आजाद भारत के चुनावी इतिहास में 1977 का आम चुनाव हमेशा बेहद शिद्दत से याद किया जाएगा क्योंकि यह आम चुनाव इससे पहले और इसके बाद अब तक हुए सभी आम चुनावों से कई मायनों में अलग था। छठवीं लोकसभा चुनने के लिए हुए इस चुनाव ने देश में सत्ता का पर्याय बन चुकी कांग्रेस को न सिर्फ सत्ता से बेदखल कर राजनीति की धारा पलट दी थी बल्कि देश में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना भी की थी। एक तरह से यह चुनाव देश की दूसरी आजादी का संघर्ष था। इस चुनाव में कांग्रेस सिर्फ सत्ता से ही बेदखल नहीं हुई बल्कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गईं। 1971 के आम चुनाव में गरीबी हटाओ का नारा देकर अपनी पार्टी कांग्रेस को दो-तिहाई बहुमत दिलाने वाली इंदिरा गांधी का करिश्मा 1974 आते-आते समाप्त होने लगा। गरीबी तो नहीं हटी, लेकिन 1977 में कांग्रेस जरूर सत्ता से हट गई।
1971 के आम चुनाव के कुछ महीने बाद बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को लेकर हुए युद्घ में पाकिस्तान को करारी शिकस्त देकर इंदिरा गांधी दुर्गा के अवतार के रूप में उभरी थीं। इस युद्ध में पाकिस्तान के करीब एक लाख सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष समर्पण किया। युद्ध के दो साल बाद 18 मई 1974 को इंदिरा गांधी ने पोकरन में पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण करवा कर जहां भारत को दुनिया के परमाणु-शक्ति सम्पन्न देशों की जमात के समकक्ष खड़ा कर दिया, वहीं 1975 में सिक्किम का भारत में विलय कर देश के नक्शे का आकार बढ़ाया। इंदिरा गांधी के रूप में पहली बार किसी नेता ने देश के भूगोल का विस्तार किया, लेकिन उनकी इन्हीं अप्रतिम उपलब्धियों के समानांतर जयप्रकाश नारायण (जेपी) के आंदोलन की आहट भी सुनाई देने लगी। पहले गुजरात और फिर बिहार में शुरू हुए इस आंदोलन की लपटें देश के दूसरे हिस्सों में भी पहुंचने लगी। इसी बीच इंदिरा गांधी के खिलाफ 1971 के उनके चुनाव पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आ गया जिसमें उनके निर्वाचन को रद्द करते हुए उन्हें पांच वर्ष के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया। इस पूरे घटनाक्रम से देश की राजनीति जबरदस्त रूप से गरमा गई। जेपी आंदोलन ने इस कदर जोर पकड़ा कि इंदिरा गांधी और उनकी सरकार बुरी तरह हिल गई।
पहली बार विपक्ष एकजुट हुआ, जगजीवन राम और बहुगुणा ने कांग्रेस छोड़ी
उत्तर और दक्षिण ने पकड़ी अलग-अलग राह
1977 के चुनाव की कई विशेषताएं थीं। कांग्रेस तो सत्ता से बाहर हुई ही थी लेकिन पहली बार भारतीय मतदाताओं की मानसिकता और व्यवहार में उत्तर और दक्षिण का विभाजन भी दिखा। लोकसभा की 542 सीटों पर हुए इस चुनाव में कांग्रेस 492 सीटों पर लड़ी थी और उसे 157 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। उसके 18 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। उसका मत प्रतिशत घटकर 34.5 फीसदी रह गया। दिलचस्प यह रहा कि उत्तर भारत में उसका सफाया हो गया था, लेकिन दक्षिण के राज्यों खासकर आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में उसने सबका सफाया कर दिया था। आंध्र की 42 में से 41 सीटें कांग्रेस के खाते मे गईं, जबकि कर्नाटक में वह 28 में से 26 सीटें जीतने में कामयाब रही। उसने तमिलनाडु और केरल में भी क्रमशः 13 और 11 सीटों पर जीत दर्ज की। हैरान करने वाली बात यह भी रही कि जिस गुजरात से जेपी आंदोलन का आगाज हुआ था उस गुजरात में भी कांग्रेस 26 में से 10 सीटें जीतने में कामयाब रही। महाराष्ट्र और असम में भी उसने क्रमशः 20 और 10 सीटों के साथ अपनी असरदार उपस्थिति बनाए रखी। उत्तर भारत के चुनाव नतीजे दक्षिण के ठीक विपरीत रहे। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और हिमाचल की करीब 240 सीटों मे कांग्रेस को मात्र दो ही सीटें मिली थी। उसे कुल मिली 154 सीटों में से 92 सीटें दक्षिण भारत की थीं।
