अख़बारनामा: सुप्रीम कोर्ट की ख़बरों के बहाने आलोक वर्मा के मीडिया ट्रायल की ख़बर

संजय कुमार सिंह


वैसे तो मैं सीबीआई के अधिकारियों को जबरन छुट्टी पर भेजे जाने और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में चल रही जांच तथा उसके आदेशों पर अंतिम फैसला आने से पहले की अटकलों के बारे में कुछ लिखने या जो लिखा जा रहा है उसपर टिप्पणी करने के पक्ष में नहीं हूं। पर कल आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का फैसला, उसे ममता बनर्जी द्वारा समर्थन दिए जाने के बाद यह मामला आज फिर सुर्खियों में है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प रहेगा कि सीबीआई से जुड़ी कल की दो खबरों को आज अखबारों ने कैसे और किस शीर्षक से कहां छापा है। आलोक वर्मा से संबंधित खबरों के शीर्षक से तो उनका अच्छा भला मीडिया ट्रायल चलता लग रहा है।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा की खबर को लीड बनाया है। शीर्षक है, वर्मा की वापसी की संभावना नहीं लगती क्योंकि सीवीसी ने गंभीर अनियमितताएं चिन्हित की। एक कॉलम में उपशीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कुछ आरोपों की जांच कराने की जरूरत है। टीओआई ने इस मामले से जुड़ी कुछ और खबरें साथ छापी हैं और आंध्र प्रदेश व पश्चिम बंगाल में सीबीआई का प्रवेश बंद करने के दोनों मुख्यमंत्रियों के फैसले को लीड के नीचे उसी तरह चार कॉलम में छापा है। शीर्षक है, नायडू और ममता ने अपने राज्यों को सीबीआई की पहुंच से बाहर किया, केंद्र से संघर्ष तेज हुआ। अखबार में इसके साथ बॉक्स में बताया गया है, जांच के सीबीआई के अधिकार।

हिन्दुस्तान टाइम्स ने भी सीबीआई की दोनों खबरों को मिलाकर लीड बनाया है। शीर्षक है, सीबीआई प्रमुख के खिलाफ जांच के मिश्रित नतीजे : सुप्रीम कोर्ट। उपशीर्षक है, सीवीसी रिपोर्ट : अभी तक क्लीन चिट नहीं, अदालत ने वर्मा से जवाब मांगा। अखबार ने सीबीआई से जुड़ी दूसरी खबर को इसी मुख्य खबर के साथ एक कॉलम के शीर्षक से छापा है। तीन लाइन में छपा शीर्षक है, आंध्र प्रदेश, बंगाल ने सीबीआई के लिए (दी हुई) सहमति रद्द की।

इंडियन एक्सप्रेस ने सीबीआई से जुड़ी दोनों खबरों को मिलाकर तीन कॉलम में लीड बनाया है। फ्लैग शीर्षक है, दो राज्यों ने एजेंसी के दुरुपयोग का आरोप लगाया। मुख्य शीर्षक है, सीबीआई का युद्ध राज्य बनाम केंद्र बना आंध्र प्रदेश और बंगाल ने एजेंसी को प्रतिबंधित किया। दो कॉलम में उपशीर्षक है, 90 के दशक के बाद से पहली बार राज्यों ने सहमति वापस ली, भाजपा ने इसे भ्रष्टाचारियों का गठजोड़ कहा। अखबार ने एक फ्लैग और एक मुख्य शीर्षक के तहत दो खबरें छापी है। पहली का शीर्षक या मुख्य खबर का उपशीर्षक दो कॉलम में है जिसे मैं पहले लिख चुका हूं। दूसरी खबर का शीर्षक या दूसरा उपशीर्षक एक कॉलम चार लाइन में है। यह शीर्षक है, सीबीआई प्रमुख के लिए झटका, एससी ने उनसे सीबीआई की जांच रिपोर्ट का जवाब देने के लिए कहा।

कोलकाता के अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ ने भी दोनों खबरों को मिलाकर छापा है। सात कॉलम में शीर्षक है, कांपलीमेंट्री और अनकांपलीमेंट्री (यानी सम्मानसूचक और असम्मानसूचक)। इसके नीचे आलोक वर्मा वाली खबर का शीर्षक एक कॉलम चार लाइन में है, सीवीसी रिपोर्ट हाथ में, सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा से जवाब देने के लिए कहा। अखबार ने तीन कॉलम में एक बॉक्स छापा है जिसका शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने अस्थाना से (पूछा) आप कैबिनेट सेक्रेट्री के पास कैसे जा सकते हैं। सीबीआई प्रवेश पर नायडू ने प्रतिबंध लगाया। बंगाल की बात शीर्षक में नहीं है। खबर में लिखा है कि ममता बनर्जी ने नायडू के कदम का समर्थन किया है और वे इसकी कानूनी संभावना तलाशेंगी। अंदर इस शीर्षक से प्रकाशित खबर में कहा गया है कि कुछ राज्य इसके लिए हर साल सहमति देते हैं। बंगाल ने 1989 में दिया था उसके बाद दिया ही नहीं है तो सवाल है कि जो चीज लगभग तीन दशक से दी ही नहीं गई उसे वापस कैसे ले लिया जाए।

