गंगादीन से गलती हो गई….

 

तो दोस्तों, देश कहां जा रहा है, कोई सवाल नहीं है. कहने वाले कहते हैं, और सही कहते हैं, कि भाई ये ना पूछो कि कहां जा रहा है, कि कहीं तो जा रहा है. हम कहें कि रसातल में जा रहा है, तो कहने वाले बड़ी मासूम मुस्कुराहट के साथ पूछते हैं कि 1. तुम्हें कैसे पता कि ”रसातल” में जा रहा है? तुम क्या रसातल का रास्ता जानते हो? 2. अब रसातल में जा रहा है, तो पहले कहां जा रहा था? 3. पहले तो बेटा ये बताओ कि तुम इत्ते राष्ट्रविरोधी क्यों हो, कि जब सारी दुनिया में देश का डंका बज रहा है तो वो तुम्हें रसातल में जाता दिखाई दे रहा है. कहना उनका ये है कि असल में रसातल में जा रहे हैं हम, और बदनाम देश को कर रहे हैं, क्या कहें, कभी-कभी तो यूं लगता है कि उनकी बात को ही सच मान लें, कि हम भी तो आखिर रसातल में ही जा रहे हैं.

सुनते हैं बिहार में ई डी और सी बी आई, ने जैसा कि अपेक्षित था, अपनी कार्यवाही या जो भी उसका नाम हो, वो शुरु कर दी है. अभी राजद के तीन सदस्यों के घर छापा पड़ा है, जरूरत पड़ी तो और भी लोगों के घर छापा मारा जा सकता है, किसी ने बताया कि सेम-टू-सेम कार्यवाही झारखंड में हो रही है. होनी ही चाहिए, क्या फायदा पीएम-एच एम होने का अगर तुम इन जांच एजेंसियों को अपने लिए इस्तेमाल ना कर पाओ. हमारे यहां तो ट्रैफिके के चालान से बचने के लिए बुआ के लड़के के दोस्त के पापा को फोन कर दिया जाता है, पूरे ठसके के साथ, अब किस मुंह से कहें कि गलत हो रहा है. अगर स्मूथ पाॅलिटिक्स चाहिए तो भैया सबका लाइन में रहना जरूरी है, और सबको लाइन में रखने के लिए जैसा कि कहा गया है, साम, दाम, दंड, और भेद में से किसी का भी सहारा लिया जा सकत है. तो शांति से बैठकर, लिए गए दाम ”पण्य” के बारे में तथाकथित कहानी बनाइए, ओर भेद का खुलासा करने वाली जांच एजेंसी को सीधे उस शत्रु की राह पर लगा दीजिए जिसे दंड देना है. सत्येन्द्र जैन हों, मनीष सिसोदिया हों, लालू या लालू सुपुत्र हों, सोरेन हों, सेतलवाड हों, या गंगादीन हों…..

खेला शुरु होता है अब, आप पूछेंगे कि ये इत्ते बड़े-बड़े नामों में गंगादीन कहां से आ गया. तो हुआ यूं कि गंगादीन हमारे मोहल्ले में, हमारे ही घर से कुछ तीन-चार घर छोड़ कर एक खाली-उजाड़ प्लाट में काली प्लास्टिक की पन्नी की छाज के नीचे, खटखटिया मेज पर कई तहों में कपड़ा बिछा कर प्रेस करने वाले भैया का नाम है. सुबह लोग कपड़े दे जाते हैं, और सुविधानुसार शाम तक प्रेस किए हुए कपड़े ले जाते हैं. गंगादीन सूरत से ही दीन लगते हैं, बिल्कुल शांत भाव से पूरा दिन, कपड़ों को प्रेस करते हैं, और निर्लिप्त भाव से प्रेस किए हुए कपड़ों का लेन-देन करके अपनी आजीविका चलाते हैं. पिछले हफ्ते गंगादीन ने एक बड़ी गलती कर दी. हुआ यूं कि शाम को पत्नि ने कहा कि बाज़ार से दूध ले आओ, गंगादीन दुकान पर गए, दूध की कीमत और जी एस टी दिया और दूध ले आए. मुसीबत ये है कि दूध की कीमत पिछले दिनों पैट्रोल की कीमतों के साथ पेंच लड़ाने की कोशिश कर रही हैं, थमने का नाम ही नहीं ले रही. इसलिए गंगादीन पिछले डेढ़-दो सालों से बिना दूध की काली चाय पी रहे हैं, जिसमें पत्ती और चीनी भी कम ही होती है. चाय की दुकानों से हमने ये तो सीख ही लिया है कि एक चम्मच पत्ती से कई कप चाय बन सकती है, अगर उसे बार-बार उबाल लिया जाए तो….खैर, काफी दिनो बाद पत्नि ने कहा था, और गंगादीन भी उत्साहित थे कि इतने दिनों बाद दूध वाली चाय पिएंगे. दूध लाकर रख दिया गया, और गंगादीन पत्नि से कहे बिना प्रेस के छप्पर पर चले गए, पूरा दिन प्रेस किया और शाम को घर पहुंचे तो, ये कांड हुआ मिला. पत्नि को बताया नहीं था, और उसने दूध का पैकेट देखने में थोड़ी देर कर दी थी, जब देखा तो फौरन उसे उबालने के लिए गैस पर रखा, गैस पर उबलने से पहले दूध फट गया. गंगादीन की पत्नि इस दुर्घटना से बहुत हलकान हुई, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है. इसलिए उन्होने उस फटे दूध की पनीर की सब्जी बना ली और उसमें से थोड़ी सी खा ली.

जब शाम को गंगादीन पहुंचे तो उन्हें ये पता चला, अब यहां आपको ये बताता चलूं कि गंगादीन की दुकान पर जब दो से ज्यादा लोग आते हैं, तो अक्सर महंगाई और जी एस टी जैसी चीजों की बातें होती हैं. गंगादीन पिछले कुछ दिनों से लगातार ई डी और सी बी आई की रेड की खबरें सुन रहे थे. उन्होने वहीं ये खबर भी सुनी थी कि पनीर और दही पर जी एस टी लगा दिया गया है, और जो टैक्स चोरी करता है उसके घर ई डी की रेड पड़ जाती है. तो गंगादीन जब खाना खाने बैठे तो पत्नि ने वही पनीर की सब्जी के साथ रोटी लाकर रख दी, गंगादीन सिर्फ दीन ही नहीं हैं, मासूम भी हैं, रोटी खा गए और पत्नि से सब्जी की तारीफ भी कर दी. इसके बाद वो अपने चारपाई नुमा बिस्तर पर लेटे और पत्नि से फरमाइश कर दी कि दूध वाली चाय दे दे. पत्नि को आश्चर्य हुआ कि कैसा आदमी है जी, जिसने अभी पनीर की सब्जी खाई है और फिर उसी दूध की चाय मांग रहा है. लेकिन पत्नि ने बहुत ही शांत भाव से दूध-गाथा कही. गंगादीन को गुस्सा नहीं आता, वैसे भी पिछले कुछ सालों में दीन गुस्सा करना भूल गया है, वो असहाय होता है, विपदा को अपने सिर पर झेलता है, रोता है, लेकिन गुस्सा नहीं होता. दूध के इस हश्र के बारे में सोच कर बुरा लगा, जो इस संतोष के साथ ठीक हो गया कि चलो, चाय ना सही पनीर की सब्जी तो मिली. फिर लेटे-लेटे वो टीन की उस छत को ताकने लगे जिसकी वजह से रात को ये कमरेनुमा घर उन्हें नर्क की याद दिलाता था. ऐसे ही ताकते-ताकते मन में ख्याल आया कि जो पनीर पर जी एस टी लगा है, वो तो उन्होने दिया नहीं, और इस ख्याल के साथ ही उनकी खटखटिया मेज पर खड़े होकर लोगों की बातचीत के जो टुकड़े उनके कानों में पड़ते थे, वो बिल्कुल टीवी सीरीयल की तरह गूंजने लगे, दही पर जी एस टी, पनीर पर जी एस टी, ई डी की रेड, सी बी आई का छापा, मैं बेगुनाह हूं, सबूत कहां है, रसोड़े में कौन था…उनके माथे पर पसीना चुहचुहा आया. ये पसीना उन्हें अक्सर आता था, आज शायद पनीर की जी एस टी और ई डी की रेड का सोच कर आया. सिर घुमा कर देखा तो पत्नि नीचे दरी बिछा का लेटी थी और सो चुकी थी. एक बार सोचा कि उसे उठा कर बता दें, लेकिन फिर कुछ सोच कर इस ख्याल को दिल से निकाल दिया.

करवटें बदलते-बदलते आखिर उन्हें कब नींद आ गई पता ही नहीं चला, लेकिन जब आंख खुली तो सबसे पहले वही पनीर, जी एस टी और ई डी की रेड का ख्याल आया. बप्पा रे, ई डी वाले आजकल इतनी रेड कर रहे हैं, मंत्री हो, व्यापारी हो या कोई और, किसी को नहीं छोड़ रहे, और उनकी आंखों के आगे सवेरे-सवेरे तस्वीर घूम गई, जिसमें ई डी वाले उनके घर पर छापा मार रहे हैं, वो बर्तन जिसमें दूध फटा था, वो कटोरी जिसमें उन्होने पनीर की सब्जी खाई थी, उसे जब्त किया जा रहा है, ई डी वाले उन्हें गिरफ्तार करके ले जा रहे हैं, और पत्नि सड़क पर भागते-भागते गिर पड़ी है. उनके होशो-हवास गुम हो गए. उन्होने उस एक कमरे के अपने घर में व्याकुल निगाहें दौड़ाईं तो पत्नि कहीं दिखाई नहीं दी. शायद काॅलोनी के पीछे नाले के पास निवृत होने गई थी, वे धम्म से फिर बिस्तर पर बैठ गए, बैठे ही थे कि पत्नि आ गई. सचमुच निवृत होने गई थी, वे उसे सबकुछ बताना चाहते थे, लेकिन शायद घबराहट की वजह से प्रेशर बन गया था, इसलिए उसे कुछ बताने से पहले वो भी डिब्बा उठा कर निवृति के लिए भागे. सड़क पर भागते हुए, निवृति के लिए बैठते हुए, और बाद में भी, उनके मन में यही घूमता रहा कि बिना जी एस टी दिए जो पनीर उन्होने खाया है, उसका पता अगर ई डी को लग गया तो उनका क्या होगा?

घर पहुंच कर पत्नि को पास बिठाया और उसे बहुत धीरे से फुसफुसा कर बताया कि वो पनीर की सब्जी की बात किसी को ना बताए। क्या भरोसा अपनी ऐंठ दिखाने के लिए किसी को बता ही दे कि रात में हमने पनीर की सब्जी खाई थी. लेकिन पत्नी ने बताया कि वो तो कल ही ये बात डी 42 की कामवाली को बता चुकी है, जो उसकी सहेली थी. गंगादीन ने सिर पर हाथ मार लिया. लेकिन अब हो ही क्या सकता था, उनकी जान सूख गई. ये कामवाली बाइयां किसी बात को पेट में नहीं पचा सकतीं, वो पक्का किसी ना किसी को बताएगी, और फिर कहीं ना कहीं से बात ई डी तक पहुंचा जाएगी कि उनके घर में दूध फटा था, पनीर बना था, लेकिन जी एस टी नहीं दी गई थी. फिर ई डी का छापा, बर्तनों की छापेमारी, और हाथों में हथकड़ी, पत्नि का रोते हुए सड़क पर गिरना.

पूरे दिन उनके दिमाग में यही खटका चलता रहा. जो कोई भी आ रहा था, वो उन्हें अपनी ओर संदेह से देखता हुआ लगा. जैसे उन सबको पता हो कि उन्होने बिना जी एस टी चुकाए, पनीर खाया है. उनसे कपड़े ठीक से प्रेस नहीं हो पा रहे थे. मधु जी की मैक्सी जला दी, और नायर साहब की पैंट….वो इस सस्पेंस का बर्दाश्त नही कर पा रहे थे. उनके हाथ कांप रहे थे, दिल धुक-धुक कर रहा था. ई डी के अफसर अब पहुंचे, अब पहुंचे….दोपहर तक किसी तरह काम किया, जो भी उनके पास आ रहा था, उस पर संदेह था कि उसे पता चल चुका है कि वो घर में फटे दूध के पनीर की सब्जी खा चुके हैं और जी एस टी उन्होने नहीं चुकाया है. आखिर आधा लीटर दूध के पनीर पर कितना जी एस टी लगेगा, कौन हिसाब करेगा, अब क्या होगा….

गली के मोड़ पर एक क्वालिस आकर रुकी और उसमें से तीन-चार आदमी बाहर निकले, और इधर-उधर देखने लगे. उनके हाव-भाव देख कर गंगादीन को शक हुआ कि वो ई डी के आदमी हैं, और गंगादीन की बिना जी एस टी चुकाई पनीर के लिए छापा मारने आए हैं. गंगादीन की हवा गुम हो गई, उस वक्त एक कमीज़ प्रेस कर रहे थे, हाथ हवा में उठा रह गया, वे ध्यान से उन लोगों को देखने लगे, जिन्होने किसी लड़के को रोक लिया था और उससे कोई पता पूछ रहे थे. लड़के और उन लोगों के बीच की बातचीत समझ नहीं आ रही थी लेकिन गंगादीन को पता था कि वो उसी के बारे में पूछ-गिछ कर रहे हैं. फिर लड़के ने इशारा किया, गंगादीन की तरफ इशारा किया. गंगादीन की सिट्टी गुम….अब वो क्या करे, माथे पर पसीना और तेज़ हो गया, सांस उखड़ गई, और दिल रुक गया…..

अब गंगादीन की प्लास्टिक की टपरी उजड़ गई है. पत्नी ने कुछ दिनों तक प्रेस का काम संभालने की कोशिश की, लेकिन उससे काम नहीं हो पाया. फिर उसकी सहेली ने उसे दो-तीन घरों का काम दिलवा दिया, वो किसी तरह घसीट कर अपना घर चला रही है. उसे याद है कि गंगादीन ने उससे आखिरी बात यही की थी कि पनीर की सब्जी के बारे मे किसी को ना बताए. पर ये नहीं पता कि क्यूं…..
गंगादीन से गलती हो गई……
क्या गंगादीन से गलती हो गई…..
गंगादीन से आखिर क्या गलती हो गई….
गलती हो गई….गंगादीन से

First Published on:
Exit mobile version