चार प्रमुख दलों के विलय से जनता पार्टी का गठन जरुर हो गया था, लेकिन तकनीकी तौर पर उसे राष्ट्रीय स्तर के मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल का दर्जा हासिल नहीं हुआ था, लिहाजा उसके सारे उम्मीदवार भारतीय लोकदल के चुनाव चिह्न हलधर पर ही चुनाव लड़े। जनता पार्टी ने 405 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए जिनमें से 295 जीते। उसके मात्र पांच उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई। उसे 41 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। जगजीवन राम की पार्टी को भी तीन सीटें मिली और उन्होंने चुनाव नतीजे आने के बाद अपनी पार्टी का जनता पार्टी में विलय कर दिया। इस प्रकार जनता पार्टी के सांसदों की संख्या 298 हो गई। माकपा को 22 सीटें मिली जबकि कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी भाकपा को महज सात सीटों से ही संतोष करना पड़ा। उधर तमिलनाडु में द्रविड़ मुनैत्र कषगम (द्रमुक) में हुए विभाजन से ऑल इंडिया अन्ना द्रमुक उदय हो गया था। एमजी रामचंद्रन के नेतृत्व में अन्ना द्रमुक को राज्य की 39 में से 18 सीटों पर विजय मिली, जबकि एम करुणानिधि की द्रमुक को मात्र दो सीटें मिली। इस चुनाव में नौ निर्दलीय भी चुनाव जीतने मे सफल रहे। देश भर में कुल 2439 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था जिनमें से 1356 की जमानत जब्त हो गई थी। चुनाव मैदान में 70 महिलाएं भी थीं जिनमें से 19 को जीत हासिल हुई और 31 को अपनी जमानत गंवानी पड़ी।
कांग्रेस के दक्षिणी किले में नहीं आई दरार
इस चुनाव मे जीत-हार का गणित भी कम चौंकाने वाला नहीं था। उत्तर भारत में जनता पार्टी के सभी दिग्गज और दक्षिण भारत तथा पूर्वोत्तर के सभी बड़े कांग्रेसी नेता चुनाव जीतने मे कामयाब रहे। तमिलनाडु की मद्रास-दक्षिण सीट से कांग्रेस के नेता आर. वेंकटरमण चुनाव जीते जो बाद में देश के राष्ट्रपति बने। केरल से व्यालार रवि, सीएम स्टीफन और केपी उन्नीकृष्णन जीते। आंध्र प्रदेश के तीनों कांग्रेसी दिग्गज पीवी नरसिंहराव, बह्मानंद रेड्डी और विजय भास्कर रेड्डी भी चुनाव जीत गए थे। कर्नाटक से बी. शंकरानंद और सीके जाफर शरीफ की भी जीत हुई थी। आपातकाल के दौरान ‘इंदिरा इज़ इंडिया’ कहकर चाटुकारिता की राजनीति के चरम पर पहुंचे कांग्रेस नेता देवकांत बरुआ भी असम की कलियाबोर सीट से जीतने में कामयाब रहे। जोरहाट से तरुण गोगोई को भी जीत हासिल हुई थी। मेघालय की तुरा सीट से पीए संगमा और ओडिशा की कोरापुर सीट से गिरिधर गोमांग की भी जीत हुई थी। महाराष्ट्र के सतारा संसदीय क्षेत्र से यशवंतराव चव्हाण भी जीत गए थे। जम्मू-कश्मीर की उधमपुर सीट से कर्ण सिंह और गोवा की मार्मुगाओ सीट से एडुअर्डो फलेरियो भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत गए थे। गुजरात के अहमदाबाद संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के एहसान जाफरी भी जीते थे, जो 2002 में गोधरा हादसे के बाद गुजरात में हुई भीषण सांप्रदायिक हिंसा के दौरान जिंदा जला दिए गए। कांग्रेस की सबसे आश्चर्यजनक जीत राजस्थान की नागौर सीट से नाथूराम मिर्धा और मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा सीट से गार्गी शंकर मिश्र की थी। समूचे उत्तर भारत में सिर्फ यही दो सीटें कांग्रेस की झोली में गई थी। 1971 के आम चुनाव में जनसंघ के टिकट जीतने वाले माधवराव सिंधिया इस चुनाव में मध्य प्रदेश की गुना सीट से निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते।
जनता पार्टी के सभी दिग्गज चुनाव जीते
जनता पार्टी की ओर से जीते दिग्गजों में मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, बाबू जगजीवन राम, मधु लिमये, अटल बिहारी वाजपेयी, राजनारायण, जार्ज फर्नांडीस, कर्पूरी ठाकुर, चंद्रशेखर, हेमवती नंदन बहुगुणा आदि शामिल थे। मोरारजी देसाई गुजरात की सूरत सीट से चुनाव जीते थे। जगजीवन राम भी बिहार की सासाराम सीट से लगातार छठी बार लोकसभा में पहुंचे थे। बिहारी की बांका संसदीय सीट से मधु लिमये और मुजफ्फरपुर सीट से जार्ज फर्नांडीस चुनाव जीते थे। अटल बिहारी वाजपेयी इस बार नई दिल्ली से और चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश की बागपत सीट से जीते। सबसे दिलचस्प जीत समाजवादी नेता राजनारायण की हुई। जिस रायबरेली क्षेत्र से वे 1971 में इंदिरा गांधी से हारे थे उसी रायबरेली से उन्होंने इस चुनाव में इंदिरा गांधी को हरा दिया। इलाहाबाद से विश्वनाथ प्रताप सिंह को हराकर जनेश्वर मिश्र भी लोकसभा में पहुंचे। अल्मोड़ा से मुरली मनोहर जोशी जीते थे तो उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से नानाजी देशमुख की जीत हुई। चौंकाने वाली जीत नीलम संजीव रेड्डी की भी रही। वे आंध्र प्रदेश के नांदयाल लोकसभा क्षेत्र से जीते थे। आंध्र प्रदेश में यही एकमात्र सीट जनता पार्टी को मिली थी। बाकी आंध्र की 42 में से 41 सीटें कांग्रेस को मिली थीं।
जनता पार्टी की लहर में गिरे कई कांग्रेसी बरगद
क्रमश:
इस स्तंभ के लेखक अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं