भगत सिंह के 114वें जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर विशेष-
23 मार्च 1931 को भगत सिंह अपने साथी सुखदेव और राजगुरु के साथ फाँसी पर चढ़ गए. तीनों ही भारत में ब्रिटिश राज में ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन‘ संगठन में थे. ब्रिटिश हुक्मरानी की दासता के खिलाफ अवामी संघर्ष में शहीद हुए भगत सिंह (1907-1931) को अविभाजित भारत के प्रमुख सूबा, पंजाब की राजधानी लाहौर की जेल में फांसी पर चढ़ाया गया था. उन्होंने लाहौर में ही अपने सहयोगी, शिवराम राजगुरु के संग मिलकर ब्रिटिश पुलिस अफसर जॉन सैंडर्स को यह सोच गोलियों से भून दिया था कि वही ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट है जिसके आदेश पर लाठी-चार्ज में घायल होने के बाद लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी. भगत सिंह ने लाहौर की दीवारों पर पोस्टर लगा खुली घोषणा की थी कि उन्होंने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया है.
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल और लाहौर कांस्पिरेसी केस-2 में अंडमान निकोबार द्वीप समूह के सेलुलर जेल में ‘ कालापानी ‘ की सज़ा भुगत कर जीवित बचे अंतिम स्वतन्त्रता संग्रामी शिव वर्मा (1904-1997) ने निधन से एक वर्ष पहले लख़नऊ में 9 मार्च 1996 को उत्तर प्रदेश के तब के राज्यपाल मोतीलाल वोरा की उपस्थिति में ‘यूनाइटेड न्यूज ऑफ़ इण्डिया एम्प्लॉयीज फेडरेशन‘ के सातवें राष्ट्रीय सम्मलेन के लिखित उद्घाटन सम्बोधन में खुलासा किया था कि उनके संगठन ने आज़ादी की लड़ाई के नए दौर में ‘बुलेट के बजाय बुलेटिन‘ का इस्तेमाल करने का निर्णय किया था।
इसी निर्णय के तहत भगत सिंह को 1929 में दिल्ली की सेंट्रल असेम्बली की दर्शक दीर्घा से बम-पर्चे फ़ेंकने के बाद नारे लगाकर आत्म-समर्पण करने का निर्देश दिया गया था. यह कदम इसलिए उठाया गया कि भगत सिंह के कोर्ट ट्रायल से स्वतन्त्रता संग्राम के उद्देश्यों की जानकारी पूरी दुनिया को मिल सके. ये क्रांतिकारी, भारत को आज़ाद ही नहीं कराना चाहते थे बल्कि शोषणमुक्त समाजवादी समाज भी कायम करना चाहते थे. भगत सिंह इस क्रांतिकारी स्वतन्त्रता संग्राम के वैचारिक नेता थे.
कामरेड शिव वर्मा के अनुसार भगत सिंह ने कहा था: फाँसी पर चढ़ना आसान है. संगठन बनाना और चलाना बेहद मुश्किल है.
कामरेड शिव वर्मा उस सम्मलेन में खुद आये थे, लेकिन उनकी अस्वस्थता के कारण उनका लिखित उद्बोधन सम्मलेन के आयोजक फेडरेशन के महासचिव होने के नाते इस स्तम्भकार को बुलंद आवाज में पढ़ने का निर्देश दिया गया था. कामरेड शिव वर्मा के शब्द थे:
किसी पत्रकार ने लिखा था कि सोविएत रूस में बोल्शेविकों नें बुल्लेट का कम तथा बुलेटीन का प्रयोग अधिक किया था. हमारे भारतीय क्रांतिकारियों ने भी भगत सिंह के बाद अपनी आजादी की लड़ाई में बुलेट का प्रयोग कम करके बुलेटीन का प्रयोग बढ़ा दिया था. अब हमें जो लड़ाई लडनी है वह शारीरिक न होकर वैचारिक होगी.जिसमे हमें मीडिया रूपी ब्रह्मास्त्र की आवश्यकता होगी. विचारों क़ी स्वत्रंत्रता के लिए तथ्यात्मक समाचार आम जनता तक पहुंचाने का दायित्व यूएनआई एम्प्लॉयीज फेडरेशन जैसे संगठनों पर है. अखबारों को पूंजीवादी घराने से मुक्त करा कर जनवादी बनाया जाये. जिससे वह आर्थिक बंधनों से मुक्त होकर जनता के प्रति अपनी वफादारी निभा सके. मैं नयी पीढी को वैचारिक स्वत्रंता लाने के लिए प्रेरित करते हुए स्वत्रन्त्रा-संग्राम पीढी की ओर से शुभकामनायें देते हुए विश्वास करता हूँ कि हमारे तरुण पत्रकार अपना दायित्व निर्वाह करनें में निश्चय ही सफल होंगें.”
