स्वामित्व योजना: मालकियत देने या हक छीनने की योजना?

पंचायती राज दिवस के दिन 24 अप्रैल, 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने देश के ग्राम सरपंचों को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सम्बोधित किया था। साथ ही, मोदी जी ने ई-ग्राम स्वराज एप तथा स्वामित्व योजना की शुरुआत की। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा, स्वामित्व योजना के द्वारा गांवों की सीमांकन नवीनतम ड्रोन सर्वेक्षण तकनीक के माध्यम से की जाएगी, जिससे हर ग्रामीण को उसका मालिकाना हक मिलेगा। शुरूआती दौर में पायलट प्रोजेक्ट के तहत देश के 6 राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इस योजना को लागू करने की बात कही गई है। जिसके तहत लगभग एक लाख गाँवों का सीमांकन किया जायेगा। इस प्रोजेक्ट की सफलता के बाद इसे पूरे देश के 6.62 लाख गांव में लागू किए जाने की योजना है। सर्वेक्षण को चार साल (2020-24) की अवधि में पुरे देश में चरणबद्ध तरीके से किया जायेगा।

प्रस्तावित महत्वाकांक्षी योजना के रुपरेखा में कहा गया है, आबादी क्षेत्रों का सीमांकन पंचायती राज मंत्रालय, राज्य के पंचायती राज विभाग, राज्य के राजस्व विभागों और भारतीय सर्वेक्षण विभाग के सहयोग से ड्रोन सर्वेक्षण तकनीक का उपयोग करते हुए किया जाएगा। इससे गाँवों में बसे हुए ग्रामीण क्षेत्रों में घरों में रहने वाले गाँव के गृहस्वामियों को ‘अधिकार अभिलेख’ उपलब्ध कराया जायेगा, जो उन्हें बैंकों से ऋण लेने और अन्य वित्तीय लाभों के लिए अपनी संपत्ति को वित्तीय संपत्ति के रूप में उपयोग करने में सक्षम बनाएगा। इसके अलावा, यह ग्राम पंचायतों की कर संग्रह औए मांग मूल्यांकन प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने के लिए संपत्ति और परिसंपत्ति रजिस्टर के अपडेशन को भी सक्षम करेगा। यह संपत्ति कर के निर्धारण का मार्ग भी प्रशस्त कर सकता है, जो उन राज्यों में सीधे ग्राम पंचायतों को प्राप्त होगा जहाँ से ये विकसित हैं।

इस योजना के तहत व्यक्तिगत ग्रामीण संपत्ति के सीमांकन के अलावा अन्य ग्राम पंचायत और सामुदायिक संपत्ति, जैसे गाँव की सड़कें, तालाब, नहरें, खुले स्थान, स्कूल, आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य उपकेंद्र आदि का भी सर्वेक्षण किया जाएगा और भौगौलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) मानचित्र बनाए जाएंगे। कहा गया है कि ये भौगौलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) नक़्शे और स्थानीय डेटाबेस ग्राम पंचायतों और राज्य सरकार के अन्य विभागों द्वारा किए गये विभिन्न कार्यों के लिए सटीक कार्य अनुमान करने में मदद मिलेगा। जिसका उपयोग बेहतर गुणवत्ता वाली ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) में भी किया जा सकता है।

संभव है कि यह एक लाभप्रद योजना सिद्ध हो। लेकिन इसके साथ कई अहम सवाल भी खड़े हो उठते हैं। मसलन, सबसे महत्वपूर्ण सवाल कि ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर लोगों के जमीनी कागजात गाँव के किसी एक पढ़े-लिखे मुखिया टाइप व्यक्ति के हाथों में रखा जाता था/है। अभी भी गाँवों में ऐसे बहुत विवाद हैं, जिसमें कागजात किसी अन्य व्यक्ति के पास हैं और जमीन कोई और जोत रहा है। कई बार ऐसा भी होता है कि जमीन के वास्तवित मालिक, जो अपनी कागजात गाँव के उस शिक्षित व्यक्ति को रखने दिया होता हैं। लेकिन वे शिक्षित व्यक्ति बाद में इससे मुकर जाते हैं और कहते हैं, वो कागजात उनके पास नहीं हैं। चूँकि यह प्रक्रिया पीढ़ी-दर-पीढ़ी होती है इसीलिए उस विवाद का समाधान कभी नहीं हो पाता। ऐसे भूस्वामियों को इस योजना के तहत कैसे मालिकाना हक़ दिया जाएगा, यह एक बड़ा सवाल है। क्योंकि उनके पास तो अपना मालिकाना सिद्ध करने के लिए कोई कागजात नहीं हैं।