नवभारत टाइम्स में आज ऊपर से नीचे तक चार कॉलम का विज्ञापन है। बाकी आधे पेज पर यह खबर लीड है। फ्लैग शीर्षक है, राज्य में सीधी कार्रवाई के एजेंसी के अधिकार रद्द किए। मुख्य शीर्षक है, आंध्र प्रदेश के साथ पश्चिम बंगाल में भी सीबीआई की नो एंट्री। इस खबर के साथ ममता बनर्जी और चंद्र बाबू नायडू की फोटो है। बीच में लिखा है, ममता बनर्जी और चंद्र बाबू की सरकारों ने उठाया अभूतपूर्व कदम। इससे केंद्र व राज्यों में तनातनी बढ़ सकती है कांग्रेस और केजरीवाल ने कदम को सपोर्ट किया। इसके नीचे दो कॉलम में एक बॉक्स का जिसका शीर्षक है, सीबीआई चीफ की जांच में कुछ लोचा मिला, अभी और होगी पड़ताल।

दैनिक भास्कर ने दोनों खबरों को मिलाकर सात कॉलम में लीड बनाया है। फ्लैग शीर्षक में दो बाते हैं – पहली, सीबीआई के झगड़े पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी दूसरी, राज्यों का आरोप – सीबीआई अब भरोसे के लायक नहीं। लगभग छह कॉलम में दो लाइन का मुख्य शीर्षक है, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य में सीबीआई के प्रवेश पर रोक लगाई। इसके साथ एक कॉलम से कुछ ऊपर में चार लाइन में बताया गया है, राज्यों की दलील – एजेंसी के शीर्ष अधिकारियों पर लगे आरोपों के कारण कदम उठाना जरूरी। लीड के साथ दो कॉलम का एक शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा – सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा पर लगे आरोपों में कुछ दम, और जांच जरूरी।

दैनिक जागरण ने आंध्र, बंगाल में सीबीआई की नो-एंट्री शीर्षक खबर को लीड बनाया है। उपशीर्षक है, अब केस दर्ज करने और हर मामले की जांच से पहले दोनों सरकारों इजाजत लेनी होगी। आलोक वर्मा का मामला अखबार ने छोटा सा छापा है और पहले पेज पर सूचना है कि अंदर इस विषय पर संपादकीय है।

अमर उजाला में भी यह खबर लीड है। शीर्षक है, सीबीआई निदेशक वर्मा को क्लिनचिट नहीं। तीन कॉलम में उपशीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा – सीवीसी की रिपोर्ट में कुछ तथ्य अति आपत्तिजनक अभी जांच की जरूरत, आलोक वर्मा से सोमवार तक मांगा जवाब। इस मुख्य खबर के साथ तीन कॉलम में एक और खबर है जिसका शीर्षक है, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्यों में सीबीआई के प्रवेश पर लगाई रोक।

राजस्थान पत्रिका ने दोनों खबरों को तीन कॉलम में ऊपर नीचे छापा है। ऊपर वाले का फ्लैग शीर्षक है, “टकराव : आंध्र और बंगाल सरकार की अनुमति के बगैर नहीं कर सकेगी छापामारी । सीबीआई को अपने राज्यों में अब नहीं घुसने देंगे नायडू और ममता। नीचे वाली खबर का फ्लैग शीर्षक है, सीबीआई संकट जांच एजेंसी के निदेशक ने सोमवार एक बजे तक मांगा जवाब। मुख्य शीर्षक है, वर्मा को फिलहाल क्लिन चिट नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा आगे जांच जरूरी।

नवोदय टाइम्स ने इस खबर को सबसे विस्तार से सभी पहलुओं को एक साथ रखकर छापा है। इसमें पढ़ने के लिए वही सब चीजें हैं जो मैं ऊपर लिख चुका हूं। इसलिए उनके विस्तार में नहीं जा रहा हूं। आप देखिए कि इसमें कितना परिश्रम किया गया है। यह परिश्रम (और प्रतिभा भी) लिखने में लगाई जाती तो खबर अलग होती है पर लगता है टेलीविजन के मुकाबले में अखबारों को सुंदर और रंगीन बनाने पर जोर है। वैसे भी, आजकल पढ़ने से ज्यादा जोर सरसरी निगाह से देखने पर है। माना यही जाता है कि लोग अखबार पढ़ते नहीं है सिर्फ शीर्षक देखते हैं। यह खबर इसी का उदाहरण है। पता नहीं, पाठक असल में इसे कैसे देखते हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 



 

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