क्या लोकपाल सर्च कमेटी की मेंबर अरुंधति भट्टाचार्य रिलायंस समूह की स्वतंत्र निदेशक हो सकती हैं?
रवीश कुमार
क्या इसी तरह से निष्पक्ष लोकपाल चुना जाएगा? क्या अरुंधति भट्टाचार्य को लोकपाल की सर्च कमेटी से इस्तीफा नहीं देना चाहिए? रिलायंस की कंपनी के स्वतंत्र निदेशक के तौर पर पांच साल तक जुड़ने वाली अरुंधति भट्टाचार्य कैसे लोकपाल सर्च कमेटी का हिस्सा हो सकती हैं? क्या सर्च कमेटी के अध्यक्ष जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई को उन्हें कमेटी से हटा नहीं देना चाहिए या अरुंधति भट्टाचार्य को ख़ुद से इस्तीफा नहीं देना चाहिए?
पांच साल बीतने जा रहे हैं अभी तक लोकपाल का गठन नहीं हुआ है। इसका सिस्टम कैसे काम करेगा, इसके कर्मचारी क्या होंगे, दफ्तर कहां होगा, कुछ पता नहीं है मगर अब जाकर सर्च कमेटी बनाई गई है वह भी सुप्रीम कोर्ट के बार बार पूछने पर। लोकपाल बनेगा भी तो चुनावों में प्रचार के लिए बनेगा कि बड़ा भारी काम कर दिया है।
एयर इंडिया को बचाने के लिए राष्ट्रीय लघु बचत योजना के पैसे को डाला गया है। भारत सरकार ने लघु बचत योजना से निकाल कर 1000 करोड़ एयर इंडिया को दिया है। पब्लिक प्रोविडेंट फंड, सुकन्या समृद्धि योजना और किसान विकास पत्र में जो आप पैसा लगाते हैं, उसी समूह से 1000 करोड़ निकाल कर एयर इंडिया को दिया गया है। इस पैसा का निवेश सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करती ही हैं। 2018-19 में राष्ट्रीय लघु बचन योजना में भारत के आम साधारण लोगों ने 1 ख़बर रुपये जमा किए हैं। एयर इंडिया ने सरकार से 2121 करोड़ की मदद मांगी थी। इस पर तेल कंपनियों का ही 4000 करोड़ से अधिक का बकाया है।
यह रिपोर्ट टाइम्स आफ इंडिया ने की है। क्या राष्ट्रीय लघु बचत योजना का पैसा एक डूबते जहाज़ में लगाना उचित होगा? पत्रकार शेखर गुप्ता ने ट्विट किया है कि यह भारत सरकार की तरफ से भरोसा तोड़ना जैसा है। निम्न मध्यमवर्गीय तबके की मेहनत की कमाई डूबते जहाज़ में लगाई जा रही है। लुटे देश का आम नागरिक। इस पर फाइनेंशियल एक्सप्रेस के संपादक सुनील जैन ने ट्वीट किया है कि भारत सरकार ने एयर इंडिया को बाज़ार से लोन लेने के लिए गारंटी दी है। माना जाता है कि ऐसे में राष्ट्रीय लघु बचत योजना के डूबने की बात नहीं है। आप जानते हैं कि एयर इंडिया को बेचने का प्रयास हुआ मगर कोई ख़रीदार नहीं आया।
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट है कि सरकारी बैंकों ने NTPC के लिए फंड की व्यवस्था की है ताकि वह उन कोयला आधारित बिजली घरों को ख़रीद सके जो घाटे में चल रहे हैं। ऐसे बिजली उत्पादन इकाई की संख्या 32 बताई जाती है। इनमें से NTPC ने ख़रीदने के लिए 9-10 इकाइयों का चयन किया है। जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 10 गीगावाट्स है। जब बिजली की मांग तेज़ी से बढ़ती जा रही हो तब बिजली उत्पादन इकाइयों के घाटे में जाने के क्या कारण हैं?
इधर का घाटा, उधर का सौदा। इस नीति के तहत एक जाता है कि हम दिवालिया हो गए हैं। दूसरा जाता है कि ठीक है हम कम दाम में आपको खरीद लेते हैं। जो बैंक दिवालिया होने वाली कंपनी के कारण घाटे में हैं वही बैंक इन कंपनियों को कम दाम में ख़रीदने के लिए दूसरी कंपनी को लोन दे देते हैं। ये कमाल का हिसाब किताब है जिसे समझने के लिए आपको इस तरह के विषयों में दक्ष होना पड़ेगा। जानना होगा कि कैसे इस प्रक्रिया में पुराना मालिकाना मज़बूत हो रहा है या उसकी जगह नया मालिकाना जगह ले रहा है। जानने की कोशिश कीजिए।
लेखक मशहूर टीवी पत्रकार हैं।