करने की क्षमता को राजनीतिक सद्गुण माना जाने लगा था। इसके चलते हर पार्टी ने गुंडों को टिकट देना शुरू कर दिया था। इन मशीनों के कारण शुरुआती दौर में बहुत कम बाहुबली चुनाव जीतने में सफल हो पाते थे . लोग मानने लगे थे कि बदमाशों के चुनाव हारने में ईवीएम मशीन का भी बड़ा योगदान होता था. चुनाव आयोग दावे भी करता था कि सब सही है .तत्कालीन चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने एक सेमिनार में दावा किया था कि ई.वी.एम. लगभग फूल-प्रूफ है। इसकी किसी भी गड़बड़ी को कभी भी जांचा परखा जा सकता था .

लेकिन अब वह बात नहीं है .कैराना और गोंदिया में जो हुआ और चुनाव आयोग ने जिस तरह से अपनी गलती मानी उसके बाद उसकी विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है . चुनाव आयोग को अपनी रहबरी की हैसियत को फिर से स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए .

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। 

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