कामरेड शिव दा ने बाद में निजी बातचीत में ये भी कहा था कि मौजूदा हालात में हम देख रहे हैं कि संगठन तो बहुत हैं. लेकिन सुसंगठित कम ही हैं. समय की कसौटी पर खरी उतरी कामरेड शिव वर्मा की बात का मर्म ये है कि बिन सांगठनिक हस्तक्षेप के कोई व्यक्ति कुछ भी ख़ास नहीं कर सकता है. संगठन जितने भी बने अच्छा है लेकिन वे सुसंगठित हों. सभी समविचारी संगठनों के बीच कार्यशील सामंजस्य कायम हो सके तो और भी बेहतर होगा.
लम्पट पूंजीवाद के घोटालेबाजों का हालिया शिकार हुआ पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) अविभाजित भारत का सर्वप्रथम स्वदेशी बैंक है जिसकी स्थापना स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय (1865-1928) की पहल पर वर्ष 1895 में लाहौर के ही अनारकली बाज़ार में की गई थी.उन दिनों लाहौर एशिया का प्रमुख शैक्षणिक , सांस्कृतिक और राजनीतिक और वाणिज्यिक केंद्र भी था.
ब्रिटिश हुक्मरानी की दासता के खिलाफ अवामी संघर्ष में शहीद भगत सिंह (1907-1931) को अविभाजित भारत के प्रमुख सूबा, पंजाब की राजधानी लाहौर की ही जेल में फांसी पर चढ़ाया गया था.
शहीदे-आज़म, रूस में जारशाही के खिलाफ 1917 की महान बोल्शेविक क्रांति के जनक लेनिन के बड़े कायल थे. ट्रिब्यून (लाहौर) के 26 जनवरी 1930 के अंक में प्रकाशित दस्तावेज के अनुसार 24 जनवरी 1930 को लेनिन-दिवस के अवसर पर ‘लाहौर षड्यन्त्र केस’ के विचाराधीन क़ैदी के रूप में बंद भगत सिह अदालती सुनवाई के लिये पहुंचे तो उनकी गरदन पर लाल रूमाल बंधा था. वे क्रांतिकारी गीत गा रहे थे. उन्होने मजिस्ट्रेट के आने पर समाजवादी क्रान्ति ज़िन्दाबाद , साम्राज्यवाद मुर्दाबाद के नारे लगाये.
फिर भगतसिंह ने एक तार तीसरी इंटरनेशनल (मास्को) के अध्यक्ष के नाम प्रेषित करने के लिए मजिस्ट्रेट को दिया.
तार था: लेनिन-दिवस के अवसर पर हम सोवियत रूस में हो रहे महान अनुभव और साथी लेनिन की सफलता को आगे बढ़ाने के लिए दिली मुबारक़बाद भेजते हैं. हम खुद को विश्व क्रान्तिकारी आन्दोलन से जोड़ना चाहते हैं. मज़दूर राज की जीत हो. सरमायादारी का नाश हो. साम्राज्यवाद मुर्दाबाद !
भगत सिंह को लाहौर षड्यन्त्र केस में फांसी की सज़ा हो जाने के बद जब 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल की काल कोठरी में जेलर ने आवाज लगाई कि “भगत, फांसी का समय हो गया है, चलना पड़ेगा” तो जो हुआ वह इतिहास है.
काल कोठरी के अंदर से 23 वर्ष के भगत सिंह ने जोर से कहा: रुको! एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है. दरअसल, वह कामरेड लेनिन की किताब ‘कोलेप्स ऑफ़ सेकंड इंटरनेशनल‘ पढ़ रहे थे.