वरिष्ठ पत्रकार और वन एक्टिविस्ट सत्यम श्रीवास्तव बताते हैं, यह एक पुरानी योजना है। यह कोई नई नहीं है। बस इसका नाम बदला गया है। लगभग 8-10 साल पहले ही इस योजना की शुरुआत हो चुकी थी। जिसके तहत सेटेलाइट द्वारा मैपिंग करने की योजना थी, ताकि सभी तरह की जमीनों का डिजिटल नक्शा तैयार किया जा सके। जिससे लोगों को सहूलियत हो। वर्तमान सरकार सेटेलाइट की जगह ड्रोन से करना चाहती है। सरकार ऐसा क्यों कर रही है, इसपर सवाल उठना चाहिए।

जब ऐसे ही सवाल की पड़ताल में पी. साईनाथ से बात की तो उन्होंने बताया, इस योजना में ड्रोन का इस्तेमाल असल में टेक्निकल कंपनी या ठेकेदारों को मुनाफ़ा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो सोचने वाली बात है कि फसल नुकसान पर आप सेटेलाइट से मैपिंग करते हैं, जो पूर्णतः असफल रहा है क्योंकि सेटेलाइट डेटा तालुका लेवल में गणना करती है। लेकिन जब आप मुआवजा देते हैं तो गाँव स्तर पर गणना करना होगा। इसीलिए सेटेलाइट से नुकसान का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन वही जब आपको गांवों की मैपिंग करनी हैं तो आप ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। ताकि निजी कंपनियों को फ़ायदा पहुँचाया जा सके।

इस योजना के नामकरण पर ही सवाल उठाते हुए सत्यम श्रीवास्तव कहते हैं, स्वामित्व योजना दरअसल में ग्रामीणों की सम्पतियों के अधिकारों को मान्यता देने की योजना है। इसे मान्यता भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि घर, जमीन आदि तो ग्रामीणों की ही हैं। इस योजना के तहत सिर्फ इसका डिजिटल रिकॉर्ड बनाया जा रहा है। फिर इसे ‘स्वामित्व’ क्यों कहा जा रहा है?

जैसाकि योजना के रुपरेखा में साफ तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में कर (टैक्स) लगाने की ओर इशारा किया गया है। इसपर आगे वे कहते हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में कर लगाने का परिणाम बुरा होगा कि पंचायतों से कहा जायेगा कि वह अपना कर खुद लें। इससे केंद्र और राज्य द्वारा पंचायतों को जो पैसे/फण्ड मिलता हैं, वह कम कर दिया जायेगा अर्थात् यह कह कर पंचायती फण्ड में कटौती की जा सकती है कि अब तो पंचायत खुद भी कर से अपना आय कमा सकता है।

ए. एन. सिन्हा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस, पटना में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और ग्रामीण विकास विशेषज्ञ डी. एम. दिवाकर के अनुसार, असल में यह योजना गाँवों के लोगों को मालकियत देने के नाम पर छिनने का काम करेगा। जैसाकि इस योजना के तहत संस्थागत ऋण (लोन) देने की बात की गई है लेकिन सरकारी पॉलिसी ऐसी है कि अगर कोई किसान ऋण लेते हैं और किसी कारण बस चुका नहीं पाते तो उसके घर तक को नीलम कर दिया जाता है। उसे आत्महत्या करने पर विवश कर दिया जाता है। जबकि कॉर्पोरेट अगर ऋण न चूका पाएं तो उसे बट्टा में डाल दिया जाता है। वास्तव में, यह ऋण अर्थव्यवस्था का धंधा है। आगे वे कहते हैं, इस योजना से ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे स्किल पर काम करने वाले, लोकपाल, पटवारी आदि की नौकरी भी जा सकती है।

विदित हो यह कोई नई योजना नहीं है। इससे पहले ही कुछ राज्यों ने इस तरह की योजना का आग़ाज़ कर चुके हैं। मसलन 2008 में ही मध्यप्रदेश में गाँवों के लोगों को मालकियत देने के लिए “मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास अधिकार पुस्तिका” योजना लंच कर दी गई थी। जबकि महाराष्ट्र में ड्रोन से मैपिंग के लिए 2019 के मध्य ही “ड्रोन बेस्ड मैपिंग प्रोजेक्ट” को अहमदनगर जिला के निमगांव कोरहले से शुरू किया जा चुका है। जिसके तहत शुरुआती दौर में लगभग 44 हज़ार गाँवों को मैपिंग करने की योजना थी। इस साल के शुरुआत में मध्यप्रदेश में भी इसे लागू कर दी गयी थी।


 जगन्नाथ ‘जग्गू’, स्वतंत्र लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। जगन्नाथ दिल्ली विश्वविद्यालय में रिसर्च फेलो भी हैं।

 


 

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