एक भूला हुआ सवाल: आजादी क्या होती है?

आजादी क्या होती है? इससे पहले कि जवाब में कोई रटा हुआ निबंध सुनने को मिले, यहां मैं दो किस्से सुनाना चाहता हूं। एक असल जिंदगी का, दूसरा लिखा हुआ। मंटो के पास एक फिल्मी पत्रिका निकालने का प्रस्ताव आया। अब से कोई सत्तर साल पहले 50 रुपये महीना पगार वाले ऑफर के साथ। मंटो ने कहा, उन्हें सिर्फ 25 रुपये महीने की तनख्वाह चाहिए। पत्रिका नियमित निकला करेगी, इस बात की गारंटी है। शर्त सिर्फ एक कि उनके दफ्तर आने-जाने का वक्त तय नहीं होगा।

प्रस्ताव लाने वाले ने मंटो को उनकी इस शर्त के लिए उनके सामने ही पागल कहकर गाली बकी, लेकिन खुद मंटो का फंडा इस बारे में बिल्कुल साफ था। वे शादीशुदा, बाल-बच्चेदार आदमी थे। मुंबई शहर में जिंदा रहने के लिए पैसों की उन्हें सख्त जरूरत थी। लेकिन अपनी आजादी उनके लिए और भी ज्यादा जरूरी थी, जिसके लिए अपनी पगार आधी करा लेना उन्हें बिल्कुल सही सौदा लगा।

इस बात को चरम बिंदु तक जाकर समझना हो तो मक्सिम गोर्की की कहानी ‘मकार चूद्र’ सुननी होगी। यह मध्य एशिया के विशाल घसियल मैदानों में भटकने वाले इसी नाम के एक बूढ़े बंजारे की कहानी है। बल्कि उसके मुंह से सुनी एक कहानी की कहानी, जिसमें उतरने से पहले आपको उसकी कही एक बात सुननी पड़ेगी।

‘लोग भी अजीब होते हैं। दुनिया में इत्ती सारी जगह पड़ी है, फिर भी आपस में घचड़-पचड़ हुए रहते हैं। जमीन जोतने वाला अपनी सारी ताकत जमीन में उड़ेलता जाता है। ऐसा करके वह न सिर्फ अपनी शक्ति बल्कि स्वतंत्रता भी खो देता है। मिट्टी से बंधा है वह, मिट्टी से। मैं तो इतना घूमा हूं, इतना सारा देखा-सुना है कि तुम उसे उतारने बैठो तो 1000 बोरे कागज कम पड़ जाएंगे।’

यही मकार चूद्र लेखक गोर्की को बंजारे नौजवान लोइको जोबार और उसी की हमउम्र बंजारन रादा के प्यार की कहानी सुनाता है। विचित्र कहानी, जिसमें आजादी प्यार से जा टकराती है। बहुत कठिन संघर्षों से गुजरने के बाद लोइको और रादा का इश्क कामयाब होता है, लेकिन शादी के कुछ ही समय बाद लोइको को लगने लगता है कि वह अपनी सबसे जरूरी चीज, अपनी आजादी कहीं खो आया है। फिर एक नई जद्दोजहद उसके भीतर शुरू होती है, जिसका अंत उसके हाथों रादा की हत्या के रूप में होता है।

यह सर्वनाश है। एक झटके में सब खत्म- आजादी, प्रेम, रादा, लोइको। लेकिन ढलती रात में अलाव के इर्द-गिर्द दुख से भारी हृदय और नींद से भारी पलकें लिए वक्ता और श्रोता, हर कोई जब नींद के आगोश में जाने को तैयार है, तब भी स्तेपी के विस्तीर्ण मैदानों का मौन संगीत सब तरफ गूंज रहा है। आजादी को हर जीवन मूल्य से ऊपर ले जाता हुआ! अफसोस की बात यह नहीं कि हम आजादी के मायने नहीं जानते। जानने की कोशिश छोड़ दी, यह जरूर है।

First Published on:
Exit mobile version