चंद्र प्रकाश झा
पचास माह पुरानी इस सरकार के विरुद्धअविश्वास प्रस्ताव गिर जाने के बाद , मई 2019 के पहले निर्धारित अगले आम चुनाव की तैयारियां और बढ़ेंगी। क्योंकि पूरा देश लगभग ‘चुनाव मोड’ में आ चुका है. चुनावी तैयारियां,अविश्वास प्रस्ताव के पहले से ही विभिन्न स्तर पर शुरू हैं। निर्वाचन आयोग के निर्देश पर मतदाता सूची के नवीनीकरण के लिए एक जून से विशेष देशव्यापी अभियान चलाया गया है . स्पष्ट संकेत हैं कि 17 वीं लोक सभा का चुनाव निर्धारित समय पर होंगे। यह संकेत, खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के जवाब में दिए। उन्होंने तंज में कहा कि विपक्ष को अब अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का अगला मौक़ा 2023 में मिल सकता है. इसके पहले उनकी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने हाल की अपनी बिहार यात्रा के दौरान पटना में कहा कि नए लोकसभा चुनाव के लिए निर्धारित समय नहीं बढाए जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अगले लोकसभा चुनाव के बाद मोदी जी के प्रधानमंत्रित्व में ही नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस ( एनडीए ) की सरकार फिर बनेगी।
विपक्षी दलों के कांग्रेस के नेतृत्व में प्रस्तावित महागठबंधन में ही नहीं, बल्कि एनडीए को चुस्त -दुरुस्त करने के प्रयास आगे बढ़ रहे हैं। अमित शाह उसी के लिए बिहार गए थे। भाजपा अध्यक्ष ने 11 -12 जुलाई को पटना में इस गठबंधन को चुस्त किया। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मुख्यमंत्री के राजकीय आवास पर रात्रि भोजन के दौरान बातचीत पूरी कर ली। फिर उन्होंने ऐलान किया कि दोनों दल आम चुनाव साथ लड़ेंगे। भाजपा अध्यक्ष ने दावा किया कि एनडीए राज्य में लोक सभा की सभी 40 सीटें जीतेगा। उन्होंने खुल कर नहीं बताया कि गठबंधन में शामिल दलों में से कौन दल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा। अलबत्ता, अमित शाह ने जोर देकर कहा कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए का ‘चेहरा‘ हैं। बिहार विधान सभा का अगला चुनाव 2021 में होना है। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लोकसभा और सभी राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने के ” एक राष्ट्र -एक चुनाव ” के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव का समर्थन कर चुके हैं। यह निश्चित नहीं है है कि ऐसे में बिहार विधान सभा के नए चुनाव , लोकसभा के अगले चुनाव के साथ ही कराये जाएंगे।
बहरहाल, बिहार में भारतीय जनता पार्टी और उसका गठबंधन एनडीए अगले आम चुनाव की तैयारी में विपक्षी दलों के महागठबंधन से ज्यादा चुस्त नजर आती है। भाजपा की चुनावी रणनीति ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की है। इसलिए वह सहयोगी दलों के साथ नरम पड़ गई है। वह चाहती है कि सीटों के बंटवारे में ऐसा कुछ न हो कि उसे राज्य में सरकार से फिर बाहर जाना पड़े। उसकी यह स्पष्ट चुनावी रणनीति है कि मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जनता दल -यूनाइटेड , विपक्षी महागठबंधन की तरफ न छिटके और एनडीए का ही हिंसा बन चुनाव लड़े। भाजपा ने मौजूदा गठबंधन में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए राज्य में एनडीए का ‘चेहरा‘, नीतीश कुमार को ही घोषित कर दिया है। महागठबंधन की तरफ से ऐसा कुछ भी नही किया गया है।
अमित शाह के अनुसार भाजपा अभी देश के 70 प्रतिशत हिस्से पर शासन कर रही है और उसके 11 करोड़ सदस्य हैं। वह जुलाई 2017 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्रित्व में जनता दल -यूनाइटेड और भाजपा की गठबंधन सरकार बनने के बाद पहली बार बिहार गए थे। पिछली बार भाजपा ने 30 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये थे, जिनमें से 22 जीते थे। संकेत हैं कि भाजपा को अपने निवर्तमान लोक सभा सदस्यों में से कुछ के टिकट अबकी बार काटना होगा। बिहार में एनडीए में, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और केंद्रीय मंत्री मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी शामिल है। ये दोनों दल 2014 का पिछ्ला लोक सभा चुनाव भाजपा के संग लड़े थे। दोनों दल, मोदी सरकार में भी शुरू से शामिल हैं। एलजीपी पिछली बार 7 सीटों पर चुनाव में उतरी थी, पर एक सीट हार गई। आएलएसपी, तीन सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसने तीनों जीती थी। वह इस बार एनडीए के बाकी दलों की रजामंदी के बगैर सबसे ज्यादा सीटें जेडीयू के लिए छोड़ने की पेशकश के खिलाफ है। आएलएसपी के कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि के अनुसार बिहार के सिर्फ 1.5 प्रतिशत मतदाता नीतीश की पार्टी के साथ हैं। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के पुत्र एवं एलजीपी सांसद चिराग पासवान ने खुल कर कुछ नहीं कहा है। बताया जाता है कि एलजीपी की चुनावी दिशा, चिराग पासवान ही तय करते है। पिछली बार भी उन्हीं के दबाब में रामविलास पासवान, आम चुनाव से ऐन पहले फरवरी 2014 में एनडीए में शामिल हुए थे। बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें है। इन्हीं सीटों में से भाजपा को अपने लिए और एनडीए के घटक दलों के बीच आपसी बँटवारा करना है।
एनडीए, संसद के बाहर सिर्फ बिहार में कायम है, जिसका एक लंबा इतिहास है। बिहार से सांसद रहे जॉर्ज फर्नांडीस और शरद यादव एनडीए के कन्वीनर रहे हैं। इस बार कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है पर अंदरूनी हल्कों से मिली जानकारी के मुताबिक़ इस बार भाजपा खुद की सीटों से एक अधिक, कुल 16 लोकसभा सीटें जेडीयू के लिए छोड़ने को राजी हो गई है। एनडीए में शामिल दल राजी हो गए तो भाजपा, पिछली बार एलजीपी की जीती 6 और आरएलएसपी की जीती तीन सीटें छोड़ शेष 15 सीटों पर ही अपने प्रत्याशी खड़ा करने सहमत है।
लोकसभा के 2014 के चुनाव में जनता दल-यूनाइटेड , एनडीए में शामिल नहीं था. तब उसने प्रधान मंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी को एनडीए का दावेदार घोषित करने के विरोध में एनडीए से किनारा कर लिया था। जनता दल-यूनाइटेड ने 2014 का लोकसभा चुनाव एनडीए के संग के बजाय , अपने दम पर लड़ा था। तब उसने सिर्फ दो सीटें जीती थी। वह मोदी सरकार में अभी तक शामिल नहीं है. उसने राज्य विधान सभा का 2015 में हुआ पिछ्ला चुनाव राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बना कर भाजपा के खिलाफ लड़ा था। लेकिन बाद में 2017 में जनता दल -यूनाइटेड ने राजद और कांग्रेस की जगह भाजपा को साथ लेकर नई साझा सरकार बना ली। पिछली बार जेडीयू ने बिहार की कुल 40 सीटों में से दो , भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लिए छोड़ 38 पर उम्मीदवार खड़े किये थे। वह सिर्फ दो जीत सकी. भाकपा, कोई भी सीट नहीं जीत सकी थी।
प्रस्तावित महागठबंधन में शामिल कांग्रेस के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल और अन्य सभी दल ज्यादा से ज्यादा सीटों पर आम चुनाव लड़ना चाहते हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी समेत सभी संसदीय कम्युनिस्ट पार्टियों को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस महागठबंधन के साथ माना जाता है। राष्ट्रीय जनता दल की बागडोर लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव संभाले हुए हैं। वह राज्य के उस पूर्ववर्ती महागठबंधन सरकार में उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं जिसके मुख्यमंत्री नितीश कुमार थे। तेजस्वी अभी विधान सभा में विपक्ष के नेता हैं। राजद, अभी भी सदन में सबसे बड़ी पार्टी है। राजद नेता तेजस्वी यादव प्रस्तावित महागठबंधन के केंद्र के रूप में उभरे हैं। लेकिन उन्हें महागठबंधन की तरफ से अपना ‘चेहरा‘ अभी घोषित नहीं किया गया है। इस बीच, ‘स्पीक मीडिया‘ चुनाव सर्वेक्षण एजेंसी की 17 जुलाई को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ तेजस्वी यादव अभी बिहार में सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं। रिपोर्ट में अगले आम चुनाव में एनडीए को सिर्फ सात सीट और महागठबंधन को 29 सीट मिलने की संभावना व्यक्त करते हुए कहा गया है कि इसे 61 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल सकता है।
( मीडियाविजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)