चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, मुकेश साहनी और शरद यादव जैसे हाइप्रोफाइल प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में बंद हो चुका है। बिहार में किसकी सीटें अधिक रहेंगी, इसको लेकर तीन चरण के चुनाव जीतने के बाद भी चुनावी पंडित अस्पष्ट हैं। अभी तक महागठबंधन को थोड़ी बढ़त दिख रही है, लेकिन चौथे चरण से बीजेपी का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। बीजेपी अब राम मंदिर, आतंकवाद, प्रज्ञा ठाकुर, परमाणु धमकी, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों के सहारे मतदाताओं के ध्रुवीकरण की तरफ बढ़ चली है। बेगूसराय से भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह तो हरे रंग को सीधे पाकिस्तान से जोड़कर निशाना साध रहे हैं।
पीछे मुड़कर यदि 2014 के परिणामों पर नजर डालें तो चौथे से सातवें चरण की सीटों पर एनडीए अपेक्षाकृत मजबूत रहा है, हालांकि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले महागठबंधन के जातिगत समीकरण पर भी नजर डाल लेनी चाहिए। लालू प्रसाद यादव की नामौजूदगी में तेजस्वी की अगुवाई वाला महागठबंधन पहली बार गैर-यादव पिछड़े समाज (कुशवाहा, बिंद, साहनी, चौहान, बेलदार) और गैर-पासवान दलित समाज को कमोबेश अपनी तरफ खींचता दिख रहा है। कह सकते हैं कि बीजेपी के कमंडल और राष्ट्रवाद को जातिगत गोलबंदी से कड़ी चुनौती मिल रही है। सवाल है ऐसा कैसे हुआ और आखिर क्यों?
सवाल सिर्फ नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आने का ही नहीं है, बल्कि नीतीश कुमार भी वोट बैंक के मामले में कमजोर पड़ते दिख रहे हैं। बिहार में नीतीश कुमार लंबे समय तक कुर्मी, कुशवाहा और धानुक के कोर वोट के साथ साथ अतिपिछड़ी जातियों को अपने पक्ष में गोलबंद करते रहे हैं, लेकिन इस बार रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा, वीआईपी के मुकेश साहनी और हम के जीतनराम मांझी नीतीश कुमार के कोर वोट में सेंध लगाते दिख रहे हैं। कुर्मी और धानुक वोट में भी सेंधमारी हो रही है। इससे चुनाव हर गुजरते चरण के साथ रोचक होता जा रहा है।
इसी तरह से औरंगाबाद में चित्तौड़गढ़ का किला ध्वस्त होने के कयास लगाए जा रहे हैं। यहां अगड़ा बनाम पिछड़ा होने की चर्चा है। वहीं दूसरे चरण में भी महागठबंधन अपने जातिगत समीकरण को काफी हद तक बनाए रखने में सफल रहा है। तीसरे चरण में मुकेश साहनी की राह आसान दिख रही है तो झंझारपुर और मधेपुरा में बहुत कड़ा मुकाबला है और जदयू को बढ़त मिल सकता है। महागठबंधन के वोटों के ध्रुचीकरण और ब्राह्मण वोटों की शिफ्टिंग से सुपौल आसान होता दिख रहा है। अररिया में वोटरों के बीच हिंदू-मुस्लिम उन्माद को बढ़ावा देने संबंधी एक ऑडियो क्लिप की चर्चा रही, तो सुपौल में राहुल गांधी की उपस्थिति में रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा ने रंजीता रंजन और मधेपुरा से शरद यादव के पक्ष में वोटिंग की अपील की। इससे महागठबंधन नेताओं में हर सीट को लेकर गंभीरता को समझा जा सकता है।
महाचंद्र सिंह सहित कई बड़े नेता जीतन राम मांझी का साथ छोड़ चुके हैं, बावजूद इसके उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश साहनी जदयू के आधार वोट में तगड़ी सेंधमारी कर रहे हैं। कह सकते हैं कि महागठबंधन का जातिगत समीकरण कमोबेश एक-दो सीटों को छोड़कर वोट स्थानांतरित करने में अभी तक सफल दिख रहा है और एनडीए को कड़े मुकाबला का सामना करना पड़ रहा है। जाहिर है, बिहार नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी, दोनों के लिए आसान नहीं है और मुकाबला बराबरी पर छूट सकता है।