मीडिया विजिल से चलेंगे ‘तन्मय त्यागी के तीर!’ कार्टून नहीं, ‘नश्तर!’

 

एक ज़माने में ऐसे अख़बार की कल्पना नही की जा सकती थी जिसके मुखपृष्ठ पर कोई कार्टून न हो। यह कार्टून शाहे-वक़्त के लिए आईने का काम करता था। सत्ता के कंगूरों में पौ फटने के साथ एक घबराहट तारी हो जाती थी कि पता नहीं कौन कार्टूनकार किधर से कौन सा बाण चला दे। अख़बार में कार्टून देखने के बाद तय होता था कि उस दिन विपक्ष का हमले की धार कैसी होगी। हाँलाकि नेहरू जैसे प्रधानमंत्री भी इसी देश में हुए हैं जो अपने समय के उस्ताद कार्टूनिस्ट शंकर से भरी महफ़िल कह सकते थे- शंकर! मुझे बख़्शना मत!

बहरहाल, ‘नत्थी पत्रकारिता’ के दौर में अख़बार के पहले पन्ने पर लगभग चौथाई पेज घेरने वाले वाले कार्टूनों की विदाई हो गई। कहीं कोने में सिंगल कॉलम वाले मिलते भी हैं तो बहुत शाकाहारी टाइप। आप उन्हें देखकर हल्के से मुस्कराकर कंधे उचका देते हैं। कार्टूनकार अब ख़ुद को चित्रकार के जामे में फ़िट करने की जुगत भिड़ा रहे हैं।

लेकिन कुछ हैं जो बदलने को तैयार नहीं हैं। जैसे तन्मय त्यागी। उनके सधे स्ट्रोक्स जैसे तलवार की धार और कार्टून जैसे तलवार का वार। वे ‘एडीटोरियल कार्टून’ बनाने के लिए जाने जाते हैं। यानी बिना किसी लाग-लपेट, वे सीधे-सीधे मोर्चा लेते हैं। शैतान के चेहरे पर शैतान लिख देते हैं तन्मय त्यागी, बेहिचक..बेख़ौफ़।

यह सब आपको बताने की वजह है। दरअस्ल, तन्मय अब मीडिया विजिल पर नज़र आएँगे। हफ़्ते में कम से कम एक बार। संभव हुआ तो रविवार या फिर किसी और वार। लेकिन जब भी आएँगे वार करेंगे उन पर, जिन्होंने देश और दुनिया को ग़लीज़ क़िस्म के ‘वॉर’ में उलझा रखा है। उनके इस कॉलम का नाम होगा – तन्मय त्यागी के तीर.. !

ये कुछ औपचारिक क़िस्म की जानकारियाँ हैं तन्मय के बारे में-

तन्मय बहुप्रशंसित और सम्मानित कार्टूनिस्ट हैं। राजनीतिक कार्टूनकारी के लिए 2014 में  वे ‘माया कामथ अवार्ड’ और 2015 में इसी के स्पेशल जूरी अवार्ड से नवाज़े जा चुके हैं। 2015 में हैदराबाद में आयोजित राष्ट्रीय कार्टून प्रतियोगिता में वे अव्वल रहे थे। 2016 में उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया अवार्ड मिला था एडीटोरियल कार्टूनिंग के लिए।

दिल्ली कॉलेज ऑफ़ आर्ट के छात्र रहे तन्मय ने 1989 में टाइम्स ऑफ़ इंडिया से जुड़कर कार्टून बनाना शुरू किया। तब वे देश के सबसे कम-उम्र कार्टूनिस्ट कहे गए थे। वे हिंदुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, इंडिया टुडे, नवभारत टाइम्स, कारवाँ, आउटलुक, जनसत्ता, बीबीसी (हिंदी), तहलका आदि तमाम पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे।

2010 में तन्मय के एडीटोरियल कार्टूनों और कैरीकैचर की एकल प्रदर्शनी दिल्ली की ललित कला अकादमी में लगी थी जिसकी काफ़ी चर्चा हुई थी। साहित्य से जिनका वास्ता है, उन्हें यह जानकर ख़ुशी होगी कि तन्मय प्रख्यात कलासमीक्षक हरिप्रकाश त्यागी के पुत्र हैं। उनके बनाए कवर डिज़ायन और रेखांकनों से भरा राजेंद्र यादव का ‘हंस’ एक अलग ही चमक बिखेरता था। हरिप्रकाश जी अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन तन्मय के काम से उनकी ख़शबू आती है।

किसी के परिचय के लिए इतना काफ़ी है। बाक़ी जो बोलेंगे, कार्टून बोलेंगे। कुछ झलक यहाँ हैं…देखिए तो, कैसा नश्तर लगाते हैं तन्मय त्यागी!

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

कैसे लगे कार्टून….स्वागत करेंगे न..!

 



 

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